—विनय कुमार विनायक
बचाए रखनी होगी कथा कहने व सुनने की परम्परा
कहानी के मुख्य पात्र और सारे किरदार तो चले गए
मगर कथा में बची है उनकी जीवंत व्यथा की कथा!
अगर कोई जिंदा कौम भूल जाता कथा कहना सुनना,
तो ये उनके पूर्वजों के प्रति एहसान फरामोशी ही होगी
हो सकता धर्मग्रंथों में नहीं लिखा गया हो सारा वाकया
इतिहास में पक्षपात पूर्ण लेखन किया गया हो सकता!
मगर पूर्वजों से परम्परागत तौर पर सुनाई जा रही कथा
पीढ़ी दर पीढ़ी आती, झूठ न होती,झुठलाई ना जा सकती,
मिटाई नहीं जा सकती जेहन से, होती नहीं कभी मिथ्या!
हो सकता है किसी ने आरंभ से विज्ञान में ही पढ़ाई की हो,
कोई साहित्य संस्कृति इतिहास ज्ञान से वंचित रह गया हो,
काव्य कथा कहानी उपन्यास में तनिक भी अभिरुचि न हो!
फिर भी दादी और नानी ने कहानी तो अवश्य सुनाई होगी,
जिसमें दादा परदादा की दर्द भरी गुलामी की दास्तान होगी,
बहादुरी और शहादत के किस्से होंगे जिसे स्वयं अपने तक
सीमित नहीं करना, उसे अगली पीढ़ी को अवश्य सुना देना!
अवश्य सुनाना कि कैसे महमूद गजनवी ने गजब किया,
कहर बरपाया भारत की लाखों ललनाओं की इज्जत को
‘दुख्तरे हिन्दुस्तान, नीलामे दो दीनार’ में नीलाम किया!
कैसे पंचम गुरु अर्जुनदेव को जहांगीर ने गर्म तवे में पकाया?
कैसे नवम गुरु तेगबहादुर का औरंगजेब ने शीश कटवा दिया?
कैसे दशमेश पिता के दो पुत्रों को जीते-जी दीवार में चुनवाया?
कैसे जलियांबाग में पुरखों को डायर ने मौत की नींद सुलाया?
क्या भूल गए किस्सा कहानी के बाबा बंदा सिंह बहादुर को
जो जम्मू-कश्मीर के भरद्वाज गोत्री ब्राह्मण लक्ष्मण देव से
गुरु गोविंद सिंह के छोटे साहिबजादों के बलिदान का बदला
मुगलों से चुकाने के लिए खालसा के सिख सिंह बन गए थे,
जिन्हें मुगल फरुखशियार ने बोटी बोटी कर कत्ल करा दिए!
जिन देशों ने किस्सा कहानी कहना व सुनना बंद कर दिया,
सिर्फ ईश्वर अल्लाह रब को गुहारने में ही वक्त किया जाया,
उन देशों का अतीत मर गया, वर्तमान भी लहूलुहान हो गया,
भविष्य में बैसाखी पर चलने वाला लंगड़ा लूल्हा कौम उगेगा,
अस्तु बचाए रखनी होगी कथा कहने सुनने की परम्परा को!
अपनी परम्परा को मत तौलो किसी जाति धर्म की तुला पर,
अगर किसी मनुष्य ने सनातन धर्म परम्परा में जन्म लिया
तो उसका दायरा सिर्फ हिन्दू धर्म तक सीमित नहीं हो सकता,
वो एक साथ जैन बौद्ध सिख आर्य समाजी मानववादी होता,
सर्वधर्म पंथ की भलाई करना सनातन धर्म का दायित्व होता!
अब ठीक नहीं वर्ण और जातिवाद के सहारे जीने का नजरिया,
वर्णश्रेष्ठता जातिवाद व मजहबपरस्ती ने हमें बहुत गिरा दिया,
इन दुर्गुणों को त्याग दें तो फिर हिन्दुत्व से कौन बेहतर होगा?
हिन्दू एकसाथ करते रामकथा,गुरुग्रंथ पाठ,जिन-बुद्ध परिचर्या!
—विनय कुमार विनायक