मोदी सरकार का सच और संघर्ष

वै.राजेश कपूर।
कुछ लोग कह रहे हैं कि सब दल व सरकारें बराबर हैं, एक जैसी हैं। नहीं! हम इस बात से सहमत नहीं। ये लोग तथ्यों की अनदेखी कर रहे हैं।

  1. आज से पहले जिहादी, तबलीगियों के विरुध्द मीडिया पर ऐसी जबरदस्त डिबेट कब हुई? कभी नहीं। सदा हिन्दूओं के विरुद्घ ही बात होती थी।
  2. देश का सम्मान विश्व में बहुत बढ़ा है, इसमें कोई सन्देह नहीं।
    3.सरकारी संरक्षण में होनेवाली ऐण्टिक्स की तस्करी मोदी सरकार कहाँ कर रही है? पता है ना हर सप्ताह करोड़ों रुपए की तोश की शालें, पुरातत्व सामग्री सरकारी संरक्षण में भारत से बाहर जाती थी।
  3. वैज्ञानिकों की हत्याएं बन्द हुई हैं कि नहीं? राजनैतिक हत्याएं भी बन्द हैं। जैसे सिंधिया, टाईटलर, इंदिरा, राजीव गाँधी आदि।
  4. हर मास यान, जेट दुर्घटनाएं अब कहाँ हैं? हमारे पायलेट मरना बन्द हैं।
    6.देश में बम विस्फोट बन्द। हर जगह लिखा होता था, सावधान बम हो सकती है।
  5. निश्चित रूप से सेना शक्तशाली हुई, उसका मनोबल बढ़ा है। पहले वे अतंकियों पर वे गोली नहीं चला सकते थे, उनपर रोक थी, मेरे मित्र सैनिक व सेनाधिकारी बताते थे। अब घुसकर मारते हैं।
  6. अफ़जलवादियों का देश व विश्वविद्यालयों में दबदबा था। अब तो नहीं!
  7. जिहादियों की पैठ पीऐमओ तक थी। अब कहाँ है?
  8. सरकारी संरक्षण में पाकिस्तानी आतंकी भारत में हमले, विस्फोट करते थे। भयावह परिस्थितियाँ थीं। अब कहाँ हैं?
  9. जिहादियों को आर्थिक सहयोग सारे संसार के जिहादी देते थे। उनकी आर्थिक सप्लाई लाईन काट दी गई है, वे तड़प रहे हैं।
  10. कश्मीर में धारा 370 समाप्त करना असम्भव माना जाता था। जिहादी हमारी छाती पर दनदनाते थे। डंके की चोट पर बोलते थे धारा 370 समाप्त करना तुम्हारे बस की बात नहीं कर के दिखाओ। वह कमाल का काम हुआ कि नहीं? 14. अन्तर्राष्ट्रीय जमातियों का केन्द्र बन्द हुआ। अन्यथा जिसको पता ही नहीं था कि भारत में भारत के विरुद्ध जहर भरने वाला एक दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र चलता है।
  11. हिन्दू विरोधी कानून बनने से रुका। अल्पसंख्यक की एक शिकायत पर किसी भी बहुसंख्यक को वर्षों तक जेल में सड़ाया जा सकता था, ऐसे कानून का प्रस्ताव सोनिया सरकार बना चुकी थी।
    16.नेहरू जी के समय से जेऐनयू में सरकारी खर्चे पर देशद्रोहियों को पालने-पोसने का काम निर्बाध चल रहा था। यह विश्वविद्यालय देशद्रोही तैयार करने की एक प्रयोगशाला बना हुआ था और एक वेश्यालय की तरह परिसर का प्रयोग हो रहा था।उस तंत्र को तोड़ा गया।
  12. पहली बार हुआ है कि सारे देशद्रोही सपोले बिलों से बाहर आए हैं। उनके चेहरों पर पड़े पर्दे पहली बार हटे हैं और देश को उनकी वास्तविकता पता चली है।
  13. पाकिस्तान का ऐसा दिवाला निकालदिया कि भारत के जिहादियों की सहायता करना कठिन हो गया है। बिना लड़े उसकी दुर्दशा कर दी है।
    19.इसाईकरण करने वाली हजारों ऐनजीओ बन्द कर दी हैं। धर्मांतरण के लिए आने वाला लाखों करोड़ों रुपया रुक गया है।
  14. मानव अंगों की तस्करी करने वाले, धर्मांतरण करने वाले अनेक ईसाई केंद्र समाप्त हुए हैं।
  15. रिश्तेदारों को करोड़पति और अरबपति बनाने का उद्योग बंद है।
  16. फिरौती वसूल करना, रंगदारी के अधिकाँश अनैतिक उद्योग बंद हैं।
  17. मरते, डूबते, दिवालिया होते बैंक फिर से जीवित हो गए हैं। एनपीए की इतनी वसूली पिछले अनेक दशकों में कभी नहीं हुई।
  18. फिर भी समझ नहीं आता तो बंगाल, केरल, झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान में हिंदुओं की दुर्दशा देख लो। हिंदू झंडा, प्रतीक लगाने पर; जिहादियों की आलोचना करने पर जेलों में ढूंसा जा रहा है, मुकदमे बनाए जा रहे हैं।
  • और भी इस सूची में बहुत कुछ ईमानदारी से जोड़ा जा सकता है।
  • क्या यह सब हमको नजर नहीं आता? या हम देखना नहीं चाहते? हमारा एजेण्डा सही है न?
  • फिर कैसे कहदें कि दोनो बराबर हैं? इतना बड़ा झूठ मत बोलो। अपने रक्षकों को बदनाम मत करो, कृतघ्न मत बनो। वरना कल को तुम्हारा रखवाला कोई न होगा, कश्मीरियों जैसी दुर्दशा होगी।
  • माना बहुत कुछ ऐसा भी है जो हमारी पसंद का नहीं। पर ऐसा भी बहुत कुछ अच्छा है जो गत 70-72 सालों में कभी नहीं हुआ।
    *जितना सही है उसको तो सही बोलो। जो सही नहीं उसके लिये लड़ो।
  • जो सही नहीं है, उसे सही करने के लिए संघर्ष करने में हम आपके साथ हैं, हम मिलकर संघर्ष करेंगे।
  • ऐसे अनेक मुद्दे हैं जिन पर हमें सरकार के विरुद्ध संघर्ष करना है दबाव बनाना है। जैसे कि….
  1. किसानो की दुर्दशा। स्वदेशी बीजों से स्वदेशी तकनीकों से कम खर्च में अधिक उपज लेने के तरीकों को लागू करने के लिए संघर्ष।
  2. चिकित्सा क्षेत्र में एलोपैथी और व्यापारियों का वर्चस्व समाप्त करके स्वदेशी चिकित्सा तकनीक को स्थापित करने के लिए संघर्ष।
  3. औद्योगिकरण और पश्चिमीकरण के आधार पर भारत को विकसित करने के प्रयासों के विरुद्ध संघर्ष।
  4. स्वदेशी के आधार पर विकसित भारत बनाने के लिए संघर्ष।
  5. नकारा बनाने वाली मैकालियन शिक्षा पद्धति को बदलकर स्वाबलंबी गुरुकुलीय शिक्षा को फिर से प्रारंभ करने के लिए संघर्ष।
  6. सामान्य दैनिक उपयोग के उत्पादों के उत्पादन के लिए विदेशी उद्योगों की घुसपैठ समाप्त करके स्वदेशी कुटीर उद्योगों का प्रारंभ करने के लिए संघर्ष।
  7. गोवंश आधारित उद्योगों, कृषि तथा स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने हेतु संघर्ष।
  8. पूर्ण गोहत्या बंदी हेतु संघर्ष।
  • इन मुद्दों पर मोदी सरकार के साथ संघर्ष करने के लिए हम राष्ट्रवादी शक्तियों के साथ हैं।

पर इतना स्पष्ट है कि हम मोदी सरकार को दुर्बल बना कर जिहादियों, धर्मांतरणकारियों, राष्ट्र विरोधियों को बल देने वाला कोई काम नहीं करेंगे।

भारत के भीतर बैठी देश विरोधी ताकतों से निपटने के बाद ही हम मोदी सरकार के साथ संघर्ष के मैदान में उतरेंगे।

अभी देश विरोधियों के साथ निपटने में हम मोदी के साथ एकजुट होकर काम करेंगे।

यही कूटनीति है, यही चाणक्य नीति है, यही राष्ट्र नीति है। देश, समाज, धर्म और संस्कृति के हित में यही ठीक है।

इस योजना में संशोधन, परिवर्तन के लिए कोई सुझाव हो तो उनका सदा सादर, खुले मन से स्वागत है।

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डॉ. राजेश कपूर
लेखक पारम्‍परिक चिकित्‍सक हैं और समसामयिक मुद्दों पर टिप्‍पणी करते रहते हैं। अनेक असाध्य रोगों के सरल स्वदेशी समाधान, अनेक जड़ी-बूटियों पर शोध और प्रयोग, प्रान्त व राष्ट्रिय स्तर पर पत्र पठन-प्रकाशन व वार्ताएं (आयुर्वेद और जैविक खेती), आपात काल में नौ मास की जेल यात्रा, 'गवाक्ष भारती' मासिक का सम्पादन-प्रकाशन, आजकल स्वाध्याय व लेखनएवं चिकित्सालय का संचालन. रूचि के विशेष विषय: पारंपरिक चिकित्सा, जैविक खेती, हमारा सही गौरवशाली अतीत, भारत विरोधी छद्म आक्रमण.

1 COMMENT

  1. वैद्य राजेश कपूर जी द्वारा प्रस्तुत आलेख, मोदी सरकार का सच और संघर्ष, अवश्य ही मेरे विचार में इंडिया को पुनः भारत में परिवर्तित किये जाने के लक्ष्य की प्राप्ति में उनका महत्वपूर्ण योगदान एक ऐसा प्रयास समझा जाना चाहिए जो परम्परागत भारतीय को फिर से उसकी संस्कृति से जोड़ते, उसे जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक है| लोकतंत्र में ऐसे प्रयोजन सामूहिक ढंग से शासन और स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रोद्योगिकी, उद्योग इत्यादि सामाजिक क्षेत्रों में अग्रणियों के बीच परस्पर सहयोग व भागीदारी द्वारा बड़ी कुशलतापूर्वक उपार्जित किये जा सकते हैं| यह भी सच है कि विकास-उन्मुख राष्ट्रीय शासन द्वारा दीर्घ कठिनाइयों के बीच बहुत से कार्य संपन्न किये जा चुके हैं व अन्य बहुत से कार्यों को कर पाने हेतु संघर्ष की आवश्यकता है|

    यहाँ हमें सावधान रहना होगा कि संघर्ष राष्ट्रीय शासन के विरुद्ध कोई विचारधारा नहीं बल्कि शासन के साथ भागीदारी द्वारा सामाजिक पुरुषार्थ भारत-पुनर्निर्माण का लक्ष्य होना चाहिए|

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