नेहरू मेमोरियल पर नकारे मनमोहन सिंह की बेमानी चिट्ठी का सच

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डॉ मनीष कुमार

जैसे मछली पानी से बाहर निकलते ही छटपटाने लगती है, उसी तरह देश का लेफ्ट-लिबरल गैंग नेहरू मेमोरियल को लेकर छटपटा रहा है. छाती पीट पीट पर कह रहा है मोदी सरकार नेहरु के विरासत को नष्ट करना चाहती है. इसी एजेंडे के तहत नेहरू मेमोरियल में बदलाव किया जा रहा है. हाय-तौबा ऐसा कि मानों नेहरू मेमोरियल से नेहरू के सामानों, किताबों और उनकी यादों से जुड़ी चीजों को सरकार उठाकर बाहर फेंक रही है. इस गैंग की असल में पीड़ा क्या है इसका राज आगे बताउंगा. लेकिन पहले सोनिया गांधी की अनुकंपा से प्रधानमंत्री बने मनमोहन सिंह की करतूत को समझते हैं.

मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा. नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी के स्वरूप में बदलाव पर आपत्ति जताई. उन्होंने लिखा नेहरू सिर्फ कांग्रेस के नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र के हैं, इसलिए तीन मूर्ति कॉम्प्लेक्स में कोई भी छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. मनमोहन सिंह ने चिठ्ठी प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी और उसकी कॉपी अपने चहेते कांग्रेसी मीडिया को दे दिया. खेल शुरु हो गया. दिन भर टीवी पर बहस होता रहा. राजनीतिक दलो की कॉमेडी शुरु हो गई. कांग्रेस पार्टी का हायतौबा मचाना जायज है. लेकिन, नोट करने वाली बात ये है कि स्वतंत्रा संग्राम के दौरान गांधी और नेहरू को पानी पी पी के गालियां देने वाले वामपंथी भी नेहरू की गुणगान करने लगे. बाकी तथाकथित मोदी विरोधी पार्टियों की बात जाने दीजिए क्योंकि उनकी न तो कोई विचारधारा है और न ही समझ. बीजेपी की निंदा करने के लिए कभी भी पैरों में घुंघरू बांध कर नाचना शुरु कर देते हैं.

समझने वाली बात ये है कि तीनमूर्ति भवन में सिर्फ नेहरू जी की यादे ही नहीं है. दरअसल, ये कभी 40 एकड़ में फैला हुआ कॉम्प्लेक्स था. लेकिन इसका बहुत बड़ा हिस्सा नेहरु प्लेनेटोरियम, दिल्ली पुलिस आदि को दे दिया गया है. अब जो जमीन बची है वो 25 एकड़ के करीब है. इसमें एक ऑडिटोरियम है, लाइब्रेरी है, कैंटीन है, दफ्तर है, स्कॉलर्स के चैम्बर्स हैं इन सब का नेहरू के जीवन से कोई लेना देना नहीं है. यहां नेहरू जी की जिंदगी और उनकी यादों से जुड़ी अलग से एक म्यूजियम है.

इस पूरे कॉमप्लेक्स में म्यूजियम सिर्फ एक एकड़ जमीन पर है. वहीं पांच एकड़ जमीन पर बिल्डिंग बनी हैं और बाकी के 19 एकड़ जमीन पर गार्डन और गंदगी है. हकीकत ये है कि सरकार नेहरू मेमोरियल एंड म्यूजियम के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं कर रही है. उसे छुआ तक नहीं जा रहा है. मेमोरियल के पीछे खाली जमीन पर बाकी प्रधानमंत्रियों की यादों को समेटने के लिए म्यूजियम का निर्माण होना है. ठीक उसी तरह जिस तरह राष्ट्रपति भवन के अंदर सभी पूर्व राष्ट्रपतियों के लिए म्यूजियम बनाया गया है. नेहरू के बाद के प्रधानमंत्रियों के लिए जो म्यूजियम बनेगा वो नई तकनीक और इंटररेक्टिव होगा. इसका उद्देश्य एक ही जगह पर सारे प्रधानमंत्रियों के बारे में पूरी जानकारी लोगों के लिए मुहैय्या कराना है. नेहरू जी के म्यूजियम में कोई बदलाव नहीं होने वाला है. दरअसल, इससे तीन मूर्ति भवन की प्रसिद्धी और भी बढ़ जाएगी. इसलिए, हाय तौबा मचाने का कोई तर्क नहीं है. फिर भी, झूठ बोल बोल के इसे बड़ा मामला बना दिया गया है.

मनमोहन सिंह ने अपने पत्र में ये भी लिखा कि अटल बिहारी वाजपेयी का प्रधानमंत्री कार्यकाल छह वर्षों का था, लेकिन उस कार्यकाल के दौरान नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी के स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया गया. सवाल ये है कि मनमोहन सिंह जब 10 साल तक प्रधानमंत्री की नौकरी कर रहे थे तब उन्होंने क्या किया और क्या नहीं किया? दरअसल, जिस नेहरू की विरासत को नष्ट करने की बात कांग्रेस और मनमोहन सिंह कर रहे हैं वो तो यूपीए सरकार के दौरान ही नष्ट हो चुकी है. जिस चीज के खोने की चिंता में लेफ्ट-लिबरल गैंग छाती पीट रहा है वो कब का खत्म हो चुका है. जो लोग आज मोदी सरकार के अच्छे प्रयासों पर विधवाविलाप कर रहे हैं यही लोग यूपीए के दौरान ये दावा कर रहे थे कि नेहरू मेमोरियल अपनी साख खो चुका है.. पूरी तरह से चौपट हो गया है.

ये बात 2009 की है. उस दौरान नेहरू मेमोरियल लेफ्ट-लिबरल गैंग का अड्डा हुआ करता था. लेकिन अचानक इस लुटियन गैंग के बीच नेहरू मेमोरियल को लेकर गैंग-वार शुरु हो गया. दरअसल, शुरु से ही सोनिया-राहुल परिवार नेहरू मेमोरियल को अपनी खानदानी जायदाद यानि जागीर समझता रहा है. सोनिया गांधी ने अपनी मित्र जेएनयू की वामपंथी/कांग्रेसी इतिहासकार मृदुला मुखर्जी को इसका डायरेक्टर बनाया था. जिसके बाद से यहां लुटियन गैंग के बीच दरार पड़ गई. देश के 57 इतिहासकार, समाजशास्त्री और राजनीतिशास्त्रियों ने तत्तकालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिख कर हस्तक्षेप करने की मांग की थी. मनमोहन सिंह उस दौरान कल्चर मिनिस्टर भी थे जिसके तहत नेहरू मेमोरियल आता है.

इन बुद्धिजीवियों का आरोप ये था कि नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय का नियंत्रण एक ऐसे गुट के हाथ में आ गया, जिसके लिए न संस्थागत तौर-तरीकों का महत्व है और न बौद्धिक कार्य का. यह गुट संस्था का इस्तेमाल अपने हितों के लिए के लिए एक परिवार (सोनिया-राहुल) के महिमा मंडन के लिए कर रहा था. मनमोहन सिंह को पत्र लिखने वालों में लुटियन गैंग के कई बड़ी हस्तियां शामिल थी. जैसे कि रामचंद्र गुहा, सुमित सरकार, महेश रंगराजन, राजमोहन गांधी, सुनिल खिल्लानी, निवेदिता मेनन, मुशीरूल हसन, नयनजोत लाहिड़ी आदि. ये लोग चाहते थे कि इस संस्था को चापलूसों से मुक्त करके पेशेवर और स्वतंत्र सोच वाले इतिहासकारों के हवाले किया जाए.

इनका आरोप ये था कि नेहरू मेमोरियल यूथ कांग्रेस का दफ्तर बन गया है. हर दिन राहुल गांधी यहां यूथ कांग्रेस की मीटिंग करते है और यहां के स्टाफ उनकी चाय पानी की व्यवस्था में जुटे रहते हैं. इतना ही नहीं, 21 जून 2010 को रामचंद्र गुहा ने आउटलुक मैंगजीन में अपने एक लेख में ये दावा किया कि कल्टर मिनिस्ट्री ने सी राजगोपालाचारी पर पुस्तक प्रकाशित करने के लिए पांच करोड़ रुपये दिए. जिसे मृदुला मुखर्जी के आदेश पर एक निजी ट्रस्ट को ट्रांसफर कर दिया. इस ट्रस्ट की चेयरमैन सोनिया गांधी है और इसके सारे स्टाफ कांग्रेसी है. पांच करोड़ रुपये को सोनिया गांधी के ट्रस्ट ने बैंक में फिक्स कर दिया. आज तक न तो कोई किताब आई है और न ही किसी को ये पता चल सका कि पैसा कहां गया. क्योंकि आरोप ये भी है कि इस डील की फाइल नेहरू मेमोरियल में ही जला दी गई. अब ऐसी स्थिति में मनमोहन सिंह को 57 लोगों की शिकायत मिली तो उन्हें एक्शन लेना चाहिए था.. लेकिन शिकायत में सोनिया गांधी और राहुल गांधी का भी जिक्र था तो इनके हाथ पांव फूल गए. मामले को रफादफा करने के लिए मृदुला मुखर्जी के समर्थन में 75 इतिहासकार ने पत्र लिखा. मनमोहन सिंह ने मौन धारण कर लिया और शिकायत करने वाले लोगों को भी एक लाचार प्रधानमंत्री की नकारेपन और मज़बूरी का पता चल गया. ये मसला शांत हो गया.

यहां कई सवाल उठते हैं. जब नेहरू मेमोरियल के जमीन दूसरी संस्थाओं को दी गई तब क्या नेहरू की विरासत को ठेस नहीं पहुंची? जब नेहरू मेमोरियल को राहुल गांधी ने यूथ कांग्रेस का दफ्तर बना दिया तब क्या इसकी साख खत्म नही हुई? जब सोनिया गांधी ने चाटूकारों और अपने मित्र मंडली के लोगों की नियुक्ति की तब नेहरू जी की प्रतिष्ठा नहीं घटी? जब नेहरू मेमोरियल के नाम पर पांच करोड़ रुपये की घपलेबाजी हुई तब नेहरू की महानता का किसी को ख्याल क्यों नहीं रहा? और तो और जब फाइलें जला दी गई तब नेहरू जी के आदर्शों की याद किसी को क्यों नहीं आई ? और जब ये सब हो रहा था तब मनमोहन सिंह दंतहीन विषहीन प्राणी की तरह चुपचाप क्यों देखते रहे.. तब उन्हें नेहरू की विरासत की परवाह नहीं थी क्या? अब जब नेहरू मेमोरियल में कुछ अच्छा हो रहा है चिट्ठी लिखकर मनमोहन सिंह ढोंग क्यों कर रहे हैं?

ऐसा लगता है कि मनमोहन सिंह ने चिट्ठी लिखी नहीं, उन्हें चिट्ठी लिखने कहा गया है. राहुल गांधी और सोनिया नहीं लिख सकते थे क्योंकि उन पर लगे आरोप सामने आ जाता और लेने के देने पड़ गए होते. दरअसल, मोदी सरकार जब से आई है तब से वामपंथी/कांग्रेसी चाटुकारों को चुन चुन कर इन जगहों से हटाया जा रहा है. ये जरूरी भी है. नेहरू मेमोरियल से लुटियन गैंग का पूरी तरह तो नहीं फिर भी बहुत कुछ सफाया हो चुका है. अभी भी वहां कुछ कांग्रेसी चाटुकार बैठे हैं जिनकी नियुक्ति यूपीए के समय से हुई है. लेकिन जो लोग यहां से बेदखल कर दिए गए हैं.. जिनकी कमाई बंद हो गई है.. उन्होंने बेवबह मुद्दा उठाया है ताकि सरकार को बदनाम किया जा सके. इसका राजनीतिक फायदा उठाया जा सके.

नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री हैं. उनका स्वतंत्रता संग्राम में योगदान रहा है. आजादी के बाद भी प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने भारत के गौरव को बढ़ाया है. हां.. कुछ फैसले गलत भी उन्होंने लिए.. जिससे देश का नुकसान हुआ है. लेकिन स्वतंत्रता संग्राम से जुडे दिवंगत महापुरुषों की कमियों पर बहस बेमानी है. इसमें कोई शक नहीं है नेहरू का नाम इतिहास के पन्नों से हटाया नहीं जा सकता वो इसलिए कि उनकी विरासत सोनिया राहुल की जागीर नहीं है… उस पर सबका हक है. इसिलए जो लोग छाती पीट पीट पर मोदी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं वो झूठे हैं..देश को गुमराह कर रहे हैं.

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