मनमोहन कुमार आर्य,
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के शरदुत्सव के दूसरे दिन सांयकालीन व रात्रिकालीन सत्संग का आरम्भ भजनों से हुआ। प्रथम आर्य भजनोपदेशक श्री आजाद सिंह लहरी ने एक भजन सुनाया जिसके बोल थे ‘ओ३म् नाम का सुमिरन कर ले कह दिया कितनी बार तुझे’। इसके बाद सहारनपुर से पधारे भजनोपदेशक श्री रमेश चन्द्र स्नेही जी ने भी एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘सृष्टि से पहले अमर ओ३म् नाम था आज भी है और कल भी रहेगा।’ कार्यक्रम के संयोजक यशस्वी श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने पं. नरेशदत्त आर्य जी को भजनों के लिये आमंत्रित करते हुए उनके ऋषि भक्ति के गुणों का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि उनका पूरा परिवार आर्यसमाज व उसके कार्यों को समर्पित भाव से करता है। उन्होंने कहा कि पं. नरेशदत्त आर्य व उनके परिवार को चलता फिरता आर्यसमाज कह सकते हैं। पंडित नरेशदत्त जी को आधे घण्टे का समय दिया गया। उन्होंने अपने सभी भजन भूमिका सहित प्रस्तुत किये। पं. नरेश दत्त आर्य जी ने पहला भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘वेद मन्त्र के शब्द शब्द में अद्भुद ज्ञान भरा है, ये ईश्वर का ज्ञान है ऋषियों के दिल में उतरा है। आओं गायें आओ गायें।’ पंडित जी ने दूसरा जो भजन प्रस्तुत किया वह लक्ष्मण व रावण के संवाद रूप में था जिसमें रावण का मृत्यु से पूर्व लक्ष्मण को उनकी प्रार्थना पर उसके द्वारा सुनाया गया अनुभव व राजनीति के कुछ अनुभूत सिद्धान्त थे। भजन की एक पंक्ति थी ‘नहीं अपने पराये की जो कुछ पहचान कर सकता तो मित्रों ये समझ लेना तबाही की यह निशानी है।’ पं. नरेश दत्त आर्य जी ने तीसरा भजन प्रस्तुत किया। इस भजन के बोल थे ‘भूल के भी न खेलना जुआं रहा नहीं कहीं का जिसने इसे छुआ।’ आचार्य नरेश दत्त आर्य ने कौन बनेगा करोड़पति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि बताओं! बच्चों को यह कार्यक्रम पुरुषार्थी बनाता है या उन्हें निकम्मा बनाया जा रहा है?कार्यक्रम के संयोजक ने अपनी एक टिप्पणी में कहा कि कहा जाता है कि कुम्भकरण 6 महीने सोता था और 6 महीने जागता था। हम भी तो वर्ष में 6 महीने सोते हैं और 6 महीने जागते हैं। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। सत्यार्थी जी ने कहा कि वर्ष में 12 महीने होते हैं। एक दिन में 12 घंटे का दिन और इतना समय ही रात्रि का माना जाता है। हम वर्ष में कुल 6 महीने जागते हैं और 6 महीने सोते हैं। इसके बात आर्यसमाज के स्थानीय विद्वान एवं आर्यसमाज लक्ष्मण चौक के पुरोहित पं. रणजीत शास्त्री जी का प्रवचन हुआ। उन्होंने कहा कि यदि हमारे पण्डितों ने आर्ष ग्रन्थ पढ़े होते तो मुहम्मद गौरी ने सोमनाथ का जो मन्दिर तोड़ा था, वह तो क्या मुहम्मद गौरी एक पत्थर भी न तोड़ पाता। उन्होंने कहा कि हमारे ऋषि सत्य की खोज व अन्वेषण किया करते थे। ईश्वर ने सृष्टि के आरम्भ में मनुष्य जीवन के सुख व कल्याण के लिये वेदों का ज्ञान दिया है। सभी को सत्यार्थप्रकाश पढ़ने की विद्वान वक्ता ने सलाह दी। उन्होंने सावधान किया कि अपने भीतर अहंकार को स्थान न दें। उन्होंने कहा कि छोटे व बड़े के लफड़े में जो नहीं पड़ता और उनसे दूर रहता है वही वस्तुतः बड़ा होता है। पं. रणजीत शास्त्री जी ने कहा कि आर्ष ग्रन्थों के अध्ययन से जीने का आदर्श ढंग आपको मिलेगा। शास्त्री जी ने अंग्रेजी भाषा की अनेक विसंगतियां उदाहरण देकर बताई। संस्कृत को उन्होंने सर्वोत्तम भाषा बताया। शास्त्री जी गुरुकुल एटा में पढ़े हैं और ब्रह्मचर्य से युक्त जीवन व्यतीत कर रहे हैं। शास्त्री जी ने कहा कि हमारा ज्ञान हमारी मातृ भाषा में होना चाहिये। उन्होंने कहा कि जब जीना ही है तो ढंग से जीओ। दुःख को धैर्य पूर्वक सहन करने से मनुष्य की महत्ता का ज्ञान होता है। उन्होंने सबको संघर्ष एवं पुरुषार्थ करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि विवाह में दुल्हा पीछे रहता है और बाराती आगे चलते हैं। जनाजे में जनाजा आगे होता है और लोग उसके पीछे चलते हैं। उन्होंने कहा कि दुःख पड़ने पर मित्र व सम्बन्धी हमारे पीछे रहते हैं और खुशियों के अवसर पर आगे रहते हैं। विवाहेत्तर सम्बन्ध पर पिछले दिनों कानून में जो परिवर्तन हुआ है उसका उल्लेख कर उन्होने कहा कि इससे हमारी युवापीढ़ी बिगड़ जायेगी। ऐसी व्यवस्थाओं से युक्त संविधान से किसी का भला होने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि वर्तमान कानून व व्यवस्था में अनेक बातें ईश्वर के ज्ञान वेदों के विरुद्ध हैं। समयाभाव के कारण पण्डित रणजीत शास्त्री जी के व्याख्यान को यहीं विराम देते हैं।
इसके बाद पं. सत्यपाल पथिक जी का एक भजन हुआ। पथिक जी ने अपनी प्रस्तुति में अनेक बातों को बताया। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानन्द मथुरा में गुरु विरजानन्द जी से लगभग पौने तीन वर्ष पढ़े। गुरु विरजानन्द जी ने उन्हें कहा था कि आर्ष व अनार्ष ग्रन्थों की कसौटी को अपने हाथ से मत जाने देना। उन्होंने दयानन्द जी को कहा था कि तुम्हें वेदों का प्रचार करना होगा। लोगों को आर्ष ग्रन्थों को पढ़ने की प्रेरणा करनी होगी। पथिक जी ने कहा कि स्वामी विरजानन्द जी ने दयानन्द जी को बताया था कि जिन ग्रन्थों में ऋषि मुनियों की निन्दा होती है वह अनार्ष ग्रन्थ होते हैं। इसे मत भूलना। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द जी ने जो कार्य किया उसकी मिसाल नहीं मिलती। इसके बाद पंडित सत्यपाल पथिक जी ने अपना एक बहुत प्रसिद्ध गीत वा कव्वाली को गाकर सुनाया जिसके बोल थे ‘हमारे देश की महिमा बड़ी सुहानी है सबसे निराली है सबसे पुरानी है।’ भारत के स्वर्णिम समय का वर्णन करने वाले इस गीत की हमने वीडियो रिकार्डिंग भी की है। यदि आज समय मिला तो हम इसे फेस बुक पर प्रस्तुत करेंगे। लगभग 6 मिनट का यह गीत है।
मुख्य प्रवचन आर्यसमाज के शीर्ष विद्वान एवं मधुर व सरल भाषा में अपने विषय को समझाने वाले पं. उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का हुआ। अपने उपदेश के आरम्भ में उन्होंने कहा कि ऋषि वह होता है जो समाधि अवस्था में वेद मंत्रों के रहस्यों को समझता है। वह ऋतम्भरा बुद्धि से युक्त होता है। उसका मस्तिष्क सत्य से भरा होता है। वह जो बोलता व लिखता है वह सत्य ही होता है। उसके वचनों में मिथ्या का लेश भी नहीं होता। वह परा व अपरा विद्या को भी जानता है। ऋषियों के ग्रन्थों में मिथ्या लेख नहीं होता। अनार्ष ग्रन्थों की चर्चा कर आचार्य कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि इन ग्रन्थों के लेखक ऋषि और ऋतम्भरा बुद्धि वाले नहीं होते। इनके ग्रन्थों में सत्यासत्य दोनों प्रकार की बातें होती हैं। साधारण मनुष्य अनार्ष ग्रन्थों को पढ़कर सत्यासत्य का भेद नहीं कर पाता। आचार्य जी ने अपने एक मित्र के साथ हुए पुराणों में असत्य व अश्लील प्रकरणों पर एक वार्तालाप भी सुनाया और उसके अन्तर्गत शिव, पार्वती, गणेश आदि की मिथ्या कथा का उल्लेख किया। कथा में बताया जाता है कि पार्वती जी ने गणेश को अपने हाथों की मैल से उत्पन्न किया था। शिवजी और गणेश में एक हजार वर्ष तक युद्ध होता रहा और अन्त में उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का शिर काट दिया। आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने इस पूरी कथा का युक्ति प्रमाणों से खण्डन किया और बताया कि यह ऐतिहासिक सत्य नहीं है अपितु कपोल कल्पित है। उनके मित्र भी उनकी बातों से सहमत हो गये थे।
आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि वेद और 18 पुराणों के ज्ञान में बहुत अन्तर है। आर्यसमाज के सदस्य इस बात को भली प्रकार से समझते हैं परन्तु हमारे पौराणिक भाई और उनके अनुयायी व साधारण जन नहीं समझते। उन्होंने कहा कि बाइबिल व कुरान ग्रन्थ में पृथिवी विषय जो बातें हैं वह विज्ञान के नियमों के प्रतिकूल हैं। बाईबिल पृथिवी को गतिशील न मानकर स्थिर बताती है। उनके अनुसार पृथिवी सूर्य के चक्कर नहीं काटती। गैलीलियों ने पृथिवी को गतिशील और सूर्य की परिक्रमा का सिद्धान्त दिया तो उन्हें ईसाईयों के राज्य में 10 वर्ष के कारावास का दण्ड दिया गया। इसी अवधि में वह मृत्यु को प्राप्त हो गया। उन्होंने कहा कि एक अन्य वैज्ञानिक ने भी पृथिवी के गतिशील होने की पुष्टि की तो उसे भी मिट्टी का तेल डालकर जला कर मार डाला गया था। आचार्य जी ने कहा कि बाइबिल व कुरान में सत्य व असत्य दोनों प्रकार की बातें हैं। उन्होंने कहा कि मुस्लिम वैज्ञानिक भी पृथिवी को गोल व घूमने वाली मानते हैं। आचार्य कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि वेद की बातें ज्ञान विज्ञान के अनुकूल हैं। वेदों पर आधारित सभी ऋषियों के ग्रन्थ हैं जो सभी सत्य-ज्ञानयुक्त है। आचार्य जी ने कहा वेदानुकूल सिद्धान्त ही प्रामाणिक व मान्य होते हैं और जो वेदानुकूल न हो वह मान्य नहीं होता। आचार्य जी ने कहा कि योग दर्शन के सभी सूत्र सत्य व प्रामाणिक हैं। इस क्रम को हम यहीं विराम देते हैं। इसके बाद सूचनायें दी गई और रात्रि 9.50 बजे शान्ति पाठ हुआ। आज तपोवन आश्रम में यजुर्वेद पारायण यज्ञ, भजन व प्रवचनों सहित महिला सम्मेलन का भी आयोजन किया जा रहा है।
निम्न कडि पर वेदों का प्रकटी करण पढिए. शायद पहले भेजा हुआ संदेश कहीं दिखाई नहीं दे रहा है. सम्पादक जी का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ.
https://www.pravakta.com/bisvi-century-appearance-of-the-vedas/
इसी प्रवक्ता में निम्न कडि पर २० वीं शती का वेद मंत्रो के प्रत्यक्ष अवतरण के विषय में पढें. चका चौंध अवतरण आप को विस्मित कर देगा. —-
https://www.pravakta.com/bisvi-century-appearance-of-the-vedas/