सतलुज, ब्यास और रावी का पानी क्‍यों जाए पाकिस्‍तान ?

0
168

indus   डॉ. मयंक चतुर्वेदी
मानवीयता कहती है कि जरूरतमंद की जितनी मदद हो सकती है वह अवश्‍य करनी चाहिए किंतु जिसे जरूरत है वही गाली-गलौच करे, अपमान जनक भाषा में प्रश्‍नोत्‍तर करे, तब ऐसे जरूरतमंद के लिए क्‍या करें ? सीधी बात है कि ऐसे व्‍यक्‍ति, संस्‍था, समूह, देश या अन्‍य कोई क्‍यों न हो उसके साथ किसी प्रकार की मानवीयता नहीं दिखाई जानी चाहिए। उसे तो फिर इसके लिए अपनी ताकत का अहसास कराने की जरूरत होती है।

वास्‍तव में देखा जाए तो आज पाकिस्‍तान के साथ भारत के संबंधों को लेकर भी यही स्‍थ‍िति बनी हुई है। पाक अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा ओर दूसरी तरफ भारत है कि अपनी रहनुमाइ कई मामलों में लगातार सीमा पर हालात खराब होने के बाद भी दिखा रहा है। यह यक्ष प्रश्‍न है कि क्‍यों हम ऐसे देश का सहयोग करते रहें, जिसका कि विश्‍वास न तो अपने पड़ौसी देश होने के नाते पड़ौस धर्म निभाने में है। न इसलिए कि आज वह यदि अपने अस्‍तित्‍व में जिंदा है तो उसका कारण भी यही पड़ौसी भारत है।

इतना ही नहीं तो पाकिस्‍तान की धरती पर पैदा हुए कई कला जगत से जुड़े लोग आज दुनिया में इसलिए जाने गए क्‍यों कि भारत ने उन्‍हें अपने यहां सबसे ज्‍यादा फनकारी दिखाने के अवसर देकर उन्‍हें धन के साथ अपार शोहरत नसीब की। यानि इस प्रकार के अनेक एहसान और गिनाए जा सकते हैं जो भारत ने सदैव से पाकिस्‍तान के साथ किए हैं व लगातार कर रहा है, लेकिन यह पाकिस्‍तान देश है कि अपनी हरकतों से पीछे हटने को तैयार ही नहीं ।

अब भला ऐसे अपने पड़ौसी के लिए क्‍यों नहीं भारत को उन सभी विषयों को लेकर भी सख्‍त हो जाना चाहिए, जिससे उसे प्राण ऊर्जा प्राप्‍त होती है। जब वहां लोग परेशान होंगे व अपनी सरकार को इसके लिए जिम्‍मेदार मानकर सड़कों पर उतरेंगे तो हो सकता है कि पा‍क अपनी नापाक हरकतों को बंद करने के लिए विवश हो जाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब इस बारे में पंजाब की धरती से आज जैसे ही बोला तो हर भारतीय को लगा कि हमारे सैनिकों के सीने छलनी करने वाले पाकिस्‍तान के लिए इससे अच्‍छा जवाब कुछ ओर नहीं हो सकता है। अब जरूरत सिर्फ इस बात की है कि जो प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है वे उसे यथार्थ में बदलने के लिए सक्रिय हो उठें, जैसे कि कालेधन एवं आतंकवाद पर वह इन दिनों सक्रिय हैं।

वास्‍तव में बठिंडा में सिंधु नदी समझौते को लेकर कही गई प्रधानमंत्री की बातों से यही लगता है कि आगे केंद्र सरकार इस पर अमल करेगी कि भारत के हक का पानी पाकिस्‍तान में नहीं जाने दिया जाए और इसे पंजाब के किसानों तक पहुंचाना संभव हो सके । यह सत्‍य भी है कि सतलुज, ब्यास और रावी नदी के पानी पर भारत का ही पहले हक है, इसलिए इसकी एक-एक बूंद को पाकिस्तान जाने से रोका जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री मोदी जो कह रहे हैं कि पाकिस्तान में पानी जाता रहा, लेकिन दिल्ली की सरकारों ने इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया। पंजाब के किसानों को यह पानी मिल जाए तो देश का पेट भरने के साथ-साथ खजाना भी भरेगा, बिल्‍कुल सत्‍य है। वस्‍तुत: 56 साल पहले विश्व बैंक की मध्यस्थता से भारत-पाकिस्तान के बीच हुई सिंधु जल संधि जिस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे का भारत से अधिक लाभ किसी को होता आया है तो वह पाकिस्‍तान है।

इससे जुड़े अभी तक के सभी आंकड़े यही बताते हैं कि भारत के हिस्से में केवल  20  फीसद पानी आता रहा है, क्‍योंकि भारत अपनी छह नदियों सिंधु,रावी, ब्यास, चिनाब, झेलम और सतलुज का 80 फीसद पानी पाकिस्तान को देता है। जिससे कि पाकिस्‍तान का 2.6 करोड़ एकड़ कृषि भाग सिंचित होता है। एक तरह से देखा जाए तो बहुत हद तक पाकिस्‍तान इस संधि पर निर्भर है। दूसरी ओर भारत है कि इस संधि के कारण खुद लगातार वर्षों से कष्‍ट भोग रहा है।

यह इस संधि का ही परिणाम है जो जम्मू-कश्मीर को हर साल 60 हजार करोड़ रुपये से अधिक का आर्थ‍िक नुकसान उठाना पड़ रहा है। अपार जल होने के बाद भी भारत की स्‍थ‍िति है कि वह अपनी इसी संधि‍ की कमजोरी के कारण कश्‍मीर क्षेत्र में घाटी को बिजली तक ठीक से उपलब्‍ध नहीं करा पा रहा। ऐसे में यदि भारत ओर चीजों को छोड़ि‍ए अकेले पाक जाने से पानी को ही रोक ले तो पाकिस्तान पूरी तरह तबाह हो जाएगा। वहीं इसका देश के पक्ष में सबसे अच्‍छा प्रभाव यह होगा कि बिजली की जो समस्‍या घाटी में अभी रहती है वह भी हमेशा के लिए समाप्‍त हो जाएगी। साथ में होगा यह कि पंजाब से लेकर हरियाणा, दिल्‍ली तक जो किल्‍लत पानी की है, उसका भी बहुत हद तक समाधान इससे मिलेेगा, यह तय मानिए।

अत: अंत में यही कहना होगा कि सतलुज, ब्यास और रावी का पानी पाकिस्‍तान जाने से शीघ्र भारत सरकार रोके। जब सामने वाला हमारा सम्‍मान नहीं करता तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम उससे कल किए वादों को वर्षों केवल इसलिए ढोते आएं कि लोगों को पता चलेगा तो वे क्‍या कहेंगे ?  यह मानसिकता कम से कम देशहित में तो बिल्‍कुल नहीं है, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज मंच से जो कह रहे हैं, उसे अब जरूरत जमीन पर हकीकत बना लेने की है, बिना इस संकोच के कि दुनिया फिर इसे किस रूप में लेती है।

Previous articleपरम पिता परमेश्वर की मुख्य शक्तियाँ
Next articleफिल्म समीक्षा –फिल्म “डियर जिंदगी”
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,687 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress