सूचना युद्ध का कमजोर मोर्चा

इसे सूचना युद्ध से निपटने की तैयारी में कमी नहीं तो और क्या कहेंगे कि दावत-ए-इस्लामी सरीखा पाकिस्तानी संगठन भारत में ऑनलाइन कोर्स चला रहा है?

नूपुर शर्मा के बयान को लेकर देश के विभिन्न भागों में हुई हिंसा सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा थी, इसे लेकर नित-नए तथ्य सामने आ रहे हैं। इनसे यही साफ होता है कि इस बयान को लेकर जो हिंसा हुई, वह आधी-अधूरी टीवी चर्चा को वायरल किए जाने के बाद पड़ने वाले जुमे के उपरांत नहीं, बल्कि उसके एक हफ्ते बाद वाले जुमे को देश के कई शहरों में एक ही तरह से भड़की। अगर यह हिंसा पैगंबर मोहम्मद को लेकर कही गई बातों को लेकर स्वतःस्फूर्त रूप से मुस्लिम समुदाय में व्याप्त गुस्से के फलस्वरूप भड़की होती तो बयान और हिंसा में इतना अंतराल न होता। 

इस हिंसा से पहले मुस्लिम देशों, विशेषकर अरब देशों में भारत, भारतीयों और भारतीय उत्पादों के बहिष्कार के लिए इंटरनेट मीडिया पर एक सुनियोजित अभियान चलाया गया, जिसके तार पाकिस्तान जैसे देशों से साफ तौर पर जुड़ते दिखाई दिए। इंटरनेट मीडिया पर भारत के विरुद्ध ट्रेंड चलाने में अरब जगत के कई कट्टरपंथी संगठनों का भी हाथ रहा।

अरब देशों में भारत विरोधी ट्रेंड मिस्र के कुख्यात संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़े ‘इंटरनेशनल आर्गनाइजेशन टू सपोर्ट द प्रोफेट आफ इस्लाम’ नामक संगठन द्वारा शुरू किया गया और धीरे-धीरे इसमें अन्य इस्लामिक देशों के भारत विरोधी तत्व जुड़ते चले गए, जिनमें सात हजार पाकिस्तानी, तीन हजार सऊदी, 14 सौ मिस्री, एक हजार अमेरिकी-कुवैती और ढाई हजार भारतीय भी शामिल थे। भारत विरोधी यह टेंड  कुछ ही देर में हिंदुओं के लिए घृणा फैलाने वाला बन गया और इसमें कतर के प्रमुख अखबार अल-वतन के संपादक भी शामिल हो गए। उन्होंने हिंदुओं को सबसे घृणास्पद प्राणी करार दिया।

यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि पापुलर फ्रंट आफ इंडिया यानी पीएफआइ जैसे जिन संगठनों पर इन हिंसक प्रदर्शनों को भड़काने का आरोप लग रहा है, उन पर वर्षों से उसी मुस्लिम ब्रदरहुड का भारतीय रूप होने के आरोप लगते रहे हैं, जो खुद मिस्र और सऊदी अरब जैसे देशों में प्रतिबंधित है। खास बात यह है कि ऐसे आरोप मस्लिम समुदाय के विभिन्न विचारधारा वाले सलाफी और सूफी संगठन, दोनों ही लगाते रहे हैं। सूचना अभियान के जरिये मोहम्मद जुबैर जैसे लोगों द्वारा टीवी डिबेट के हिस्से को काट-छांट कर विदेशी कट्टरपंथी संगठनों की सहायता से चलाए गए इस दुष्प्रचार की परिणति उदयपुर में कन्हैयालाल और अमरावती में उमेश कोल्हे की निर्मम हत्याओं के रूप में हुई।

अब यह भी स्पष्ट है कि कन्हैयालाल के हत्यारे पाकिस्तानी कट्टरपंथी संगठन दावतए-इस्लामी से जुड़े थे। इसे सूचना युद्ध से निपटने की तैयारी में कमी नहीं तो और क्या कहेंगे कि यह संगठन भारत में तमाम तरह के आनलाइन कोर्स चला रहा है। यह कोई पहली बार नहीं जब भारत को अस्थिर करने के लिए देश में बैठे तत्वों ने विदेशी ताकतों का सहारा लिया हो या फिर विदेशी धरती से छेड़े गए सूचना युद्ध के आधार पर देश में हिंसा भड़काई गई हो।

ऐसा 2012 में मुंबई के आजाद मैदान में हुए हिंसक प्रदर्शनों में भी देखा गया था, जिसमें म्यांमार में बौद्धों और रोहिंग्या मुस्लिमों के बीच हुई हिंसा की वायरल तस्वीरों का सहारा लिया गया था। 2012 में ही आइएसआइ समर्थित तत्व इसी प्रकार की घृणा असम में हुई सांप्रदायिक हिंसा को लेकर फैला चुके हैं, जिसके चलते उत्तर-पूर्व के लाखों कामगारों को बेंगलुरु से भागना पड़ा था। इसी तरह सीएए और कृषि कानूनों के विरोध में हिंसा भड़काने के लिए विदेशी धरती से सूचना युद्ध छेड़ा गया था। सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान तो इस कानून का समर्थन करने वाले अरब देशों के भारतीय कामगारों के इंटरनेट मीडिया एकाउंट की जानकारी वहां की कंपनियों को देकर उन पर दबाव बनाया गया कि इन्हें नौकरी से निकाला जाए। कृषि कानूनों के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों को लेकर ग्रेटा थनबर्ग के ट्विटर एकाउंट से लीक हुई टूलकिट सबने देखी ही थी।

इन सबका वस्तुपरक विश्लेषण यही बताता है कि नुपुर शर्मा के बयान के बहाने सूचना युद्ध के जरिये जैसी हिंसा छेड़ी गई, वैसी किसी अन्य मुद्दे को लेकर भी छेड़ी जा सकती है। वास्तव में यह भारत के विरुद्ध उसी ढाई मोर्चे वाले युद्ध का आंतरिक मोर्चा है, जिसकी बात स्वर्गीय जनरल बिपिन रावत किया करते थे। इस मोर्चे का बार-बार सक्रिय होना अच्छा संकेत नहीं। कल्पना कीजिए कि भारत किसी युद्ध या किसी बड़े आंतरिक संकट से दो-चार हो और उसी समय ऐसे ही सूचना युद्ध के माध्यम से देश के अंदर हिंसा भड़का दी जाए तो स्थिति कितनी जटिल होगी? ऐसे में यह आवश्यक है कि भारत बाहरी देशों से होने वाले सुचना के प्रवाह पर लगाम लगाने के उपाय खोजे। ऐसा सूचना तंत्र विकसित किया जाए, जो विश्व भर में भारत विरोधी इंटरनेट मीडिया रुझानों की न केवल सतत निगरानी करे, बल्कि ऐसे किसी ट्रेंड के देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बनने की स्थिति में न सिर्फ उसे तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित करे, बल्कि उसमें भागीदार बने भारतीयों पर कानूनी कार्रवाई भी करे। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि भारत सरकार तमाम विदेशी इंटरनेट मीडिया कंपनियों को अनुशासन के दायरे में लाए, क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 19 वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल भारत के नागरिकों को ही प्रदान करता है।

यह भी आवश्यक है कि भारत सूचना युद्ध के क्षेत्र में आक्रामक और जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता विकसित करे। अगर हमारे शत्रु बार-बार हमारे समाज में मौजूद विभाजनकारी रेखाओं को चौड़ा करने से गुरेज नहीं करते तो भला हमें ऐसा ही करने से क्यों बचना चाहिए? एक बार को यह सब अनैतिक लग सकता है, परंतु हम उस युग में जी रहे हैं जब फलस्तीन, जिसका भारत ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने हितों को दांव पर लगाकर भी साथ दिया, की मस्जिदों से भारत के विरुद्ध विषाक्त भाषण दिए गए और कतर जैसे देश ने हमारे राजदूत को तलब कर माफी मांगने को कहा। यह वही कतर है. जिसने हिंदू देवी-देवताओं के बेहद अश्लील चित्र बनाने वाले एमएफ हुसैन को नागरिकता दी थी। यह समझना आवश्यक है कि शक्ति ही संतुलन की जनक है। ऐसे में सूचना युद्ध के क्षेत्र में भी शक्ति संतुलन तभी बन सकेगा, जब भारत इस क्षेत्र में आक्रामक क्षमताएं विकसित कर लेगा।

विनोद कुमार सर्वोदय

लेखक श्री दिव्य कुमार सोती जी (काउंसिल आफ स्ट्रेटजिक अफेयर्स से संबद्ध सामरिक विश्लेषक हैं)

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