” दहन होलिका की पड़वा पर
धूलिवंदन की डोली है,
हर प्रांत की अपनी भाषा और बोली है
दिल को दिल से आज मिलाने
आई फिर से होली है।”
ब्रजमंडल का सबसे निराला और अनूठा महोत्सव होली है , जिसमे प्रकृति में बसंत पंचमी से ही पूरे देश में मादकता छा जाती हैं। रोम – रोम में मस्ती अपना रंग दिखाने लगती हैं और घरों में होली कि तैयारियां शुरू हो जाती हैं।
कही ब्रज में ललनाएं पैरो में घुंघरू बांध थिरकने लगती हैं, रंग गुलाल उड़ने लगते है। मेवा मिष्ठान बनने लगते है , रंग गुलाल से थाल सजने लगते है। बच्चे रंगो से भरी पिचकारी लेकर नजर आते है। प्रेम के रंग में रंगने का महोत्सव होता है यह पर्व। बसंत के आगमन के साथ ही जगह – जगह फाग गाए जाते हैं जिसमें राधा – कृष्ण के होली गीतों को फाग में गाया जाता है।
होली के रंग में सभी झूमने लगते है जिसमे वृद्ध , नर – नारी , बच्चो सभी में होली का रंग चढ़ जाता है। सारा आकाश मंडल होली के रंगों से ढक जाता है।
ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने भी श्रृंगार कर लिया हो आम्र की मंजरियो पर भवरे घूमने लगते है
कोयल की कुहू – कुहू से मीठी तान सनाती है। प्रकृति विविध रंगो से सज जाती हैं।
नीला आकाश मानो अनन्त ऊंचाई को अपने में समेटे हो, उसमे यदा कदा उभरने वाले सफेद व काले बादलों की आकृतियां , उगते हुए चमकते सूरज की सुंदर – स्वर्ण मय रोशनी , रात्रि के अंधेरे से घिरा हुआ घना – काला आकाश और उस पर सजे हुए चमकते तारे और उसमे स्वच्छ चांदनी का प्रकाश बिखेरता हुआ चंद्रमा ।
हरियाली ओढ़ी हुई धरती , कही रेत , कही पानी , कही पहाड़ तो कही मुट्ठी। मिट्टी भी विविध रंगों की , कही पर लाल , कही पीली , कही मटमेली , तो कही काली। इस तरह धरती से लेकर आकाश तक अनेक रंग यहां बिखरे हुए हैं और प्रकृति का रंग अलग प्रभाव उजागर करता है।
होली के आते ही एक नवीन रौनक , नवीन उत्साह एवम् उमंग की लहर दौड़ने लगती है। आलाबद्ध , नर – नारी सब में प्रेम की मिठास घोलने लगती हैं। मानो गुलालो से यह तन सज जाता हैं तो फूलों से यह मन सजा हुआ लगता है।
फागण वह महीना है जिसकी हर तरूणी को प्रतीक्षा रहती हैं। रंग – रंगीली मस्ती परवान चढ़ जाती है। जब सब सखियों की टोली आती हैं , उसमे कोई भी कोरा नहीं रहता सब होली के रंगो में रंग जाते है एक दूसरे को रंग लगाते हैं। सारा आकाश मंडल गुलाल से ढक जाता है। धरती माता श्री वृषभानु नंदिनी राधारानी की पिचकारी से सतरंगी हो जाती है।
वृंदावन की गलियां रंग गुलाल से भर जाती हैं।
” कृष्ण ने छेड़ी
मुरली की धुन
राधा है दौड़ी आई
प्रेम में मगन सारी
मीरा ने छेड़ी भक्ति की तान
द्रोपदी की मित्रता रंग लाई
अपने रंग में रंग दे बिहारी।।”
होली जहां एक और एक सामाजिक एवं धार्मिक त्यौहार है, वहीं रंगो का भी त्योहार है । आलबद्ध , नर – नारी सभी इसे बड़े उत्साह से मनाते है। यह एक देशव्यापी त्यौहार भी है। इसमें वर्ण अथवा जाती भेद का कोई स्थान नहीं है। इस अवसर पहले होलिका का पूजन किया जाता हैं फिर होलिका दहन के बाद होली खेली जाती हैं।
होली एक आनन्दोल्लास का पर्व है। इसमें जहा एक ओर उत्साह – उमंग की लहरे है , तो वहीं दूसरी और कुछ बुराइयां भी आ गई है , कुछ लोग इस अवसर पर गुलाल के स्थान पर , कीचड़ , गोबर , मिट्टी आदि भी फेकते है। ऐसा करने से मित्रता के स्थान पर शत्रुता आती हैं । गंदे मजाक एक दूसरे को चोट पहुंचाते हैं।
होली सम्मिलन , मित्रता एवं एकता का पर्व है। इस दिन द्वेष भाव भूलकर मित्रता से मिलना चाहिए। यही इसका मूल उद्देश्य है।
संध्या शर्मा