आज 78 वर्षों का सफलता पूर्वक सफ़र तय कर चूका संयुक्त राष्ट्र संघ भी आतंकवाद को परिभाषित करने में नकाम रहा।इस समय विकास के दौर में अपरिभाषित आतंकवाद हर देश के सामने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दो – दो हाथ करने के लिये तैयार है ।आतंकवाद और आतंकवादी दोनों कब किस रूप में किसी देश के विकास में बाधक बन जायेगे कोई नहीं जानता।आज सभी विकसित देश विश्व मंच पर एक स्वर से इस दानव को खत्म करने के लिये प्रतिबद्ध होने का स्वांग करते है । एक तरफ ये देश विश्व मंच पर इसे ख़त्म करने की बात करते है तो दूसरी तरफ अपनी उपनिवेशवादी सोच के कारण कुछ विकसित देश परदे के पीछे से इसे पल्लवित व पोषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है ।विभाजन के बाद एक नए देश के रूप में पाकिस्तान की नींव ही नफरत के बुनियाद पर पड़ी थी लेकिन इस नफ़रत का प्रयोग भारत के प्रति इस तरीके से किया जायेगा , उस समय किसी ने सोचा भी नहीं होंगा ।इस समय भारत ऐसे आतंकवाद का सामना पश्चिमी देश कनाडा से संचालित अलगाववादी संगठन खालिस्तानीयों के द्वारा भी कर रहा है । आज जिस आतंकवाद का सामना भारत कर रहा है , इसकी आहट विश्व समुदाय को काफ़ी पहले से सुनाई दे रही थी । हद तो तब हो जाती है जब विश्व समुदाय आतंकवाद को गुड टेररिज्म व बैड टेररिज्म के रूप में परिभाषित करता है ।क्या बुराइ को भी अच्छाई के रूप में परिभाषित किया जा सकता है ,जब तक इस विभेद को हम ख़त्म नहीं करेगें तब तक इस मानव विनाश रूपी आतंकवाद से मुक्ति नहीं पा सकते ।ये ऐसा दानव है जो न जाति देखता और न ही धर्म ।इसके निशाने पर केवल मानवता होती है जो इसे फलने व फूलने में बाधा पहुचाती है ।
भारत कई बार विश्व मंच पर इस समस्या को उठाता रहा है और साथ भी मिलता रहा है । इन सबके बीच इस समय भी कई देश ऐसे है जो अपनी आंतरिक राजनीति के कारण अपने यहाँ आतंकवाद को पलने बढ़ने देते है । आज जिस राह पर पाकिस्तान चलता है उसी राह पर कनाडा चल पड़ा है । कनाडा के राष्ट्रपति भी अपनी निहित स्वार्थ के कारण भारत के खिलाफ कार्य करने वाले आतंकी संगठनों को प्रश्रय दे रहे है। इसको लेकर भारत कई बार कनाडाई राजनयिकों को तलब कर के अपना विरोध दर्ज क़रा चूका है। इन सब के बावजूद भी कनाडा इन प्रतिबंधित संगठनों पर कार्यवाही करने के बजाय इन्हें अभियक्ति की आजादी कह कर इनके द्वारा किये गए कार्यों को इनका मौलिक अधिकार बताता रहा है । इन सभी मुद्दों पर विश्व समुदाय कुछ भी बोलने से बाचता रहा है ।कल संयुक्त राष्ट्र संघ के महाधिवेशन में भारतीय विदेश मंत्री ने कनाडा का नाम लिए बगैर साफ शब्दों में आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के रुख को विश्व समुदाय के सामने रखा।उन्होंने कहाँ कि विश्व सामुदाय आतंकवाद पर अपना रुख रजनीतिक सुविधा देखकर तय न करे ।भारत का यह बयान देशों के मुँह पर करारा तमाचा है जो अपनी सुविधा अनुसार आतंकवाद को परिभाषित करते है ।
वामपंथी विचार वाले कनाडाई प्रधानमंत्री ने जब खालिस्तानी आतंवादी निज्जर की हत्या का आरोप भारत पर लगाया तो उस समय यही समझा गया कि वे अपनी खराब होती राजनीतिक छवि को संभालने के लिए ऐसा कर रहे है ।यह स्वाभाविक इसलिए था क्योकिं उनकी सरकार खालिस्तानी तत्वों के वर्चस्व वाली एनडीपी पर निर्भर है ।इसके बाद जल्द ही यह भी स्पस्ट हो गया कि ट्रूडो भी पश्चिमी राजनीति उसी वामपंथी उदार खेमे से आते है ,जिससे अमेरिकन डेमोक्रेट राष्ट्रपति बाईडन आते है ।इस पूरे प्रकरण को लेकर फाइव आइज गुट काफी सक्रीय नजर आ रहा है । कनाडा भी इस गुट का सदस्य देश है ।इस गुट की सक्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिकन राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की अधिकारिक प्रवक्ता को बयान जारी करना पड़ा।इतना ही नहीं अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन ने तो यहाँ तक कह दिया कि अगर कनाडा के आरोप सही पाए गए तो यह अपराध अन्तर्राष्ट्रीय दमन की श्रेणी में आयेगा ।इससे यह प्रतीत होता है कि अमेरिका इन खालिस्तानी आतंकियों को मानवधिकार कार्यकर्त्ता मानती है ।अगर ये मानवधिकार कार्यकर्त्ता है तो निश्चित ही अमेरिका के द्वारा मारे गए लादेन ,जवाहिरी ,बगदादी आदि के सम्बन्ध में अमेरिका के द्वारा की गई कार्यवाही भी अन्तर्राष्ट्रीय दमन की श्रेणी में आना चाहिए।भारतीय जाँच एजेंसी एनआईए के द्वारा जिन खालिस्तानी आतंकियों और ड्रग माफियायों की सूचीं जारी की है उनमे से 11 अमेरिका में ,8 कनाडा में और एक ने पाकिस्तान में सरण ले रखीं है ।अगर कूटनीतिक रजनीति की बाबत देखे तो भारत क द्वारा जी 20 में अफ़्रीकी देशों के समूह को शामिल कराना शायद अमेरिका को खल रहा है क्योकिं की निज्जर की हत्या के तीन महीने बाद इसका आरोप भारत पर लगना इसका एक जीता जागता उदाहरण है ।
इस बदलते वैश्विक परिवेश में पश्चिमी देशों के सामने चीन एक गंभीर समस्या बन कर खड़ा है । हर पश्चिमी देश ये भी समझ चूके है कि भारत के सहयोग के बिना चीन का सामना नहीं किया जा सकता है ।इसके बाद भी खालिस्तानी आतंकियों को लेकर कनाडा से जारी गतिरोध के बीच पश्चिमी देशों का कनाडा के साथ खड़ा होना एक गंभीर मुद्दा है ।अब समय आ गया है कि भारत भी अमेरिकी नीति को लेकर पुनर्विचार करे । आज जीतनी आवश्कता भारत को पश्चिमी देशों की है ,उससे ज्यादा आवश्यकता पश्चिमी देशों को भारत की है।चाहे कितने भी समूह और संगठन बन जाए लेकिन देशों का आपसी रिश्ता उनके परस्पर विश्वास और एक दुसरे के प्रति मित्रवत भाव से ही संभव है ।आतंवाद के प्रति पश्चिमी देशों का दोहरे मानदंड का प्रभाव आने वाले समय में भारतीय सम्बन्ध पर भी आवश्य ही पड़ेगा ।इन सब के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारण संयुक्तराष्ट्र संघ में अपरिभाषित आतंकवाद है । आज विश्व समुदाय सीरिया से लेकर अफगानिस्तान तक इस अपरिभाषित आतंकवाद के कारण निजी स्वार्थ के लिये किसी न किसी रूप में इसे पल्लवित करने पर तुला है । इन्ही के आड़ पाकर आज पाकिस्तान भी इन आतंकवादी संगठनों पर कार्यवाही करने से बचता रहा है । आतंकवाद के प्रति विभिन्न देशों के दोहरे चरित्र को ध्यान में रख कर ही प्रधानमंत्री ने कई बार संयुक्तराष्ट्र संघ से आतंकवाद को परिभाषित करने को कहा ताकि ये गुड व बैड टेररिज्म को समाप्त किया जा सके ।यह कटु सत्य है कि जब तक हम आतंकवाद को केवल व केवल आतंकवाद नहीं समझेगे तथा मानेगें तब तक इसे ख़त्म करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है ।
नीतेश राय