एशियाड 2023 में भारत की चमक से दुनिया चौंकी

0
64

– ललित गर्ग-
खेलों में ही वह सामर्थ्य है कि वह देश एवं दुनिया के सोये स्वाभिमान को जगा देता है, क्योंकि जब भी कोई अर्जुन धनुष उठाता है, निशाना बांधता है तो करोड़ों के मन में एक संकल्प, एकाग्रता एवं अनूठा करने का भाव जाग उठता है और कई अर्जुन पैदा होते हैं। अनूठा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी माप बन जाते हैं और जो माप बन जाते हैं वे मनुष्य के उत्थान और प्रगति की श्रेष्ठ, सकारात्मक एवं अविस्मरणीय स्थिति है। भारत की अनेकानेक अनूठी एवं विलक्षण उपलब्धियों के बीच चीन के हांगझू में आयोजित 19वें एशियाई खेलों में भारत एवं उसके खिलाड़ियों ने जिस तरह अपने पिछले सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को पीछे छोड़ते हुए 83 पदक अर्जित कर लिए, वह न केवल भारत के खिलाड़ियों बल्कि हर युवा के मन और माहौल को बदलने का माध्यम बनेगा, ऐसा विश्वास है। शतक पदकों की ओर बढ़ने की गौरवपूर्ण स्थिति से भारत में नयी ऊर्जा का संचार होगा, इससे नया विश्वास, नयी उम्मीद एवं नयी उमंग जागेगी। इसके पहले जकार्ता में आयोजित एशियाई खेलों में भारत को कुल 70 पदक मिले थे।
एशियाड में भारत के ऐतिहासिक, अनूठे एवं अविस्मरणीय प्रदर्शन का जारी रहना सुखद, गर्व एवं गौरव का विषय है। बुधवार को भारत ने एशियाई खेलों में 70 पदक जीतने का अपना पूर्व रिकार्ड तोड़ते हुए पदक-यात्रा को नए कीर्तिमान की ओर अग्रसर किया है। भारतीय खिलाड़ियों द्वारा किया गया प्रदर्शन खेल-भाल पर लगे अक्षमता के दाग को धो दिया है। हमारे देश में यह विडंबना लंबे समय से बनी है कि दूरदराज के इलाकों में गरीब परिवारों के कई बच्चे अलग-अलग खेलों में अपनी बेहतरीन क्षमताओं के साथ स्थानीय स्तर पर तो किसी तरह उभर गए, लेकिन अवसरों और सुविधाओं के अभाव में उससे आगे नहीं बढ़ सके। लेकिन इसी बीच एशियाड में कई उदाहरण सामने आए, जिनमें जरा मौका हाथ आने पर उनमें से हर खिलाड़ी ने दुनिया से अपना लोहा मनवा लिया। अनेक खिलाड़ी हैं, जिन्होंने बहुत कम वक्त के दौरान अपने दम से यह साबित कर दिया कि अगर वक्त पर प्रतिभाओं की पहचान हो, उन्हें मौका दिया जाए, थोड़ी सुविधा मिल जाए तो वे दुनिया भर में देश का नाम रोशन कर सकते हैं। अब हमारे पास ऐसे अनेक नाम हैं जिन्होंने स्वर्णिम इतिहास रचा है, जबकि पहले ऐसे नामों का अभाव था, कुछ ही नाम थे जिनको दशकों से दोहराकर हम थोड़ा-बहुत संतोष करते रहे हैं, फिर चाहे वह फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह हों या पीटी उषा।
19वें एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने भारत का मस्तक ऊंचा करने वाला प्रदर्शन किया है, जिसका असर भारतीय खेल तंत्र ही नहीं बल्कि आम जनजीवन पर गहरे पड़ने वाला है। पदकों के कीर्तिमान देश के बच्चों और युवाओं में अनूठा करने के संकल्पों को आसमानी ऊंचाई देगा। विशेषतः युवतियों एवं बालिकाओं को हौसला मिलेगा। क्योंकि एशियाई खेलों में लड़कियों का प्रदर्शन बुलन्द रहा, स्वागत योग्य है। निश्चित ही पदक विजेता महिला खिलाड़ियों की सोच भीड़ से अलग थी और यह सोच एवं कृत जब रंग दिखा रहा थी तो इतिहास बन रहा था। अनेक महिला खिलाड़ी पहली बार दुनिया की नजरों में आई और बन गई हैं हर किसी की आंखों का तारा। अपने प्रदर्शनों एवं खेल प्रतिभा से दुनिया को चौंका दिया है। भारत के गांव-देहात की लड़कियों ने भी चीन के हांगझोउ में झंडे गाड़ दिए हैं। लंबी दौड़, भाला फेंक, तलवारबाजी, टेबल टेनिस इत्यादि ऐसे खेल हैं, जिनमें लड़कियों ने भारत के लिए एक नई शुरुआत की है। स्वर्ण पदक जीतने वाली लड़कियों में वह अनु रानी भी शामिल हैं जो अपने गांव में खेती में गन्ने को भाला बनाकर फेंका करती थीं। उन्हें जब सुविधा मिली तो उन्होंने विश्व स्तर पर कमाल कर दिखाया। बिल्कुल जमीन से उठी अनु रानी और पारूल चौधरी जैसी खिलाड़ियों की वीरगाथा जब लोगों की निगाह में आती है तो पुरुषार्थ के नए लक्ष्य खड़े होते हैं। पारूल चौधरी तो अपने गांव की टूटी-फूटी सड़क पर भी दौड़ा करती थीं, पर जब परिवार ने प्रोत्साहित किया, तब वह एशियाड में 5,000 मीटर दौड़ में स्वर्ण ले आई।
भारतीयों में न तो प्रतिभा कम है, न जुनून और न मेहनत में कोई कमी रहती है। तभी एशियन गेम्स के 72 साल के इतिहास में पहली बार सबसे अधिक पदक जीत कर नया इतिहास गढ़ा हैं। भारत का इससे पहले किसी एशियन गेम्स में सबसे अधिक मेडल जीतने का रिकॉर्ड साल 2018 का था। नीरज चोपड़ा ने जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीता तो इसके बाद पुरुष 4 गुणा 400 मीटर रिले में अनस मोहम्मद याहिया, अमोज जैकब, मुहम्मद अजमल वी, राजेश रमेश ने गोल्ड जीता। ज्योति सुरेखा वेन्नम और ओजस देवताले ने तीरंदाजी मिक्स्ड टीम कंपाउंड का स्वर्ण पदक अपने नाम किया। खेलों में खास करने का यह निर्णायक मोड़ जकार्ता 2018 से आया है। पदकों की जो बढ़त भारत ने हासिल की है, उसे आगे थमने नहीं देना चाहिए। ध्यान रहे, चीन अकेले ही 165 से भी ज्यादा स्वर्ण जीत चुका है। जापान और कोरिया भी कुल 150-150 पदकों के करीब पहुंच गए हैं। मतलब, आगे हमारा रास्ता लंबा है, चुनौतीपूर्ण है, हमें ज्यादा तेज चलना होगा। भले ही भारत पदक तालिका में चीन, जापान और दक्षिण कोरिया से पीछे है लेकिन एशिया में चौथी बड़ी खेल शक्ति के रूप में उभरना भी एक उपलब्धि है। इस उभार का एक प्रमाण यह है कि हांगझू में भारतीय खिलाड़ियों ने एक ही दिन में 15 पदक जीते। इसी तरह कुछ खेलों में हमारे खिलाड़ियों ने पहले और दूसरे दोनों स्थानों पर कब्जा किया यानी स्वर्ण के साथ रजत पदक भी जीता।
एशियाड की विजयगाथाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत प्रेरणादायी है। जिस प्रकार से विभिन्न खेलों में भारतीयों ने प्रदर्शन किया है, उससे भविष्य के लिए खेल-योजना बनाने में मदद मिलेगी। इसमें कोई शक नहीं है कि सीमित संसाधनों और कमजोर खेल-बुनियाद के बावजूद भारतीयों खेलों की तस्वीर बदलने लगी है, खेलों के लिये प्रोत्साहन, सुविधा एवं साधना का अभाव भी दूर हो रहा है। खेलों इंडिया अभियान को पांच वर्ष ही बीते हैं और उसके नतीजे सतह पर दिखने लगे हैं। जाहिर है, खेल विकास की विशेष योजनाओं व प्रयासों को बल मिलने वाला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निरन्तर खिलाड़ियों का हौसला बढ़ा रहे हैं, उन्हें एवं समूचे देश को उम्मीद है कि भारत अब विश्व स्तरीय खेल प्रतियोगिताओं में किसी से कम नहीं रहने वाला है। राष्ट्र के खिलाड़ी अगर दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ने की ठान ले तो वे शिखर पर पहुंच सकते हैं। विश्व को बौना बना सकते हैं। पूरे देश के निवासियों का सिर ऊंचा कर सकते हैं, भले ही रास्ता कितना ही कांटों भरा हो, अवरोधक हो।
इस बार एशियाड का आयोजन वास्तव में हमारी नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलने का सशक्त माध्यम बना है। इस खेलों के महाकुम्भ से निश्चित ही अस्तित्व को पहचानने, दूसरे अस्तित्वों से जुड़ने, विश्वव्यापी पहचान बनाने और अपने अस्तित्व से दुनिया को चौंकाने की भूमिका बनी है। भारतीय खिलाड़ियों ने एक खेल रोशनी को अवतरित किया है। अब खेलों की दुनिया में भारत का नाम सोने की तरह चमकते अक्षरों में दिखेगा। इस बार के एशियाड ने बेहद खेल उम्मीदों पंख दिये हैं। क्योंकि यहां तक पहुंचते-पहुंचते कईयों के घुटने घिस जाते हैं। एक बूंद अमृत पीने के लिए समुद्र पीना पड़ता है। ये देखने में कोरे पदक हैं पर इसकी नींव में लम्बा संघर्ष और दृढ़ संकल्प का मजबूत आधार छिपा है। राष्ट्रीयता की भावना एवं अपने देश के लिये कुछ अनूठा और विलक्षण करने के भाव ने ही एशियाड में भारत की साख को बढ़ाया है। एशियाई खेलों में विजयगाथा लिखने को बेताब खिलाड़ी, विशेषतः देश की बेटियां, अभूतपूर्व सफलता का इतिहास रचकर भारत की दो सौ अस्सी करोड़ आंखों में तैर रहे भारत को अव्वल बनाने के सपने को जीत का हार पहनाया है जो निश्चित ही रोमांचित एवं गौरवान्वित करने वाला है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

15,447 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress