फिर क्यों बहाते हो मातृ कोख का खून?

—–विनय कुमार विनायक
नदी-पहाड़-झील-झरने-पौधे और खून
क्या हम बना सकते?

भगीरथ से पूछो जिसने बीड़ा उठाया था
एक हरकुलियन टास्क गंगा बनाने का
पर क्या बना पाया था उन्होंने एक गंगा?

जो हिमालय का वक्ष फोड़कर
गोमुख तोड़कर, शिलाखंड मोड़कर
अपने गोद में आबाद करती
इलाहाबाद, बनारस, पटना, भागलपुर जैसे
विशाल जन आबादी वाले शहर
और खो जाती समुद्री गर्भ में!

फिर क्यों नहीं बनाया उन्होंने
तथाकथित एक गंगा अपने ही
रनिवास में ताजमहल जैसा
स्पंदनहीन-स्थापत्यनुमा ढांचा?

तेनजिंग से पूछो क्यों नहीं बनाया
उन्होंने एक एवरेस्ट की चोटी
अपने ही घर के आमने-सामने
बालू-ग्रेनाइट आदि घटक मिलाकर
कृत्रिम रासायनिक विधि से?

कैवेंडिस और प्रीस्टले से पूछो
जिन्होंने हवा में झांककर
हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को देखा
और मिलाकर निश्चित अनुपात में
उन्होंने बना दिए थे पानी!

क्या वही पानी; जो पर्वत को छेदकर
झर-झर झील से झरता
वन-जन को जीवंत करता
या ‘एचटूओ; मात्र पानी की छाया!’!

क्यों नहीं पूछते बाबा आमटे,
सुन्दर लाल बहुगुणा, मेधा पाटकर से
क्यों वे घंटों तक अनशन करते?
हड़तालियों के मानिंद गलाफाड़ चिल्लाते!

आखिर क्यों नहीं लैब में बैठ-बिठाकर
वन-बाग-नदी-पर्यावरण बना डालते
कुम्भकार की मृतिकावृत्ति सा
या भव्य भवन राजमिस्त्री जैसा
एक नया प्राकृतिक वन पर्यावरण!

क्या क्लोरोफिल,साइटोप्लास्म,
माइटोकॉन्ड्रिया,माइटो-मियोसिस,
जीन्स-जेनेटिक्स व फोटो सिंथेसिस की
तात्विक क्रियाविधि ज्ञात नहीं उनको
फिर क्यों नहीं वे बनाते पेड़-पौधे?

खून! गाढ़ा लाल खून! किसने नहीं देखा!
हमने-आपने, सबने, लैंडस्टीनर ने
हां लैंडस्टीनर ने चैलेंजिंग निगाह से
पहले पहल देखा था गाढ़ा लाल खून!
और सोचा लैब में निर्माण की बात!

खून हंस पड़ा था मानव की बेवकूफी पर
और कहा था लो बताता हूं अपनी संरचना
‘मैं आर बी सी, डब्ल्यू बी सी,
प्लेटलेट्स,ब्लडसीरम से बना हूं!

मैं हीमोग्लोबिन,आयरन,आक्सीजन वाहक
मेरा टाइप-ए,बी,एबी,ओ, रेहसस मंकी
फैक्टर युक्त प्रोटीन कवरिंग से मढ़कर
प्रयोगशाला में मुझे बना लो!’

गाढ़ा लाल खून!
फैक्टरी में मुझे बना लो दारु सा
निथार कर गाढ़ा लाल खून!

हां-हां मुझे बना लो
जो तेरे मातृगर्भ में दस माह तक
रिस-रिस कर बनता मात्र पावभर खून!

जो तुम्हें देवत्व दिलाता
तुम राम-कृष्ण, गौतम-महावीर
ईसा-पैगम्बर-गुरु बन जाते
पर क्या बना पाते हो
मात्र पावभर गाढ़ा लाल खून?

फिर क्यों ध्वंस करते
नदी-पहाड़,झील-झरने,वन-पर्यावरण?

जाति-धर्म-सम्प्रदाय के नामपर
सरेआम क्यों बहाते मातृकुक्षि का अमरत्व?
जो हम सब में एक सा स्वनिर्मित
गाढ़ा लाल खून!

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