भेदभाव नहीं, समन्वय एवं सौहार्द ही जरूरत है

0
205

– ललित गर्ग-

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सबका साथ सबका विकास का नारा दिया था। वे समय-समय पर इस जरूरत को रेखांकित करते हैं और इसी के मुताबिक योजनाएं तैयार करने का प्रयास भी करते रहे हैं। अभी मुंबई में दाउदी बोहरा समुदाय के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेकर जिस तरह उन्होंने इस समुदाय के साथ अपने दशकों पुराने संबंध का उल्लेख किया, उससे एक बार फिर यही जाहिर हुआ कि वे मुसलिम समुदाय से भी उतना ही जुड़ाव महसूस करते हैं, जितना दूसरे समुदायों से। वे बार-बार रेखांकित कर चुके हैं कि देश का सर्वांगीण विकास तब तक संभव नहीं है, जब तक मुसलिम समुदाय को भी साथ लेकर न चला जाए। पिछले कुछ वक्त से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत भी मुस्लिम बुद्धिजीवियों से लगातार मुलाकात कर रहे हैं। वह इमामों से मिलने मस्जिद भी गए और मदरसे जाकर बच्चों से मुलाकात की। संघ इसे सामान्य संवाद बता रहा है। मगर, यह साफ है कि संघ मुस्लिमों से संवाद बढ़ा रहा है। केंद्र में सत्ताधारी पार्टी भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ही राजनीतिक इकाई है। निश्चित ही सर्वधर्म सद्भाव एवं साम्प्रदायिक सौहार्द ही एक आदर्श राष्ट्र की प्रमुख अपेक्षा है, इसी तरह कल्याणकारी सरकार का पहला गुण यही है कि वह सभी समुदायों को साथ लेकर चले और सबके लिए समान विकास की योजनाएं बनाए।
क्या मोदी का मुसलमानों से नजदीकी बढ़ाने एवं उनके विकास की योजनाओं की बात करना राजनीति स्वार्थ है, या वे एक आदर्श राष्ट्रनायक के रूप में सचमुच मुसलमानों का विकास चाहते हैं। यह बड़ा सच है कि देश में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत से सरकार बनानी हो तो मुस्लिम वोट इस मामले में निर्णायक साबित होते हैं। इसी के चलते भाजपा ने भी केंद्र में अपनी सरकार की रचना के लिए पिछले कुछ वर्षों से मुस्लिमों की तरफ ध्यान केंद्रित किया है। इसी की तहत भाजपा ने मुस्लिम महिलाओं से जुड़े तीन तलाक को बैन करके उन्हें अपने से जोड़ा था। दाउदी बोहरा समुदाय के आयोजनों में भाग लेना क्या यह सब मुस्लिमों की सहानुभूति प्राप्त करने के प्रयास थे? मोदी इस प्रयास में कहां तक सफल हो पाए। मोदी ने हाल ही में दिल्ली में भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में कहा था ‘मुस्लिम समुदाय के बोहरा, पसमांदा और पढ़े-लिखे लोगों तक हमें सरकार की नीतियां लेकर जानी हैं। हमें समाज के सभी अंगों से जुड़ना है और उन्हें अपने साथ जोड़ना है।’ इससे पूर्व 3 जुलाई 2022 को हैदराबाद में आयोजित भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी प्रधानमंत्री मोदी ने पसमांदा मुस्लिमों के लिए स्नेह यात्रा की घोषणा की थी। इस यात्रा का मकसद पसमांदा मुस्लिमों के घर-घर पहुंच कर भाजपा से जोड़ने की पहल करना था। ’पसमांदा’ शब्द फारसी भाषा से लिया गया है, जिसका मतलब है- समाज में पीछे छूट गए लोग। भारत में पिछड़े और दलित मुस्लिमों को पसमांदा कहा जाता है। इन पसमांदा मुस्लिमों को विकास की राह पर अग्रसर करने की सोच निश्चित ही नये भारत की आधारभित्ति बन सकती है।
मोदी की ही तरह संघ प्रमुख मोहन भागवत भी जोड़ने की बात कर रहे हैं, दोनों ही नायक नया भारत निर्मित करने को तत्पर है। दोनों के विचारों में सशक्त भारत एवं स्वदेशी की भावना को बल देने पर जोर है। लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं। इसकी तैयारियों में भाजपा जुट गई है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इसके लिए प्राथमिक रणनीति भी बना ली गई। अभी तक यही तथ्य है कि मुसलमान मतदाता भाजपा से दूरी बनाए रखते हैं। कई जगहों पर इसका नुकसान भी भाजपा को उठाना पड़ता है। इस दृष्टि से कुछ लोग कह सकते हैं कि चुनाव नजदीक आता देख प्रधानमंत्री मुसलमानों को अपने पाले में करने के लिए ऐसा कह रहे हैं और उनके कार्यक्रमों में भी शिरकत कर रहे हैं? भले ही राजनीतिक लाभ के लिये ही मोदी ऐसा कर रहे हो, लेकिन इससे सदियों से हिन्दू-मुसलमानों के बीच बनी नफरत, द्वेष, घृणा, साम्प्रदायिक कट्टरता एवं हिंसा कम होती है तो यह राष्ट्र की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।
संभवतः आजादी के बाद से ही तमाम राजनीतिक दल हिन्दू-मुसलमान के बीच दूरियां बढ़ा कर अपने राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकते रहे हैं। अब यदि कोई नायक इन दूरियों को वास्तव में कम करते हुए उनके विकास की  बात कर रहा है तो इसकी गहराई को समझना चाहिए। संघ के प्रमुख मोहन भागवत कई मौकों पर कह चुके है कि भारत में रहने वाले सभी हिंदू हैं। संघ मुस्लिमों से लगातार कहता रहा है कि उनके पूर्वज हिंदू थे। संघ प्रमुख ने हिंदू समुदाय की मानसिकता को तैयार करने के लिए ही बयान दिया कि मुस्लिम समुदाय और हमारा डीएनए एक है। साथ ही यह भी कि हर मस्जिद में शिवलिंग नहीं ढूंढना चाहिए। निश्चित ही इन बयानों के माध्यम से सौहार्द पनपाने की कोशिशें हो रही है। यह तय है कि औद्योगिक उत्पादन में मुस्लिम समुदाय का बड़ा योगदान है, जिसे अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। अनेक ऐसे पेशे हैं, जो इसी समुदाय के बल पर टिके हुए हैं, उन्हें विकास की कड़ी से हटाया नहीं जा सकता। प्रधानमंत्री इस हकीकत से वाकिफ हैं, पर भाजपा के दूसरे नेता और कार्यकर्ता इसे स्वीकार करें एवं दूरियां मिटाने की कोशिशें हो तभी सशक्त एवं नया भारत बन पायेगा। मुसलमान हो या हिन्दू उपद्रव, नफरत, हिंसा एवं साम्प्रदायिक विद्वेष की मानसिकता से बाहर आये।
जहां सहयोग की आवश्यकता रहती है वहां जीवन कृतार्थ होता है। भेद से कुछ बिगड़ता नहीं, बशर्ते कि भेद से लाभ उठाकर सहयोग चलाने की शक्ति और वृत्ति सर्वत्र हो। मोदी और भागवत इसी भेद को ताकत बनाने में जुटे है, इसलिये उनके प्रयत्नों का स्वागत होना चाहिए। लेकिन भारत में राजनीतिक दलों ने अंग्रेजों की मानसिकता को बल देते हुए फूट डालो, शासन करो, पर भारत की राजनीति को पनपाया है। इसी से दोनों कोमों के बीच जहां खुदगर्जी, ईर्ष्या, आग्रह, अभिमान, शोषण और तज्जनित संघर्ष आया, वहां सब कुछ बिगड़ने लगा। दुनिया के साथ-साथ भारत में ये सामाजिक एवं साम्प्रदायिक दोष जोरों से बढ़ रहे हैं, इसलिए किसी न किसी कारण को आगे करके लोग लड़ने लगते हैं, एक-दूसरे से नाजायज लाभ उठाना चाहते हैं और जीवन को विषमय बना देते हैं। ऐसे लोग बातचीत में जीवन को भी जीवन-कलह कहते हैं। और कहते हैं, कलह तो जीवन का अनिवार्य कानून है। इस सिद्धांत का प्रचलन इतना बढ़ा कि सज्जन मनीषियों को उसका प्रतिरोध करने के लिए इस आशय के ग्रंथ लिखने पड़े कि जीवन में अगर कलह है तो उससे बढ़कर परस्पर सहयोग भी है, जिसके बिना जीवन का विकास हो ही नहीं सकता। इसी परस्पर सहयोग को मोदी आगे बढ़ाना चाहते हैं। इसको राजनीतिक ही नहीं, मानवीय दृष्टि से देखने की जरूरत है।
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के भारतीय संस्कृति के मूलमंत्र को साधने की प्रक्रिया भौगोलिक नहीं है, वह मानसिक और भावात्मक है। अगर हमारा दिल तथा दिमाग व्यापक है, उदार व प्रगतिशील है, तो घर-बैठे हम दुनिया की दोस्ती तथा मुहब्बत का रस चख सकते हैं। हमारे संतों ने ठीक ही कहा है- ‘‘मन चंगा तो कठौती में गंगा।’’ आचार्य विनोबा लंबे अर्से तक भारत में ग्रामदान-आंदोलन का कार्य करते रहे। वे यही समझते थे कि गांव, देश व दुनिया में पारिवारिक भावना जाग्रत होनी चाहिए। एक कुटुम्ब का बुजुर्ग यह नहीं सोचता कि अगर उसकी सीमित आमदनी है तो कुछ बच्चों को भरपेट भोजन दिया जाए और शेष को आधे-पेट ही या भूखे रखा जाए। वह तो सबको एक निगाह से देखता है। देश के अभिभावक की दृष्टि से प्रधानमंत्री मोदी सबको समान नजर से देख रहे हैं, सबका विकास चाहते हैं तो इसमें गलत क्या है?
काफी वर्षों पहले कवि इकबाल ने कहा था, ‘‘खुदा तो मिलता है, इंसान नहीं मिलता।’’ आज इंसान को इंसान की ही कद्र नहीं है। इस वातावरण को बुनियाद से बदलना जरूरी है। यह काम है तो कठिन, लेकिन उसे पूरा करना ही होगा। आज इंसान को इंसान से जोड़ने वाले तत्व कम हैं, तोड़ने वाले अधिक है। इसी से आदमी, आदमी से दूर हट गया है। उन्हें जोड़ने के लिए प्रेम चाहिए, करुणा चाहिए और चाहिए एक-दूसरे को समझने की वृत्ति एवं सौहार्द भावना। ये सब मानवीय गुण आज तिरोहित हो गये हैं और इसी से आदमी के बीच चौड़ी खाई पैदा हो गयी है। सब अपने-अपने स्वार्थ में लिप्त हैं। पिता, पुत्र, भाई के बीच भी वह सौमनस्य दिखाई नहीं देता, हिन्दू-मुस्लिम के बीच सौहार्द दिखाई नहीं देता, जो दिखाई देना चाहिए। इसको देखने की भावना एवं मानसिकता विकसित हो, इसीलिये प्रधानमंत्री मोदी दाउदी बोहरा समुदाय के बीच गये और इसे विकसित करने के लिये ही वे पसमांदा मुस्लिमों के लिए स्नेह यात्रा की घोषणा की थी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here