-राघवेंद्र कुमार-
जहां मार्ग में ही ठहराव है।
दिखते कुछ हैं करते कुछ हैं,
यहाँ तो हर दिल में ही दुराव है।
किस पर ऐतबार करें किसे अपना कहें,
हर अपने पराए हृदय में जहरीला भाव है।
अपना ही अपने से ईर्ष्या रखता है,
हर जगह अहम् का टकराव है ।
अरे “राघव” तू यहाँ क्यों आया,
यहाँ दिखते रंगीन सपने महज़ भटकाव हैं ।
B-48, 2nd floor, Ashoka Niketan
Delhi-110092
Aapki kavita achchi lagi
बहुत-बहुत आभार…..