—-विनय कुमार विनायक
एको ब्रह्म दूजा नास्ति
अस्तु परमात्मा एक है!
अशरीरी अखण्ड परमात्मा
पारद सा खण्डित होता
गोल बूंद सा मंडित होता!
वायवीय आवरण से घिरकर
आवरणों के छंट जाने से
दूरियों के घट जाने से
बूंद-बूंद अनेक बूंद होकर
एक जलराशि सा हो जाता!
अस्तु परमात्मा एक है!
आत्मा-आत्मा भी बूंद-बूंद सा
एक-एक इकाई हो जाता!
परमात्मा बूंद-बूंद सा बंटकर
शरीर में एक नहीं द्विगुण होकर
एक सूक्ष्म सुप्त, दूजा स्थूल रूप
एक नररुप दूजा नारीपन का!
एक पौरुषकण से, दूजा रजजल से
एक पिता का, दूजा माता का!
एक वस्तु सा, दूजा बसोवास!
स्थूल निवास के ढलने पर
सूक्ष्म वासना इच्छा कामना
लिप्त आत्मा के मिलन से
आत्मा गर्भ में प्रविष्ट होकर
पुनः शरीर धारण कर लेती!
पूर्व की इच्छा कामना से
मातृ-पितृ के रज-वीर्य के
गुण सूत्रों से मिल करके
आत्मा पुनर्जन्म पा लेती
नवीन शरीर में प्रविष्ट होके!
—-विनय कुमार विनायक