धारा 370 व 35 ए के हटाने का सही समय है ये

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पिछले दिनों भारतीय सेना ने लेखक, कवि एवं निबन्धकार रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता की कुछ पक्तियों को ट्वीट किया है।
भारतीय सेना द्वारा ट्वीट की गई यह कविता इस प्रकार है : —
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ, कब हारा ?
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।
तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।
दिनकर जी ने जिस समय यह कविता लिखी थी , यह जितनी उस समय सार्थक थी , उतनी ही आज भी सार्थक है । इसमें मनुष्य को जीवन का सत्य समझाया गया है , उसे बताया गया है कि संसार के लोग इतने निष्ठुर , स्वार्थी , छली और चालाक होते हैं कि वे अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए आपको सदा मूर्ख बनाए रखने के प्रयास करते रहेंगे । अतः संसार समर में रहते हुए एक योद्धा की तरह सावधान और सतर्क रहते हुए आगे बढ़ना चाहिए । 
दीर्घकाल से भारतीय नेतृत्व इस सत्य से मुंह फेरे खड़ा था । पहली बार पुलवामा का सही प्रतिशोध लेकर भारतीय नेतृत्व ने स्पष्ट किया है कि अब भारत पुरानी नीति और रीति का देश नहीं है । यह नया भारत है जो अपनी सुरक्षा करना जानता है । हमने भुट्टो की भारत को 1000 जख्म देने की नीति का उत्तर दे दिया है , और पाकिस्तान को बता दिया है कि यदि उसने जैश के आतंकी कैंप का अंत नहीं किया तो अभी उसे भारत के और भी भयंकर हमलों का सामना करना पड़ेगा । भारत के नेतृत्व ने प्रधानमंत्री के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया है कि हमने यह हमला आतंकी कैम्पों पर किया है ,पाकिस्तान की सेना पर नहीं । यद्यपि यह हमला 1971 के बाद पाकिस्तान के भीतर जाकर किया गया सबसे बड़ा हमला है । इससे पाकिस्तान की आंखें खुल गई हैं ,और जो पाकिस्तान परमाणु ब्लैक मेल के माध्यम से भारत के बारे में सोच रहा था कि यह देश कभी कोई कार्रवाई नहीं कर पाएगा , उसे यह पता चल गया है कि जगा हुआ भारत कितना खतरनाक हो सकता है ? 
माना जा सकता है कि भारत ने जो कुछ भी किया है उससे भारत के भीतर आतंकी हमले बढ़ सकते हैं ,परंतु अब हम समस्या के स्थायी समाधान की ओर बढ़ चुके हैं । हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि पाकिस्तान की हवाई सेना ने पुलवामा के बाद अपने लोगों से कहा था कि वे आराम से सोएं, पाकिस्तानी वायुसेना जाग रही है। लेकिन जब भारतीय हवाई सेना के जहाजों की संख्या पाकिस्तानी वायुसेना ने देखी तो वह हिली भी नहीं । यह कुछ वैसी ही स्थिति थी , जैसी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की इन पंक्तियों से स्पष्ट होती है : — 
दम दमे में दम नहीं ,अब खैर मांगूँ जान की ।
बस जफर अब हो चुकी शमशीर हिंदुस्तान की ।।

इससे पहले पाकिस्तानी वायुसेना अपने देशवासियों से जो कुछ कह रही थी , उसे भी बहादुरशाह जफर की पंक्तियों के माध्यम से ही स्पष्ट किया सकता है :— 

गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की ।
तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की ।।

पाकिस्तान के सामने अब जबकि भारत सीना तान कर खड़ा हो गया है , तो उसे अपनी गलती का आभास हुआ है कि वह अपनी जिस दोमुंही नीति पर अभी तक चल रहा था , वह अब उसके लिए भस्मासुर बनने जा रही है । वाशिंगटन पोस्ट ने बहुत सटीक टिप्पणी की है — अब भारत पर हुए पिछले आतंकी वारदातों को देखा जाए तो चाहे प्रमाण दिए भी जाएं , पाकिस्तान उन पर कार्रवाई नहीं करेगा । अमेरिका तथा भारत द्वारा पाकिस्तान पर उत्तरदायित्व थोपना या पाकिस्तान के स्वभाव पर नियंत्रण करने में असफलता से वह उग्रवादियों का समर्थन करने की नीति पर चलने के लिए प्रोत्साहित है । 
पाकिस्तान अब बड़ी सावधानी से भारत के सामने याचना के शब्द बोल रहा है ,और वह शांति की अपील कर रहा है ।अच्छा होता यह शांति उसे अब से पहले याद आती और वह मानवतावाद् के अपने आचरण और सिद्धांत को सचमुच विश्व के सामने सही अर्थ र्और संदर्भ में प्रस्तुत करता तो विश्व के लोग उसकी बातों पर विश्वास कर सकते थे। पर अब समय निकल गया है , और अब हाथ मलने से पाकिस्तान को कुछ हाथ नहीं आने वाला । इधर भारत के नेतृत्व को भी सावधान रहना होगा । उसे समझना होगा कि पाकिस्तान हमारा कब से मूर्ख बनाता रहा है ? पंडित जवाहरलाल नेहरू कश्मीर को पाकिस्तानी सैनिकों से पूरी तरह खाली करवाये बिना इस मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गए। उसके पश्चात जवाहरलाल नेहरू के उत्तराधिकारी जब लाल बहादुर शास्त्री बने और पाकिस्तान ने 1965 की लड़ाई भारत पर थोप दी तो उसके पश्चात शास्त्री जी सामरिक महत्व के हाजी पीर दर्रे को पाकिस्तान को लौटा कर फिर एक गलती कर गये । इसी प्रकार इंदिरा गांधी ने अमेरिका के भारी विरोध के उपरांत पहले तो 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान को दो भागों में विभाजित कर दिया और जब शिमला समझौते का समय आया तो उस समय कश्मीर का स्थाई समाधान निकाले बिना उन्होंने पाकिस्तान के गिरफ्तार 90000 सैनिकों को बड़ी सहजता और सरलता के साथ उसे लौटा दिया। इस प्रकार हमारे नेताओं की उदारता हमारे लिए कष्टप्रद रही । वास्तव में यह उदारता हमारी सद्गुण विकृति है । सद्गुण विकृति का अर्थ है – एक ऐसा सद्गुण जो आपके लिए विकृति बन चुका हो । आप उदार रहें ,मानवीय रहें , यह एक अच्छी बात है। परंतु जब आगे वाला व्यक्ति छली , कपटी ,बेईमान ,धूर्त और मूर्ख खड़ा हुआ तो उसके साथ आपकी उदारता काम करने वाली नहीं है । विशेषकर राष्ट्रीय हितों से जुड़े हुए विषयों पर तो आप की यह प्रवृत्ति बहुत ही घातक होती है । हमारे वर्त्तमान नेतृत्व को इतिहास के इस भूत से शिक्षा लेनी होगी और अब बिना किसी सद्गुण विकृति का शिकार हुए शत्रु को सही पाठ पढ़ाना होगा।
हमें याद रखना होगा ,जब 8 दिसंबर 1989 को देश के पहले मुस्लिम गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया का अपहरण कर लिया गया था तो उस समय हमें कुछ आतंकवादियों को रिहा करने के लिए विवश होना पड़ा था । केंद्र की वीपी सिंह सरकार के उस समय हाथ पैर फूल गए थे और उन्हें सरकार बनाने में जिस प्रकार मुस्लिम समर्थन प्राप्त हुआ था उसकी भारी कीमत देश को चुकानी पड़ी थी । देश के नेतृत्व ने बड़ी सहजता से आतंकियों के साथ समझौता कर लिया था और पांच आतंकवादी रिहा कर देश के नेतृत्व ने राहत की सांस ली थी । दिसंबर 1999 में भी एक बार हमें ऐसा ही अपमानजनक दृश्य देखने को मिला था । जब इंडियन एयरलाइंस के विमान 814 का अपहरण कर आतंकवादी उसे कंधार ले गए थे। हम यदि चाहते तो इसे अमृतसर रोक सकते थे , पर उस समय यहां वाजपेयी जी की सरकार थी और वाजपेयी सरकार भी वीपी सिंह की सरकार की तरह घबरा गई थी । तब उसने भी वीपी सिंह सरकार का अनुकरण करते हुए 3 आतंकवादियों को छोड़ दिया था । उन्हीं तीन आतंकवादियों में से एक मसूद अजहर रहा है , जो आज देश के लिए सिरदर्द बना हुआ है । यह अलग बात है कि इसके रहते पाकिस्तान को भी अब भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। मसूद अजहर को छोड़कर गलती भारत ने की ,या पाकिस्तान ने उसे पीछे से छुड़वा कर गलती की -अब इसका हिसाब होने जा रहा है ? 
हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जिस समय 8 दिसंबर 1989 की या उसके पश्चात दिसंबर 1999 की उक्त दोनों घटनाएं हो रही थी , उस समय जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला थे । जिन्होंने उस समय भारत की घुटने टेक नीति का डटकर विरोध किया था । उन्होंने उस समय केंद्र सरकार को यह संदेश दिया था कि यदि दिल्ली इस समय झुकती है तो इसका परिणाम देश के लिए बहुत ही भयंकर होगा । हमने 1989 के पश्चात संसद पर हुए हमले की परिणति भी देखी ।जब हमारे देश की सरकार गरजी तो सही लेकिन बरसी नहीं । उसके पश्चात 2008 में मुंबई पर हमला हुआ तो मनमोहन सरकार उस समय भी शांत रही। उसे पाकिस्तान ने परमाणु हमले के आतंक से आतंकित कर दिया और मनमोहन सिंह मौन रहकर आगे बढ़ गए । यह स्थिति देश के लिए बहुत ही अपमानजनक थी । देश का नेतृत्व इतना भयभीत सा हो चुका था कि अदना सा पाकिस्तान विशाल भारत को आंखें दिखाने की ही नहीं अपितु धमकाने तक की स्थिति में आ गया।
अब प्रधानमंत्री मोदी ने देश की ओर से पाकिस्तान को यह संदेश दिया है कि आज का भारत बदली हुई रीति और नीति का देश है । अब इसकी नीति में , इसकी नियत में और इसके नेतृत्व में बहुत भारी परिवर्तन आ चुका है ,और यह मान रहा है कि : —

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो । उसको क्या जो दंतहीन विषरहित विनीत सरल हो ।।

भारतीय नेतृत्व अब इस समय जिस दिशा में बढ़ रहा है उसमें हमें धारा 370 तथा 35 ए की दीवार ढहती नजर आ रही है । बहुत ही सुंदर परिवेश इस समय देश का बन चुका है ।इसको भुनाना अब केंद्र की मोदी सरकार के ऊपर है । यदि धारा 370 और 35 ए की दीवार ढहाई जाती हैं तो कोई चूं तक करने वाला भी नहीं है । मुट्ठी भर लोग चाहे इन दोनों धाराओं को बनाये रखने की वकालत कर रहे हैं , लेकिन अब उनका विरोध बहुत फीका पड़ चुका है। मोदी है तो मुमकिन है — यह बात जहां अन्य विषयों पर लागू होती है वही धारा 370 और 35 ए को मिटाने पर भी लागू होती है । कश्मीर को भारत में अंतिम रूप से मिलाने के लिए इन दोनों धाराओं का हटाया जाना आवश्यक है । हमारे देश की गौरवशाली सेना अपना काम कर रही है और उसने जिस उपरोक्त कविता का ट्वीट किया है , वह इस समय हमारे राष्ट्रीय संकल्प को दोहरा रही है और यह बता रही है कि सेना और हमारा नेतृत्व सही दिशा में आगे बढ़ रहा है , परंतु यदि हम इस बार भी युद्ध क्षेत्र में जीतकर वार्ता की मेज पर हार गए तो इतिहास कभी हमको माफ नहीं करेगा । इसलिए आवश्यक है कि कश्मीर का उपचार सदा – सदा के लिए इस बार हो जाना चाहिए । हमें ध्यान रखना चाहिए कि– 
सन्धि वचन सम्पूज्य उसी का 
जिसमें शक्ति विजय की — भारत इस समय विजय की शक्ति से ओतप्रोत है तो इस बार देश के संधि वचन केवल इसी शर्त के निकलने चाहिए कि अब 370 और 35 ए अतीत का विषय हो चुकी हैं । हमारी शुभकामनाएं अपनी गौरवशाली सेना के साथ हैं ।

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

2 COMMENTS

  1. धारा 370 व 35 ए के हटाने का सही समय है ये लेकिन वर्तमान संविधान के परिप्रेक्ष्य और सिर पा आ खड़े लोकसभा निर्वाचनों को ध्यान में रख अभी तो युगपुरुष मोदी के नेतृत्व में कांग्रेस-मुक्त राष्ट्रीय शासन को चिरस्थाई बनाए रखने का सोचना होगा| उपयुक्त परिस्थितियों में शीघ्र ही देश का नाम इंडिया से भारत में बदल नए सिरे से भारतीय संविधान लिखना होगा ताकि उसके अंतर्गत कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारतीय नागरिकों की संस्कृति धर्म भाषा व जीवन शैली के आधार पर न्याय व विधि व्यवस्था का प्रचलन भारतीय समाज को संपन्न व सुदृढ़ बना सके|

  2. प्रश्न यह है कि जब मोदी जी के चुनावी वादों में धारा ३७० और ३५ ए हटाना भी शामिल था,तो यह भी पांच वर्षों तक अन्य चुनावी मुद्दों के समान एक जमला बन कर क्यों रह गया? दूसरा प्रश्न यह है कि १९७१ के युद्ध समाप्ति के बाद आप युद्ध बंदियों को किस अंतराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत रोक सकते थे? आपलोगों को शायद यह भी मालूम नहीं कि भुट्टो ने उनको वापस लेने में कोई ततपरता नहीं दिखाई थी.

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