पंकज व्यास
चाहे लोकपाल बिल हो, या काला धन भारत में लाने की मांग, इस आजाद (?)देश में विरोध के लिए भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। अन्ना हजारे से लेकर बाबाराम देव तक जो घटनाक्रम चला, व चल रहा है, उससे यह सवाल सहज ही उठ जाता है कि क्या आजादी का पंछी बेबश है? उसकी आंखों में बेबसी साफ नजर आ जाती है। स्वतंत्र भारत में आजादी के पंछी को घुटन महसूस हो रही है। गुलामी की जंजीरें तोड़ तो दी गई हंै, पिंजरे को खेल तो दिया है, लेकिन लगता है कई पहरूएं बिठा दिए गए है। वो सोच रहा है ये कैसी आजादी?
बीते बरस जब हम १५ अगस्त मना रहे थे, तब तक कश्मीर जल रहा था, अलगाववाद की लपटें उठ रहीं थीं, राज्यों में नक्सलवाद हाहाकार मचा रहा था, महाराष्ट्र में भाषायी आतंकवाद जब-तब खड़ा हो रहा था, तो हर ओर जातिवाद गहराता जा रहा था, तब कहीं कोई ऐसा व्यक्तित्व नजर नहीं आ रहा था, जिसकी एक आवाज पर देशवासी जातपात, धर्म-प्रांत, भाषा, अगड़े-पिछड़े, दलित-सवर्ण के भेद को भुलाकर खड़े हो जाए। लेकिन, इस स्वतंत्रता दिवस तक आते-आते परिदृश्य बदल चुका है। स्वतंत्र भारत केआसमान पर दो सितारे ऐसे उभरे हैं, जिनकी आवाज पर लोग सारे भेदभाव भूलाकर खड़े होने को तैयार दिखते हैं।
लोकपाल के लिए अन्ना हजारे द्वारा किए गए अनशन को जन-जन का जिस तरह से समर्थन मिला, कालेधन को भारत में लाने की मांग को लेकर किए गए बाबा रामदेव के सत्याग्रह आंदोलन में जिस तरह से लोगों की भागीदारी देखने को मिली, उसने यह साबित कर दिया कि इन दोनों की आवाज पर लोग मुद्दे की बात पर, साफ-सुथरे नेतृत्व के साथ देशहित के लिए एक हो सकते हैं, एक साथ खड़े हो सकते हैं।
लेकिन, बाबा रामदेव द्वारा चलाए गए सत्याग्रह के दौरान आंदोलनकारियों के साथ जिस तरह से अमानवीय कार्रवाई की गई, जिस तरह से अन्ना हजार को उलझा कर रख दिया गया, उससे आजादी का पंछी कहीं न कहीं बेबश नजर आता है। लगता है आजादी पर कई पहरूएं बिठा दिए गए हैं, सिद्धांत रूप में तो सिखचें खोल दिए गए हैं, लेकिन यथार्थ में आज भी वह बेबश है, उसे घुटन हो रही है।
मुद्दा बाबा रामदेव के सत्याग्र्रह आंदोलन, अन्ना हजारे के अनशन की प्रासंगिकता का नहीं है, मुद्दा है इस स्वतंत्र भारत में जनहित के लिए विरोध पर लगी अप्रत्यक्ष बंदिशों का है। सारा घटनाक्रम यह साबित करता है कि अगर तंत्र का विरोध किया, तो उलझ कर रह जाओंगे।
सबसे बड़ी बात तो ये हैं कि अन्ना हजारे या बाबा रामदेव खुद के लिए आंदोलन तो नहीं कर रहे हैं, वे अगर एक मजबूत लोकपाल बिल चाहते हैं, वे अगर विदेशों में जमा कालेधन को भारत में लाने की मां” कर रहे हैं, तो क्या गलत कर रहे हैं।
दरअसल, राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे घटनाक्रम में सरकारों की सामंतवादी सोच जाहिर हुई है, जो अपने खिलाफ उठने वाली किसी आवाज को पसंद नहीं करती है। ये इस देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि यहां स्वार्थ की राजनीति के लिए, दिखावटी विरोध तो आसानी से किए जा सकते हैं, लेकिन जो मुद्दे की बात करते हैं, बड़ी शिद्दत के साथ जनहित से जुड़े होते हैं, उन्हें राजनीति में उलझाकर रख दिया जाता है। बाबा रामदेव और अन्ना हजारे उसी सामंतवादी सोच और कुत्सित राजनीति के शिकार हो रहे हैं, जिसमें अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबा दिया जाता है।
लेकिन, इतना सब होते हुए भी उम्मीद की रोशनी नजर आती है, पिछले स्वतंत्रता दिवस तक जहां देश में कोई ऐसा नेतृत्व नजर नहीं आ रहा था, जिसकी आवाज पर देशवासी एक हो जाए, वहीं इस आजादी के पर्व पर हमें एक नहीं दो-दो सितारे स्वतंत्र भारत के आसमान पर नजर आ रहे हैं, जिनकी आवाज पर देशवासी हर प्रकार का भेदभाव भुलाकर एकता के सूत्र में बंधने को तैयार नजर आ रहे हैं।
राजेश तोदकर द्वारा उल्लिखित सांप्रदायिक हिंसा बिल केवल बहुसंख्यक समुदाय को सज़ा देता है| प्रवकता.कॉम पर पाठकों को इस विषय पर विशेष जानकारी मिलनी चाहिए| धन्यवाद|
मुझे आप का लेख पढ़ बहुत संतोष हुआ है और इस कारण पहले पहल मैं आपका धन्यवाद करता हूं| मुझे संतोष केवल इस कारण नहीं कि आप के लेख में एक महत्वपूर्ण सत्य है या आपका दृष्टिकोण राष्ट्रवादी है बल्कि इस कारण कि आप युवा हैं और एक परिपक्व विचारधारा के स्वामी हैं| सुना है कि महात्मा गांधी ने युवावस्था में अपनी अंग्रेज़ी सोच द्वारा विदेशी सत्ता में कोई दोष नही माना था और इस कारण प्रारंभिक जीवन में विरोधात्मक प्रयास शीघ्र न कर सके थे| आज भ्रष्टाचार और अनैतिकता का इतना बोलबाला है कि अवसरवादी ऐसे वातावरण में कुछ पा लेने की इच्छा के वशीभूत शक्तिशाली सत्ताधारी कांग्रेस के साथ जुड़े रहने को लालायित है| इस व्यक्तिगत स्वार्थवश वे अपने राष्ट्रधर्म को भूल अनजाने में सामूहिक रूप में देशद्रोही शक्तियों का साथ देते रहे हैं| अपने सगे संबंधियों से असंवेदनशील इस घृणित अव्यवस्थित वातावरण में वे एक दूसरे को रोंदते कॉकरोच की जिंदगी बसर करने को बाध्य होते हैं| समय बीतते जब उनकी आखें खुलती है तो उन्हें यह ज्ञात होता है कि क्योंकर तथाकथित स्वतंत्रता के चौंसठ वर्षों के बाद भी भारतीय नागरिक जीवन की साधारण उपलब्धियों से भी वंचित रहे हैं| लाचारी में वे कुछ कर पाने का साहस नहीं जुटा पाते और इस प्रकार सत्ताधारी कांग्रेस का विषैला कुचक्र निर्विघ्न चलता रहता है| जिन पुलिस कर्मीयों ने ४ जून २०११ की काली रात को रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के देश में व्यापक भ्रष्टाचार मिटाने और काला धन पुन: देश में लाने के लिए उनके अभियान के अंतर्गत उनके द्वारा अनशन और सत्याग्रह में उपस्थित समर्थकों पर निर्दयतापूर्वक दमनकारी आक्रमण किया था, उन्हें इतिहास कभी क्षमा नहीं करेगा| सभ्य देशों में जन और राष्ट्र हित आयोजित कार्य सराहनीय होता है| फिर बाबा रामदेव और उनके रात को सोते हज़ारों समर्थकों के साथ ऐसा अमानुषिक व्यवहार क्यों हुआ? यह कैसी आजादी है?
यदि आज भारत में युवावर्ग समाज में भ्रष्टाचार और अनैतिकता फैलाने वाले तत्वों को देख और समझ सकता है तो मैं मानूंगा कि देश की सभी समस्याओं का शीघ्र अंत होना निश्चित है| मैं आशा करता हूं कि आपके निर्भयता और सच्चाई से अपने विचार व्यक्त करने पर देश भर में अन्य युवक आपका अनुसरण करेंगे और शीघ्र ही बाबा रामदेव के आन्दोलन से जुड़ राष्ट्रहित कार्यों में उनका सहयोग देंगे?
माननीय संपादक महोदय,
प्रवक्ता समाचार पत्र,
क्या आप communal violence bill ड्राफ्ट के बारेमे कुछ जानते है ?
यह अतिशय घिनोना हिन्दूविरोधी कानून आ पड़ा है . आपसे नम्र निवेदन है की आप इस बारेमे अधिक जानकारी अपने वेबसाइट पर प्रदर्शित कर जनमानस को जागृत करे.
पंकज व्यास जी ने ठीक ही लिखा है. भारत में समस्या हमेशा हर अच्छी बात की लागु करने में आती है. एक इमानदार लोकपाल कहाँ से लायेंगे.? हमारे प्रधान मंत्री भी तो इमानदार हैं परन्तु वह क्या कर पाए?
सही कहा आपने, पहले देश अंग्रेजो से गुलाम था, अब अपनों का गुलाम है. हालांकि हिन्दुस्तानियों ने फिरंगियो को तो मार भगाया, लेकिन इन गोरे अंग्रेजो के काले औलादों को देश से निकलने के लिए हम सभी हिन्दुस्तानियों को एक बार फिर हिंदुस्तान से बाहर निकलना होगा, तभी भारत आजाद रह सकता है और हम खुली हवा में सांस ले सकते है.
ओलादो को आज देश
सही कहा है …सच में आजादी आई नहीं है ..आज भी भारत कि जनता गुलाम है ….पूरी कि पूरी व्यवस्था भारत कि जनता को लूटने के लिय बनी हुई है .तो कैसे कह डे कि हम आजाद हैं ..