ये कैसी पत्रकारिता है

-जगमोहन आज़ाद

पिछले दिनों दिल्ली में पत्रकारिता में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए दिशा निर्देशों की ज़रूरत है और संपादक उद्योगजगत और नेताओं के दबाव के आगे झुकने जैसे मामलों पर एक बहस शुरू हुई। इस बहस में यह भी साफ तौर पर सामने निकल कर आया कि कुछ तथाकथित पत्रकार आज खुलेआम भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे है। यही नहीं इन लोगों ने पत्रकारिता को दलाली का अड्डा बना दिया है। ये लोग या तो नेताओं या एक विशेष पार्टी को खुद के केद्र में रखकर दूसरे लोगों के लिए समीकरण तय कर रहे या फिर पत्रकारिता के नाम पर दलाल पत्रकार पैदा कर रहे है। निश्चित तौर पर इसे पत्रकारिता का विगठन का दौर कहा जा सकता है।

जिसका एक भयंकर रूप दिल्ली में आयोजित उत्तराखंड पत्रकार परिषद के तत्वाधान मे आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन में देखने को मिला। इस सम्मेलन में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल ’निशंक’ कांग्रेस के नेता हरीश रावत सहित कई दूसरी पार्टियों के नेतागण एवं राजधानी दिल्ली सहित उत्तराखंड के कई वरिष्ठ लेखक-पत्रकार मौजूद थे। सम्मेलन का मूल उद्देश्य था कि उत्तराखंड ने अपनी दस वर्ष की यात्रा में क्या खोया और क्या पाया। जिसमें तमाम वक्ताओं ने अपनी-अपनी राय रखी।

सम्मेलन में डॉ.रमेश पोखरियाल ’निशंक’ ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर पिछले दस सालों में हुए तमाम कार्यों की रूप-रेखा रखी। उत्तराखंड ने अपने इस छोटे से कार्यकाल में किन-किन चुनौतियों को स्वीकार करते हुए। राज्य ने विकास में कितनी यात्रा तय की, निशंक ने एक के बाद एक अपनी और पिछली सरकार की विकास यात्राओं का परिदृश्य इस सम्मेलन में रखा। लेकिन उनके भाषण के दौरान कुछ तथाकथित पत्रकार खड़े होते हैं, और चिल्लाना शुरू करते हैं कि काम नहीं हुआ, फिर चिल्लाते हैं कि आंदोलनकारियों को उनका हक दो। इन चिल्लाने वाले पत्रकारों से सम्मेलन में मौजूद तमाम पत्रकारों ने जानना चाहा कि आपकी मांग क्या है? आप आंदोलनकारी हैं या पत्रकार आप चाहते क्या है? लेकिन खुद को पत्रकार बताने वाले इन लोगों ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। बल्कि यह लोग सम्मेलन से बाहर आकर नारे लगाने लगे कि उत्तराखंड का विकास नहीं हुआ।

इन नारों के साथ नारे लगाने वाले खुद को पत्रकार बताने वाले ये सभी लोग पल भर में गायब भी हो गए। अब क्या कहें इन्हें, क्या यह कांग्रेस के दलाल थे। क्योंकि बाद में हरीश रावत भी इनके सुर में सुर मिलाते मीडिया के लोगों से बात करते हुए नज़र आए। हरीश रावत के बयानों से तो यह साफ तौर पर दिखता हैं कि इन नारे लगाने वाले लोगों को प्रमोट किया गया था। जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ’निशंक’ की उपलब्धियों को नकारना था। जो इस सम्मेलन में साफ दिखायी दिया। क्योंकि जैसे ही डॉ. निशंक ने उत्तराखंड में हो रहे विकास के कार्यों और उत्तराखंड में चल रही तमाम योजनाओं की बात की,ठीक उसी समय इन नारे लगाने वाले भाडे़ के पत्रकारों को आंदोलकारियों और उत्तराखंड के विकास की याद आयी।

अगर विकास की बात करें तो पूरी दुनिया जानती हैं कि आज उत्तराखंड विकास की यात्रा में देश के 28 राज्यों में तीसरे स्थान पर है। यहां आज प्रति व्यक्ति आय जो राज्य गठन के समय 14 हजार रुपये थी,वह बढ़कर लगभग तीन गुना हो गयी है। इसी के साथ कई ऐसी योजनाएं हैं जो उत्तराखंड की विकास यात्रा को निरंतर आगे बढ़ा रही है। इसके बावजूद भी यदि कुछ तथाकथित पत्रकार नारे लगाते हैं तो या राज्य का नहीं बल्कि उनका दुर्भाग्य हैं कि इन्हें खुद की दलाली के आगे विकास का मार्ग नहीं दिखायी देता है। यह सब इसलिए भी हैं कि इन जैसे कई पत्रकार हैं जो आज मैदानों में रहकर पहाड़ के विकास के बारे में बाते करते है। यह मैदानों में रहकर पहाड़ों के लिए भूमिका तय करते है। दरअसल इन्हें मालूम ही नहीं की पहाड़ की विकास यात्रा को आगे बढ़ाने के लिए पहले पहाड़ों पर चढना भी होता हैं। वहां की विरासत को विश्व के मं च पर ले जाना होता है। शहर में सीड़ी और हाईटैंक स्पीकर पर हाई वोल्यूम पर पहाड़ी गाने सुनने और बजाने से पहाड़ का विकास नहीं हो जाता। पहाड़ की महिलाओं के दर्द को कविता-कहानियों और उपन्यासों में चित्रण करने से पहाड़ का विकास नहीं होता। इसके लिए पहाड़ जैसे बनना होता है, उनके साथ चलना होता है। जो निश्चित तौर पर डॉ.रमेश पोखरियाल ’निशंक’ अपनी युवा सोच और अपनी सरकार के साथ मिलकर कर रहे हैं, और यही सब आज कांग्रेस और बीजेपी के कुछ बुजुर्ग नेताओं से देखा नहीं जा रहा है। इसलिए वह ऐसे सम्मेलनों में नारे लगवाते हैं, कुछ अखबारों में राज्य सरकार के खिलाफ बड़े-बड़े लेख प्रकाशित करवाते है। लेकिन यह भूल जाते हैं कि आज जमाना युवा सोच का हैं, जो विकास के लिए ही नहीं बल्कि आने वाले समय की मांग भी है।

यदि उत्तराखंड बीजेपी के दो बूढ़े नेताओं की बात करें तो यह जब प्रदेश में खुद की युवा सरकार को घेरने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हों तो, भल्ला दूसरा क्यों ऐसे मौके हाथ से जाने देगा। उत्तराखंड में भगत सिंह कोश्यारी और खंडूड़ी जी जिस तरह से आज पार्टी की युवा सोच की भद पिट रहे है। उसे देखते हुए भी जिस तरह से केंद्रीय नेतृत्व चुप-चाप आंखे बंद किए है। इससे साफ जाहिर हो रहा हैं कि आने वाले दिनों में उत्तराखंड में बीजेपी को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है। जिसके लिए सीधे तौर पर खंड़ूड़ी और कोश्यारी होगें…क्योंकि इन दोनों की बयान बाजी और पैतृरों से अब बीजेपी के कार्यकर्ता ख़ासे नाराज हैं। जिसके चलते अब यह मांग तेजी के साथ उठ रही हैं कि इन दोनों ही नेताओं को अब प्रदेश की राजनीति से ही बहार का रास्ता दिखा दिया जाना चाहिए। और अगर ऐसा जल्दी नहीं किया जाता हैं तो, उत्‍तराखंड में इन दोनों ही नेताओं के खिलाफ जोर दार आवाज उठनी शुरू हो जाएगी। जो खुद ही खंड़ूड़ी और कोश्यारी को प्रदेश से बहार उठाकर फैंक देगी। क्योंकि खंडू़ड़ी और कोश्यारी खैमा जिस तरह से मीडिया और खुद के इर्द-गिर्द घूमने वाले तमाम मठाधिशों से प्रदेश में पार्टी और सरकार को बदनाम कर रहे यह आज किसी से छुपा नहीं है। आज राज्य में ही नहीं बल्कि केंद्र में भी इन दोनों नेताओं की कारगुज़ारी से थू-थू हो रही है। क्योंकि यह दोनों ही खेमें आए दिन राज्य में अफवाएं उड़ा रहे है, कभी यह निशंक को दिल्ली तलब दिखा देते है। कभी सरकार का अंतिम संस्कार कर देते हैं, तो कभी खुद की ताजपोशी की तारीख भी तय करा देते है। इन दोनों ही नेताओं को यह नहीं दिखायी देता कि आज प्रदेश की जनता को विकास की आवश्यकता हैं ना की इनकी अफवाओं की,क्योंकि इन अफवाओं से यह दोनों ही नेता सरकार का तो नुकसान कर ही रहे हैं। साथ की प्रदेश की जनता के साथ भी विश्वासघात कर रहे है। यह इसलिए की जो समय सरकार को राज्य के विकास में लगाना चाहिए। वह समय वह इन नेताओं द्वारा उछाले गए फालतू के मुद्दों पर लगा रही है। जिससे सरकार आम लोगों के हित की बात उस तरह से नहीं कर पा रही हैं,जिस तरह से की जानी चाहिए। जिसके कुल मिलाकर नुकसान तो आम आदमी का ही हो रहा हैं, और यह सब प्रदेश की जनता के साथ मज़ाक कर रहे है। इसके बावजूद डॉ.रमेश पोखरियाल ’निशंक’ जिस तरह से रात-दिन उत्तराखंड के जनमानस के साथ खड़े हैं। उससे साफ दिखायी दे रहा हैं कि मिशन 2012 निश्चित तौर पर निशंक के सपनों का उत्तराखंड होगा। जिसे डॉ. निशंक प्रदेश की जनता के साथ मिलकर आगे बढ़ाएगें।

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  1. सम सामयिक विमर्श में उल्लेखित विषय को प्रस्तुत करना उचित है .भारत के सुधि जनों को लोकतंत्र के चौथे खम्बे पर बहुत गंभीर चिंतन की दरकार है .दुनिया के विकसित लोकतांत्रिक देशों में मीडिया ने राज्यसत्ता का ,कार्पोरेट लाबी का पूर्ण स्वामित्व स्वीकार नहीं किया किन्तु भारत में अधिकांश ने w .w .w {woman -welth -wine } को साध्य और मीडिया को साधन बना डाला है .

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