इसको ‘सूझ-बूझ’ भरा कदम बताने वाले कम न थे!

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            पिछले दिनों अपनी सरकार के अस्तित्व पर आये संकट से किसी प्रकार उबरनें के लिए  अपनी एक रैली में आजादी के बाद के पाकिस्तान का जिक्र करते-करते  इमरान खान ये भी बोल गए थे  कि  जो 20 करोड़ मुस्लिम हिन्दुस्तान में हैं उन्होंने भी उस पाकिस्तान के लिए वोट दिया था। वे लोग भी एक असली पाकिस्तान(रियासत-ए-मदीना ) का ख्वाब देख रहे थे। आज मैं उसी ख्वाब को पूरा कर रहा हूं। भारत में सेक्युलर- राजनीती की पोल खोलनें    इमरान का ये अकेला वक्तव्य ‘सौ बात की एक बात’ बताने वाला है.
             आज कुछ पुरानी बातों को याद करने का मौका इमरान के इस खुलासे  नें दे दिया है. जैसे- महाराष्ट्र के एक ख्यातिनाम बड़े ही प्रभावी  ‘सेक्युलर’ नेता  का उल्लेख अक्सर आता है, जब 1993 बॉम्बे दंगों की बात होती है. उस दौरान जब खबर आयी कि  हिन्दू- बाहुल्य 12 जगहों पर बम-ब्लास्ट हुए , तो इन्होनें जोड़ते हुए  अपना वक्तव्य जारी किया कि बम-ब्लास्ट केवल 12 ही नहीं, बल्कि  13 जगहों पर हुए  हैं. ये 13 वीं जगह मुस्लिम- बाहुल्य थी. दंगों के शांत होने पर उन्होंने बड़ी शान से कबूला कि ये झूठ उन्होंने जानबूझकर बोला था, जिससे कि ये सन्देश पहुंचे कि इन बिस्फोटों में केवल अल्पसंख्यक ही लिप्त नहीं हैं, हिन्दू भी हैं. और सेकुलरिज्म के बोलबाले के उस दौर में उनके इस कदम को बड़ा ‘सूझ-बूझ’ भरा कदम बताने वाले कम न थे ! आज भी ये नेता महाराष्ट्र की राजनीती के केंद्र में  बने  रहते  है . इसलिए कि उनकी जाति और क्षेत्र  के लोग आज भी  उनको जिताने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते, अल्पसंख्यकों का वोट तो उन्होंने  पहले सा पक्का कर ही रखा है.
         लेकिन महाराष्ट्र के  ये नेता इस खेल में अकेले  नहीं !  सेकुलरिज्म के प्रबलतम समर्थक, लोगों के दिलों पर राज करने वाले एक राजनेता जब  देश के प्रधानमंत्री थे, तो एक बार राजस्थान के एक शहर में भीषण दंगा हुआ. जानकारी लेने पर उनको पता चला कि दंगे में मुसलमानों को गिरफ़्तारी हुई है,  तो वो भड़क उठे . उनका गुस्सा इस  बात को लेकर था कि हिन्दुओं की गिरफ़्तारी क्यों नहीं हुई. जाहिर है हिंदू दोषी नहीं पाए गए होंगे इसलिए उनकी  गिरफ़्तारी नहीं हुई होगी. लेकिन उनको शांत करने के लिए आगे चलकर हिन्दुओं की भी गिरफ्तारी करनी पड़ी. याद रखिये ‘हिन्दू-आंतकवाद’  को गड़ने की  बुनियाद धीरे-धीरे कैसे रखी गयी.
         उप्र के चुनाव में परिणाम को लेकर मायवती नें अपना दुख इन शब्दों में व्यक्त किया था कि सपा को अल्पसंख्यकों ने वोट तो दे दिया, लेकिन उन्हें जल्दी पछताना भी पड़ सकता है! गौर करने वाली बात ये है कि  पिछले कार्यकाल में जब योगी की सरकार माफियाओं का सफाया करने में जुटी हुई थी कि इस बीच टीवी-चेनल पर ऊप्र के एक रिटायर्ड डीजीपी  का  वक्तव्य सुननें मिला था. उनका कहना था कि भाजपा से पूर्व की सरकार के दौरान प्रदेश के  माफियाओं में से एक को अदालती आदेश के कारण जब विवश हो  जेल भेजा गया,  तो रोज शाम को जिले  का एक  शीर्ष अधिकारी वहां उस माफिया के साथ बैडमिंटन खेलने जाया करता था. इतना सब-कुछ होने के बाद भी ये पार्टीयों भले ही सत्ता से बेदखल हो जाती हों  पर उनके  वोट प्रतिशत में इसलिए परिवर्तन नहीं हो पाता क्यूंकि जातीय-भावना फिर भी काम करती  है, और फिर अल्पसंख्यकवाद भी !! 
        19 वीं सदी में देश में अंग्रेजों के द्वारा शुरू की गयी  शिक्षा का  परिणाम क्या हुआ उस पर रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं कि इसके प्रभाव से नव-शिक्षित युवकों की मनोवृति पराजितों की मनोवृति हो गयी . अपने ईसाई शिक्षक , ईसाई दोस्तों और अंग्रेजों के सामने अपने मस्तक को उठाये रखने के लिए  उन्होंने खुलकर अपने धर्म की भर्त्सना करना शुरू कर दी, ठीक उसी प्रकार  जिस प्रकार से ईसाई मिशनरी कर रहे थे. इन युवकों  से जो अधिक विचारवान थे उन्होंने घोषणा कर दी कि हिंदुत्व के नवीन और प्राचीन, वैदिक और पुराणिक, साकारवादी और निराकार वादी सभी रूप व्यर्थ हैं. पाठ्यक्रम में धर्म का स्थान न होने के कारण इन्हें अपने धर्म से तनिक भी परिचय नहीं  था. अपने घर में वे विदेशी थे. [पृष्ठ 525, 526, ‘संस्कृति के चार अध्याय’]
          1947 में आज़ादी मिली और अँगरेज़ चले गए. लेकिन अपने  पीछे वो जो विरासत छोड़ गए थे उसको अब आगे बढ़ाने का काम ‘सेकुलरिज्म’ के नाम से चला. इसका असर कितना गहरा पड़ा ये इमरान खान के खुलासे, और भारत में चली राजनीती बताने के लिए काफी है.

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