कल तक जो हिन्दू थे आज विधर्मी हो गए

—विनय कुमार विनायक
परिस्थितिजैसे बना देती है,
वैसा ही, हो जाता है आदमी,
कलतक जोहिन्दूधर्मीथे,
आजविधर्मीहो गए आदमी!

जिनके पूर्वजों ने ढेर दुख सहे,
मूल धर्मकोत्यागनेके पहले,
आतंकऔरअत्याचार भी सहे,
परसबकैसे भूलगए आदमी?

कितने लोग बलिदान हो गए,
स्वधर्म व वंशको बचाने में,
गर्दन कट गई, उफनहीं कहे,
उनकेवंशज कैसेहुएआदमी?

कल तकजोक्रूर आक्रांता था,
वर्तमान मेंवही आदर्श हो गए,
अपनीपूर्वजा माता, बहन, बेटी,
कैसे भूल गए आज के आदमी!

आज सनातन धर्म के विधर्मी,
आक्रांता के देश औजमात से,
करने लगे गलबहियांऐसे मानो,
उनके हीवंशजहो गएआदमी!

मानवजातिअन्य जीव से हीन,
हरजीवप्यारकरतेस्वजातिसे,
मानवजातिमेंप्रेम की रीत नहीं,
विधर्मी से घृणाकरता हैआदमी!

न जाने क्यों सत्संगनहींकरते,
संप्रदाय के नाम कुसंग में पड़ते,
विदेशी नहीं पड़ोसी काम आते हैं,
पड़ोसी धर्म निभाते नहीं आदमी!

मानवीयचरित्र विरोधाभासी होता,
जहां कोई विधर्मी विजाति नहीं है,
वहां स्वजाति, स्वधर्मी भाई से ही,
शत्रुता पालता है आज का आदमी!

आज गौरव से विदेशीनाम रखते,
जिसने गुलाम कियाउसकोपूजते,
विदेशी रंगढंगमें बनते वसंवरते,
दिमागीदिवालिया हो गए आदमी!

कितनाअच्छा होता किभारतवंशी
विदेशीधार्मिक गुलामी को छोड़के
स्वदेशी धर्म को अपना लेतेअगर
विशिष्ट होते हमभारतके आदमी!

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