डा. राधेश्याम द्विवेदी
गोस्वामी तुलसीदास (1511 – 1623) एक महान कवि थे। उनका जन्म सोरों शूकरक्षेत्र (वर्तमान कासगंज जनपद) उत्तर प्रदेश में हुआ था। कुछ विद्वान् उनका जन्म राजापुर में हुआ मानते हैं। अपने जीवनकाल में उन्होंने 12 ग्रन्थ लिखे। उन्हें संस्कृत विद्वान होने के साथ ही हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ कवियों में एक माना जाता है। उनको मूल आदि काव्य रामायण (Tulsidas Ramayan) के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। श्रीरामचरितमानस वाल्मीकि रामायण का प्रकारान्तर से ऐसा अवधी भाषान्तर है जिसमें अन्य भी कई कृतियों से महत्वपूर्ण सामग्री समाहित की गयी थी। रामचरितमानस को समस्त उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। इसके बाद विनय पत्रिका उनका एक अन्य महत्वपूर्ण काव्य है। त्रेता युग के ऐतिहासिक राम-रावण युद्ध पर आधारित उनके प्रबन्ध काव्य रामचरितमानस को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में 46 वाँ स्थान दिया गया।
लगभग चार सौ वर्ष पूर्व तुलसीदास जी ने अपनी कृतियों की रचना की थी। आधुनिक प्रकाशन-सुविधाओं से रहित उस काल में भी तुलसीदास का काव्य जन-जन तक पहुँच चुका था। यह उनके कवि रूप में लोकप्रिय होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है। मानस जैसे वृहद् ग्रन्थ को कण्ठस्थ करके सामान्य पढ़े लिखे लोग भी अपनी शुचिता एवं ज्ञान के लिए प्रसिद्ध होने लगे थे। रामचरितमानस तुलसीदास जी का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ रहा है। उन्होंने अपनी रचनाओं के सम्बन्ध में कहीं कोई उल्लेख नहीं किया है, इसलिए प्रामाणिक रचनाओं के सम्बन्ध में अन्त:साक्ष्य का अभाव दिखायी देता है।तुलसीदास (Tulsidas Ramayan) ने मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाने के बारे में अपने कुछ दोहों के माध्यम से कुछ कहा है, क्या है वह आइये जानते हैं:-
धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी।
आपद काल परखिए चारी।।1।।
(धीरज, धर्म, मित्र और पत्नी की परीक्षा अति विपत्ति के समय ही की जा सकती है। इंसान के अच्छे समय में तो उसका हर कोई साथ देता है, जो बुरे समय में आपके साथ रहे वही आपका सच्चा साथी है। उसी के ऊपर आपको सबसे अधिक भरोसा करना चाहिए।)
जननी सम जानहिं पर नारी ।
तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे ।।2।।
(जो पुरुष अपनी पत्नी के अलावा किसी और स्त्री को अपनी माँ सामान समझता है, उसी के ह्रदय में भगवान का निवास स्थान होता है। जो पुरुष दूसरी औरतों के साथ सम्बन्ध बनाते हैं वह पापी होते हैं, उनसे ईश्वर हमेशा दूर रहता है।)
मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना ।
नारी सिखावन करसि काना ।।3।।
(भगवान राम सुग्रीव के बड़े भाई बाली के सामने स्त्री के सम्मान का आदर करते हुए कहते हैं, दुष्ट बाली तुम तो अज्ञान पुरुष हो ही लेकिन तुमने अपने घमंड में आकर अपनी विद्वान् पत्नी की बात नहीं मानी और तुम हार गए। मतलब अगर कोई आपको अच्छी बात कह रहा है तो अपने अभिमान को त्याग कर उसे सुनना चाहिए, क्या पता उससे आपका फायदा ही हो जाए।)
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस ।
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ।।4।।
(तुलसीदास जी कहते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु ये तीन लोग अगर दर से या अपने फायदे के लिए किसी से प्रिय बोलते हैं तो राज्य, शरीर और धर्म इन तीनों का जल्दी ही विनाश हो जाता है। यानि उनका जो कर्म है उसे पूरी इमानदारी से करना चाहिए ना कि अपने फायदे के लिए।)
तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर न सुन्दर ।
केकिही पेखु बचन सुधा सम असन अहि ।।5।।
(तुलसीदास जी कहते हैं सुन्दर लोगों को देखकर मुर्ख लोग ही नहीं बल्कि चालाक मनुष्य भी धोखा खा जाता है। सुन्दर मोर को ही देख लीजिये उसकी बोली तो बहुत मीठी है लेकिन वह सांप का सेवन करती है। इसका मतलब सुन्दरता के पीछे नहीं भागना चाहिए।)
तमाम सीमाओं और अंतर्विरोधों के बावजूद तुलसी लोकमानस में रमे हुए कवि हैं। वे गृहस्थ-जीवन और आत्म निवेदन दोनों अनुभव क्षेत्रों के बड़े कवि हैं। तुलसी भक्ति के आवरण में समाज के बारे में सोचते हैं। इनकी साधना केवल धार्मिक उपदेश नहीं है वह लोक से जुड़ी हुई साधना है।
हम शवीकार क्यों नहीं करते हैं कि वास्तव में महिला हो या पुरूष गलत तो गलत होता है!!! उनका मतलब मानवाधिकार का हनन नहीं है गवांर को दंड से ही मानता है… अन्यथा दंड क्यों बना है? ?
Bilkul sahi baat ji dusht hmesha dand se hi thik hota h fir vo stri ho ya purush
डाॅ.साहब हमने एक विद्वान से इसकी व्याख्या इस तरह सुनी है
ढोल,गंवार शूद्र, पशु नारी।
इंह सब ताड़न के अधिकारी ।।
अर्थात् ढोल, मूर्ख या ढीठ सेवक और पशु नारी अर्थात् नीच स्त्री प्रताड़ना के अधिकारी हैं। विराम चिन्हों की त्रुटि से अर्थ का अनर्थ हो गया ।
यथार्थ उत्तर दिया तुलसी दास जी की यह चौपाई का अर्थ कतई सभी स्त्री के लिए नहीं लिखा लेकिन ब्यभिचारी नीच को साधु संतो को भी नहीं बकस्ती उसके लिले जरूर लिखा है यह चौपाई जय श्री राम
ढोल, गंवारशूद्र, पशु नारी ।
इंह सब ताड़न के अधिकारी ।।
हमने एक विद्वान से इसकी व्याख्या कुछ इस तरह सुनी है
ढोल, मूर्ख ढीठ सेवक और पशु नारी अर्थात् नीच स्त्री कुल्टा स्त्री ये तीनों प्रताड़ना के अधिकारी हैं । विराम चिन्हों की त्रुटि की त्रुटि से अर्थ का अनर्थ हो गया ।
ढोल गँवार सूद्र पसु नारी………..।इस चौपाई का अर्थ है–इन सभी को भलीभांति परखना चाहिए ,अथवा समझना चाहिए।
Tadan ka arth shiksha ya pratadit karne se na lete huye Dekhbhal karne se lena chahiye. Wese bhi hindi me tadne ka arth dekhna hi hota hai.
So aap ye Bata do ki Dhol Ko kon tadta hai .
Use to pita Jaya hai.
ढोल को बजाने से पहले उनकी रस्सीयो को भली प्रकार आराम आराम से कस्सा जाता है उसके बाद में बह श्रेष्ठ बादन बनता है
ढोल गंवार शूद्र पशु नारी,
इंह सब ताड़न के अधिकारी|
ये भी तुलसीदास जी की रचना कही जाती है इस पर क्या कहना है??
eska matab hai ke ye sab siksha ke adhikarai hai inhe shikshit karna chahiye
ये समुद्र के वचन है। राम के नहीं। अनुरोध: रामायण खोलकर पढिए।
जी आपकी इसी पंक्ति में जवाब है,
ताड़ना का अर्थ यहाँ मारना या पिटना नहीं समझना चाहिए बल्कि भली प्रकार शिक्षा देना या समझा कर काम लेना