देशद्रोहियों को बचाने वाली रिपोर्ट

-रमेश शर्मा-

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सहारनपुर के दंगों पर समाजवादी पार्टी ने एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि सहारनपुर में दंगा भड़काने के लिए भाजपा के सांसद जिम्मेदार हैं। रिपोर्ट में सांसद के अलावा भाजपा के और कुछ दूसरे कार्यकर्ताओं के नाम भी हैं। इसके अतिरिक्त रिपोर्ट में वे ही तमाम बातें हैं जो समाजवादी पार्टी विभिन्न मंचों से आरोप लगाती रही है। अंतर केवल इतना है कि वे तमाम आरोप इस बार आरोप की शक्ल में नहीं बल्कि रिपोर्ट की शक्ल में आए । नए पन के कारण मीडिया में स्थान मिला और लोगों का ध्यान भी गया। रिपोर्ट के नाम पर यह आरोपात्मक निष्कर्ष ऐसे वक्त आया है जब सहारनपुर दंगों का एक मास्टर माइंड गिरफ्तार हुआ और जिसने खुलासा किया कि दंगों की योजना कश्मीर में बनी और दंगा कराने के लिए कश्मीर से नौजवान आए थे।

आजादी के इन 68 वर्षों के हालात की समीक्षा करें तो दो बातें बिल्कुल साफ होती है पहली तो यह कि कोई है जो जो भारत में हिंदु और मुसलमानों के बीच दूरियां बढ़ाने का लगातार कोशिश करता है एवं दूसरी है कि इस चाहत की राजनीति में गहरी पकड़ है । हालांकि देश में सरकारी और सामाजिक स्तर पर ऐसे प्रयास जरुर हुए जिसमें एकता और भाईचारा बनाने की कोशिश की गई किन्तु ये प्रयास उतने सफल नहीं हुए जितनी देश को आज जरुरत है। इसका कारण यह है कि इलाज लक्षण पर हुआ कारण पर नहीं । इतिहास के आंकलन के बारे में एक मान्यता यह है कि वह हमेशा दूसरे अध्याय से संकलित किया जाता है । पहले अध्याय की घटनाएं इतनी आप्रसंगिक सी लगती हैं वे विश्लेषण से छूट जाती हैं। यहीं बात इस सा प्रदायिकता पर लागू होती है। साम्प्रदायिकता की शुरुआत 1857 के बाद हुई। 1857 भारत के इतिहास का वह बिन्दु हैं जहां अंग्रेजों के विरुद्ध पूरा देश एकसाथ खड़ा था। जाति, धर्म, वर्ग, वर्ण ऊंच-नीच, राजा-सैनिक, राज-रानी नगरवधु सब एक कतार में थे । किन्तु उसे आयोजना के अभाव और नायक की कमी के कारण असफल होना पड़ा। क्रांति को दबाकर अंग्रेजों ने उसके संगठित स्वरूप पर आश्चर्य व्यक्त किया और अध्ययन भी। इसके बाद उन्होंने तमाम ऐसे कदम उठाए जिससे भारत का सामाजिक और धार्मिक जीवन पुन: विभाजित हो एवं उनमें वैमनस्य फैले।

उनकी तमाम नीतियों में, कानूनों के प्रावधानों में और निर्णयों में इसकी झलक साफ देखी जा सकती है लेकिन आजादी के बाद की राजनीति भी यदि अंग्रेजों के पद-चिन्हों पर चलेगी तो राष्ट्र का एकात्मक स्वरूप कैसे उभरेगा। अंग्रेजों की मानसिकता अलग थी। वे विदेशी थे। उनकी तो घोषित नीति थी ‘फूट डालो और राज करो’ यदि देशी राजनीति भी उसी रास्ते चलेगी तो भारत का भविष्य क्या होगा? लेकिन समाजवादी पार्टी तो इससे एक कदम आगे हो गई वह ऐसे मुद्दे पर भी राजनीति कर रही है जिसमें शरारती तत्व शामिल हैं, देश के दुश्मन शामिल हैं। सहारनपुर से पहले मुज फरपुर के दंगों में भी आई.एस.आई. की सक्रियता की गंध आ गई थी जिसका खुलासा सहारनपुर में हुआ लेकिन फिर भी समाजवादी पार्टी उस षडयंत्र पर एक शब्द नहीं बोल रही उल्टे अब भाजपा को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रही है।

समाजवादी पार्टी और भाजपा की राजनैतिक प्रातिद्धिन्दता हो सकती है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों के नतीजों से समाजवादी पार्टी की चिंता भी स्वाभाविक है लेकिन क्या उसके लिए रिपोर्ट का लेवल लगाकर ऐसी बातें आनी चाहिए जिससे देश को कमजोर करने वाले तत्वों को बचाने का मार्ग मिले। समाजवादी पार्टी की भांति बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस दोनों की भी भाजपा से राजनैतिक प्रतिद्वन्दिता है लेकिन दोनों ने समाजवादी पार्टी की इस तथाकथित रिपोर्ट का समर्थन नहीं किया। बल्कि बहुजन समाज पार्टी ने तो इस रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की और कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने तो खुद मुज फरनगर के दंगा पीड़ित कैंपों में जाकर आई.एस.आई. के प्रतिनिधियों के सक्रिय होने की आशंका जताई थी। होना तो यह चाहिए था कि इस आशंका पर पूरा देश एक साथ  खड़ा होता। राजनीति में ऊपर उठकर सोचता। सरकार की एजेंसियां इस तथ्य के आधार पर अपनी कार्यवाही का मार्ग तय करती लेकिन उल्टा उन पर हमला बोला गया राजनैतिक बयानबाजी की धुंध ने संदेहास्पद तत्वों को बचाने का और सावधार रहकर काम करने का अवसर दिया जिसका परिणाम सहारनपुर का दंगा है जिसके बारे में समाजवादी पार्टी अब दम ठोककर भाजपा को कटघरे में खड़ा कर रही है। जबकि दंगों का मास्टरमाइंड पकड़ा जा चुका है।

1 COMMENT

  1. जब समीति समाजवादी पार्टी के नेताओं को ले कर बनाई गयी तो उस से क्या अपेक्षा हो सकती थी , कहना चाहिए कि उसने अपना काम ईमानदारी से कर दिया सियासत के लिए ही वह नियुक्त हुई थी इसलिए आई और चली भी गयी

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