—विनय कुमार विनायक
आज दर पर आनेवाला हर कोई मेहमान नहीं होता,
अब भोली सूरत दिखनेवाला भी कातिल शैतान होता!
आज दोस्त व दुश्मन आसानी से पहचाने नहीं जाते,
चाहे मानो या ना मानो पर साधु वेश में रावण आते!
कोई भी खुशामदी दरवाजे पर आकर कहे भैया दीदी,
उसके द्वारा की गई प्रशंसा से मत पसीजो बहन जी!
अपरिचित द्वारा की गई चापलूसी पर ध्यान ना दो,
दरवाजे से झटक दो चाय पानी के लिए बुला ना लो!
अगर अपनी भलाई और घर को महफूज रखना चाहो,
तो अनजान की वेशभूषा में उलझ सूझबूझ ना खोने दो!
धार्मिक चिन्ह तिलक कलावा के छलावा में मत आओ,
आस्था का सम्मान करो मगर छद्म रावण को भगाओ!
वो दिन लद गए जब कबूतर वेश में भगवान आते थे,
शरणागतरक्षी दानी की परीक्षा लेकर वरदान दे जाते थे!
अब शरणार्थी बनकर आनेवाले आतंक मचाने लगते हैं,
गाँव गली मुहल्ले में दुकान खोलके मौत बेचने लगते हैं!
इन मौत के सौदागर से आज कोई नहीं है बचानेवाला,
वोट के सौदागर बन गए मौत के सौदागर का रखवाला!
अब समय नहीं रहा दान पुण्य दया ममता भलाई का,
जितना हो सके नेकी करो गरीब मित्र कुटुम्ब भाई का!
अपनी माँ के लिए ममता हो और पिता के लिए प्यार,
बहन भाई बच्चों के लिए दायित्व से करो नहीं इनकार!
स्वदेशी शिक्षा धर्म भाषा देशी सभ्यता संस्कार बचाओ,
स्वदेशीपन से जो घृणा करे उसका समग्र बहिष्कार हो!
—विनय कुमार विनायक