पर्यटन की अपार संभावनाएंं लिए उत्तर प्रदेश का सीमांत क्षेत्र

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-निर्मल रानी-
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देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश वैसे तो राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के लिए कई प्रमुख आकर्षण रखता है। इसमें सर्वप्रमुख आगरा का ताजमहल, प्रयागराज, संगम तथा वृंदावन व मथुरा जैसे ऐतिहासिक स्थल तो हैं ही साथ-साथ अवध के नवाबों का शहर लखनऊ भी इसमें खासतौर पर शामिल है। भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या भी इसी उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। परंतु जितनी बड़ी संख्या में स्वदेशी व विदेशी पर्यटक इन स्थानों को देखने यहां आते हैं, उसके लिहाज़ से इनमें से कई प्रमुख पर्यटन स्थल ऐसे भी हैं जिनका समुचित रखरखाव व उनकी देखभाल नहीं की जा रही है। परिणामस्वरूप लखनऊ के कई पर्यटन स्थल व नवाबों द्वारा निर्मित करवाई गई। कई प्राचीन इमारतें अपने अस्तित्व से बुरी तरह जूझ रही हैं। इनके अतिरिक्त भी इस विशाल राज्य उत्तर प्रदेश में अब भी ऐसे कई क्षेत्र हैं जो भौगोलिक व ऐतिहासिक दृष्टि से देश के पर्यटन मानचित्र पर उभारे जा सकते हैं। परंतु जो सरकार प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों व ऐतिहासिक धरोहरों का रखरखाव व उनकी समुचित निगरानी न कर पा रही हो उससे नए व अंजाने से पर्यटन क्षेत्रों व ऐतिहासिक धरोहरों को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यटन के योग्य बनाने की भी क्या उम्मीद की जा सकती है?
उत्तरप्रदेश के नेपाल सीमा क्षेत्र में बहराइच जि़ले के अंतर्गत रुपेडिहा से लेकर श्रावस्ती तक का भारत नेपाल सीमांत क्षेत्र पर्यटकों के आकर्षण का एक अत्यंत समृद्ध क्षेत्र हो सकता है। परंतु जहां सरकार इस क्षेत्र की भौगोलिक व ऐतिहासिक अहमियत को संभवत: रेखांकित नहीं करना चाहती, वहीं इस इलाके की टूटी-फूटी सड़कें, यातायात संबधी दुव्यर्वस्थाएं तथा शासन व प्रशासन द्वारा की जा रही इस क्षेत्र की उपेक्षा इस इलाके को राष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर लाने भी नहीं दे रही है। उत्तर प्रदेश के बहराइच जि़ले का ही कल तक एक भाग रहा तथा आज एक अलग जि़ले के रूप में अपनी पहचान बनाने वाला श्रावस्ती, एक प्राचीन व ऐतिहासिक महत्व का नगर है।

श्रावस्ती में स्थित साहेट नामक क्षेत्र में भगवान बुद्ध द्वारा लगभग 24 वर्ष तक का लंबा समय बिताए जाने के कई ऐतिहासिक प्रमाण हैं। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार श्रावस्ती के एक धनी व्यापारी सुदत्त अनापामिंडिक द्वारा भगवान बुद्ध के लिए राजकुमार जेत के विशाल उद्यान को खरीदकर एक भव्य महाविहार की स्थापना की गई थी। कालांतर में इसे श्रेष्ठि मठ के नाम से जाना गया। मान्यता है कि आगे चलकर इस श्रेष्ठि मठ को साहेट के नाम से जाना जाने लगा। प्रव्रतिकाल में चंपकपुरी और चंद्रिकापुरी के नाम से उल्लिखित यह क्षेत्र 5.20 किलोमीटर की परिधि में निर्मित किया गया एक प्राचीन नगर है। इस क्षेत्र का उल्लेख रामायण तथा महाभारत में भी मौजूद है। पौराणिक काल में श्रावस्त नामक एक पौराणिक राजा द्वारा इस शहर का निर्माण कराया गया था। जिसके नाम से इस जि़ले का नाम अब श्रावस्ती हो गया है। यहां कई प्रवेश द्वारों के अवशेष साफ देखे जा सकते हैं। इनमें कई मुख्य द्वारों के नाम हैं इमली दरवाज़ा,राजगढ़ दरवाज़ा,नौसहरा दरवाज़ा तथा कादंबरी दरवाज़ा। यहां बुद्ध व जैन भवनों के कई प्राचीन अवशेष तो मिले ही हैं साथ-साथ यहां मध्यकालीन मक़बरों के भी कई अवशेष प्राप्त हुए हैं।

श्रावस्ती के इस सहेट क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग द्वारा प्राचीन संस्मारक एवं पुरातत्विक स्थल व अवशेष अधिनियम(1958 के 24) तथा प्राचीन संस्मारक एवं पुरातत्विक स्थल एवं अवशेष (संशोधन एवं विधि मान्यकर)अधिनियम 2010 के अंतर्गत् राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित कर दिया गया है। यहां प्राप्त प्रमाणों के अनुसार इस क्षेत्र में दूसरी शताब्दी से लेकर छठवीं, दसवीं, ग्यारहवीं तथा बारहवीं शताब्दी के निर्माण के प्रमाण मिलते हैं। महात्मा बुद्ध की दो दशकों से भी अधिक समय तक अर्थात संभवत: 24 वर्षों तक उनकी कर्मस्थली रहे इस स्थान का ह्वेन सांग व फाह्यान नाम के चीनी यात्रियों ने भी भ्रमण किया है। यहां कुशाणकाल के स्तूप गुप्त कालीन देवालय, कई प्राचीन ध्यान स्थल, प्राचीन बौद्धवृक्ष, ध्यानकक्ष, तालाब, वाटिकाएं तथा ऐतिहासिक गुफाएं हें। उत्तर प्रदेश सरकार तथा देश की केंद्र सरकार द्वारा उपेक्षा के शिकार इस इलाके को सजाने,संवारने तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि के शिखर तक ले जाने का काम अब थाईलैंड तथा जापान द्वारा किया जा रहा है। महामंगा कोलछाएधम्मा डिवोटिडलैंड फार वल्र्ड पीस फुलनेस फाऊंडेशन द्वारा इस प्राचीन स्थल पर एक ऐसा अद्भुत बौद्ध मंदिर तैयार किया जा रहा है जो संपूर्ण हो जाने के बाद पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करेगा। इस विशाल भवन के निर्माण व इसके निर्देशन हेतु विदेशी इंजीनियर तथा अनेक विदेशी पर्यटक अभी से यहां आना-जाना शुरू कर चुके हैं। इस ऐतिहासिक स्थान के निकट ही एक हवाई पट्टी भी तैयार की गई है जहां इन विदेशी भ्रमणकारियों के विशेष विमान उतरते हैं। यहां वर्तमान समय में भ्रमण करने के बाद इस बात के साफ संकेत देखे जा सकते हैं कि थाईलैंड व जापान जैसे भगवान बुद्ध की उपासना करने वाले देश भले ही साहेट व श्रावस्ती जैसे नगरों के विकास के लिए इस क्षेत्र की ऐतिहासिक महत्ता के चलते कितना ही विकास कार्य क्यों न कर रहे हों परंतु उत्तर प्रदेश व भारत सरकार की इस क्षेत्र के प्रति उदासीनता साफ नज़र आती है।

राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक, नवाबों का शहर लखनऊ, आगरा का ताजमहल, प्रयागराज, संगम तथा वृंदावन, मथुरा, प्रसिद्ध पर्यटन स्थल, ऐतिहासिक धरोहरों का रखरखाव, पर्यटन मानचित्र, प्राचीन इमारतें, सैय्यद सालार मसूद गाज़ी नामक एक संत फकीर, सैय्यद सालार मसूद गाज़ी संत फकीर, सैय्यद सालार मसूद गाज़ी फकीर, सैय्यद सालार मसूद गाज़ी, भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या, श्रावस्ती से नेपाल की सीमा बिल्कुल सटी हुई हैं। इसके साथ बहराइच जि़ले में सैय्यद सालार मसूद गाज़ी नामक एक संत फकीर की ऐतिहासिक दरगाह है। फ़िलहाल यह दरगाह बहराइच व आसपास के क्षेत्र के लोगों की श्रद्धा का केंद्र है। यहां दरगाह के वार्षिक उर्स के समय एक महीने से भी अधिक समय तक विशाल मेला लगता है। इसी प्रकार इस इलाके में बलरामपुर के निकट लगने वाला देवी पाटन का मेला तथा बाराबंकी के समीप देवां शरीफ में लगने वाला वार्षिक मेला बहुत प्रसिद्ध है। परंतु सरकारी संरक्षण न होने के कारण यह सभी स्थान मात्र क्षेत्रीय महत्व के स्थल बनकर रह गए हैं। यदि देश की सरकारें इन ऐतिहासिक स्थलों पर होने वाले उर्स, मेलों तथा यहां के विशाल समागमों के प्रति दिलचस्पी लेेें तो यह स्थान न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं और उत्तर प्रदेश के सीमांत क्षेत्र में लगने वाले मेलों से विदेशी पर्यटकों का परिचय करा सकते हैं। परंतु ज़ाहिर है, इन सब के लिए सर्वप्रथम इन क्षेत्रों को प्रदेश की राजधानी लखनऊ से जोडऩे वाले साफ-सुथरे, चौड़े मार्गों की ज़रूरत है। इन इलाकों में बिजली-पानी की समुचित व्यवस्था की दरकार है तथा यात्रियों के ठहरने हेतु सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर की जाने वाली आवास व विश्राम संबंधी व्यापक व्यवस्था की ज़रूरत है।

बहराईच,श्रावस्ती व बलरामपुर क्षेत्रों की सीमाएं कई जगहों से नेपाल से मिलती हैं। परंतु इनमेंं सबसे अधिक प्रचलित मार्ग बहराईच से रुपेडिहा को जाने वाला भारत-नेपाल मार्ग है। इस मार्ग की दुर्दशा देखकर यह कहने में कोई आपत्ति नहीं कि यदि कोई व्यक्ति इस रास्ते से पहली बार नेपाल स्थित नेपालगंज नगर की ओर जाना चाह रहा है तो कोई आश्चर्य नहीं कि सडक़ों के गड्ढे व यातायात की दुर्दशा देखकर वह नेपाल में प्रवेश पाने से पहले ही रास्ते से वापस मुड़ आए। और यदि किसी तरह पहुंच गया तो निश्चित जानिए कि वह दोबारा कभी भी इस मार्ग पर व इन जगहों पर जाना पसंद नहीं करेगा। भारत-नेपाल कीे मुख्य सीमा पर अंतिम रेलवे स्टेशन का नाम नेपालगंज रोड है। जबकि इस स्टेशन के बाहर निकलते ही रुपेडिहा क्षेत्र पुकारा जाता है। यहीं स्थित हैं भारत-नेपाल सीमा पर होने वाली तमाम कार्यालय संबंधी औपचारिकताएं। इंडियागेट, नेपालगेट, दोनों देशों के कस्टम विभाग, पथकर तथा अन्य टैक्स संबंधी बैरियर,सुरक्षा संबंधी जांच-पड़ताल, वन विभाग की चेकपोस्ट इत्यादि। परंतु आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत-नेपाल सीमा का भीड़भाड़ वाला यह रुपेडि़हा क्षेत्र बिजली की आपूर्ति सही ढंग से न होने की वजह से सूरज डूबते ही अंधेरे के आग़ोश में चला जाता है। इस पूरे सीमा क्षेत्र में गंदगी, दुव्यर्ववस्था तथा बदहाली का वह आलम है कि किसी दूसरे शहर के अथवा दूसरे देश के पर्यटक का यहां आना तो दूर स्थानीय लोग भी अंधेरे, दुर्गंध तथा स्थानीय प्रशासनिक दुर्व्यवस्थाओं के कारण परेशान दिखाई देते हैं। और यदि आप इन सब परेशानियों का सामना करते हुए खुदा न ख्वास्ता नेपाल में दािखल हो गए तो नेपाल में बिजली, सड़क़, ट्रैफ़िक तथा बदबूदार बंद पड़े नाली व नालों का दुर्दशा देखकर तो निश्चित रूप से आप एक क्षण भी नेपालगंज में रुकना गवारा नहीं करेंगे। परंतु हमें यहां नेपाल की दुर्दशा पर उंगली उठाने का उतना अधिकार नहीं जितना कि हम अपने देश व उत्तर प्रदेश सरकार की इन इलाकों के प्रति उदासीनता तथा उपेक्षा का जि़क्र कर सकते हैं। देश व राज्य की सरकारों को चाहिए कि उत्तर प्रदेश का भारत-नेपाल सीमांत यह क्षेत्र अपने-आप में जिस क़द्र अपार पर्यटन संभावनाओं को समेटे हुए है उसका नियोजित तरीके से लाभ उठाए।

2 COMMENTS

  1. निर्मला जी ,आप का आलेख “पर्यटन की अपर सम्भावनाएं लिए उत्तर प्रदेश का सीमांत क्षेत्र “,प्रवकता डाट काम पर पढ़ा ,बहुत अच्छा लिखा। दुःख इस बात का है कि प्रदेश पर्यटन विभाग इस ओर जरा सा भी ध्यान नहीं देता है ,नहीं तो रोजगार के साथ प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था भी इस उद्योग से मजबूत हो सकती है।
    मैं इन दिनों लखनऊ से घर परिवार के लिए एक पत्रिका निकल रहा हूँ “दिव्यता “के नाम से।
    मेरी इच्छा है की आप मेरी पत्रिका के लिए भी कुछ लिखें तो पाठकों तक नई जानकरी पहुंचा सकूंगा।
    आशा है अपनी रचनातमक सहयोग की स्वीकृति देंगी। अपना पता दें तो मैं पत्रिका आप को भेज सकूंगा।
    शेष सुबह
    प्रदीप श्रीवास्तव
    —————-
    pradeep srivastava
    editor
    DIVYATA , HINDI MONTHLY
    UG-38, GOEL PALECE
    SANJAY GANDHI PURAM
    FAIZABAD ROAD
    LUCKNOW-226016
    U.P.
    pradeep.srivastava2@mail.com
    08604408528

  2. बहनजी अब तो पुरा भारत के अच्छै दिन आ गए है

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