इ. राजेश पाठक
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‘मेरे हिसाब से (मोदी द्वारा उठाये गए आर्थिक क़दमों में) सबसे सकारात्मक कदम है दिवालिया कानून. सच है कि सिर्फ १२ डिफाल्टरों को ही दिवालिया प्रक्रिया के तहत लाया गया है, लेकिन ये १२ सबसे बड़े और सबसे शक्तिशाली लोग हैं, जिनके स्पीड डायल पर सर्वधिक संख्या में शक्तिशाली नेता और नोकरशाह हैं. लेकिन इनमें से किसी को “फ़ोन काल” से मदद नहीं मिल सकी. एस्सार के शक्तिशाली रुईया को भी नहीं. …..भारत में दिवालिया होना परिवार के लिए शर्मिंदगी समझकर छुपाया जाता है. वाम समाजवाद की कसम खाने वाली लेकिन, “फ़ोन काल” वाली सरकार इसमें लिप्त थी. मोदी सरकार नें इसे ख़त्म कर दिया. बड़े कारोबारी धराशायी हो रहे हैं. इसी में से नया भारतीय पूँजीवाद का उदय होगा. में इसे स्वागतयोग्य और सांस्कृतिक बदलाव मानता हूँ.’ ये बात ‘द प्रिंट’ के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता नें अपने एक लेख में कही.
मोदी नें ऐसे और भी राष्ट्रहित में परिवर्तनकारी बुनियादी कार्य किये जिनकी चर्चा जरूरी है. हमारे छात्र बड़ी संख्या में उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले जाते हैं, और उनमें से बहुत ही कम होते हैं जो कि वापस भारत की ओर रूख करते हैं. इससे उनके ज्ञान-कौशल का जो लाभ मिलना चहिये उससे देश वंचित ही रह जाता है. इसको ध्यान में रखकर मोदी सरकार नें विदेशी विश्वविद्यालयों को देश में ही शिक्षा देने के प्रावधान किये. इस कदम पर हिंदुस्तान टाइम्स समाचार पत्र की टिप्पणी देखें योग्य है-“ देश के अन्दर विदेशी विश्वविद्यालयों को अनुमति देने की पहल नरेंद्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ का एक हिस्सा है. इससे देश को प्रथम वर्ष में ही लगभग ११ मिलियन डॉलर्स की राशी प्राप्त होने की सम्भावना है, और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक बढ़ावा मिलेगा सो अलग.” पेट्रोल-डीज़ल के लिए आवश्यक कच्चे ईधन तेल का दो तिहाई हिस्सा हमें विदेशों से आयात के रूप में प्राप्त होता है. इससे निपटने के दो तरीके हैं-एक अपना उत्पादन बढ़ाएं, या ईधन के अन्य विकल्पों को सुलभ बनानें की दिशा में आगे बढ़ा जाए. इसको देखते हुए सोर और पवन आधारित नवकरणीय उर्जा के क्षेत्र में मोदी सरकार नें अभूतपूर्व कार्य कियें है. जहां सोर उर्जा उपकरणों, मशीनरी और कलपुर्जों में उत्पाद शुल्क में छूट दी है, वहीँ सोलर बैटरी और पैनल बनाने में प्रयुक्त होने वाले सोलर टेम्पर्ड गिलास को सीमा शुल्क में भी बड़ी राहत दी है. इसके आलावा नवकरणीय स्वच्छ उर्जा फण्ड के वित्त-पोषण के लिए कोयला उत्पादन पर उपकर बढ़ाकर१०० रूपए प्रति टन कर दिया गया है. यह फण्ड स्वच्छ उर्जा प्रोद्धोगिकी में शोध और विकास को मदद देने के लिए स्थापित किया गया है.साथ ही इसी क्रम में विधुत चालित वाहनों और हाई ब्रिड वाहनों पर लागू रियायती सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क की समय सीमा जहाँ तक संभव हो उसे बढ़ाते रहने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
कभी पूर्वोत्तर प्रदेश तब समाचारों की सुर्खियाँ बनते थे जब वहां उल्फा,टीएनवी या ऍमएनएफ जिसे अलगाववादी संगठनों द्वारा कोई घटनाओं को अंजाम दिया जाता था. लेकिन अब इनकी चर्चा विकास परियोजनाओं को लेकर ज्यादा होने लगी है. इन प्रान्तों में अब तक ४४ हजार करोड़ रूपए आवंटित किये जा चुके हैं, जो की अब तक किसी भी सरकार के द्वारा आवंटित राशी से कहीं अधिक है. वर्तमान सरकार द्वारा उठाया गया ये कदम वहाँ के निवासीयों में राष्ट्रीय एकात्म भाव के जागरण के लिए भी आवश्यक था.
नरेद्र मोदी द्वारा उद्धमशीलता को गति देने के उद्देश्य से स्टार्ट-अप योजना पर विशेष बल देने का असर अब दिखने लगा है. इस सन्दर्भ में टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अपने लेख में स्वामीनाथन एस अन्कलेसरिया अय्यर लिखते है-‘ वैश्विक स्तर पर पूरी दुनिया में लगभग ३०० ‘युनीकोर्न्स’ हैं [ unicorns-अथार्थ ऐसी स्टार्ट-अप कम्पनीयां जिनका मूल्य एक अरब डॉलर्स से उपर है]. उनमें से २०१८ में भारत में इनकी संख्या कम से कम १० थी. इनमें शामिल हैं इ-रिटेलर फिलिपकार्ट[मूल्य २१ अरब डालर]; मोबाइल वेलेट कंपनी पे टीएम [१५ अरब डालर]; ओयो रूम्स[५ अरब डालर]; ओला कैब्स[४ अरब डालर]; लर्निंग एप कंपनी बायजूज़[३ अरब डालर] और खाना सप्लाई करने वाली स्विग्गी[३.३ अरब डालर].’-१० फर, २०१९. वे आगे बताते हैं कि केवल ये बड़े-बड़े अरबपति ही नहीं, बल्कि ३००० से उपर तो केवल वो है जिन्हें वंचित वर्ग का माना जाता है, और जो कि स्टार्ट-अप की बदोलत आज मिलिनैर[करोड़पति] की श्रेणी में आ चुके हैं
इ. राजेश पाठक
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