विश्व मंच पर भारत को नीचा दिखाने की कोशिश

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यह भारत में लाेकतंत्र एवं नागरिक अधिकाराें की स्वतंत्रता का ही कमाल है कि पिछले तीन महीने, लगभग 100 दिनाें से हजाराें किसान अपनी मांगाें काे लेकर देश की राजधानी दिल्ली की सीमा पर बैठे हुए हैं और सरकार उन्हें मूलभूत सुविधाएँ मुहैया करवा रही है। इसलिए रिपोर्ट पूरी तरह से भारत विरोधी एजेंडे का एक हिस्सा है। हम अपने सिस्टम को अधिक से अधिक न्याय पूर्ण बनाए रखें तो ऐसी रिपोर्टों का कोई मतलब ही नहीं बचेगा।

विगत कुछ वर्षों से कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भारत को दुनिया भर में नीचा दिखाने के प्रयास कर रही हैं। धार्मिक स्वतंत्रता से लेकर मानवाधिकार या नागरिकों की निजता के अधिकार का मामला हो या आर्थिक आजादी का मामला हो, प्रेस की आजादी का मामला हो या डिजिटल दुनिया में इंटरनेट और दूसरे संचार साधनों के इस्तेमाल की आजादी का मामला हो, लगभग हर पैमाने पर यह संस्थान भारत काे दुनिया के सर्वाधिक बदनाम देशों के साथ खड़ा कर रहे हैं। सारी रैंकिंग में भारत काे लगातार नीचे जाता दिखाया जा रहा है।

अभी हाल ही में अमेरिकी सरकार द्वारा वित्तपोषित गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) फ़्रीडम हाउस ने भारत के दर्जे को स्वतंत्र से घटाकर आंशिक स्वतंत्र कर दिया है। भारत एक ‘स्वतंत्र’ देश से ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ देश में बदल गया है।’ उक्त बातें अमेरिकी थिंक टैंक ‘फ्रीडम हाउस’ ने 195 देशों की नागरिक आज़ादी पर अपनी ताजा सालाना रिपोर्ट ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2021’ में कहा है। दरअसल इस रिपोर्ट में ‘पॉलिटिकल फ्रीडम’ और ‘मानवाधिकार’ को लेकर 195 देशों में रिसर्च की गई थी। रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि साल 2014 में भारत में सत्ता परिवर्तन के बाद नागरिकों की स्वतंत्रता में गिरावट आई है।

डेमोक्रेसी अंडर सीज’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत की स्थिति में जो तब्दीली आई है, वह वैश्विक बदलाव का ही एक हिस्सा है। रिपोर्ट में भारत को 100 में से 67 नंबर दिए गए हैं, जबकि पिछले वर्ष यानि ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2020’ की रिपोर्ट में भारत को 100 में से 71 नंबर दिए गए थे, जबकि उससे पहले यानी ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2019’ रिपोर्ट में भारत को 75 अंक प्राप्त हुए थे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी सरकार तथा राज्यों में उनकी गठबंधन सरकारें ” मुसलमानों / अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाली हिंसात्मक और भेदभाव पूर्ण नीतियों को अपनाती रही हैं और मीडिया, अकादमीशियनों, सिविल सोसाइटी समूहों और प्रदर्शनकारियों द्वारा किसी भी तरह के असंतोष की अभिव्यक्ति तथा आलोचना के खिलाफ कठोर कार्रवाइयाँ करती रही हैं” और इसके साथ ही सरकार ने कोविड-19 के दौरान काफी अविवेकपूर्ण तरीके से कठोर लॉकडाउन लगाया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि लाखों की संख्या में आंतरिक प्रवासी मज़दूरों को खतरनाक और अनियोजित तरीके से विस्थापित होना पड़ा।

इसमें कहा गया, ‘लोकतांत्रिक परंपराओं के वाहक बनने और चीन जैसे देशों के तानाशाही रवैये का प्रतिकार करने के बजाय मोदी और उनकी पार्टी भारत को अधिनायकवाद की ओर ले जा रही है। रिपोर्ट में कहा गया, ‘मोदी के (शासन के) तहत भारत एक वैश्विक लोकतांत्रिक अगुआ के रूप में सेवा देने की अपनी क्षमता को छोड़ चुका है और समावेश व सभी के लिए समान अधिकारों की कीमत पर संकीर्ण हिंदू राष्ट्रवादी हितों को बढ़ा रहा है।

जहां तक फ़्रीडम हाउस और उसकी इस रिपोर्ट का सवाल है तो इसे लेकर देश में तीखा विभाजन दिखता है। कुछ लोग इसे स्वयं सिद्ध प्रमाण की तरह उद्धृत कर रहे हैं, जैसे उनके मन की मुराद पूरी हाे गई हाे, और कुछ इसे सीधे खारिज कर रहे हैं। हम सभी जानते हैं कि ऐसी रिपोर्ट बनाने वालीअंतरराष्ट्रीय संस्थाओं काे फीडबैक काैन देता है। फीडबैक देने वाले ज्यादातर संगठन विदेशी अनुदान से चलते हैं। भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद भी लोग पूरी स्वतंत्रता के साथ अपने हक / अधिकाराे की आवाज़ उठा रहे है।

यह भारत में लाेकतंत्र एवं नागरिक अधिकाराें की स्वतंत्रता का ही कमाल है कि पिछले तीन महीने, लगभग 100 दिनाें से हजाराें किसान अपनी मांगाें काे लेकर देश की राजधानी दिल्ली की सीमा पर बैठे हुए हैं और सरकार उन्हें मूलभूत सुविधाएँ मुहैया करवा रही है। इसलिए रिपोर्ट पूरी तरह से भारत विरोधी एजेंडे का एक हिस्सा है। हम अपने सिस्टम को अधिक से अधिक न्याय पूर्ण बनाए रखें तो ऐसी रिपोर्टों का कोई मतलब ही नहीं बचेगा।

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