-अनिल अनूप हिमाचल की जयराम सरकार प्रदेश के नक्शे और नैन-नक्श बदलने की जिस मुहिम को गुजरात के परिप्रेक्ष्य में देख रही है, वहां इन्वेस्टर मीट के फलक पर जाहिर होती आत्मशक्ति को बल मिलता है। वाइब्रेंट गुजरात के माध्यम से हिमाचल को पेश करने की कड़ी में डेढ़ घंटे की प्रस्तुति में आर्थिक शृंगार देखा जाएगा। यह पहला अवसर है जब अपनी संभावनाओं के साथ हिमाचली आत्मविश्वास मुखातिब हो रहा है, ताकि वैश्विक मंच पर पहाड़ी राज्य की गणना हो। हमने 12 जनवरी, 2011 के इसी कालम में ‘गुजरात को गुरु माने हिमाचल’ के तहत लिखा था, ‘परिदृश्य की गुजराती समझ से भले ही हिमाचली मानसिकता अलग है, लेकिन राज्य की मजबूती, प्रगतिशील नजरिया व निरंतर प्रयोग धर्मिता का आकलन तभी होगा, यदि हिमाचल भी निजी निवेश को सम्मानीय दर्जा दे।’ तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2003 में ही निवशेकों के अनुरूप अपनी नीतियों का गंतव्य जब पहली बार वाइब्रेंट गुजरात के तहत समझाया तो राज्य में 0.66 लाख करोड़ का निवेश हो गया था और जिसे लगातार बढ़ाते हुए देश का सर्वश्रेष्ठ निवेश राज्य बन गया। देश का एक चौथाई निर्यात अगर गुजरात से हो रहा है, तो इसकी पृष्ठभूमि में समाज के सरोकार तथा राजनीति के बदलाव का असर है। कहीं न कहीं प्राइवेट सेक्टर को दरकिनार करके हिमाचली उद्गार अपने कई रास्ते रोकता रहा है, इसलिए हिमाचल को गुजरात बनाना है तो हर निवेशक को भविष्य की गारंटी भी देनी होगी। प्रदेश को निवेश माहौल, वांछित अधोसंरचना, कनेक्टिविटी तथा योजनाओं की निरंतरता में गैर राजनीतिक ढंग से सोचना होगा। दुर्भाग्यवश सरकारों के बदलते ही परियोजनाएं रुकती रही हैं या अधोसंरचना का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। बीबीएन का उदाहरण हमारे समक्ष ही अगर असफलता की गवाही के मानिंद है, तो हम आमंत्रित निवेशक के सामने कौन सी तस्वीर परोसेंगे। हमारी बेडि़यां राजनीतिक संकीर्णता के कारण प्रदेश को आगे बढ़ने से रोकती रही हैं, तो गुजरात जैसे राज्य पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत भी मंजिलें हासिल करते रहे। आज भी धारा-118 के सवाल पर प्रादेशिक अस्मिता जाग जाती है या बाहरी निवेशक को बोनाफाइड हिमाचली का दर्जा देने पर राजनीतिक मंशा पर प्रश्न उठता है। ऐसे में क्या हिमाचल में ऐसे स्वाभाविक लक्षण हैं जो निवेशक का विश्वास अर्जित कर पाएंगे। गुजरात में खाद्य एवं दवा नियंत्रण प्रयोगशाला के माध्यम से दवा उद्योग को प्रतिष्ठित किया गया, तो इस लिहाज से हिमाचल को विविध इंडस्ट्रियल इंस्टीच्यूट खड़े करने होंगे। ब्रांड गुजरात की तर्ज पर हिमाचल को भी अपनी ब्रांडिंग करनी है, तो हिमाचली समाज को भी इन्वेस्टर मीट की सफलता में अपनी पृष्ठभूमि का गौरव साबित करना है। निजी क्षेत्र में उपलब्ध रोजगार के अनुरूप मानव संसाधन की खूबियां ही वास्तव में ऐसी कार्यसंस्कृति की जनक हो सकती हैं तथा निवेश को सृजित करने के अनिवार्य वातावरण को परिष्कृत भी करती हैं। इसमें दो राय नहीं कि हिमाचल पहली बार नए निवेश के लिए खुद को सक्षम, कार्यशील तथा सौहार्दपूर्ण बना रहा है। हिमाचल ने भी वाइब्रेंट गुजरात की सीढ़ी तक पहुंचने से पहले व्यवस्थागत बदलाव तथा तैयारी का अंदाज पूरी तरह बदला है। खास तौर पर जिस तरह सभी जिलों में लैंड बैंक की अवधारणा को मूर्तरूप दिया जा रहा है, उससे प्रगति का मार्ग अवश्य ही प्रशस्त होता है। स्वयं मुख्यमंत्री ने निवेशकों से बातचीत के सिलसिले आगे बढ़ाए हैं, तो विभिन्न विभागों की कसौटियों में नवाचार दिखाई दे रहा है। देखना यह होगा कि डेढ़ घंटे की प्रस्तुति में हिमाचल अपने पक्ष को कैसे रेखांकित कर पाता है। इन्वेस्टर मीट की तैयारियों के बीच वाइब्रेंट गुजरात की सोहबत में हिमाचल के अपने संदर्भ जरूर पुख्ता होंगे और इनका विश्लेषण पूरी प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकता है।