दे घुमा के

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आखिर भारत ने घुमा के दे ही दिया। पटक के मारा लंका को, अटक के मारा पाकिस्तान को, झटक के मारा आस्ट्रेलिया को। यानि जीत के रास्ते पर दुनिया की तीन शीर्ष टीमों को धराशायी करते हुए पूरे विश्वास के साथ विश्व कप जीता। दुनिया में एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप मे भारत की प्रतिष्ठा के चलते यह आवश्यक हो गया था कि इस प्रतिष्ठा की खेलों में भी कोई अभिव्यक्ति हो। लाखो-अरबों डालर की फुटबाल प्रतियोगिताएं में भारत कही नहीं है। एशियाड और ओलंपिक में भी पिछले पायदान पर है। पर भारत और भारतीयों का एक पैशन है- क्रिकेट। लाला अमरनाथ के जमाने से कपिलदेव तक, कपिलदेव से सचिन तक और सचिन से धोनी तक भारतीय क्रिकेट खाते हैं, क्रिकेट पीते हैं , क्रिकेट के सपने लेते हैं , क्रिकेट जागते हैं। यहां तक कि कारगिल जैसे युद्द पर भी भारत की जनता का ध्यान तब गया जब 1999 का विश्वकप समाप्त हो गया। जब तक विश्वकप चल रहा था तब तक तो कारगिल युद्द जीतने का दारोमदार सचिन एंड कंपनी को दे रखा था।

 

सचिन भारत और भारतीयता को जिस तरह से अभिव्यक्त करते हैं, वैसा शायद ही कोई खिलाड़ी करता हो । लक्ष्य के प्रति समर्पण, असाधारण प्रतिभा, तकनीकी सक्षमता, अवसर का महत्व समझना आदि गुण उनमें हैं, परंतु यह तो किसी भी सफल खिलाड़ी के गुण है- राहुल द्रविड़, सौरभ गांगुली, सुनील गावस्कर, अनिल कुंबले। पर सचिन की विशेषता उसकी विनम्रता है, टीम के लिए स्वयं के त्याग का भाव है, भारत और भारतीयता की अपेक्षाओं की समझ और उसे पूरा करने का ज़ुनून है। इस मामले में वे कहीं लता मंगेशकर,अमिताभ बच्चन की पंक्ति में आते हैं।

 

पर धोनी नए भारत के प्रतीक है। जिसे विजय की इच्छा मात्र नहीं है , पर विजय के प्रति विश्वास है। परिस्थितियों और संकटो के प्रति भाव ऐसा मानों संकटों की तो प्रतीक्षा ही कर रहे हों और संकट आने पर स्वयं आगे बढ़कर उससे दो हाथ करने का माद्दा। यह आत्मविश्वास लंका के खिलाफ टूर्नामेंट के सबसे सफल खिलाड़ी युवराज सिंह से पहले आने पर भी झलका और टीम के चयन में भी। अगर जनता का वोट कराया जाए तो युसुफ पठान जैसे धुआंधार खिलाड़ी सहजता से टीम में शामिल हो जाएंगे। पर गैरी कर्स्टन जैसे रणनीतिज्ञ के साथ मिलकर योजना बनाते हुए विश्व में अपनी पताका फहराना धोनी के लबालब भरे विश्वास का ही परिचायक है।

 

युवराज सिंह ने बता दिया की एक जीनियस जब धैर्य और अनुशासन के रांद पर अपने को रगड़ता है तो सारे विश्व से अपना लोहा मनवा लेता है। अपनी नैसर्गिक प्रतिभा बैटिंग के साथ जब उन्होंने बालिंग को भी जोड़ लिया तो बैंसेन और हेजिस कप के रवि शास्त्री की याद ताज़ा कर दी। जो मैच- दर- मैच मैन आफ द मैच बने थे।

 

क्रिकेट जब ज़ुनून बन जाता है तो भारत और पाकिस्तान में युद्दोन्माद का रूप लेता है पर जब यह खेल भावना और आत्मीयता का रूप लेता है तो हिंदुस्तानी भी पाकिस्तानी चेहरों पर अपनापा और भाईचारा ढूंढने लगता है। मोहाली के मैच ने भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में जमी बर्फ को पिघला दिया । पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और भारत के प्रधानमंत्री साथ तालियां बजाते नज़र आए। जो काम ओबामा की डिप्लोमेसी ना कर पायी वह काम क्रिकेट के बल्ले और गेंद ने किया। जो चीजें लड़ाई के मैदान पर स्लिप कर गयी थी वह यहां क्रिकेट की गली मे मिल गयी। जनता ने भी तोप और बंदूको के बजाए क्रिकेट के पावर प्ले का आनंद लिया।

 

पूरा भारत जश्न मना रहा है। जैसे सबने मेहनत की हो और जीता हो विश्वकप। क्यों नहीं, सबकी दुआओँ और शुभकामनाओँ से भारत विश्वविजेता बना है। सबको बधाई।

 

– अनिल जोशी

 

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