पहुंच गये स्कूल|
जैसे ही पढ़ने वह बैठे,
टूट गया स्टूल|
चित्त गिरे धरती पर मामा,
कुछ भी समझ न पाये|
पसर गये फिर धीरे धीरे,
पैरों को फैलाये|
जैसे तैसे दो चूहों ने,
मिलकर उन्हें उठाया|
गरम गरम काफी का प्याला,
लाकर एक पिलाया|
पहुंच गये स्कूल|
जैसे ही पढ़ने वह बैठे,
टूट गया स्टूल|
चित्त गिरे धरती पर मामा,
कुछ भी समझ न पाये|
पसर गये फिर धीरे धीरे,
पैरों को फैलाये|
जैसे तैसे दो चूहों ने,
मिलकर उन्हें उठाया|
गरम गरम काफी का प्याला,
लाकर एक पिलाया|
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।