कैसे हों पुलिस यूनीफ़ार्म ?

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policeनिर्मल रानी 

पुलिस’ चाहे वह केंद्रीय पुलिस हो अथवा राज्य पुलिस देश की कानून व्यवस्था सामन्य बनाए रखने से लेकर देश की रक्षा, देश के महत्वपूर्ण संसाधनों की सुरक्षा, अपराध पर नियंत्रण पाना, अपराधी को खोज निकालना,राजनेताओं,अधिकारियों तथा अन्य महत्वपूर्ण लोगों की सुरक्षा तथा उनके आवागमन के मार्गों की निगरानी,परीक्षाओं का संचालन,जुलूस, रैली,प्रदर्शन व धरने आदि को नियंत्रित करना, अपराधिक मामलों की गहन त$फ्तीश जैसी कई और महत्वपूर्ण जि़म्मेदारियां पुलिस विभाग के जि़म्मे होती हैं। कहा जा सकता है कि देश की व्यवस्था के सामान्य संचालन में पुलिस अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। परंतु इसके बावजूद कि यह विभाग देश का सबसे जि़म्मेदार व महत्वपूर्ण विभाग समझा जाता है फिर भी यही विभाग देश का सबसे बदनाम व भ्रष्ट विभाग भी कहा जाता है। पुलिस व भ्रष्टाचार के मध्य गहरे रिश्ते के संबंध में प्राय: कोई न कोई बातें अथवा घटनाएं सामने आती ही रहती है। परंतु आमतौर पर पुलिस के तनावपूर्ण जीवन तथा ड्यूटी के दौरान उनके समक्ष आने वाली परेशानियों अथवा उनके हालात पर नज़र डालने की कोशिश नहीं की जाती।
किसी भी पुलिसकर्मी के व्यवहार का सीधा संबंध उसकी शारीरिक व मानसिक स्थिति से भी होता है। पुलिस की पहचान आमतौर पर उसके द्वारा धारण की जाने वाली वर्दी से ही की जाती है। वर्दी एक पुलिस कर्मी को अन्य साधारण लोगों से अलग दिखाई देने के मकसद से पहनाई जाती है। हमारे देश में खाकी वर्दी पहनने का निर्धारण ब्रिटिश शासन काल के समय किया गया। स्वतंत्रता के बाद लगभग तीन दशकों तक पुलिस विभाग में सूती कपड़े की कल$फदार कडक़ वर्दी पहनी जाया करती थी। परंतु आज स्थिति यह है कि सूती कपड़ा वर्दी के रूप में कहीं भी इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसकी जगह टेरीकॉट अथवा दूसरे मज़बूत,चमकदार,टिकाऊ मोटे कपड़ों ने ले ली है। ज़ाहिर है ऐसे मोटे कपड़ों की वर्दी भले ही सर्दी में कुछ आराम क्यों न देती हो परंतु गर्मियों में तो यह वर्दी किसी भी पुलिसवाले के लिए मुसीबत का कारण बनी दिखाई देती है। और इस पर सोने पर सुहागा यह कि पुलिस वालों को अपने सिर पर रखने के लिए यूनीफार्म से संबंधित जो टोपी दी जाती है उसमें भी गर्म व मोटे कपड़े का इस्तेमाल किया जाता है। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि जब कभी कोई वीवीआईपी सडक़ मार्ग से कहीं प्रस्थान कर रहा होता है उस समय उस वीवीआईपी के पूरे मार्ग में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर एक-एक सिपाही तैनात रहता है। यह तैनाती उस समय तक रहती है जब तक कि वह अति विशिष्ट व्यक्ति उस मार्ग से गुज़र नहीं जाता। अब इस मार्ग में कहीं छाया हो अथवा न हो ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मी को अपनी जगह पर सर्दी-गर्मी अथवा बरसात कैसे भी मौसम के दौरान अपनी डयूटी पूरी चौकसी व मुस्तैदी के साथ हर हाल में पूरी करनी होती है।
इसी प्रकार भयंकर गर्मी में जब कहीं मुख्य मार्ग अथवा बाज़ार में या फिर किसी लाल बत्ती चौक पर अथवा किसी $फ्लाइओवर पर जाम लग जाए तो भी यह पुलिस कर्मी अपनी उसी यूनी$फार्म से लैस होकर हालात पर नियंत्रण करने के लिए हाथों में डंडा लेकर स्थिति सामान्य करते दिखाई देते हैं। अब ज़रा सोचिए कि एक ओर जहां प्रचंड गर्मी व चिलचिलाती धूप की तीव्रता से बचने के लिए आम लोग घर से बाहर निकलना पसंद नहीं करते, वाहन चालक अपनी गाडिय़ों में एसी चलाकर कारों के शीशे बंद किए हुए जाम में फंसेे दिखाई देते हैं, अनेक लोग अपनी सुविधा अनुसार सूती कपड़े, सूती टीशर्ट, सूती कुर्ते-पायजामे का इस्तेमाल करते हैं, छायादार जगहों में बैठना-उठना पसंद करते वहीं एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस कर्मी के पास अपनी निर्धारित विभागीय वर्दी पहनकर किसी भी मौसम व परिस्थिति में अपनी ड्यूटी निभाए जाने के सिवा और कोई चारा नहीं रहता। स्वाभाविक रूप से चिलचिलाती धूप और उसपर मोटा पुलिस यूनीफार्म व सिर पर गर्म टोपी और इन्हीं हालात में सामने आने वाली चुनौती पूर्ण स्थिति का मुकाबला करना निश्चित रूप से इन्हीं परिस्थितियों में कई बार पुलिस अपना आप खो बैठती है और पसीने में तर-बतर झुंझलाहट से भरपूर ऐसे पुलिस वाले अक्सर अपने सामने आने वाले लोगों के साथ असामान्य तरीके से पेश आ जाते हैं।अब यह परिस्थिति धक्का-मुक्की,गाली-गलौज से लेकर डंडा चलाने तक की भी हो सकती है।
कई बार ऐसे समाचार भी सुनने को मिले हैं जबकि पुलिस वर्दी में ड्यूटी दे रहा कोई सिपाही भीषण गर्मी व चिलचिलाती धूप को सहन न कर पाते हुए अपनी जान से हाथ धो बैठा या फिर गर्मी की तपिश सहन न करते हुए बेहोश हो गया। अभी कुछ वर्ष पूर्व की ही बात है जबकि हमारे देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डा० एपीजे अब्दुल कलाम पंजाब में फतेहगढ़ साहिब में अपने पंजाब दौरे पर आए थे। उनके गुज़रने के मार्ग पर पुलिस कर्मियों को बड़ी संख्या में तैनात किया गया था। ऐसा ही एक सिपाही जोकि राष्ट्रपति महोदय की ड्यूटी पर तैनात था काफी देर तक एक ही जगह पर खड़े-खड़े वह उस दिन पड़ रही भीषण गर्मी को सहन नहीं कर सका और उसने अपना दम तोड़ दिया। सोचने का विषय है कि जब पुलिस कर्मी अपनी वर्दी को पहन कर सुख व आराम की अनुभूति करने के बजाए तकलीफदेह अथवा असामान्य स्थिति का सामना करे तो वही व्यक्ति आखिर सामान्य व्यवहार कैसे कर सकता है? निश्चित रूप से किसी व्यक्ति का पहनावा उसके व्यवहार पर पूरा प्रभाव डालता है। दुनिया के तमाम देश ऐसे हैं जहां मौसम के अनुसार वर्दियों का निर्धारण किया जाता है। परंतु हमारे देश में सर्दियों के लिए गर्म कपड़े तो वर्दी के साथ आबंटित कर दिये जाते हैं परंतु गर्मी व बरसात के मौसम के मद्देनज़र इन्हें कोई विशेष यूनीफार्म नहीं आबंटित किया जाता। यहां तक कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी गर्मियों में पुलिस कर्मियों को सूती टीशर्ट पहनने हेतु आबंटित की जाती है।
लिहाज़ा यदि देश की केंद्रीय सरकार तथा समस्त राज्य सरकारों को पुलिस कर्मियों से सामान्य व्यवहार की उम्मीद करनी है और उनके अंदर पाए जाने वाले गुस्से,चिड़चिड़ेपन तथा उनके असामान्य व्यवहार को नियंत्रित रखना है तो सबसे पहले सरकारों को उनके पहनावे पर ध्यान देने की ज़रूरत है। पूरे वर्ष एक जैसी वर्दी पहनकर ड्यूटी देना उनके व्यवहार में परिवर्तन का एक अहम कारण है। खासतौर पर गर्मी के दिनों में कोई भी इंसान भीषण गर्मी व चिलचिलाती धूप से परेशान होकर असामान्य सा व्यवहार करने लग जाता है। ऐसे में इंसान का ही रूप रखने वाला एक पुलिस वाला भी अपने आपको इस असामान्य व्यवहार से कैसे बचा सकता है? और वह भी तब जबकि उसने 47व 48 डिग्री तापमान में धूप में खड़े होकर सर पर गर्म टोपी व शरीर पर मोटा खाकी टेरीकॉट का यूनीफार्म धारण किया हो और उस पर उसके सामने भीड़, जाम अथवा दूसरे तनावपूर्ण हालात हों। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह यथाशीघ्र संभव पुलिस यूनिफार्म कोड में क्रांतिकारी परिवर्तन करते हुए इनके लिए मौसम के अनुकूल वर्दी धारण कराए जाने का प्रबंध करे। ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए कि जब एक पुलिसकर्मी अपने यूनीफार्म के लिहाज़ से सुखी,संतुष्ट तथा स्वयं को आरामदेह स्थिति में महसूस करेगा तो निश्चित रूप से जनता के साथ उसका व्यवहार भी सामान्य ही रहेगा।

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