समान नागरिक संहिता: मुस्लिम महिला दृष्टिकोण से

मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक।

पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित विवेक॥

भारतीय मुस्लिम समाज के साथ एक बहुत बड़ी दिक्कत है की उसे इस भाव का नेतृत्व कभी नहीं मिल पाता। भारतीय मे मुस्लिम नेतृत्व कभी भी मुखिया मुख सो चाहिए के समभाव का पालन करता नहीं दिखा और न ही वह सामान्य मुस्लिम पुरुषों और विशेषकर महिलाओं की कभी चिंता करता है। भारत मे मुस्लिम नेतृत्व की अपनी महत्वाकांक्षाएं, अपनी चाहतें, अपने रिजर्वेशन्स हैं जो एक मानसिक बीमारी बन गई है; और मुस्लिम जनता के अपने दुख, दर्द, परेशानियां और दुश्वारियां हैं जो जबर्दस्त ऊहापोह की गठान बन गई है। ये दोनों स्थितियां मुस्लिम समाज को विपरीत दिशा मे खींचती हैं। इसलिए मुस्लिम समाज थम गया है, भारतीय मुस्लिम आज भी मध्ययुग की बर्बर और जंगली परंपराओं को ढो रहा है। भारतीय मुस्लिम नेतृत्व और भारतीय मुस्लिम जनता इन दोनों के मध्य कोई हमदर्दी, हमदम, और हमसफ़र जैसा कोई संबंध है ही नहीं। हां, इन दोनों के मध्य समय समय पर भावनाओं को भड़काने और उस समय भड़ककर किसी मुद्दे पर विकासशील मार्ग से हटकर कट्टर होने का संबंध अवश्य है।

         वर्तमान स्थिति को -"एक परिवार मे दो कानून"- मोदी जी के ये पांच सरल सहज शब्द दिल तक समझा जाते हैं, किंतु तब, जब दिल खुला हो। दिल तो बंद है, अतः इस मंजर को किसी शायर के इन शब्दों से समझिए- 

इक मकान बुलंदी पर और बनाने न दिया

हम को पर्वाज़* का मौक़ा ही हवा ने न दिया

आप डरते हैं कि खुल जाए न असली चेहरा

इस लिए शहर को आईना बनाने न दिया

*पर्वाज़ = उड़ने का अवसर

यूसीसी के माध्यम से देश की लगभग दस करोड़ मुस्लिम मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, आर्थिक और अन्य स्थितियां सुदृढ़ हो सकती है; यह बात सभी को पता है। उधर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, AIMLB के महासचिव मौलाना फ़ज़ल ने मुसलमानों को फरमान जारी किया है कि यूसीसी के विरोध मे राय दर्ज कराएं। मुस्लिम महिला जगत जो बहुत प्रसन्न है कि यूसीसी आने से उनकी बहुविवाह, तीन तलाक, हलाला, इद्दत, विरासत में अधिकार, बाल विवाह, निकाह मुताह, हिजाब, महिला खतना जैसी बहुत सी नारकीय परिस्थितियों से वो बाहर आ जाएंगी; अब वह मुस्लिम ला बोर्ड के इस विपरीत कदम से अत्यंत चिंतित है। यह बोर्ड और अन्य कट्टर मुस्लिम संस्थाएं मुस्लिम महिलाओं की घनघोर अनदेखी कर रही हैं।

             बोर्ड के सचिव ने पत्र जारी किया है कि देश में मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा और इसे प्रभावित करने वाले किसी भी क़ानून को रोकना बोर्ड के मुख्य उद्देश्यों में से है। बोर्ड ने अपने विस्तृत उत्तर मे यूसीसी को देश की एकता और लोकतंत्र हेतु खतरा बताया है। बोर्ड ने विधि आयोग की वेबसाइट पर यूसीसी के विरुद्ध अपना दृष्टिकोण दिखाने के लिए एक पत्र का मजमून भी दिया है। बोर्ड ने कहा है कि देश के मुस्लिम इस पत्र को अपनी स्थानीय भाषा में विधि आयोग में भेजे। इस नोट में करेले को नीम चढ़ाते हुए यह मांग की जा रही है कि संविधान के दिशानिर्देशों के अनुच्छेद-44 को समाप्त करना ही उचित है। मुस्लिम पर्सनल लॉ  बोर्ड ने मुस्लिम समाज द्वारा पांच लाख आपत्तियां दर्ज कराने का लक्ष्य बनाकर यह स्पष्ट कर दिया है कि वह मुस्लिम समाज को देश की मुख्य धारा से बाहर रखने हेतु संकल्पित है। 



              मुस्लिम समाज के सामने और उससे भी बढ़कर समूचे देश के सामने सबसे बड़ा काम है कि इस मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और अन्य कट्टर मुस्लिम संस्थाओं की मानसिकता और हार्मोनल स्ट्रक्चर को समझा जाए। इन संस्थाओं की केमिस्ट्री और हार्मोनल स्ट्रक्चर ही संविधान विरोध, हिंदू विरोध और हलाकू प्रकार का है। अयोध्या विषय के सामाजिक समाधान मे सबसे बड़ा खलल यह बोर्ड ही था। न्यायालय ने जब जब भी अयोध्या विषय को श्रमपूर्वक चर्चा के स्तर पर लाया और न्यायालय से बाहर इस मामले की शांतिपूर्ण समझौते की बात हुई, तब-तब AIMLB "एक इंच जमीन भी नहीं छोड़ेंगे" जैसी कट्टर बात करके शांति स्थापना के उस अवसर की भ्रूण हत्या कर देता था। कल्पना करिए की यदि मुस्लिम समाज स्वयं आगे आकर राम जन्मभूमि को हिंदू समाज को सौंप देता तो आज हमारा सामाजिक ढांचा और देश मे परस्पर सद्भाव का स्तर हिमालय जैसा होता या न होता?! 

          ये फरेबी और बईमान बोर्ड यहीं नहीं रुका, इसने जन्मभूमि के निर्णय के बाद समूचे मुस्लिम समाज को खलनायक बनाते हुए कहा था कि -  “ मुसलमान सुप्रीम कोर्ट के फैसले और मस्जिद की जमीन पर मंदिर के तामीर होने से हरगिज निराश न हों। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि खाना-ए-काबा (हज की मस्जिद) एक लंबे अरसे तक शिर्क (मूर्तिपूजक) और बिदअत परस्ती का मरकज रहा है।” मामले मे और अधिक जहर घोलते हुए तब बोर्ड ने तुर्की की हागिया सोफिया मस्जिद का उदाहरण देकर हिंदु- मुस्लिम दोनों को भड़काने के भरपूर प्रयत्न किए थे। वो तो भला हो संघ परिवार का कि उसने अयोध्या निर्णय के बाद हिंदू समाज मे किसी भी प्रकार का उत्सव न मनाने, संयमित रहने, चुप्पी रखने और कोई प्रतिक्रिया न देने का वातावरण सख्ती से बनाया था; अन्यथा AIMLB तो तीव्र दंगे भड़का देता। तब उप्र के मंत्री मोहसिन रजा ने कहा था कि मुस्लिम लॉ बोर्ड और बाबरी एक्शन कमेटी के सदस्यों का आतंकी संगठनों के साथ सम्बंध है। 

                वस्तुतः हुआ यह कि राजीव गांधी द्वारा शाहबानों प्रकरण मे मुस्लिम बोर्ड के समक्ष घुटने टेक देने के बाद मुस्लिम ला बोर्ड का दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ गया और वह स्वयं को एक संवैधानिक ढांचे से भी ऊपर मानने लगा है। देश के तथाकथित सेकुलर दलों, सेकुलर प्रकार की संस्थाओं और कट्टरपंथी मुस्लिमों के सहयोग से यह बोर्ड समय समय पर देश के सामाजिक वातावरण को दूषित करने मे सफल होने लगा है। अब बोर्ड को समझ आ रहा है कि यदि समान नागरिक संहिता लागू हो जाती है तो AIMPLB संगठन का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा और इसका कोई महत्व नहीं रह जाएगा। 

                  मुस्लिम लॉ बोर्ड ईश निंदा के जंगली प्रकार के कानून बनाने की मांग भी समय समय पर करता रहता है। यह तीन तलाक कानून, CAA, NRC, हिजाब सुधार, मस्जिदों के लाउड स्पीकर विवाद, आदि सभी विवादों मे अपने जहर बुझे बाण से देश की कानून व्यवस्था, परस्पर सद्भाव और देश की वैश्विक छवि को चोटिल करता रहा है। 

      मुस्लिम लॉ बोर्ड एक एनजीओ के रूप मे स्थापित हुआ था और यदि इसके संस्थापको को समझें, इसके उद्देश्य और नियमों को पढ़ लें तो स्पष्ट हो जाता है कि यह बोर्ड और कुछ नहीं देश मे इस्लामिक शासन स्थापित करने की एआक मशीन मात्र है। यह बोर्ड देश मे शरीयत लागू करने का हरसंभव प्रयास करता है और संविधान के प्रति विरोध का वातावरण निर्मित करता है।

           बोर्ड को ऐसे भी समझें, कि जब अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से भारत सहित समूचे विश्व के नेता चिंतित हो उठे थे  तब इस  मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी ने इसका स्वागत किया था हिंदुस्तान की ओर से तालिबान को सलाम ठोंका था।

          अब हिंदुस्तानी मुसलमान यह देखे कि उसे तालिबानी बनना है या रसखान, अब्दुल कलाम आजाद बनना है?

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