उन्नाव की त्रासदी की उपजे सवाल

1
193

– ललित गर्ग-

उत्तर प्रदेश के उन्नाव में बलात्कार पीड़ित युवती और उसके परिवार के साथ जिस तरह की त्रासद एवं खौफनाक घटनाएं घटी हैं, वे न केवल देश के राजनीतिक चरित्र पर बदनुमा दाग है बल्कि एक कालिख पोत दी है कानून और व्यवस्था के कर्णधारों के मुंह पर। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि एक तरफ बलात्कार के बाद युवती हर स्तर पर न्याय की गुहार लगा रही थी और दूसरी तरफ परिवार सहित उसे बेहद त्रासद हालात का सामना करना पड़ रहा था। आरोपी विधायक की ओर से लगातार इस पीडित युवती एवं उसके गरीब परिवार को तरह-तरह से धमकाया जा रहा था। मिलने वाली धमकियों के बावजूद थक कर युवती ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा, लेकिन वहां भी इतनी अराजकता पसरी थी कि पत्र उन तक पहुंचने ही नहीं दिया गया। देश के राजनीतिक गिरावट एवं मूल्यहीनता के इन डरावने घटनाक्रम ने पूरे देश की आत्मा को झकझोर दिया, उसने शासन एवं कानून की भी धज्जियां उखेड़ते हुए अनेक ज्वलंत प्रश्नों को खड़ा किया है। 
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास एवं पृष्ठभूमि में ऐसे कालेपृष्ठों का लम्बा सिलसिला रहा है। लेकिन भाजपा के विधायक का यह कारनामा आश्चर्य में डालने वाला रहा, क्योंकि यहां चरित्र एवं मूल्यों की वकालत होते हुए देखा जाता रहा है। लेकिन विडम्बनापूर्ण तो तब लगा जब इन घटनाओं के सामने आने के बाद भी पार्टी एवं शासन में गहन सन्नाटा पसरा रहा। दुखद पहलू तो यह भी रहा कि इंसाफ की राह में किस-किस तरह की अड़चने पैदा की जा सकती है। लेकिन चार दिन पहले जब कथित हादसे में उसके परिवार की दो महिलाएं मारी गईं और वह खुद बुरी तरह घायल होकर मौत से लड़ रही है, तब जाकर संबंधित पक्षों की सक्रियता दिख रही है। प्रश्न है कि ऐसे मामलों में भी पक्षपात क्यो? क्यों इतना समय लगा इस घटना के खिलाफ कार्रवाई का निर्णय लेने में? क्या ऐसे धृणित एवं घिनौने हादसों में भी राजनीतिक लाभ-हानि का गणित देखना जरूरी है? मामले के तूल पकड़ने के बाद ही केंद्र सरकार क्यों हरकत में आई? भले ही अब इस हादसे की जांच सीबीआइ को सौंप दी है, जिसने आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेेंगर और अन्य दस लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। लेकिन ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिये तो कठोर कार्रवाई जरूरी है, एक सख्त संदेश जाना जरूरी है।
जाहिर है कि बलात्कार पीड़िता को समाप्त करने की हरसंभव कोशिश आरोपी विधायक ने की। पीड़िता जिस कार में सवार थी उसे रायबरेली जाते हुए जिस ट्रक ने टक्कर मारी थी, उसकी नंबर प्लेट काले रंग से पुती होने और पीड़िता की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों के न होने का ब्योरा सामने आया है। इससे यह स्पष्ट है कि आरोपी ने अपने राजनीतिक वजूद का भरपूर दुरुपयोग किया। यही कारण है और हैरानी की बात भी है कि शुरुआती तौर पर पुलिस की ओर से इसे एक सामान्य हादसे के रूप में ही पेश करने की कोशिश की गई। जबकि युवती के खिलाफ होने वाले अत्याचार से लेकर अब तक जो भी हालात सामने रहे हैं, उनसे साफ है कि उसके लिए इंसाफ के रास्ते मंे बड़ी बाधाएं हर स्तर पर खड़ी करने की कोशिश होती रही है। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश सरकार पर इस प्रकरण में नर्म रूख अख्तियार करने के आरोप लग चुके हैं। ऐसे में स्वाभाविक ही विपक्षी दल आरोपी को संरक्षण देने और उसे बचाने की कोशिश के आरोप लगा रहे हैं। इससे पहले जब युवती ने अपने बलात्कार का मामला सार्वजनिक किया था और प्रशासन से आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी, तब पुलिस ने न केवल उचित कदम नहीं उठाए, बल्कि उसके पिता को हिरासत में लिया था, जहां उनकी मौत हो गई। इस मामले में थी पुलिस पर यातना देने के आरोप लगे थे। पुलिस की भूमिका ने अनेक ज्वलंत प्रश्न खड़े किये हैं और जाहिर किया कि सत्ताधारी एवं पुलिस की सांठगांठ से कितना भी बड़ा अनर्थ घटित किया जा सकता है।
”अब राजनीति में अधिक शुद्धता एवं चारित्रिक उज्ज्वलता आये“ ”अमीर-गरीब देशांे की खाई पटे“, ‘राजनीतिक अपराधीकरण पर नियंत्रण होे’, पर कैसे? जब राजनीति के सभी स्तरों पर आदर्शहीनता, मूल्यहीनता चरित्रहीनता व हिंसा की मौन आंधी चल रही है, जो नई कोपलों के साथ पुराने वट-वृक्षों को भी उखाड़ रही है। मूल्यों के बिखराव के इस चक्रवाती दौर मंे राष्ट्र में उथल-पुथल मची हुई है। अब नायक नहीं बनते, खलनायक सम्मोहन पैदा कर रहे हैं। पर्दे के पीछे शतरंजी चाल चलने वाले मंच का संचालन कर रहे हैं। कइयों ने तो यह नीति अपना रखी है कि गलत करो और गलत कहो, तो हमें सब सुनेंगे। हम खबरों में रहेंगे। बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ।
अब शब्दों की लीपा-पोती की होशियारी से सर्वानुमति बनाने का प्रयास नहीं होना चाहिए, क्योंकि मात्र शब्दों की सर्वानुमति किसी एक गलत शब्द के प्रयोग से ही पृष्ठभूमि में चली जाती है। यह रोज सुनते हैं और इस उन्नाव की त्रासद घटना में भी सुनाई दिया। भारत में अभी भी चारित्रिक अवमूल्यन, असंतोष और बिखराव है। अफसोसनाक यह है कि निराशा में जब बलात्कार पीडिता ने मदद की उम्मीद में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को पत्र लिखा, तो वह भी समय पर सही जगह नहीं पहुंच सका। अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर पीड़ित कमजोर पृष्ठभूमि से हो तो उसके लिए इंसाफ की राह में किस-किस तरह की अड़चने सामने आ सकती हैं। आरोपी राजनीति से जुड़ा हो तो बड़े-से-बड़े अपराध पर पर्दा डाला जा सकता है। स्वाभाविक ही मामले के संज्ञान में आने के बाद मुख्य न्यायाधीश ने नाराजगी जाहिर की है। इतना तय है कि इंसाफ की राह में इस मामले को एक कसौटी की तरह देखा जाएगा। इसलिए अब सरकार को पहल करके पीड़िता के हक में इंसाफ सुनिश्चित करना चाहिए, चाहे इसके लिए उसे अपनी पार्टी के किसी विधायक के खिलाफ कितना भी सख्त कदम क्यों न उठाना पड़े।
जब किसी कमजोर का शोषण होता है, निर्धारित नीतियों के उल्लंघन से अन्याय होता है तो हमें अदालत पर भरोसा होता है, परन्तु अदालत भी सही समय पर सही न्याय और अधिकार न दे, या अदालत तक पहुंचने के मार्ग ही अवरूद्ध कर दिये जाये तो फिर हम कहां जाये? उन्नाव की बलात्कार पीडित युवती के साथ अनेक प्रश्न एवं खौफनाक हादसे जुडे़ हैं। इन जटिल हालातों में उसकी जिन्दगी सहमी हुई है, उसकी ही नहीं ऐसे हालातों की शिकार हर युवती की जिन्दगी सहम जाती है कि वह न तो क्रांति का स्वर बुलन्द कर सकती और न ही विद्रोही बनकर बगावत। 
 जैसे भय केवल मृत्यु में ही नहीं, जीवन में भी है। ठीक उसी प्रकार भय केवल गरीबी में ही नहीं, राजनीति में भी है। यह भय है बलात्कार करने वालों से, सत्ता का दुरुपयोग करने वालों से। जब चारों तरफ अच्छे की उम्मीद नजर नहीं आती, तब पीडित अदालत की ओर मुड़ता है कारण, उस समय सभी कुछ दांव पर होता है। लेकिन यह स्थिति शासन की विफलता को ही दर्शाती है। 
देश में हर रोज कोई न कोई ऐसी घटना हो जाती है, जो व्यवस्था मंे सभी कुछ अच्छा होने की प्रक्रिया को और दूर ले जाती है। कोई विवाद के घेरे में आता है तो किसी की तरफ शक की सुई घूम जाती है। पूरी भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में अनुशासन, चरित्र, नैतिकता और शांति की आदर्श पृष्ठभूमि बन ही नहीं रही है। अगर कोई प्रयास कर भी रहा है तो वह गर्म तवे पर हथेली रखकर ठण्डा करने के प्रयास जैसा है। जिस पर राजनीति की रोटी तो सिक सकती है पर निर्माण की हथेली जले बिना नहीं रहती। सम्प्रति जो नैतिक एवं चारित्रिक चुनौतियां भारत के सामने हैं, वह शताब्दियों से मिल रही चुनौतियों से भिन्न हैं। अतः इसका मुकबला भी भिन्न तरीके से करना होगा। प्रेषकः

 (ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
मो. 9811051133

1 COMMENT

  1. चरित्र व मूल्यों की बात करने वाली भा ज पा का चरित्र तो तब नजर आता , जब वह सेंगर को पहले ही झटके में पार्टी से बाहर करती , भा ज पा कई अवसरों पर ऐसी गलती करती रही है , शयद राजपूत वोटों के चक्कर में उसने ऐसा नहीं कित्या हो लेकिन अब उसे बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा ,योगी ने इसे दबाने की कोशिश में अपनी जो भी थोड़ी बहुत उपलब्धियों को धूल में मिला दिया है
    जातिगत , धार्मिक अनुपात व समीकरण के मध्य यू पी को संभालना जटिल ही है चाहे किसी भी दाल की सरकार हो ऐसे में विवेक व दूरदर्शिता तथा निष्पक्ष संतुलन ही सफलता दिला सकता है
    विधान सभा में भा ज पा की बड़ी संख्या को देखते हुए एक विधायक के खिलाफ की गयी कार्यवाही निश्चित ही आगे के लिए अन्य लोगों को एक चेतावनी होती व योगी की राह आसान हो जाती यह भा ज पा की बड़ी चूक ही रही

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,035 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress