यूपी : कांगे्रस किसी से क्या करेगी गठबंधन, उसे तो सपा-बसपा ने‘दूध की मक्खी’ की तरह निकाल दिया है

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संजय सक्सेना

उत्तर प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कांगे्रस महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका वाड्रा को 2022 के विधान सभा चुनाव के लिए कांगे्रस का चेहरा बता कर कोई नई बात नहीं की है। यह बात लोकसभा चुनाव के समय राहुल गांधी कह चुके थे। अगर चेहरे वाली बात की जगह लल्लू थोड़ा और स्पष्ट करते हुए यह बता देते कि क्या कांगे्रस को सरकार बनाने लायक बहुमत मिला तो प्रियंका वाड्रा मुख्यमंत्री बनेंगी, तो जरूर कांगे्रसियों को नया अहसास होता। यह बात इस लिए कही जा रही हैं क्योंकि गांाधी परिवार यह मान कर चलता है कि वह सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री बनने के लिए जन्म लेता है। ऐसा सोचना गलत भी नहीं है। देश को तीन-तीन प्रधानमंत्री गांधी परिवार से ही मिले थे,जिन्होंने करीब 50 वर्षो तक देश पर राज किया। हाॅ, इसके बाद जरूर बे्रक लग गया है। 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद गांधी परिवार से चैथा प्रधानमंत्री बनने का सपना कभी सोनिया गांधी ने देखा था, लेकिन तब न जाने क्यों प्रधानमंत्री बनने का सपना लेकर राष्ट्रपति भवन तक पहुंच गई सोनिया गांधी का अचानक मन बदल गया और उन्होंने अपनी जगह मनमोहन सिंह के सिर पर प्रधानमंत्री का ताज रख दिया। 
   वैसे कहा यह जाता है कि तत्कालीन राष्ट्रपति ने संविधान की दुहाई देते हुए सोनिया को बता दिया था कि वह विदेशी मूल की होने के कारण भारत की प्रधानमंत्री बनने के योग्य नहीं है। उस दिन के बाद से सोनिया गांधी अपने पुत्र राहुल गांधी को पीएम की कुर्सी पर बैठाने के लिए जतन करने लगीं,लेकिन तब से आज तक गंगाजी में न जाने कितना पानी बह गया,लेकिन सोनिया का बेटे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने सपना पूरा नहीं हो पाया है। ऐसा लगता है कि राहुल गांधी भी प्रधानमंत्री बनने का सपना देखते-देखते थक गए है। कुछ समय से नये अवतार में नजर आ रही प्रियंका वाड्रा के अंतरमन में पीएम बनने का सपना ‘अंगड़ाई’ लेता दिख रहा है,लेकिन वह यह बात खुल कर कह नहीं पा रही हैं,क्योंकि उनके मुंह खोलते ही दस जनपथ में हाहाकार मच सकता है। हो सकता है प्रियंका को हासिए पर ही डाल दिया जाए। इसीलिए प्रियंका ने उत्तर प्रदेश के रास्ते दिल्ली का ताज हासिल करने का सपना देखना शुरू कर दिया है। एक तरफ वह यह दिखा रही हैं कि उन्हें केन्द्र की सियासत में कोई रूचि नहीं है दूसरी तरफ वह यह भी समझती हैं कि अगर वह यूपी में मजबूत हो गईं तो दिल्ली का रास्ता अपने आप आसान हो जाएगा।
    खैर, लल्लू की बात को आगे बढ़ाया जाए तो यह साफ दिखाई दे रहा है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा यूपी में लम्बी पारी खेलने के मूड में है। वह लगातार उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर हमलावर हैं। उत्तर प्रदेश से जुड़े मामलों पर ट्वीट कर योगी सरकार को घेरने में प्रियंका गांधी बिल्कुल भी पीछे नहीं रहती है। सब उनको यूपी में कांगे्रस का चेहरा मानते हैं,लेकिन इससे इत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यह कहते हैं कि कांग्रेस किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन नहीं करेगी तो बात थोड़ी हजम नहीं होती है। दरअसल, कांगे्रस इस स्थिति में ही नहीं है कि वह गठबंधन वाली बात करे। उत्तर प्रदेश की दो सबसे बड़ी पार्टिंयो समाजवादी पार्टी और बसपा दोनों के ही नेतृत्व ने 2022 के विधान  सभा चुनाव के लिए कांगे्रस से हाथ मिलाने से इंकार कर दिया है। यही स्थिति बीते वर्ष लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिली थी,जब कांगे्रस सपा-बसपा से हाथ मिलाने के लिए छटपटा रही थी,लेकिन मायावती-अखिलेश ने प्रियंका को तवज्जो ही नहीं दी। कांगे्रस ने उत्तर प्रदेश में 2019 का लोकसभा चुनाव प्रियंका की अगुवाई में ही लड़ा था और उसे सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। उसके अधिकांश प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। इसके बाद हुए उप-चुनावों में भी कांगे्रस की ऐसी ही दुर्दशा देखने को मिली थी।
  दरअसल, पहले राहुल गांधी और अब प्रियंका वाड्रा उत्तर प्रदेश की सियासत की नब्ज ही नहीं पकड़ पा रही हैं। गांधी परिवार के नेताओं को यह तक नहीं पता है कि कब बोलना जरूरी होता है और कब बिना बोले ज्यादा फायदा मिलता है। इसकी बानगी एक बार नहीं कई बार देखने को मिल चुकी है। ताजा मामला उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा शनिवार-रविबार को प्रदेश में पूर्ण लाॅकडाउन की घोषणा से जुड़ा हुआ है,जिसका प्रियंका वाड्रा द्वारा मिनी पैक बता कर मजाक उड़ाया जा रहा है। प्रियंका का कहना था कि इस तरह के लाॅक डाउन से कुछ भला होने वाला नहीं है,लेकिन योगी सरकार को पता ही नहीं है कि कैसे कोरोना पर नियंत्रण किया जाए इस लिए वह इस तरह के कदम उठा रहे हैं। प्रियंका को यह कहते समय इस बात का जरा भी ध्यान नहीं रहा कि इसी तरह(शनिवार-रविवार को बंदी) का लाॅक डाउन कांगे्रस की पंजाब सरकार भी कर रही है। वह अगर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से मिनी लाॅकडाउन के फायदे समझ लेती तो ज्यादा अच्छा रहता।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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