‘उर्वशी’ होना नारी का अपमान है: डा. धर्मवीर

कैलाश दहिया

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की ‘उर्वशी’ में नारी चेतना और नारीवाद का नामोनिशान नहीं है। उर्वशी वेश्या थी और वेश्या होना नारी के लिए अपमान है। दिनकर ने अपनी द्विज परम्परा में ‘उर्वशी’ नामक प्रबंध काव्य लिखा है। इसमें जहाँ कविता थी-अच्छी लगी, जहाँ पुराण था, वहाँ यह खराब ही होनी थी। दिल्ली विश्वविद्यालय की आर्ट फैकेल्टी में 04 नवम्बर, 2011 को अपराह्न सत्रा में ‘उर्वशी’ पर बोलते हुए महान आजीवक चिन्तक डा. धर्मवीर ने कहा कि दिनकर नारी पर बोले हैं, लेकिन पुरुष का पक्ष ले कर। इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन की कविता का पक्ष क्या रहा होगा?

जिज्ञासु विद्यार्थियों और विद्वान प्रोफेसरों से खचाखच भरे कक्ष में डा. धर्मवीर का परिचय कराते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. गोपेश्वर सिंह ने कहा-‘‘डा. धर्मवीर ने कबीर-विमर्श को नई दिशा दी, प्रेमचंद पर इन का काम उल्लेखनीय है। धर्मवीर जी के लेखन और चिंतन का क्षेत्रा बहुत व्यापक है। आज दिनकर पर कोई बात नहीं करता, ऐसे में ‘डा. धर्मवीर की दृष्टि’ क्या कहती है, यह जानना बहुत महत्वूपर्ण होगा।’’

डा. धर्मवीर ने अपना आलेख ‘दिनकर-रोशनी और अंधेरा’ पढ़ा तथा ‘उर्वशी’ में से कई प्रसंगों को गा कर भी सुनाया। उन्होंने ‘रात रुपहली आई’ का विशेष पाठ किया। डा. साहब ने बताया कि दिनकर लौकिक नारी के पक्ष को नहीं छू सके, लेकिन इस में उन की गलती नहीं कही जा सकती, क्योंकि वे जिस परम्परा से आते हैं उस में नारी की गरिमा है ही नहीं। नारी को उस में कामिनी के तौर पर देखा गया है। इसीलिए दिनकर ने भी गणिका उर्वशी को ही अपनी कविता का केन्द्र बनाया, जो एक वेश्या थी। इस के विपरीत आजीवक (दलित) परम्परा में मैंने ‘कम्पिला’ को केन्द्र में रख कर अपना प्रबंध काव्य रचा है।

डा. धर्मवीर ने बताया कि हिन्दी साहित्य में नारी की यात्रा नूरजहाँ, कामायनी, उर्वशी और कम्पिला के रुप में आती है। इन में उर्वशी वेश्या है। हमारे विद्यार्थी इसे पढ़ें और समझें। नारी को समझने के लिए इसे जानना बेहद जरूरी है। स्त्राी-विर्मश इस के इर्द-गिर्द घूमता है। इसी के बीच से नारी समस्या का समाधान निकलना है।

‘उर्वशी’ पर अपने व्याख्यान में डा. धर्मवीर ने बताया कि पुरु की पत्नी ओशिनैरी ने उर्वशी को गणिका और वेश्या कहा है। इस से आप उर्वशी के बारे में समझ सकते हैं। डा. साहब ने कहा कि-वेश्या होना सिंहनी नारी के प्रति अपमान है। उर्वशी के बेटे ‘आयु’ का पोषण राजकुमार की तरह नहीं हुआ। वह गणिकाओं (वेश्याओं) के बीच पैदा हुआ और आश्रम में पला-बढ़ा। ऐसा बच्चा भला देश की रक्षा कैसे कर सकता है? उर्वशी का वंश वेश्याओं में चला। डा. धर्मवीर ने बताया कि पुरुरवा भी बिना पिता के आया, उस का माँ के साथ नाम आता है केवल-‘इला पुत्रा’। पुरुरवा राजपुरोहितों के हाथ का खिलौना था। यही इस देश की गुलामी की वजह है। पुरोहित के रूप में जार ने देश को गुलाम ही बनवाया है। आक्रमणकारी पहले बाप का नाम पूछता है। डा. साहब ने कहा-माता भी ठीक है और पिता भी, लेकिन जार कहाँ से आता है। ‘पति-पत्नी और बच्चे’ की जगह ‘पति-पत्नी’ और ‘वो’ कौन है?

वेश्या या गणिका की वजह से नारी का वर्तमान आगे खिसकता जा रहा है। नारीवाद या स्त्री-विमर्श में गणिका का गला घोटना पड़ेगा। दिनकर ने उर्वशी का पक्ष ले कर स्त्री-विमर्श को पीछे ही धकेला है। आप विद्यार्थियों को देखना है कि कैसा समाज बनाना चाहते हैं। डा. धर्मवीर ने इस अवसर पर अपने महाकाव्य ‘कम्पिला’ से भी पाठ किया। डा. साहब ने बताया कि दिनकर की ‘उर्वशी’ पर उन की किताब आ रही है, यह जल्द ही पाठकों को उपलब्ध होगी। कार्यक्रम का संचालन कर रहे डा. आशुतोष ने कहा कि डा. धर्मवीर कविता गा रहे हैं-पढ़ रहे हैं, यह इन का बिलकुल अलग रूप देखने में आया है। प्रेमचंद पर इन के काम से हम एक तरह से आशंकित थे, लेकिन उर्वशी के पाठ और व्याख्या से सारी आशंकाएं ध्वस्त हो गई हैं।

धन्यवाद ज्ञापन में प्रो. श्यौराज सिंह ‘बेचैन’ ने कहा कि डा. धर्मवीर का ज्ञान अथाह है। डा. साहब केवल हिन्दी से संचालित नहीं होते। वे इतिहास, दर्शन, समाजशास्त्रा, भाषाशास्त्रा, साहित्य और धर्म के विशेषज्ञ हैं। विज्ञान, विशेषतः भौतिकी इन का पसंदीदा विषय है, आज के कार्यक्रम में डा. साहब का प्रेम का पक्ष सामने आया है। यह दिल्ली विश्वविद्यालय के लिए गौरव की बात है कि धर्मवीर जी जैसे महाकवि का व्याख्यान और कविता पाठ यहाँ हुआ है। इस कार्यक्रम की एक प्रमुख विशेषता यह रही कि बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय की छात्राओं ने इसे मनोयोग से सुना।

4 COMMENTS

  1. कौन सी परम्परा नारी को वेश्या बना रही है? अगर किसी परम्परा में वेश्या होना जायज है तो फिर क्या कहना.

  2. आर सिंह की टिप्पणी से सहमत. धर्मवीर जी के फतवे से असहमत. न जाने भारतीय साहित्य के तथाकथित प्रगतीशील/जनवादी/दलितवादी ठेकेदार कब निष्पक्ष रूप से वस्तुनिष्ठ समीक्षा करेंगे..? हमारे यहाँ साहित्य को जात-पांत, स्त्री-पुरुष, सवर्ण-दलित के चश्मे से देखने के कारण ही हिन्दी साहित्य का कबाड़ा हो गया है और आम पाठक साहित्य से दूर चला गया है. न तो इस लेख का हेतू स्पष्ट है ना ही उपयोगिता.

  3. ऐसे अपनी टिप्पणी में यह भी जोड़ना चाहता हूँ कि उर्वशी होना नारी जाति का अपमान भले हीं हो,पर नारी को उर्वशी बनाने वाली परिस्थितियाँ,उसको अपने व्यक्तिगत भावना को उजागर करने से तो नहीं रोक सकती.मेरे विचार से महाकवि दिनकर ने यही दर्शाने का प्रयत्न किया है परिस्थितियाँ नारी को वेश्या भले ही बना दे पर उससे उसका नारीत्व भी छीन लें ऐसा हमेशा हो यह जरूरी नहीं है.

  4. डाक्टर धर्नवीर के इस वक्तव्य पर पूर्ण टिप्पणी करने के पहले मुझे उर्वशी फिर से पढनापड़ेगा क्योंकि यह तो डाक्टर साहब भी मानते हैं कि कविता की दृष्टि से देखा जाए तो यह एक अच्छा प्रवंध काव्य है,पर उर्वशी के चरित्र को इतना ऊँचा स्थान नहीं देना चाहिए था तो मैं मैं अभी एक प्रश्न पूछना चाहूंगा कि उर्वशी,मेनका या रम्भा जैसी अप्सराओं के बारे कुछ भी इसी लिए नहीं लिखा जा सकता ,क्योंकि वे वेश्याएं थी? लिच्छवी शासन काल की राजनर्तकी आम्रपाली भी वेश्या हीथी,पर वह एक परम्परा का निर्वाह कर रही थी,तो क्या उसके बारे में भी जो कुछ लिखा गया है,वह नहीं लिखा जाना चा हिये था? प्रेमचंद का उपन्यास सेवासदन जहां तक मुझे याद है,सुमन नामक एक वेश्या की कहानी है तो क्या उस उपन्यास का बहिष्कार कर देना चाहिए?

Leave a Reply to Jeet Bhargava Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here