नवरात्रि और दशहरा यानि विजयादशमी एक दूसरे गुंथित त्यौहार हैं। दोनों में सत्य की विजय की प्रधानता है। कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी पुस्तक ”राम की शक्ति पूजाÓÓ के माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और शक्ति स्वरूपा दुर्गा के संबंध को अभिव्यक्त किया है-
होगी जय होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन।
यह कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।।
आज देश को शक्ति और शील के इस पावन पर्व पर पुन: आत्मगौरव, आत्मविश्वास तथा अपनी एकता की सामूहिक पहचान दिखाते हुए सिंह गर्जना की आवश्यकता है। भगवान श्रीराम ने सत्य के मार्ग पर चलते हुए बुराई का शमन किया और धर्म की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। राम जी के विजय के रूप में मनाए जाने वाला यह उत्सव आज हम विजयादशमी के रूप में मनाते हैं। रावण का विनाश भी दशहरा यानि विजयादशमी के दिन ही हुआ। इसे विजयादशमी कहने के लिए प्राय: दो प्रकार की मान्यताएं भारतवर्ष में प्रचलित हैं। एक तो मां भगवती को विजया के रूप में पूजा जाता है, और दूसरा भगवान श्रीराम ने विजय प्राप्त की थी। दोनों ने ही सत्य और धर्म की स्थापना करते हुए असुरों का संहार किया। विजयादशमी को विजय यह पुरातन और सनातन काल से चला आ रहा एक ऐसा अकाट्य सत्य है, जिसे लेकर भारतीय समाज में संचेतना भी है और मान्यता भी। समस्त भारत में समान रूप से प्रवाहित होने वाली इस पर्व की सांस्कृतिक धारा से समाज अनुप्राणित है। किसी भी कार्य में विजय प्राप्त करने के लिए राजा महाराजाओं ने भी इस पावन त्यौहार ही अपने महान कार्य किए, चाहे वह युद्ध के मैदान में जाने का अवसर हो या फिर उनके राज्य में होने वाले शक्ति प्रदर्शन का अवसर हो। इसी सनातन मान्यता को पूर्णत: अंगीकार करते हुए महाराजा वीर छत्रपति शिवाजी ने मुगल शासक औरंगजेब से युद्ध करने के लिए इसी दिवस को चुना। चूंकि कार्य भी धर्म मार्गी था, और विजयादशमी के दिन ही प्रारंभ किया, इसलिए अपेक्षित सफलता भी प्राप्त हुई। भारतीय इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब हिन्दू राजा इस दिन विजय के लिए प्रस्थान किया करते थे। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष को दशहरा का त्योहार मनाया जाता है। हिन्दुओं का यह प्रमुख त्योहार असत्य पर सत्य की जीत तथा बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन ग्रह-नक्षत्रों की संयोग ऐसे होते हैं जिससे किये जाने वाले काम में विजय निश्चित होती है। इस पर्व के बारे में मान्यता है कि तारा उदय होने के साथ विजय नामक काल होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। भगवान श्रीराम ने इसी विजय काल में लंका पर चढ़ाई करके रावण को परास्त किया था। दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से भी एक माना गया है। इस दिन लोग नया कार्य भी प्रारम्भ करते हैं साथ ही समाज की ओर से इस दिन शस्त्र-पूजा किये जाने की परम्परा है। कर्नाटक में तो दशहरा राज्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यहां के मैसूर का दशहरा विश्व प्रसिद्ध है। मैसूर में दशहरा उत्सव दस दिनों तक चलता है और इस दौरान लोग अपने घरों, दुकानों और शहर को विभिन्न तरीकों से सजाते हैं। पुराणों में कहा गया है कि दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। दशहरा पर्व की धूम नवरात्रि पर्व के शुरू होने के साथ ही शुरू हो जाती है और इन नौ दिनों में विभिन्न जगहों पर रामलीलाओं का मंचन किया जाता है। दसवें दिन भव्य झांकियों और मेलों के आयोजन के पश्चात रावण के पुतले का दहन कर बुराई के खात्मे का संदेश दिया जाता है। रावण के पुतले के साथ वैसे तो मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतले का ही दहन किया जाता है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से लोग सामाजिक बुराइयों तथा अन्य मुद्दों से संबंधित पुतले भी फूंकते हैं। कई रामलीलाओं में महंगाई और भ्रष्टाचार के पुतले भी फूंके जाते हैं। इसका आशय स्पष्ट है कि भारत का समाज इन बुराइयों पर भी विजय का आकांक्षी है।
कथा- एक बार माता पार्वतीजी ने भगवान शिवजी से दशहरे के त्योहार के फल के बारे में पूछा। शिवजी ने उत्तर दिया कि आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल में तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है जो सब इच्छाओं को पूर्ण करने वाला होता है। इस दिन यदि श्रवण नक्षत्र का योग हो तो और भी शुभ है। भगवान श्रीराम ने इसी विजय काल में लंका पर चढ़ाई करके रावण को परास्त किया था। इसी काल में शमी वृक्ष ने अर्जुन का गांडीव नामक धनुष धारण किया था।
एक बार युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्णजी ने उन्हें बताया कि विजयादशमी के दिन राजा को स्वयं अलंकृत होकर अपने दासों और हाथी-घोड़ों को सजाना चाहिए। उस दिन अपने पुरोहित को साथ लेकर पूर्व दिशा में प्रस्थान करके दूसरे राजा की सीमा में प्रवेश करना चाहिए तथा वहां वास्तु पूजा करके अष्ट दिग्पालों तथा पार्थ देवता की वैदिक मंत्रों से पूजा करनी चाहिए। शत्रु की मूर्ति अथवा पुतला बनाकर उसकी छाती में बाण मारना चाहिए तथा पुरोहित वेद मंत्रों का उच्चारण करें। इस दिवस पर हाथी, घोड़ा, अस्त्र, शस्त्र का निरीक्षण करना चाहिए। जो व्यक्ति इस विधि से विजय प्राप्त करता है वह सदा अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करता है।
नवरात्र के बाद दशहरा का अंतिम यानी दसवां दिन है- विजयादशमी, जिसका मतलब है कि आपने इन तीनों ही गुणों को जीत लिया है, उन पर विजय पा ली है। यानी इस दौरान आप इनमें से किसी में नहीं उलझे। आप इन तीनों गुणों से होकर गुजरे, तीनों को देखा, तीनों में भागीदारी की, लेकिन आप इन तीनों से किसी भी तरह बंधे नहीं, आपने इन पर विजय पा ली। यही विजयादशमी का दिन है। इस तरह से नवरात्र के नौ दिनों का आशय जीवन के हर पहलू के साथ पूरे उत्सव के साथ जुडऩा है। अगर आप जीवन में हर चीज के प्रति उत्सव का नजरिया रखेंगे तो आप जीवन को लेकर कभी गंभीर नहीं होंगे और साथ ही आप हमेशा उसमें पूरी तरह से शरीक होंगे। दरअसल, आध्यात्मिकता का सार भी यही है।
होगी जय होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन।
यह कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।।
आज देश को शक्ति और शील के इस पावन पर्व पर पुन: आत्मगौरव, आत्मविश्वास तथा अपनी एकता की सामूहिक पहचान दिखाते हुए सिंह गर्जना की आवश्यकता है। भगवान श्रीराम ने सत्य के मार्ग पर चलते हुए बुराई का शमन किया और धर्म की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। राम जी के विजय के रूप में मनाए जाने वाला यह उत्सव आज हम विजयादशमी के रूप में मनाते हैं। रावण का विनाश भी दशहरा यानि विजयादशमी के दिन ही हुआ। इसे विजयादशमी कहने के लिए प्राय: दो प्रकार की मान्यताएं भारतवर्ष में प्रचलित हैं। एक तो मां भगवती को विजया के रूप में पूजा जाता है, और दूसरा भगवान श्रीराम ने विजय प्राप्त की थी। दोनों ने ही सत्य और धर्म की स्थापना करते हुए असुरों का संहार किया। विजयादशमी को विजय यह पुरातन और सनातन काल से चला आ रहा एक ऐसा अकाट्य सत्य है, जिसे लेकर भारतीय समाज में संचेतना भी है और मान्यता भी। समस्त भारत में समान रूप से प्रवाहित होने वाली इस पर्व की सांस्कृतिक धारा से समाज अनुप्राणित है। किसी भी कार्य में विजय प्राप्त करने के लिए राजा महाराजाओं ने भी इस पावन त्यौहार ही अपने महान कार्य किए, चाहे वह युद्ध के मैदान में जाने का अवसर हो या फिर उनके राज्य में होने वाले शक्ति प्रदर्शन का अवसर हो। इसी सनातन मान्यता को पूर्णत: अंगीकार करते हुए महाराजा वीर छत्रपति शिवाजी ने मुगल शासक औरंगजेब से युद्ध करने के लिए इसी दिवस को चुना। चूंकि कार्य भी धर्म मार्गी था, और विजयादशमी के दिन ही प्रारंभ किया, इसलिए अपेक्षित सफलता भी प्राप्त हुई। भारतीय इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब हिन्दू राजा इस दिन विजय के लिए प्रस्थान किया करते थे। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष को दशहरा का त्योहार मनाया जाता है। हिन्दुओं का यह प्रमुख त्योहार असत्य पर सत्य की जीत तथा बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन ग्रह-नक्षत्रों की संयोग ऐसे होते हैं जिससे किये जाने वाले काम में विजय निश्चित होती है। इस पर्व के बारे में मान्यता है कि तारा उदय होने के साथ विजय नामक काल होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। भगवान श्रीराम ने इसी विजय काल में लंका पर चढ़ाई करके रावण को परास्त किया था। दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से भी एक माना गया है। इस दिन लोग नया कार्य भी प्रारम्भ करते हैं साथ ही समाज की ओर से इस दिन शस्त्र-पूजा किये जाने की परम्परा है। कर्नाटक में तो दशहरा राज्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यहां के मैसूर का दशहरा विश्व प्रसिद्ध है। मैसूर में दशहरा उत्सव दस दिनों तक चलता है और इस दौरान लोग अपने घरों, दुकानों और शहर को विभिन्न तरीकों से सजाते हैं। पुराणों में कहा गया है कि दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। दशहरा पर्व की धूम नवरात्रि पर्व के शुरू होने के साथ ही शुरू हो जाती है और इन नौ दिनों में विभिन्न जगहों पर रामलीलाओं का मंचन किया जाता है। दसवें दिन भव्य झांकियों और मेलों के आयोजन के पश्चात रावण के पुतले का दहन कर बुराई के खात्मे का संदेश दिया जाता है। रावण के पुतले के साथ वैसे तो मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतले का ही दहन किया जाता है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से लोग सामाजिक बुराइयों तथा अन्य मुद्दों से संबंधित पुतले भी फूंकते हैं। कई रामलीलाओं में महंगाई और भ्रष्टाचार के पुतले भी फूंके जाते हैं। इसका आशय स्पष्ट है कि भारत का समाज इन बुराइयों पर भी विजय का आकांक्षी है।
कथा- एक बार माता पार्वतीजी ने भगवान शिवजी से दशहरे के त्योहार के फल के बारे में पूछा। शिवजी ने उत्तर दिया कि आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल में तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है जो सब इच्छाओं को पूर्ण करने वाला होता है। इस दिन यदि श्रवण नक्षत्र का योग हो तो और भी शुभ है। भगवान श्रीराम ने इसी विजय काल में लंका पर चढ़ाई करके रावण को परास्त किया था। इसी काल में शमी वृक्ष ने अर्जुन का गांडीव नामक धनुष धारण किया था।
एक बार युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्णजी ने उन्हें बताया कि विजयादशमी के दिन राजा को स्वयं अलंकृत होकर अपने दासों और हाथी-घोड़ों को सजाना चाहिए। उस दिन अपने पुरोहित को साथ लेकर पूर्व दिशा में प्रस्थान करके दूसरे राजा की सीमा में प्रवेश करना चाहिए तथा वहां वास्तु पूजा करके अष्ट दिग्पालों तथा पार्थ देवता की वैदिक मंत्रों से पूजा करनी चाहिए। शत्रु की मूर्ति अथवा पुतला बनाकर उसकी छाती में बाण मारना चाहिए तथा पुरोहित वेद मंत्रों का उच्चारण करें। इस दिवस पर हाथी, घोड़ा, अस्त्र, शस्त्र का निरीक्षण करना चाहिए। जो व्यक्ति इस विधि से विजय प्राप्त करता है वह सदा अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करता है।
नवरात्र के बाद दशहरा का अंतिम यानी दसवां दिन है- विजयादशमी, जिसका मतलब है कि आपने इन तीनों ही गुणों को जीत लिया है, उन पर विजय पा ली है। यानी इस दौरान आप इनमें से किसी में नहीं उलझे। आप इन तीनों गुणों से होकर गुजरे, तीनों को देखा, तीनों में भागीदारी की, लेकिन आप इन तीनों से किसी भी तरह बंधे नहीं, आपने इन पर विजय पा ली। यही विजयादशमी का दिन है। इस तरह से नवरात्र के नौ दिनों का आशय जीवन के हर पहलू के साथ पूरे उत्सव के साथ जुडऩा है। अगर आप जीवन में हर चीज के प्रति उत्सव का नजरिया रखेंगे तो आप जीवन को लेकर कभी गंभीर नहीं होंगे और साथ ही आप हमेशा उसमें पूरी तरह से शरीक होंगे। दरअसल, आध्यात्मिकता का सार भी यही है।
सुरेश हिन्दुस्थानी