कोरोना से कराह रहे गांव

0
138

मदन कोथुनियां

जयपुर, राजस्थान

आजकल कोरोना महामारी का कहर ग्रामीण इलाकों में तेजी से बढ़ रहा है। चाहे वह उत्तरप्रदेश हो, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश हो या फिर कोई अन्य राज्य। जबकि राज्य सरकारों का दावा है कि कोरोना महामारी का संक्रमण गांवों में बढ़ने से रोकने के लिए ट्रैकिंग, टेस्टिंग और ट्रीटमेंट के फार्मूले पर कई दिन से सर्वे अभियान चलाया जा रहा है। यानी अभी तक सिर्फ़ सर्वे? ऐसी ही कुछ स्थिति राजस्थान की भी है। खबरों के मुताबिक राजधानी जयपुर के देहाती इलाके चाकसू में एक ही घर में तीन मौतें कोरोना के कारण हुई हैं। यही हाल टोंक जिले का भी है। महज दो दिनों में टोंक के अलग-अलग गांवों में दर्जनों लोगों की एक दिन में मौत की खबरें आईं हैं। इसके बाद शासन-प्रशासन हरकत में आया है। जयपुर व टोंक के अलावा राज्य के कई जिलों के गांवों में बुखार से मौतें होने की सूचनाएं आ रही हैं। राजस्थान के भीलवाड़ा में भी गांवों में बहुत अधिक मौतें हो रही हैं। इसी तरह दूसरे गांवों में भी कोरोना महामारी के बढ़ने की खबरें आ रही हैं।

कोरोना की पहली लहर में गांव बच गए थे, लेकिन दूसरी लहर में गांव भी अछूते नहीं हैं। गांवों से बुखार-खांसी जैसी समस्याएं ही नहीं बल्कि मौतों की खबरें भी लगातार आ रही हैं। हालांकि पिछले साल लॉकडाउन में करीब डेढ़ करोड़ से अधिक प्रवासी शहरों से देश के विभिन्न गांवों में पहुंचे थे। इसके बावजूद कोरोना से मौतों की सुर्खियां बनने वाली खबरें नहीं आई थीं, लेकिन इस बार परिस्थिति बिल्कुल विपरीत है। कई राज्यों में गांव के गांव बीमार पड़े हैं, लोगों की जानें जा रही हैं। हालांकि इनमें से ज्यादातर मौतों के आंकड़े दर्ज नहीं हो रहे हैं, क्योंकि अधिकतर जगहों पर या तो टेस्टिंग की सुविधा नहीं है या जागरूकता के अभाव में लोग करा नहीं रहे हैं। जयपुर जिले के चाकसू तहसील स्थित भावी निर्माण सोसायटी के सदस्य गिरिराज प्रसाद के अनुसार “पिछले साल शायद ही किसी गांव से किसी व्यक्ति की मौत की खबर आई थी। लेकिन इस बार हालात बहुत बुरे हैं। मैं आसपास के 30 किमी के गांवों में काम करता हूं। गांवों में ज्यादातर घरों में कोई न कोई बीमार है।” गिर्राज प्रसाद की बात इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि वह और उनकी संस्था के साथी पिछले छह महीने से कोरोना वॉरियर्स की भूमिका निभा रहे हैं।

वहीं कोथून गांव के एक किसान राजाराम (44 वर्ष) जो खुद घर में आइसोलेट होकर अपना इलाज करा रहे है। उनके मुताबिक गांव में 30 फीसदी लोग कोविड पॉजिटिव हैं। राजाराम फोन पर बताते हैं, “मैं खुद कोरोना पॉजिटिव हूँ। गांव में ज्यादातर घरों में लोगों को बुखार-खांसी की दिक्कत है। पहले गांव में छिटपुट केस थे, फिर जब 5-6 लोग पॉजिटिव निकले तो सरकार की तरफ से एक वैन आई और उसने जांच किया तो कई लोग पॉजिटिव मिले हैं। जो एक चिंता का विषय है।” जयपुर-कोटा एनएच- 12 के किनारे बसे इस गांव की जयपुर शहर से दूरी 50 किलोमीटर है और यहां की आबादी राजाराम के मुताबिक करीब 4000 है। गांव में ऐसा क्या हुआ कि इतने लोग बीमार हो गए? इस सवाल के जवाब में राजाराम बताते हैं कि, “सबसे पहले तो गांव में एक दो बारातें आईं, फिर 23-24 अप्रैल को यहां आंधी पानी (बारिश) आया था, जिसके बाद लोग ज्यादा बीमार हुए। शुरू में लोगों को लगा यह मौसमी बुखार है, लेकिन लोगों को दिक्कत होने पर जांच हुई तो पता चला कोरोना है। ज्यादातर लोग घर में ही इलाज करा रहे हैं।”

जयपुर के रहने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ता और जन स्वास्थ्य अभियान से जुड़े सदस्य आरके चिरानियां फोन पर बताते हैं, “कोरोना का जो डाटा है वह ज्यादातर शहरों का ही होता है। गांव में तो पब्लिक हेल्थ सिस्टम बदतर है। जांच टेस्टिंग की सुविधाएं नहीं हैं। लोगों की मौत हो भी रही है तो इसका वास्तविक कारण पता नहीं चल रहा। दूसरा अगर आप शहरों की स्थितियां देखिए तो जो डाटा हम लोगों तक आ रहा है वह बता रहा है कि शहरों में ही मौतों का आंकड़ों से कई गुना ज्यादा है। अगर ग्रामीण भारत में सही से जांच हो तो यह आंकड़ा और भी अधिक भयानक होगा।”

ग्रामीण भारत में हालात कैसे हैं? इसका अंदाजा छोटे-छोटे कस्बों के मेडिकल स्टोर और इन जगहों पर इलाज करने वाले डॉक्टरों (डिग्रीधारी और गैर डिग्री वाले, जिन्हें स्थानीय भाषा में झोलाछाप कहा जाता है) के यहां भीड़ से लगाया जा सकता है। गांवों और कस्बों के मेडिकल स्टोर्स पर इस समय सबसे ज्यादा लोग खांसी-बुखार की दवाएं लेने आ रहे हैं। एक मेडिकल स्टोर के संचालक दीपक शर्मा बताते हैं, “रोज करीब 100 लोग बुखार और बदन दर्द की दवा लेने आ रहे हैं। पिछले साल इन दिनों के मुकाबले ये आंकड़ा काफी ज्यादा है।” इतनी ज़्यादा मांग की वजह से कोविड-19 से जुड़ी दवाएं तो अलग बात है, बुखार की सामान्य टैबलेट पेरासिटामोल, विटामिन सी की टैबलेट और यहां तक कि खांसी के सिरप तक नहीं मिल रहे हैं। ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि खांसी और बुखार को लोग सामान्य फ्लू मानकर चल रहे हैं।

एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी गांव में बुखार और कोविड के बारे में पूछने पर कहते, “कोविड के मामलों से जुड़े सवाल सीएमओ (जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी) साहब ही दे पाएंगे बाकी बुखार-खांसी का मामला है कि इस बार की अपेक्षा पिछली बार कुछ नहीं था। कई गांवों से लोग दवा लेने आते हैं। फिलहाल हमारे यहां 600 के करीब एक्टिव केस हैं।” इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीन 42 ग्राम पंचायतें आती हैं। यानि औसतन करीब 250 गांव शामिल हैं। वह कहते हैं, ‘अगर सबकी जांच हो जाए तो 40 फीसदी लोग कोरोना पॉजिटिव निकलेंगे। गांवों के लगभग हर घर में कोई न कोई बीमार है और लक्षण सारे कोरोना जैसे हैं। लेकिन न कोई जांच करवा रहा और न सरकार को इसकी चिंता है।

महामारी बेकाबू रफ्तार से ग्रामीण इलाकों पर अपना शिकंजा कसती जा रही है। हालात यह है कि ग्रामीण इलाकों के कमोबेश हर घर को संक्रमण अपने दायरे में ले चुका है। लगातार हो रही मौतों से ग्रामीण दहशत में हैं। बावजूद, प्रशासन संक्रमण की रफ्तार थाम नहीं पा रहा है। यहां तक कि कोरोना जांच की गति भी बेहद धीमी है। कोरोना की पहली लहर में ग्रामीण इलाके महफूज रहे थे। लेकिन, दूसरी लहर ने शहर की पॉश कॉलोनियों से लेकर गांव की पगडंडियों तक का सफर बेकाबू रफ्तार के साथ तय कर लिया है। जिसे रोकना केवल सरकार, प्रशासन और पंचायत ही नहीं बल्कि हम सब की ज़िम्मेदारी है और यह ज़िम्मेदारी सजगता और जागरूकता से ही संभव है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

15,446 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress