
—विनय कुमार विनायक
अहिंसक का हिंसा का शिकार हो जाना है,
अहिंसा का हिंसा के प्रति अहिंसक हो जाना!
हिंसा एक कुप्रथा है, अहिंसा धर्म से पोषित,
ईसा अहिंसक थे इतना कि हिंसकों के लिए
उनके दिल से आखिरी उद्गार निकला क्षमा!
ईसापूर्व अशोक शोकग्रस्त तब हुए,जब हिंसा के
विरुद्ध युद्ध विरत हो अहिंसक बौद्ध हो गए,
हिंसकों का सबसे बड़ा बचाव है अहिंसक हस्ती!
हिंसकों की सबसे बड़ी ढाल है अहिंसा की नीति,
अहिंसा की राजनीति हिंसा की हिफाजत करती!
अहिंसा हिंसा की तरफदारी करते तब दिखती है,
जब हिंसा के शिकार को अहिंसा का पाठ पढ़ाती!
हिंसकों को अति प्रिय है अहिंसावादियों का धर्म,
हिंसा का सबसे बड़ा पैरोकार, अहिंसा का विचार!
हिंसा पीड़ितों को न्याय तबतक सुलभ नहीं होगा,
जबतक न्यायी को अहिंसापरमोधर्म पढ़ाई जाएगी!
हिंसक के मानवाधिकार की जब दुहाई दी जाती,
हिंसा तब तक रक्तबीज बन फलते-फूलते रहती!
जब तक देश-धर्म व जन-जीवन के रखवाले को,
अहिंसक बनाने की तावीज पहनाई जाती रहेगी,
न्यायिकों का अहिंसा धर्म अनुयाई हो जाना ही,
सबसे बड़ी बाधा हिंसापीड़ितों के न्याय में होती!
एक गाल में थप्पड़ खा दूसरा गाल सामने करना,
अहिंसक द्वारा कराई गई समझौतावादी हिंसा है!
तुलसी की धुन, सूर की भक्ति से आक्रांताओं के
सल्तनत की चूल नहीं हिली, बल्कि गुरु गोविन्द
सर्ववंशदानी की कुर्बानी, शिवाजी की जवांदानी से,
बर्वर औरंगजेब की बादशाहत धूल में मिली थी!
बिना खड्ग ढाल के, प्रार्थना सभा में जाने से,
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम; भजन को गाने से,
मुट्ठी भर गोरे डायर,कायर होकर नहीं भागे!
बल्कि ऊधमसिंह, आजाद, भगतसिंह, राजगुरु,
सुखदेव,बटुकेश्वर, बिस्मिल,असफाक, खुदीराम,
सुभाष जैसे क्रांतिवीरों से अंग्रेज दहल गए थे!
अहिंसा की हिंसा में, सिर्फ गोरे नहीं शामिल थे,
थोड़े से गोरे के शागिर्द काले लोग बहुत सारे थे!
अंग्रेजों ने यहां नौकरी की बैचलर हुक्मरान जैसे,
उनके हुक्म की तामील में देशी कारिंदे खड़े थे!
अठारह सौ संतावन से उन्नीस सौ सैंतालीस तक,
ये काले अंग्रेज़ हीं, गोरे अंग्रेजों के कर्ता धर्ता थे!
कोई जमींदार, कोई दीवान, कोई बैरिस्टर, जेलर,
खादी को आजादी थी अंग्रेजी सलाहकार होने की!
बसंती चोला पहन कर निकले किसानों के घर से,
फिरंगी और उनकी सेना बिखर गई उनके डर से!
अहिंसा को गोलमेज में एक सुरक्षित कुर्सी मिली थी,
जिसकी ताकत से भगतसिंह की फांसी नहीं टली थी!
अहिंसा की नीति से सारे वीर फांसी पे झूलते गए थे!
सुभाष को युद्धबंदी बना सौंपने के फैसले नहीं बदले!
अहिंसा की हिंसा का शिकार हुए,अहिंसा के पुजारी भी!
—विनय कुमार विनायक