
—विनय कुमार विनायक
ईसा पूर्व तीन सौ पचास में चमका
एक सितारा भारत भूमि मगध में,
ब्राह्मण चणक का पुत्र विष्णुगुप्त
चाणक्य कौटिल्य; कूटनीतिज्ञ गुरु
मगध सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का!
न भूतो न भविष्यति विश्वभर में
अर्थशास्त्र व राजनीति की हस्ती,
उसने जो लिखा वो मानव नीति,
उसने जो दिया ज्ञान भूमंडल को
चिंतन है भारतीय मस्तिष्क का!
चाणक्य थे मगध के अर्थशास्त्री,
उन्होंने जो ग्रंथ लिखा अर्थशास्त्र
वह है मानव व्यवहार दण्ड नीति,
उन्होंने मगधसम्राट महापद्मनंद
पुत्र धनानन्द की पलट दी सत्ता!
उन्होंने कहा था जहां ना सम्मान,
ना आजीविका मिले, ना सगा कोई,
ना ही विद्या अर्जन का साधन हो,
ऐसे देश का त्याग करना उचित है
मगध की थी ऐसी ही परिस्थिति!
उनकी नीति थी प्रजा का सुख ही
राजा का सुख,प्रजा हित राज हित,
जो प्रजा को प्रिय,वो राज प्रिय हो,
मगध की नहीं थी ऐसी परिस्थिति,
ठाना उसने मगध को बदलने की!
मगध राज सिंहासन पर बैठा था
अंतिम शैशुनाग राजा महा नंदिन,
राज्य त्यागकर हो गया जैनमुनि,
एक शूद्रासूत क्षत्रियपुत्र उग्रवंशीय
महापद्मनंद ने हथिया ली गद्दी!
तीन सौ चौंसठ से तीन सौ चौबीस
ईसा पूर्व तक महापद्म नन्द और
उनके पुत्रगण नवनन्दों ने मिलके
पाटलिपुत्र से उज्जैन तक धरा के
सभी क्षत्रियों को पराजित किया!
इस सर्वक्षत्रांतक एकराट द्वितीय
परशुराम विरुदधारी महापद्मनंद
और उनके पुत्र धनानन्द के भय
और पराक्रम से तीन सौ छब्बीस
ई.पू.सिकंदर लौटा व्यास तट से!
किन्तु कौटिल्य की कूटनीति से
पराजित हो गया था धनानन्द,
ईसा पूर्व तीन सौ इक्कीस वर्ष,
वह क्षण था हर्ष का जब मौर्य
चन्द्रगुप्त बना मगध महाराज!
—विनय कुमार विनायक