वाराणसी में यज़ीदियत ने फिर किया इंसानियत का खून

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तनवीर जाफ़री

विश्व प्रसिद्ध शहनाई वादक भारत रत्न बिसमिल्लाह खां का शहर वाराणसी गत् 7 दिसंबर की सायंकाल एक बार फिर दहल उठा। वाराणसी के प्राचीन एवं ऐतिहासिक शीतलाघाट पर की जा रही गंगा जी की आरती जैसे अति पावन अवसर पर आतंकियों ने शीतलाघाट की सीढ़ियों पर तीव्र शाक्ति वाला बम विस्‍फोट कर जहां एक मासूम बच्ची की जान ले ली वहीं दर्जनों लोग इस विस्फोट के परिणामस्वरूप बुरी तरह जख्‍मी भी हो गए। इस बात को प्रत्येक साधारण व्यक्ति स्वयं महसूस कर सकता है कि आरती के दौरान पूरे धार्मिक वातावरण के मध्य जब इस प्रकार की दहशतनाक हिंसक वारदात घटी उस समय वहां मौजूद भक्त जनों तथा नगरवासियों की मनोस्थिति क्या होगी तथा उन पर क्या गुजरी होगी? परंतु एक बार फिर धन्य है उस महान शहर के महान नागरिक जिन्होंने मानवता के दुश्मन इन आतंकियों के दूरगामी इरादों को भांपते हुए इनकी आतंकी हिंसा का जवाब पुन: शांति, संयम, भाईचारे तथा सहनशीलता के साथ दिया।

बहरहाल शीतलाघाट पर हुए धमाके का दिन व समय सब कुछ बहुत ग़ौर करने लायक़ है। जहां 7 दिसंबर को हिंदू धर्म में पावन दिन के रूप में समझा जाने वाला मंगलवार का दिन था तथा स्थान गंगाजी का प्राचीनघाट तथा इस घाट पर मंगलवार की शाम को होने वाली आरती का समय था वहीं यह दिन इस्लामी वर्ष की शुरूआत का दिन अर्थात् पहली मोहर्रम की पूर्व संध्या भी थी। यानि अगली ही सुबह से मोहर्रम की पहली तारींख का आग़ाज होना था। जिस समय बनारस के शीतलाघाट पर धमाका हुआ ठीक उसी समय मोहर्रम का चांद आसमान पर निकल चुका था। गोया इस्लाम को यजीदी ताकतों से मुक्त कराने वाले हारत इमाम हुसैन की शहादत का महीना प्रारंभ हो चुका था। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगाकि मोहर्रम जैसे पवित्र महीने की शुरूआत पर यजीदी ताकतों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का दु:स्साहस किया। समाचारों के अनुसार इस बम धमाके के कारण एक छोटी बच्ची की मौत उस समय हुई जबकि वह अपनी मां की गोद में सवार होकर अपने माता पिता के साथ पवित्र आरती के आयोजन में भाग ले रही थी। इस घटना की तुलना भी इस्लाम में घटी उस घटना से की जा सकती है जबकि हारत इमाम हुसैन ने अपने 6 महीने के प्यासे बच्चे अली असंगर की प्यास बुझाने के लिए मुस्लिम सीरियाई शासक याीद की सेना से करबला के मैदान में फुरात नदी के किनारे पानी मांगा परंतु याीदी लश्कर ने इमाम हुसैन की पानी की मांग पूरी करने के बजाए उस मासूम बच्चे अली असंगर को निशाना बनाकर एक ऐसा तीर चलाया कि प्यासा बच्चा अली असंगर हारत इमाम हुसैन के हाथों में ही शहीद हो गया।

नि:संदेह आज फिर उसी यजीद की ही तरह स्वयं को मुसलमान, इस्लामपरस्त तथा इस्लाम का रक्षक बताने वाले कुछ फिरक़ापरस्त, कट्टरपंथी तथा गैर इस्लामी विचारों के लोग अपना सिर बुलंद कर चुके हैं। इन आतंकी शक्तियों द्वारा उठाया जाने वाला कोई भी हिंसक ंकदम इस्लामी शिक्षाओं व परंपराओं से कतई मेल नहीं खाता। इस्लाम धर्म त्याग,क़ु र्बानी तथा तपस्या का माहब है। हारत मोह मद द्वारा चलाए गए इस्लाम धर्म के इमाम अली, हसन व हुसैन जैसे महापुरुष प्रेरणास्त्रोत हैं। उक्त महापुरुषों ने केवल कुर्बानियां दी हैं और स्वयं शहीद हुए हैं। प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व में मनाया जाने वाला मोहर्रम तथा इस्लामी नववर्ष का यही पहला महीना पूरी दुनिया को इस्लामी कुर्बानियों का संदेश देता है। आज पूरी दुनिया में इस्लाम की स्वीकार्यता तथा इसके प्रति लोगों के आकर्षण का कारण कोई यजीद, गजनवी, बाबर, औरंगजेब, मीर क़ासिम या कोई अन्य आक्रांता, लुटेरा या मुस्लिम शासक नहीं है। बल्कि यह हारत इमाम हुसैन जैसे फक़ीरों व संतों द्वारा अपना व अपने परिजनों के लहू से सींचा गया वह धर्म है जिसे करबला में यजीदी तांकतों के हाथों से केवल इसलिए बचाया गया ताकि इस्लाम पर यजीद रूपी शासक का बदनुमा दांग न लगने पाए। परंतु अंफसोस की बात यह है कि जिस प्रकार आज दुनिया में चारों ओर बुराईयां बढ़ती जा रही हैं तथा उन बुराईयों के समर्थक व उनसे प्रभावित होने वालों की संख्‍या भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है ठीक उसी प्रकार इस्लाम धर्म पर भी कट्टरपंथी यजीदी ताकतों का शिकंजा मजबूत होता जा रहा है।

वाराणसी केवल हिंदू धर्म अथवा गंगा जी से जुड़ा हुआ शहर ही नहीं है बल्कि इसकी प्रसिद्धि के और भी कई कारण हैं। सर्वप्रथम तो यह कि यह शहर विश्व के सबसे प्राचीनतम शहर के रूप में अपना नाम विश्व रिकॉर्ड में दर्ज करवा चुका है। गोया मानवता की परवरिश करने वाला यह दुनिया का सबसे प्राचीन नगर है। गंगाजी के किनारे बसे होने के कारण इस शहर का धार्मिक महत्व भी जगजाहिर है। इसे काशी विश्वनाथ की भूमि भी कहा जाता है। स्वामी रामानंदाचार्य एवं संत कबीर दास के ऐतिहासिक मिलाप अर्थात् प्राचीन सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल पेश करने वाला भी यही शहर है। स्वर्गीय बिसमिल्लाह खां की शहनाई की आवाजों आज भी सांप्रदायिक एकता की धुनें बजाती हुई इस शहर मेंमहसूस की जा सकती हैं। यहां की सिल्क की साड़ियां व कशीदाकारी भी पूरी दुनिया में अपनी अनूठी पहचान रखती है। इन्हें बनाने में हिंदू व मुसलमान सभी मेहनतकश कारीगरों का खून-पसीना शामिल होता है। बनारस का पान भी पूरे संसार के पान प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता है। इसके अतिरिक्त राजनीति, उर्दू व हिंदी साहित्य, राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों, कवियों व शायरों का भी केंद्र यही शहर समझा जाता है। आज भी बनारस में आयोजित होने वाले कवि स मेलनों व मुशायरों में भारी भीड़ जमा होती है जिनमें सभी समुदायों के लोग समान रूप से शामिल होते हैं।

कहा जा सकता है कि वाराणसी देश के उन ऐतिहासिक व प्राचीन नगरों में एक है जो सांप्रदायिक सौहार्द्र तथा धर्मनिरपेक्षता की अनूठी मिसाल प्रस्तुत करते हैं। परंतु इसी पवित्र शहर के शांतिप्रिय लोगों को वरग़लाने का काम चंद सिरफिरे आतंकी लोगों द्वारा बार-बार किया जा रहा है। इससे पूर्व वाराणसी में ही कई आतंकी धमाके हो चुके हैं। यहां का प्राचीन संकटमोचन मंदिर भी इन अपवित्र यजीदी तांकतों द्वारा अपने निशाने पर लिया जा चुका है। परंतु प्रत्येक ऐसे संकटपूर्ण अवसरों पर बनारस वासियों द्वारा अपनी सहनशीलता के हथियार से ही इनके नापाक इरादों का मुंकाबला किया गया है। गत् 7 दिसंबर को वाराणसी में हुए इस बम धमाके के तुरंत बाद बी बी सी को कथित रूप से इंडियन मुजाहिदीन की ओर से एक ई-मेल भेजकर अपने नापाक इरादों तथा योजनाओं का खुलासा किया गया है। उनके ई-मेल से यह जाहिर होता है कि वे शांतिपूर्ण भारतीय समाज में असुरक्षा व अशांति का दहशतनाक वातावरण पैदा करना चाह रहे हैं। ऐसा करने वाले तथा स्वयं को इस्लामी कहने वाले परंतु गैर इस्लामी कृत्यों का अनुसरण करने वाले सिरफिरे शायद यह नहीं जानते कि वाराणसी से कुछ ही दूरी पर देश के प्रथम परमवीरचक्र विजेता शहीद वीर अब्दुल हमीद का भी गांव है। वीर अब्दुल हमीद भी अपने जीवन में न जाने कितनी बार इसी पवित्र गंगा जी की बहती धारा में पवित्र स्नान किया करते थे। स्वयं बिलमिल्लाह खां इसी गंगा जी के किनारे बैठ कर अपनी शहनाई की धुनों में नए सुर तलाश किया करते थे। और आज आतंकियों द्वारा उसी हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल समझे जाने वाले तथा गंगा-जमुनी तहजीब का केंद्र बनारस शहर के आपसी भाईचारे को आहत करने का असफल प्रयास किया गया है।

वाराणसी में घटी इस घटना केऔर भी कई पहलू हैं। उदाहरण के तौर पर कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी शक्तियां इसे हिंदुओं का खून बहाने का प्रयास बताकर इसे तनावपूर्ण रूप देने तथा सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने का प्रयास करने में लगी हैं। हो सकता है यह उनका जीविकोपार्जन हो या उनका पेशा अथवा मजबूरी। परंतु दरअसल किसी भी धर्म के बेगुनाह व्यक्ति की हत्या को कभी भी किसी हिंदू या मुसलमान की हत्या के रूप में संबोधित करने के बजाए मेरे विचार से इसे इंसानियत का खून इंसान रूपी हैवानों द्वारा किया जाना कह कर संबोधित करना ही अधिक उचित होगा। चाहे वह बनारस में किया गया आतंकी हमला हो या अजमेर अथवा मालेगांव या मक्का मस्जिद के धमाके। इस प्रकार की कार्रवाईयां भले ही किसी भी संप्रदाय के लोगों द्वारा प्रतिशोधातमक कार्रवाई बताकर क्यों न अंजाम दी जाती हों। परंतु दरअसल उनमें हर जगह कोई न कोई बेगुनाह इंसान ही मारा जाता है। और उसकी शहादत के बाद राजनैतिक तांकतें उसी मृतक की लाश को ईंधन बनाकर उस पर अपनी राजनीति या सत्ता की हांडी चढ़ा देती हैं। देश के शांतिप्रिय हिंदुओं व मुसलमानों सभी को फायरब्रांड नेताओं, सांप्रदायिकता फैलाने वाले राजनीतिज्ञों व राजनैतिक दलों, कठमुल्लाओं आदि के ऐसे प्रयासों से सचेत रहने की ज़रूरत है।

यह भी देखा गया है कि ऐसी आतंकी घटनाओं के बाद सुरक्षा व्यवस्था तथा सुरक्षा उपायों को लेकर केंद्र व राज्‍य सरकार में आरोप व प्रत्यारोप का दौर शुरु हो जाता है। वाराणसी धमाके के बाद भी कुछ ऐसा ही देखा गया। आतंकवादी गतिविधियां रोकने के लिए प्रशासनिक स्तर पर इस प्रकार की स्थिति आतंकवादी शक्तियों को और बल प्रदान करती हैं। लिहाजा सुरक्षा व्यवस्था की खामियों को लेकर केंद्र व राज्‍य सरकार अथवा किन्हीं दो अलग-अलग सुरक्षा एजेंसियों के आमने-सामने आने व टकराने के बजाए सुरक्षा के ऐसे दीर्घकालीन अभेद उपाय किए जाने चाहिए जिनसे ऐसी हिंसक वारदातों की पुनर्रावृत्ति न हो सके। आम नागरिकों को भी इस प्रकार की आतंकवादी घटनाओं को रोकने में पूरी दिलचस्पी व सक्रियता दिखानी चाहिए। हम प्रत्येक भारतवासी को यह याद रखना चाहिए कि आज दुनिया में भारतीय परचम लहराने का एकमात्र कारण हमारी अनेकता में एकता व सर्वधर्म स भाव जैसी प्रमुख पहचान ही है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि किसी भी साप्रदायिक गिरोह के बहकावे में आकर अथवा किसी आतंकी घटना के प्रतिशोध स्वरूप हम अपनी एकता व सौहार्द्र को खंडित न होने दें। यदि हमने ऐसा किया तो निश्चित रूप से हम आतंकवादियों के नापाक इरादों को पूरा करने के पक्ष में ही अपनी भूमिका अदा करेंगे। अत: ऐसे अवसरों पर शांति, सौहार्द्र व सा प्रदायिक एकजुटता का हमारा प्रदर्शन ही इन यजीदी व गैर इन्सानी शक्तियों के मुंह पर करारा तमाचा होगा।

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