आधे-अधूरे हम

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एक वे हैं जो केवल ,
अधिकारों की हमेशा करते हैं मांग।
अधिकारों के शोर में,
भूल जाते है कर्तव्यों को ।

एक वे हैं,
जिनका कर्तव्य पर ही ,
सदैव रहता ध्यान।
अधिकार तो मिल ही जाएंगे,
यदि हम,
मनसा-वाचा-कर्मणा,
अपने कर्तव्य को निभाएंगे।

किसी के लेने -देने से,
कुछ नहीं मिलता कभी।
अगर मिल भी जाए कभी,
ज्यादा दिन टिकता नहीं।
चाहिए जो जीवन में,
बनना पड़ता है योग्य उसके ।

योग्यता नहीं मिल जाती,
किसी के देने से।
तपाना पड़ता है खुद को,
जैसे लोहे के चने हैं चबाने पड़ते।
योग्यता, निपुणता
हासिल करनी होती है।

हर-बार, लगातार
सौ प्रतिशत देना पड़ता है खुद का।
एक छोटी-सी चूक,
जीवन भर के लिए,
बन जाती है सबसे बड़ी भूल।

कुछ अवगुण तुम मेरे ,
कुछ अवगुण मैं तेरे ,
भूल जाऊं ।
आधे अधूरे हम सभी ।
तुम -हम मिल,पूरे बन जाएं ,
और इस प्रकार जीवन की ,
नई ऊंचाइयों को छू लें।।

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