अंग्रेज़ों के दस्तावेज़ बताते हैं कि 1750 तक भारत की एक एकड़ भूमि पर इंग्लैंड की एक एकड़ भूमि की तुलना में 3 गुणा पैदावार होती थी! उस समय भारत में केवल चावल या धान की ही 1 लाख से ज्यादा किस्में थीं! 1760 तक भारत में सबसे संपन्न वर्ग किसानों का होता था इसीलिए यह उक्ति बनी थी, ‘उत्तम कृषि माध्यम बान, करे चाकरी कुकर निदान’| भारत की जलवायु की ही तरह चीन की भी जलवायु रही है| अंग्रेज़ों के आंकड़ों के अनुसार अकेले भारत और चीन का कुल उत्पादन, विश्व के कुल उत्पादन का 70% तक था! फिर ऐसा क्यों हुआ कि किसानों की स्थिति बदतर होती चली गई। चलिए सिलसिलेवार बातें करते हैं।
आज़ादी मिली। केंद्र में सरकारें बनीं। 55 वर्षों से अधिक तक कांग्रेस को शासन चलाने का मौक़ा मिला। फिर ऐसा क्यों हुआ कि किसानों को नेतागण अपने भाषणों में अन्नदाता तो कहते थे, लेकिन उस अन्नदाता की आह पर मरहम लगाने की किसी ने नहीं सोची। यूपीए सरकार के दौरान किसान और कृषि की बहुत ही दयनीय स्थिति होती चली गई। देश में किसानों की आत्महत्या बड़े पैमाने पर होने लगी। एक वजह ये भी थी कि बाजार में निरवंश बीज और महंगे उत्पादक समान से कृषि लागत कई गुना बढ़ गयी। फसल होने के बाद बाजार में समर्थन मूल्यों का अभाव एवं घर में सामाजिक सुरक्षा के अभाव में जी रहे किसानों के ऊपर बैंक वालों ने कृषि ऋण वापसी के लिए जब शिकंजा कसना शुरू किया तो बेचारे गरीब किसानों को आत्महत्या के अलावा कोई दूसरा मार्ग दिखाई नहीं दिया। आर्थिक विशेषज्ञ पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री भी किसानों के दर्द को नहीं समझ सके। निर्लज्जता की सीमा राजनेताओं ने किस हद तक लांघ ली, इसकी मिसाल संसद में बहस के दौरान कृषि मंत्री शरद पवार के बयान से झलकी, जिसमें उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार के समय एनडीए सरकार की तुलना में कम किसानों ने आत्महत्या की। जबकि हकीकत में रिपोर्ट तो चौंकाने वाली थी। एनसीआरबी के मुताबिक देशभर में 2010 में 15,933 किसानों ने आत्महत्या की। 2011 में 14,004 किसानों ने आत्महत्या की। हां, वर्ष 2011 में उन दिनों एक अच्छी ख़बर ज़रूर आई थी कि छत्तीसगढ़ में किसी भी किसान ने खुदकुशी नहीं की थी। हालात ये कि यूपीए सरकार के 2004 में देश की बागडोर संभालने के बाद से कुनीतियों के कारण कुल 1.18 लाख किसानों ने 2011 तक आत्महत्या कर ली। बुंदेलखंड और विदर्भ जैसे सूखा प्रभावित राज्यों को दिए जाने वाले विशेष पैकेज महज मात्र एक दिखावा साबित हुआ।
भारत सरकार, जिसमें से सबसे अधिक बार कांग्रेस सत्ता में रही है और हालात ये हैं कि 84 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे रहे, 20 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार रहे, लाखों किसान आत्महत्या किए, देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा पर प्रश्न चिन्ह लगा, भारतीय मुद्रा अपनी हैसियत खोती गई तथा महंगाई आम जनता का गला दबाती रही। ये सारे चिन्ह हमारी व्यवस्था के चौपट होने के संकेत थे।
लेकिन एनडीए की सरकार आने के बाद से खुद प्रधानमंत्री ने रेडियो पर ‘मन की बात’ में आकर देश के किसानों को संबोधित किया। उस संबोधन में किसानों के लिए योजनाएं और सहानुभूति तो थी ही, साथ में अधिकारियों और बिचौलिए को निर्देश भी थे कि अब मनमानी बर्दाश्त नहीं होगी। ज्ञात हो कि किसान हमेशा से हमारे देश का आधार रहे और एनडीए सरकार इनोवेशन और कुछ ठोस उपायों के जरिए देश के इस आधार को मजबूत बनाने की कोशिश करती रही है। प्रधानमंत्री ने कृषि सिंचाई योजना सिंचाई की सुविधाएं सुनिश्चित कर उपज बढ़ाने पर ज़ोर दिया। इस योजना का विजन यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक खेत को किसी ना किसी तरह के सुरक्षात्मक सिंचाई के साधन उपलब्ध हों। किसानों को सिंचाई के आधुनिक तरीकों के बारे में शिक्षित किया जा रहा है ताकि पानी की ‘प्रत्येक बूंद के बदले अधिक पैदावार’ मिले।
किसान समूहों को जैविक खेती के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना की शुरुआत की गई। पूर्वोत्तर क्षेत्र मं ऑर्गेनिक फार्मिंग और ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष योजना शुरू की गई। स्थाई आधार पर विशिष्ट फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए सॉइल हेल्थ कार्ड की पेशकश की गई और इसे देश के सभी 14 करोड़ भूमि खातों के लिए जारी किया जाएगा। तीन वर्ष के चक्र में करीब 248 लाख नमूनों का विश्लेषण किया जाएगा।
घरेलू उत्पादन और ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के लिए नई यूरिया नीति की घोषणा की गई और आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए गोरखपुर, बरौनी तथा तलचर में खाद फैक्टरी का पुनरोद्धार किया गया है। इससे पहले किसानों को मुआवजा तभी मिलता था जबकि 50% या इससे अधिक नुकसान हुआ हो, लेकिन अब तत्काल मुआवजा देने पर पहल की गई। एक 500 करोड़ रुपये के कॉर्पस वाले मूल्य स्थिरीकरण कोष की स्थापना की गई। ये कोष जल्द खराब होने वाली कृषि और बागवानी फसलों की कीमतों को नियंत्रित करने में मददगार होगा। किसानों के लिए किसान टीवी चैनल की शुरुआत हुई। फसल बीमा योजना की शुरुआत हुई, जिसमें किसान अपने फसलों की बीमा करवाकर एक सुनिश्चित आय लेकर निश्चिंत हो सके।
ग्राम ज्योति योजना बिना कटौती के बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करेगी। इससे ना सिर्फ उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि कुटीर उद्योगों और शिक्षा सहित इसका किसानों के पूरे जीवन पर भी भारी असर होगा। डब्ल्यूटीओ वार्ता में एनडीए सरकार के मजबूत तथा सैद्धान्तिक रुख ने खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने में किसानों के दीर्घावधि हितों को सुरक्षित किया। आसानी से और रियायती दरों पर कर्ज उपलब्ध कराने के लिए कृषि ऋण लक्ष्यों को बढ़ाकर 8.5 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया। तकनीक बड़े स्तर पर किसानों को ताकत दी। किसान पोर्टल के जरिए से मौसम की रिपोर्ट से लेकर खाद की जानकारी, सबसे बढ़िया तौर-तरीकों आदि की जानकारी मिली। कृषि में मोबाइल गवर्नेंस के उपयोग को प्रोत्साहित किया गया। एक करोड़ से अधिक किसानों को सचेत करने और सूचना देने के लिए 550 करोड़ से अधिक एसएमएस भेजे गए।