वोट बैंक के खेल में सबके अपने-अपने दावे
संजय सक्सेना
उत्तर प्रदेश का सियासी रंग गाढ़ा होने लगा है। नेताओं की जुबान आग उगल रही है।सभी राजनैतिक दलों में ‘थिंक टैंक’ बंद कमरों में रणनीति बना रहे है जिन्हें बाहर सियासी सूरमा ‘खाद-पानी’ दे रहे हैं। कौन से मुद्दे को कितनी हवा दी जाये और किस मसले पर मुंह बंद रखा जाये। किस नेता को कहां कि जिम्मेदारी सौंपी जाये और किसे कहां से दूर रखा जाये। सब कुछ कमरें में बैठ कर तय किया जा रहा है। यही वजह किसी एक मुद्दे को तमाम दलों द्वारा अलग-अलग तरीके हैंडिल किया जा रहा है। इसी वजह से सपा सरकार मथुरा में मारे गये पुलिस वालों की मौत को प्रशासनिक चूक बताती है तो विरोधियों को इसमें सपा के कद्दावर नेता और मंत्री शिवपाल यादव की भूमिका सदिग्ध लगती है। तमाम दलों के नेता मथुरा कांड की सीबीआई जांच की मांग करते हैं,परंतु सत्तारूढ़ सपा इसे गैर जरूरी मानते हुए अलीगढ़ के कमिश्नर को जांच का जिम्मा सौंप देती हैं। विरोधी दलों के नेता कहते हैं कि जांच इस बात की होनी चाहिए कि मथुरा के जवाहर बाग में दो वर्षो तक एक कोई कैसे कब्जा जमाये रखता है और उसे सपा नेता और मंत्री क्यों संरक्षण देते हैं,जबकि अखिलेश सरकार कमिश्नर जांच में जिन सात बिन्दुओं पर रिपोर्ट कमिश्नर से रिपोर्ट देने को कहते हैं उसमें कहीं इस बात का जिक्र ही नहीं होता है कि जवाहर बाग पर कब्जा करके बैठे लोंगो को कौन नेता शह दे रहा था। ऐसा ही नजारा कुछ माह पूर्व दादरी में देखने को मिल रहा है,जहां अखलाक नामक अधेड़ को कुछ उत्तेजित लोंगो ने इस लिये मौत के घाट उतार दिया गया था क्योंकि उसके यहां से संदिग्ध रूप से प्रतिबंधित जानवर के मॉस का टुकड़ा मिला था। बीते दिनों मथुरा लैब की रिपोर्ट ने जब इस बात की पुष्टि की कि उसके पास जांच के लिये भेजा गया मीट का टुकड़ा गौमांस था तो भाजपा बिग्रेड ने हायतौबा मचाना शुरू कर दिया।भाजपा अखलाक के परिवार के खिलाफ रिपोर्ट लिखना चाहती है,वहीं सीएम अखिलेश यादव यह मानने को ही तैयार नहीं है कि अखलाक के घर से मांस मिला भी था।जबकि साध्य चीख-चीख कर गवाही दे रहे हैं। इसी तरह का विरोधाभास सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान भी देखने को मिला था।
शायद सबकी अपनी-अपनी सियासी मजबूरी होगी, जो एक ही घटना को देखने का सबका अलग-अलग नजरिया है। वहीं सियासी जानकारों को लगता है कि कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की धर्म नगरी मथुरा में खौफनाक हादसे के बाद उठे सियासी भूचाल, दादरी की घटना में नया मोड़ और मुजफ्फरनगर दंगों की आड़ में सियासी सूरमा एक बार फिर चुनावी बिसात बिछाने में जुट गये हैं। वेस्ट यूपी में जो सियासी मंजर दिखाई दे रहा है उससे तो यही लगता है कि 2017 के विधान सभा चुनाव में तमाम राजनैतिक दल अपनी विजय गाथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही लिखना चाहते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जिस तरह से तमाम राजनैतिक दलों ने अपना सियासी अखाड़ा बना रखा है वह चौकाने वाली घटना भले ही न हो लेकिन प्रदेश के अमन-चैन के लिये खतरे की घंटी जरूर है। एक बार फिर पश्चिमी यूपी वहीं खड़ा नजर आ रहा है जहां वह 2014 के लोकसभा चुनावों के समय खड़ा था। यहां रोज कुछ न कुछ ऐसा घट रहा है जिससे सियासतदारों को अपनी सियासी फसल उगाने के लिये यह क्षेत्र ‘सोना उगलने वाली जमीन’ नजर आ रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद 2017 में भी पश्चिमी यूपी तमाम दलों के लिये सियासी प्रयोगशाला बनती नजर आ रही है। यहां ऐसे ही बड़े-बड़े राजनेता ं दस्तक नहीं दे रहे हैं।
यूपी का यह हिस्सा अपनी तमाम खूबियों के लिये विख्यात है। यह इलाका गन्ने की खेती और चीनी मिलों के कारण चर्चा मे रहता है। यहां का किसान पूरे प्रदेश के किसानों से काफी सम्पन्न है। यहां लोंगो के पास पैसा है तो पैसे से जन्म लेने वाली बुराइयां भी पैर पसारे रहती हैं। जाट लैंड के नाम से जाना जाने वाला पश्चिमी यूपी हमेशा संवेदनशील बना रहा है। यहां बात-बात पर लाठी-गोली चलती हैं। मुंह की बजाये लोग हाथ-पैरों से ज्यादा बात करते हैं। भले ही कुछ लोग इस इलाके को जाट लैंड के नाम से संबोधित करते हों, लेकिन यहां राजपूत, अहीर, गूजर और मुसलमानों की भी अच्छी आबादी है। कभी-कभी तो लगता है कि यहां के दाना-पानी में ही दबंगई भरी हुई है। छोटा सा बच्चा भी होगा तो तू-तड़ाक की भाषा में दबंगई दिखाता मिल जायेगा। असहलों का शौक यहां के लोंगों के सिर चढ़कर बोलता है। असलहों का लाइसेंस लेने की ताकत है तो लाइसेंस ले लिया,वर्ना नंबर दो से ही काम चला लिया जाता है। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि यहां लोंगो को अपनी जान और माल की हिफाजत के लिये असलहे रखना ही पड़ते हैं। इतनी खूबियां है तो स्वभाविक है यहां अपराध का ग्राफ भी ऊंचा होगा। संगठित अपराध, जातीय हिंसा, वर्चस्व की लड़ाई,ऑनर कीलिंग,हिन्दू-मुस्लिम दंगे,रंगदारी आदि तरह के अपराधों को नियंत्रित करना यहां हमेशा से लॉ एंड आर्डर संभालने वालों के लिये गंभीर समस्या बना रहा है तो राजनैतिक दल इसी के सहारे अपनी सियासी रोटियां सेंकते हैं।
इतिहास उठा कर देखा जाये तो सब कुछ आईने की तरह साफ हो जायेगा। यह इलाका बाहुबलियों की जननी रहा है। यहां की पंचायतें पूरे देश की चर्चा बटोरती रहती हैं। ऑनर कीलिंग के सबसे अधिक मामले यहीं से सामने आते है। मुफ्फरनगर दंगों को कौन भूल सकता है,जिसने पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश को दहशत के अंधे कुए में ढकेल दिया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बारे में कहा जाता है कि यदि इसे अलग राज्य बना दिया जाये तो कुछ ही समय में यहं ये देश का सबसे संपन्न राज्य होगा। यहाँ गंगा यमुना का दोआब अत्यंत उपजाऊ है। नदियों और नहरों का यहां जाल सा बिछा हुआ है। गन्ने के खेत, आम के बाग़, धान और गेंहू की ज़बरदस्त पैदावार क्षे़त्र के किसानों को खुशहाल बनाती हैं तो पश्चिमी यूपी की धर्म नगरी मथुरा वृंदावन और मोहब्बत की नगरी आगरा को देखने और समझने के लिये पूरे साल देश-विदेश से पर्यटको के आने का सिलसिला बना रहता है जो रोजागर के नये अवसर तो पैदा करता ही है आर्थिक व्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करता है । वहीँ पीतल नगरी के नाम से मशहूर मुरादाबाद जिला भी है जो पूरे देश में विदेशी मुद्रा लाने वाला राज्य का ही नहीं देश का नंबर एक जिला है। यहाँ धर्म-संस्कृति और आधुनिक का मिलाजुला असर है।एनसीआर क्षेत्र में आने वाला नॉएडा और ग्रेटर नॉएडा दिल्ली और यूपी के लिये सेतु का काम करता है। यहां ग़ाज़ियाबाद जैसा जिला है जो देश में राजपूतों की सबसे सुरक्षित लोकसभा सीटों में से एक है। वेस्ट यूपी में इंजिनीरिंग और मैनेजमेंट के दर्जनों संस्थान और विश्वविधालय हैं। नामचीन चीनी मीलों की एक पूरी श्रंखला है। रियल एस्टेट यहां का तेजी से फलता-फुलता उद्योग है तो अपराध की जननी भी इसे कहा जाता है।
बात जातीय गणित की कि जाये तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों और दलितों की आबादी सबसे अधिक है। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह,भारतीय किसान यूनियन के नेता चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने यहां की धरती का पूरे देश में नाम रोशन किया। राष्ट्रीय लोकदल,समाजवादी पार्टी और बसपा का यहां मजबूत आधार है। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां ‘कमल’ भी खूब खिला।भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरूण सिंह कहते हैं कि कभी किसी विशेष दल से जोड़कर देखे जाने वाली इस क्षेत्र की जनता को अब नये विकल्प रास आ रहे है।अरूण का इशारा 2014 के लोकसभा नतीजों पर था,जहां भाजपा का सिक्का चला। हाल ही में हुआ मथुरा कांड (जिसमें सपा के एक बड़े नेता पर आरोप लग रहा है) हो या फिर दादरी कांड अथवा मुजफ्फनर का दंगा। इन घटनाओं के बाद यहां की सियासत में काफी बदलाव आया है। भाजपा नेता की बातों में इस लिये दम लगता है क्योंकि इस क्षेत्र में कई दलों से किनारा करके तमाम नेता भाजपा का दामन थाम रहे हैं। उत्तर प्रदेश में 2017 में होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर जहां वेस्ट यूपी को लेकर भाजपा गंभीर है तो बसपा और सपा भी पीछे नहीं है। एकाएक सुरेंद्र नागर को सपा की ओर से राज्यसभा में भेजना इसी रणनीति का हिस्सा है। बसपा ने अपने कैडर वोटरों को साधने के लिए विधान परिषद चुनाव में पुराने कार्यकर्ता को तरजीह दी। जाट वोटों की अहमियत को देखते हुए रालोद के रुख पर अभी सबकी नजर है। मुस्लिम वोटों की अच्छी संख्या होने के कारण सभी दलों के लिये विधानसभा चुनावों में पश्चिम के जिले अपने-अपने हिसाब से अहम हो जाते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण कराकर भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल की थी। पहले चरण में पश्चिम से भाजपा की भारी बढ़त का संदेश पूरे प्रदेश में गया था, जिससे उसे भारी सफलता मिली।पश्चिम में जाट वोटरों की भूमिका काफी सशक्त है। इसे ध्यान में रखते हुए चौ. चरण सिंह का जिक्र पीएम ने लोकसभा चुनाव में भी किया था और अब भी ऐसा देखने को मिल रहा है। जाट वोटरों पर पकड़ के लिए जहां केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री डॉ. संजीव बालियान लगातार सक्रिय हैं तो स्थानीय स्तर पर भी नेताओं की फौज इस बिरादरी के हिसाब से लगाई गई है। भाजपा के बड़े दांव का सामना करने के लिये सपा ने राज्यसभा के लिए घोषित प्रत्याशी को बदलकर पश्चिम के लिहाज से अहम गुर्जर जाति के सुरेंद्र नागर को टिकट दिया है। यह सीधे तौर पर पश्चिम में अपने आपको मजबूत करने के लिए सपा का दांव है। पश्चिम में गुर्जर वोटरों की संख्या नोएडा, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, शामली, बिजनौर सहित अन्य जिलों में अच्छी-खासी है। सपा के परंपरागत यादव वोटर पश्चिम में न होने के कारण सपा गुर्जर-मुस्लिम समीकरण से बसपा और भाजपा का मुकाबला चाहती है। कई जिलों में सपा ने गुर्जर जिलाध्यक्ष बनाए तो रामसकल गुर्जर को पश्चिम में लगातार सक्रिय रखा गया है। मेरठ में जिला पंचायत अध्यक्ष का पद भी गुर्जर के खाते में दिया गया और सुरेंद्र नागर को टिकट देना विधानसभा चुनाव से पहले चला गया मजबूत दांव है। वहीं, बसपा ने मेरठ से जुड़े अतर सिंह राव को एमएलसी का प्रत्याशी घोषित कर यह संदेश दिया है कि वह अपने कैडर वोटर को तरजीह दे रही है। दलित-मुस्लिम समीकरण बनाकर बसपा भाजपा के पक्ष में एकतरफा ध्रुवीकरण को खत्म करना चाहती है। बसपा की मंशा यह है कि वह इस समीकरण के सहारे भाजपा से सीधी टक्कर में दिखाई दे, जिससे मुस्लिम एकतरफा उसके पाले में खड़ा हो।
राजनैतिक तौर पर देखा जाये तो यहां के राजपूत भी जाट बिरादरी से कम ताकतवर नहीं हैं। आर्थिक तौर पर भी यहाँ के राजपूतों की स्थिति प्रदेश के दूसरे राजपूतों के मुकाबले बेहद मजबूत है। यहाँ के मुस्लिम समाज की भी बात करी जाये तो इनमे भी सबसे बड़ा प्रतिशत राजपूतों का ही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साठा चौरासी क्षेत्र में राजपूतों की काफी बढ़ी आबादी है। यहाँ 60 गाँव सिसोदियों के तो 84 गाँव तोमरों के हैं। साठा चौरासी क्षेत्र के कारण ही ग़ाज़ियाबाद लोकसभा क्षेत्र से अधिकांश राजपूत सांसद चुना जाता है। चाहे वो मौजूदा विदेश राज्य मंत्री जनरल वी के सिंह हो या पूर्व में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह अथवा चार बार सांसद रहे रमेश चंद तोमर रहे हों।