क्या नही कर सकता इंसान ……
सच क्या नही कर सकता इंसान
जिद पक्की करने की ठान ले इंसान
जनहित लोकहित संग हो ईमान
चाँद तक पहुँच गया इंसान
सच क्या नही कर सकता इंसान …..
चट्टानों में हरित क्रांति
पाषाणों को पिघला सकता इंसान
असाध्य को साध्य बनता
मंगल ग्रह पर टाक जहा इंसान
सच क्या नही कर सकता इंसान ……
परमार्थ में जब-जब हुआ काम
दुःख बादल भले हो बरसे
आखिर में जीता है इंसान
हार वही जहां बस बसता स्वार्थ
डरता रहता मन बार-बार
जीतने की ताकत रखता इंसान
सच क्या नही कर सकता इंसान …..
नफ़रत-भेदभाव
ईश्वर का प्रतिनिधि इंसान
कण-कण में बसता भगवान
बसुधा पर आबाद हो विश्वबन्धुत्व
नफ़रत-भेदभाव का मिटे निशान
सुखाय-बहुजन हिताय का करे शंखनाद
हो जाती दुनिया स्वर्ग समान
ख्वाहिश है अपनी यही
गल जाता नफ़रत-भेदभाव का आसमान
सच क्या नही कर सकता इंसान ……
डॉ नन्द लाल भारती