—विनय कुमार विनायक
‘का’ (सीएए) का मतलब क्या होता?
वैसा मानव जिसने धरती पर जन्म लिया था
मगर पूरी वसुंधरा में नहीं था नागरिक कहीं का
जिसे जद्दोजहद के बाद ‘का’ से मिली नागरिकता!
वैसा मानव जो अपनी ही जन्मभूमि से कट गया था
आज से पचहत्तर वर्ष पूर्व आजादी के वक्त बँट गया
अफगानिस्तान पाकिस्तान बांग्लादेश का बना हिस्सा
जो सनातनी हिन्दू बौद्ध जैन सिख पारसी ईसाई था!
जो अपनी आस्था के कारण हिंसा का शिकार हुआ
जो बेगुनाह था पर पुरखे की जमीन से तड़ीपार हुआ
जो अपनी मातृभूमि भारत में शरणागत बनकर आया
मगर पचहत्तर वर्षों से शरणार्थी बनकर रह गया था!
जिसने बँटवारे का निर्णय नहीं लिया पर सब खो गया
जो वोट नहीं दे सकता, सरकारी नौकरी नहीं पा सकता
जिसे अधिकार नहीं मिला शिक्षा चिकित्सा बसोबास का
कारण पाक अफगान इस्लाम का, हिन्द नहीं हिन्दू का,
जो मनुज था भारत का मगर बिना किसी अधिकार का
जो सपूत अपनी भूमि का मगर बिना मानवाधिकार का
जो तबाह था अपने देश में जिसका सबकुछ छीना गया
जिसे मजहब वालों ने लूट लिया थमाकर धर्मनिरपेक्षता!
ऐसे ही अपनों से सताए गए दीन हीन दलित मनुष्य को
अपनाना गले लगाना मानवीय धर्म निभाना ही ‘का’ होता
‘का है’ ऐसा विधि-नियंता जो छीनती नहीं देती नागरिकता
‘का’ का विरोध जो करता वो मानवतावादी नहीं हो सकता!
—विनय कुमार विनायक