डॉली गढ़िया
पोथिंग, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड
दो पल की हसीन ये जिंदगी
जिसे लफ़्ज़ों में बयां ना कर सके कोई,
पल में जीना, पल में मरना जिसे पता न हो,
वह जिंदगी ही क्या जिसमें पानी और हवा न हो,
जुदा-जुदा लगी ये जिंदगी मुझे,
कब बचपन से बड़े हुए, पता ही नही मुझे,
वह चांद की चांदनी रातें,
जिसमें करते हम तारों की बातें,
जिसमें पलकों का न झपकना,
तारों का यूं टिमटिमाना,
ये हसीन सी जिंदगी,
जिसमें खुशियों का है ठिकाना,
सूरज का निकलना, चांद का आना
खुशियों का आना और दुःखों का जाना,
इतनी है जिंदगी, इतना ही फ़साना,
सोच में डुबो दो पल, आखिर क्या है ज़िंदगानी?
समंदर से गहरी, आसमान या कोई तूफानी,
क्या है तू, बता दे ए ! जिंदगी,
क्यों तुझे लफ़्ज़ों में बयां न कर सकूं,
बस एक बात सच है जिंदगी,
जो आया है वह जाएगा भी,
यूँ खट्टी-मीठी बातें जिसे समझ आए,
जिंदगी की कहानी उसकी बन जाए।।