क्या यही हकीकत है ‘सच्चे मुसलमानों’ की? / तनवीर जाफ़री

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20218

-तनवीर जाफरी

समानता, सहयोग, भाईचारा, समर्पण, त्याग, संतोष तथा क्षमा और बलिदान जैसी विशेषताओं का पाठ पढाने वाले इस्लाम धर्म का लगता है कुछ धुर इस्लाम विरोधी विचारधारा रखने वालों ने संभवत: किसी बड़ी इस्लाम विरोधी साजिश के तहत अपहरण कर लिया है। अन्यथा गत् तीन दशकों में इस्लाम के नाम पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए जाने वाले कत्लो ग़ारत तथा इसी के नाम पर फैलाई जाने वाली नफरत व विद्वेष की ऐसी आंधी चलते पहले कभी नहीं देखी गई। जेहाद के नाम पर आत्मघाती हमलावरों में लगातार होता आ रहा इजाफा पहले ऐसा कभी नहीं देखा गया। मरो और मारो जैसा रक्तरंजित मिशन कई मुस्लिम या मुंगल शासकों द्वारा तो भले ही सत्ता को छीनने, कब्‍जा जमाने या उसे सुरक्षित रखने के नाम पर तो भले ही मध्ययुगीन काल में क्यों न चलाया गया हो। परंतु वर्तमान दौर में इस्लाम के नाम पर इस्लाम को बदनाम व शर्मिंदा करने वाले घृणित अपराध तो उन लोगों द्वारा अंजाम दिए जा रहे हैं जो दुर्भाग्यवश स्वयं को ही सच्चा व वास्तविक मुसलमान बता रहे हैं, ऐसा अंधेर कम से कम इस्लाम के इतिहास में तो कभी देखने को नहीं मिला।

इन तथाकथित स्वयंभू इस्लामी ठेकेदारों की नारों में ईसाई, हिंदू, बौद्ध,सिख तथा यहूदी व पारसी आदि धर्मों के अनुयायी तो अविवादित रूप से कांफिर की हैसियत रखते ही हैं। लिहाजा इन सिरफिरों का इस्लाम इन समुदायों के लोगों को इन्हें गोया हर वक्त ज़हां भी चाहे मौत के घाट उतार देने का ‘अधिकार पत्र’ प्रदान करता है। इन ‘सच्चे मुसलमानों’ की सीख व शिक्षा इन्हें यह बताती है कि तुम इन्हें मार कर भी विजेता कहलाओगे और तुम्हारी जन्नत पक्की होगी और यदि इन्हें मारने के दौरान तुम खुद मारे गए तो भी तुम शहीद समझे जाओगे। और ऐसे में भी जन्नत तुम्हारी ही है। इनके जुल्‍मो-सितम की सूची में केवल उपरोक्त समुदायों के लोग ही शामिल नहीं हैं। दुनिया में मुसलमानों का एक कांफी बड़ा वर्ग जिन्हें हम सूफीवादी मुसलमानों के नाम से जानते हैं वे भी इनके निशाने पर हैं। इनको भी मारना या इनको मारते समय ख़ुद मर जाना भी इन ‘सच्चे मुसलमानों के लिए जन्नत का सबब बनता है। बरेलवी मुसलमान, शिया मुसलमान, कादियानी(अहमदिया) इन सभी इस्लामी वर्ग से जुड़े लोगों के यह ‘सच्चे व वास्तविक मुसलमानों’ के स्वयंभू ठेकेदार वैसे ही दुश्मन हैं जैसे कि गैर मुस्लिमों के।

सवाल यह है कि इन मौत के सौदागरों को इस बात का अधिकार किसने दिया कि वे यह प्रमाणित करते फिरें कि सच्चा मुसलमान कौन है, जन्नत में कौन और कैसे जाएगा तथा किस व्यक्ति को कौन सी पूजा पद्धति अथवा विश्वास पर अमल करना चाहिए। जिन बरेलवी व सूंफी इस्लामपरस्तों को यह ‘सच्चे मुसलमान’ अपना दुश्मन तथा गैर मुस्लिम मानते हैं, यह वर्ग इस्लाम के सूफीवाद के पहलू की पैरवी करता है। पीरी-फकीरी तथा सूंफीवाद इस्लाम के उस पक्ष की रहनुमाई करते हैं जिसमें कि सभी को समान समझना, सभी के प्रति सहिष्णुता से पेश आना तथा अल्लाह के प्रति अपनी सच्ची आस्था रखते हुए किसी दूसरे धर्म व विश्वास के अनुयाईयों का दिल न दुखाना भी शामिल है। एक ओर जहां यह समुदाय अपनी इसी फकीरी व सूंफीवाद की राह पर चलते हुए अपने पीरो मुर्शिद के माध्यम से स्वयं को अल्लाह तक पहुंचता हुआ देखता है वहीं मौत के सौदागर बने बैठे यह ‘वास्तविक मुसलमान’ उन्हें इस्लाम का दुश्मन होने का प्रमाण पत्र जारी कर देते हैं। इसी प्रकार शिया समुदाय के भी यह ‘वास्तविक मुसलमान’ वैसे ही दुश्मन हैं। पाकिस्तान में शिया समुदाय की दर्जनों मस्जिदों पर इसी इस्लाम विरोधी विचारधारा रखने वाले तथाकथित ‘सच्चे मुसलमानों’ ने कई बार कभी आत्मघाती हमला किया तो कभी उनपर गोलियां बरसा कर हमले किए। केवल पाकिस्तान में शिया समुदाय के सैकड़ों लोग इनके हाथों मारे जा चुके हैं।

अब जरा उस शिया समुदाय का संक्षिप्त परिचय भी सुन लीजिए जिन्हें यह ‘सच्चे मुसलमान’कभी इस्लाम विरोधी, तो कभी गैर मुस्लिम या प्राय: कांफिर तक बता देते हैं। शिया समुदाय, हजरत मोहम्मद को इन्हीं ‘सच्चे मुसलमानों’ की ही तरह आंखिरी नबी तो अवश्य मानता है। परंतु उनके बाद यह समुदाय इमामत की उस परंपरा को स्वीकार करता है जिसके पहले इमाम हजरत अली थे। उनके पश्चात उनके बेटे हसन और हुसैन से होता हुआ यह सिलसिला 12 इमामों तक पहुंच कर समाप्त हुआ। और बारहवें इमाम हजरत इमाम मेंहदी पर जाकर ख़त्म हुआ। इस्लामी तारींख में हजरत मोहम्मद की एकमात्र बेटी हजरत फातिमा के विषय में तमाम ऐसी अविवादित बातों का उल्लेख है जिन्हें सभी मुस्लिम वर्गों के लोग निर्विवादित रूप से मानते हैं। गोया हजरत फातिमा के रुतबे से कोई भी मुस्लिम वर्ग इंकार नहीं कर सकता। उस हजरत फातिमा तथा उनके पति हजरत अली जोकि मोहम्मद साहब के भतीजे भी थे,का गुणगान करने वालों तथा उनके प्रति अपनी अटूट आस्था व विश्वास रखने वाले शिया समुदाय को इन मौत के सौदागरों द्वारा कांफिर या गैर मुस्लिम होने का प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया है। यानि इन्हें भी चाहे मस्जिद में मारो या इमामबाड़ों में, या फिर इनके द्वारा करबला के शहीदों की याद में निकाले जाने वाले जुलूसों के दौरान। गत् वर्ष पाकिस्तान में मोहर्रम के जुलूस में आत्मघाती हमलावरों द्वारा शिया समुदाय के सैकड़ों लोगों का मारा भी गया। इन ‘सच्चे मुसलमानों’ की ऐसी कारगाुारियों से भी इनकी जन्नत पक्की हो जाती है।

जाहिर है जब यह शिया व बरेलवी मुसलमानों को मुसलमान नहीं मानते तो उन कादियानी अथवा अहमदियों को यह मुसलमान कैसे मानेंगे जिनका वजूद ही भारत के पंजाब स्थित कादियान कस्बे में हुआ। अहमदी समुदाय के संस्थापक गुलाम अहमद कादियानी ने 1889 में इस पंथ की बुनियाद डाली। वैसे तो निश्चित रूप से अहमदिया पंथ, शांति, प्रेम, सद्भाव व भाईचारा जैसी उन सभी शिक्षाओं को प्रचारित व प्रसारित करता है जोकि इस्लाम धर्म की बुनियादी शिक्षाएं हैं। परंतु उनके प्रमुख द्वारा स्वयं को हजरत ईसा अथवा हजरत इमाम मेंहदी का रूप घोषित करना ‘सच्चे मुसलमानों’ को रास नहीं आता। और इसी की साा इस समुदाय को समय-समय पर भुगतनी पड़ती है।

अहमदिया समुदाय के प्रति इनकी नंफरत कोई पाकिस्तान तक ही सीमित नहीं है। बल्कि यह विश्वव्यापी है। इंडोनेशिया में इन्हीं ‘सच्चे इस्लाम’ समर्थकों के कठमुल्लाओं की भीड़ ने अहमदिया समुदाय की एक मस्जिद को तोड़कर खंडहर बना दिया था। बंगलादेश में भी इनके विरुद्ध यही ताकतें प्राय:अपने विरोध स्वर बुलंद करती रहती हैं। इसी नफरत ने 1974 में पाकिस्तान में संसद द्वारा इन्हे ग़ैर मुस्लिम घोषित किए जाने की नौबत तक पहुंचा दिया था। उसके पश्चात जिया-उल- हंक के शासन में तो गोया अहमदिया समेत सभी मुस्लिम वर्गों के विरुद्ध ‘सच्चे मुसलमानों’ ने स्वयं को कांफी माबूत व संगठित कर लिया। और नंफरत की यही आग फैलते-फैलते पिछले दिनों अर्थात् 28मई 2010 शुक्रवार को यहां तक पहुंची कि उस दिन पाकिस्तान के लाहौर शहर में अहमदी समुदाय की दो मस्जिदों पर जुम्मे की नमाज के दौरान ‘सच्चे मुसलमानों’ के आतंकी तथा आत्मघाती दस्तों ने धावा बोल दिया। मौत और जन्नत के इस ख़ूनी खेल में आत्मघाती हमलावर तो ‘जन्नत की राह’ सिधारे ही साथ-साथ लगभग 80 अहमदी समुदाय के नमााियों को भी न चाहते हुए भी अपने साथ ही समय से पूर्व जन्नत में ले गए।

असहिष्णुता तथा कट्टरवादी इस्लाम के प्रदर्शन की ऐसी पराकाष्ठा क्या इस्लाम धर्म को मान-सम्मान और इात बख्श रही है? जो ताकतें आज स्वयं को सच्चा मुसलमान अथवा इस्लाम का सच्चा रहबर अथवा अनुयायी बता रही हैं उन्हें इतिहास के उन पन्नों को भी पलटकर सबक लेना चाहिए जो हमें यह बताते हैं कि चंद मुंगल व मुसलमान शासकों के बलपूर्वक सत्ता संघर्ष के परिणामस्वरूप इस्लाम धर्म को अब तक कितनी शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है। पेशेवर इस्लाम विरोधियों को जहां इतिहास की वह घटनाएं उर्जा प्रदान करती हैं वहीं इन स्वयंभू सच्चे मुसलमानों के काले कारनामे भी उसी इस्लाम को बदनाम करने में अपना कम किरदार अदा नहीं करते। लिहाजा इन तथाकथित वास्तविक मुसलमानों द्वारा हर जगह मौत बांटे जाने तथा ख़ून की होलियां खेले जाने के सिलसिले से तो अब इनकी हकीकत कुछ ऐसी ही प्रतीत हो रही है गोया यह शक्तियां स्वयं इस्लाम कीसबसे बड़ी दुश्मन हैं तथा यह किसी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाली इस्लाम विरोधी साजिश का एक बहुत बड़ा हिस्सा हैं और यही इन सच्चे मुसलमानों की हकीकत है।

144 COMMENTS

  1. nice debat on religion .debat between to pandits or any two society is relevent for idle society . how can you debat with a ZAHIL .the things are different now . budhist Vs rohingyas in BARMA is the perfect example ,what i want to say .no match betwwen these two .so finally arm struggle begun.ahinsiya parmo dharma will fad away when you fight for your existance. so lets see how long we sustain as an idle socity . A CIVIL WAR IS INEVITABLE FOR US . WE HAVE TO FACE THE RESULT OF ‘”ADHA ADHURA VIBHAJAN “

  2. समस्या इस्लाम है … मुसलमान नहीं.
    मुसलमान तो बेचारा शिकार है इस्लाम का.

  3. आमिर खान द्वारा संचालित सत्यमेवजयते नमक कार्यक्रम
    को देश के लोग ठीक वैसे ही देखने लगे है जैसे अस्सी के दसक
    में लोग नहा धो कर दूरदर्शन में रामानंद कृत “रामायण”
    देखा करते थे , प्रोगाम के माध्यम से SMS के जरिये डोनेसन
    माँगा जाता है , इस SMS का पैसा कहाँ और किस प्रयोजन के
    लिए जाता है ये जरा जान लेवे, और अपनी बुद्धि का इस्तेमाल
    करते हुए कान पकडे की एक फूटी कौड़ी भी अब नहीं दी जाएगी .
    दरअसल http://www.humanitytrust.com नमक एक NGO के
    पास ये सारा पैसा जाता है . इस वेबसाइट को आप देख सकते है
    और समझ सकते है की इनका उद्दश्य क्या है ? इसमें
    कहा गया है की पैसा एक विशेष समुदाय की भलाई के लिए खर्च
    की जाएगी .. ये अच्छी बात है , पर उसमे ये भी लिखा है
    उसी पैसे से इस समुदाय के लिए प्राथना गार
    बनायीं जाएगी ..अब आप ये बताओ की ये कहाँ तक उचित है ,
    भारत देश से लगभग सभी जाती व धर्म के लोग डोनेसन देते है
    तो उसका उपयोग सिर्फ एक विशेष समुदाय क्यों करे.

    • HUMANITY TRUST
      Humanity trust student division is the student division of humanity trust.Humanity trust is managed by a Board of Advisors which comprises of individuals from diverse backgrounds and expertise.We are working to create permanent change in the lives of children, families and communities living in poverty and injustice.We serve all people regardless of religion, caste, race, ethnicity or gender.

  4. मुसलमानों को दूसरी कोमो को तबाह करना और उनसे नफरत करना ख़तम करना होगे. उन्हें अपने बर्बर मानसकिता को ख़तम करना होगा. kyonki जभी ये लोग santi से जी पायगे . औरो को भी जीने देगे . जय हिंद जय भारत.

  5. मुसलमान कितना सान्ती पसंद है ! इसका पता सारी दुनिया को है , आतंकवाद क्यों करता है हिन्दू क्या जाफरी साहब ! कश्मीर मे १५०००० हिन्दू का कतल किया गया , उनकी औरतो का बलात्कार कर उनकी छतिया काट कर फैक दी गयी , उनके बच्चो का स्टील से गला काट दिया गया , २४ hrs का बच्चा तक मार दिया गया ! ३५०००० हिन्दू को अपना ही घर छोड़ कर भागना पड़ा यह सुब मुसलमानों की करामत नही है तो क्या है ? और आप कहते है की इस्लाम अमन पसंद है 🙂 ? www .hindurashtra .wordpress .com. पर जरा जाकर देखेये की इस्लाम कितना अमन पसंद है

  6. मुसलमानों को ही मुसलमानों को रास्ते पर लाने की पहल करनी होगी.और कट्टरपंथियों व फतवा से डर निकालना होगा. तभी ये अपने समाज को कोई रास्ता दे पायंगे. और गैरमुस्लिमों से अच्छे रिश्ते भी बना पाएंगे.

  7. ukt lekhon ke pratiuttar me islam ke lie bas itana kahugan ki , islam shanti kapaigam bhaichare ka sandesh deta hai,, mujhe mere agraj bandhu bataen ki vah desh kaun hai jahan islam ne shanti, bhaichara sthapit kiya hai, vah sansaar me kaun saa mulk hai,! jo aaj islam ke karan aur musalmano ke karan shant hai???

  8. सवाल एक पैदा होता है क्या हम लोगों को यह पहचान है के यह हकीक़त मैं मुस्लिम है या कोए और आज सिर्फ धरी और नाम को सुनकर मुसलमान कहा जाता है ? मेरा यह एक सवाल के सवालों को जनम देगा और हकीकत बहुत ही कर्वी होती है मैं आपको बता दूं के जब कश्मीर के लिए हिन्दुस्तानी आर्मी रवाना हुए थी तब सरकारी आक्रों के हिसाब से वहां आतंक वादियों की तादाद १०००० के आस पास थी और उसके एक साल के बाद ही वहां यह तादाद १२००० हो गए और आज कश्मीर मैं जहाँ ८ लाख ५०,००० आर्मी है तब वहां आतंवादियों की तादाद करीब ६५,००० है क्यूँ ? किस मकसद से आर्मी वहां गयी थी मेरी समझ मैं यह आज तक नहीं आया है क्या कोए है जो मेरे सवाल का सही जवाब दे सके ? मुझको आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा … आपका नाचीज़ दोस्त एस.एम फरीद भारती एडिटर / मानवाधिकार कर्येकर्ता ०९८०८१२३४३६

    • फरीद साहब आप यह भूल रहे ह कि यह 8 लाख सेना भारत की सीमाओ के अन्दर है एवं भारत के उस अशांत हिस्से की सुरक्षा के लिए तैनात है जिसको पाने के लिए हमारा पड़ोसी दुश्मन पाकिसेतान रात दिन सपने देख रहा है , दूसरी ओर हुर्रियत कान्फरेंस जैसे देश के गद्दार पाकिस्तान का समर्थन कर रहे है एेसे हालात मे भारतीय फौज के कश्मीर मे तैनात होने पर आपको जो कष्ट है वह समझने लायक है ,

  9. सारी आफत की जड़ ‘वहाबी’ हैं. और दुःख की बात है की दुनियाभर में वहाबी जहालियत अपने पैर पसार रही है. हाल ही के इंडिया टूडे में कश्मीर में में बढ़ाते वहाबी प्रभाव और सूफी /उदार इस्लाम के घटते प्रभाव के बारे में विस्तृत लेख छापा है. जिसे मेरे ब्लॉग पे भी मैंने डाला है.
    किसी वहाबी और देवबंदियों से मिलने पर आपको अंदाजा लग जाएगा कि अहमदिया, शिया, कादियानी, बोहरा, इस्माइली जैसे उदार मुस्लिमो के प्रति उनमे कितना जहर भरा हुआ है. कई बार तो वह ख्वाजा गरीब नवाज (अजमेर) और एनी महान सूफियो के खिलाफ अनर्गल बकवास करने से भी नहीं चूकते हैं.
    दुःख इस बात का है कि ना तो भारत की राजनीति ने , ना ही मीडिया ने और ना ही सेकुलर हिन्दुओं ने उदार मुस्लिम नेतृत्व को उनका हक़ दिया है ना ही सम्मान.
    पहले मुहर्रम पर शहर के ताजिये में हिन्दू लोग भी पवित्र भाव से जाते थे. लेकिन अब वहाबी लोगो के लगातार बढ़ते हमलो और फसादों के कारण ताजिये में जाने से खुद शिया लोग भी आशंकित रहते हैं.

    • अपने बिलकुल ठीक कहा वहाबी ही दुनिया मई कत्लेआम करते है. अल्क़िदा, तालिबान यह सब वहाबी है. पूरी दुनिया मई वहाबी है. भारत मई भी पर इनके पास पैसा भोत होता है इसलिय सर्कार वोते बैंक के चलते इन लोगो को छूट देती है. अगर इनका खत्म हो जय तो दुनिया मई अमन हो जय.

      • Raja shaab,
        Wahabi is the new ideology of ISLAM. which want to take muslim in midevel

        period which is unfortunate. Sufism philosophy is losing its importance day by day.

        Non Muslim can not help the Muslims in this regard because any help will be

        considered as the anti Islamic then Anti wahabi. Muslim brother have to make sure

        that these ideas should be oppose at every level. Otherwise the day is not before

        they will themselves in the situation where it would be difficult to come back.

  10. खुदा.. NE AAJTALAK US KOUM KI HAALAT नही बदली..NA JISKO KHUD KHYAAL HO APNI HAALAT KE BADLNE का!

  11. जाफरी साहेब आपके लेख में सचाई है ज्यादा लिखोगे तो आपके खिलाफ मौत का फतवा जरी न होजये ., दूसरी बात देश भक्त सचे मुस्लमान की देश में कोई वोइस नहीं है , सचे मुस्लिम की हिम्मत ही नहीं की दुर्जन मुस्लमान का विरोध करे बल्कि उनका समर्थन करते हुए भी देखे जाते है ,कही न कही इस्लामवाद आड़े आजाता होगा

  12. इक़बाल जी आपसे मै सहमत हू .

    इस्लाम के नाम पर लोगो को गुमराह करनेवालों पर यदि मुस्लमान ही प्रतिबन्ध लगाये तो ज्यादा उचित है .

    हिन्दू धर्म में एक ज़माने में पोंगा पंडितो का एकक्षत्र एकाधिकार था किन्तु हिन्दू जनमानस धीरे धीरे ही सही अन्धविश्वासो सेदूरी बना रहा है

    इस्लाम में बहुत कम लोग है जो आपने लोगो को अच्छाई सच्चाई की राह दिखा रहे है

    आपकी साहसिक टिप्पणी के लिए हार्दिक बधाई .

  13. जाफरी साहब बेशक वरिष्ठ लेखक हैं। उनकी क़लम को हम सलाम करते हैं। सच्चे मुसलमानों की हकीकत का जो सवाल उन्होंने उठाया है वह बहुत गंभीर और सामयिक है। उन्होंने समस्या को तो विस्तार से बयान किया लेकिन उसकी जड़ और हल पर प्रकाश नहीं डाला। क्या यह नहीं सोचा जाना चाहिये कि भले ही इस्लाम इस खून ख़राबे के लिये ज़िम्मेदार न ठहराया जाये लेकिन यह आतंकवाद, आत्मघाती विस्फोट और जेहाद के नाम पर मस्जिदों में नमाज़ पढ़ते लोगों पर बम फैंकना, स्कूल जाते बच्चो का दुनियावी तालीम लेने पर अपहरण, पर्दा न करने पर औरतों को कोड़े मारना और तस्वीर, फिल्म व टीवी का इस्तेमाल करने वालों पर तेज़ाब फैंकना कहां से आया? गैर मुस्लिम तो आमतौर पर ऐसा नहीं करते और कहीं इक्का दुक्का घटनायें होती भी हैं तो कानून अपना काम करता है। बाकी समाज भी उन कट्टरपंथियों को सपोर्ट नहीं करता लेकिन मुसलमानों में अकसर बुध्दिजीवी भी डरकर चुप्पी साधे रहते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं मज़हब में एक से अधिक विवाह, जिन्न भूत, जादू , महिला का अधिकार कम होना और ब्याज, निकाह, तलाक़ और कड़े नियमों में परिवर्तन की इजाज़त नहीं होने से मुसलमानों की यह हालत हो गयी हो ? किसी भी रोग के इलाज के लिये सबसे पहले यह मानना पड़ता है कि आप बीमार हैं। अगर आप अपनी अयोग्यता, कमियों और बुराइयों के लिये किसी दूसरे की साज़िश को खासतौर पर अमेरिका, ईसाइयांे, हिन्दुओं व यहूदियों को ज़िम्मेदार ठहराकर केवल कोसते रहेंगे तो कभी समस्या का हल नहीं हो पायेगा। यह तो मानना ही पड़ेगा कि अगर मुसलमानों का एक हिस्सा आज पूरी दुनिया मंे आतंकवाद और जेहाद के लिये कसूरवार ठहराया जा रहा है तो उसमें कुछ सच्चाई तो होगी ही। तिल का ही ताड़ बनता है। बिना सुई के फावड़ा कहां बनता है? यह आरोप लगाना बहुत आसान है कि हमारे साथ पक्षपात होता है। अगर आज मुसलमान शिक्षा, व्यापार, राजनीति, अर्थजगत, विज्ञान, तकनीक, शोध कार्यों, सरकारी सेवाओं और उद्योग आदि क्षेत्रों में पीछे है तो इसके लिये उनको अपने गिरेबान मंे झांककर देखना होगा न कि दूसरे लोगों को दोष देकर इसमें कोई सुधार होगा। समय के साथ बदलाव जो लोग स्वीकार नहीं करते उनको तरक्की की दौड़ में पीछे रहने से कोई बचा नहीं सकता। अंधविश्वास, स्वर्ग और भाग्य के भरोसे ही पड़े रहने से जो कुछ आपके पास है उसके भी खो जाने की आशंका अधिक हैं। हम यह नहीं कहते कि प्रगति और उन्नति के लिये हम अपने मज़हब को छोड़कर आधुनिकता और भौतिकता के नंगे और स्वार्थी रास्ते पर आंखे बंद करके चल पड़ें लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि आज के दौर में जो लोग आगे बढ़कर अपना हक़ खुद हासिल करने को संगठित और परस्पर सहयोग और तालमेल का रास्ता दूसरे लोगों के साथ नहीं अपनायेंगे उनको पिछड़ने से कोई बचा नहीं सकता। मुसलमानों को यह सोचना होगा कि समाज के दूसरे वर्गों के साथ कैसे मिलजुलकर कट्टरपंथ को छोड़कर आगे बढ़ना है।
    0 दूसरों पर जब तब्सरा किया कीजिये,
    आईना सामने रख लिया कीजिये ।।
    इक़बाल हिंदुस्तानी,संपादक, पब्लिक ऑब्ज़र्वर, नजीबाबाद।

    • इकबाल हिन्दुस्तानी जी बहुत सटीक टिपण्णी दी है आपने.

    • आपने सही कहा । सारे दह्सत्गर्दी तेल के पैसे से हो रहा है । जैसे की आंकड़े बताये जा रहे है की दुनिया में तेल का 70% 30 साल में ख़त्म हो जायेगा। तब ये लोग क्या करेंगे। जन्नत किसने देखा है । अगर है तो आतंकियों के सरदार क्यों छिपे रहते है। वे पहले क्यों नहीं शहीद होते है । इस तरह से इस्लाम समय से पहले ही ख़त्म हो जायेगा । जब सब लोग मौत से पहले हालाक हो जायेंगे तो जन्म लेने का मकसद ही गैर वाजिब है । गौर करने की जरूरत है।

  14. ||ॐ साईं ॐ || सबका मालिक एक
    काले धन पे भारतीय मिडिया चुप है….क्यों….????? कितना बचकाना प्रश्न है….
    ***************************************************
    क्योकि भारत का मीडिया भ्रष्ट नेताओं, मंत्रियो,संतरियो,अधिकारियों,कर्मचारियों और काला बाजारियो के काले धन पर ही तो ज़िंदा है | देश की मीडिया वैश्या है |
    एक विस्फोटक खुलासे में स्विस बैंकिंग घोटालों को उजागर करने वाले रुडोल्फ एल्मर ने कहा कि बहुत सी भारतीय कंपनियां और धनी भारतीय, जिनमें अनेक फिल्म स्टार और क्रिकेटर भी शामिल हैं, केमैन द्वीप जैसे टैक्स हैवेन इलाकों में अपने काले धन को जमा कर रहे थे। एल्मर ने कहा कि 2008 में उन्होंने जो सूची जारी …

  15. कागजों में मदरसे, मौके पर खाली मैदान
    Oct 17, 02:08 am

    मेरठ, जागरण संवाददाता: कागजों पर मदरसे और मौके पर खाली मैदान। न कहीं मदरसा मिला और न कोई निर्माण। जबकि कागजों पर ऐसे मदरसों की इमारतें खड़ी हैं और कई सालों से पढ़ाई भी हो रही है। जांच हुई तो ऐसे फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ। अब कागजों पर मदरसे चलाने वालों के खिलाफ मुकदमे की तैयारी हो रही है।
    स्कूलों और मदरसों में लाखों के छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति घोटाले के खुलासे के बाद पिछले दिनों सीडीओ कुमार रविकांत सिंह ने आकस्मिक जांच कराई। जिला स्तरीय अधिकारियों को अचानक बुलाकर स्कूल और मदरसे आवंटित कर तत्काल मौके पर पहुंचकर जांच के आदेश दिए। अफसरों ने जो जांच रिपोर्ट सौंपी, उसे देखकर अधिकारी भी आश्चर्यचकित रह गए। उपनिदेशक कृषि एसके अग्निहोत्रि मदरसा सैफुल इस्लामिया जाकिर कालोनी की जांच के लिए पहुंचे तो उन्हें मौके पर मदरसा ही नहीं मिला। क्षेत्रीय पार्षद और आसपास के आठ-दस लोगों ने पूछताछ की, लेकिन किसी ने यहां इस नाम का मदरसा होने की पुष्टि नहीं की, जबकि कागजों में तीन साल से मदरसा चल रहा है। श्री अग्निहोत्री ने ही जाकिर कालोनी के आशियाना पब्लिक स्कूल की जांच की, वहां सबकुछ सही मिला। जिला सहायक निबंधक सहकारिता विजेन्द्र कुमार जफर मदरसा इस्लामिया की जांच के लिए सिवालखास पहुंचे तो मदरसा बंद मिला, जबकि उस दिन कोई अवकाश नहीं था।
    मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा.केके वर्मा सिवाल मखतब मिसवा सिवालखास की जांच करने पहुंचे तो वहां न तो बच्चे मिले, न स्टाफ। मदरसे के कमरों में सीलन मिली। गंदगी और सीलन देखकर नहीं लग रहा था कि यहां बच्चों को पढ़ाया जाता है। इसके बाद केके वर्मा मदरसा इस्लामिया इमदादुल उलूम पहुंचे तो मदरसे के स्थान पर खाली प्लाट मिला। इसके एक हिस्से में निर्माण कार्य चल रहा था, जबकि कागजों में दो साल से मदरसा चल रहा है। कुल 11 मदरसों की जांच की गई, जिनमें चार में गंभीर अनियमितताएं मिलीं। जांच रिपोर्ट के आधार पर सीडीओ कुमार रविकांत सिंह ने जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी सुमन गौतम को कार्रवाई के आदेश दिए।
    मदरसा संचालकों को नोटिस
    सुमन गौतम ने चारों मदरसा संचालकों को नोटिस जारी कर एक सप्ताह में जवाब तलब किया है। उन्होंने बताया, प्रारंभिक जांच पड़ताल में गंभीर अनियमितताओं का अंदेशा है, लेकिन संचालकों के जवाब के बाद ही कोई कार्रवाई होगी। उन्होंने इन मदरसों को छात्रवृत्ति, शुल्क प्रतिपूर्ति या अन्य कोई सहायता दिए जाने से इंकार किया है।

    सायद इन मदरसों को चलने का ठेका संघ या किसी हिन्दू संघटन ने लिया था जिसने मुसलमानों के साथ इस तरह का अनुचित कार्य किया .

  16. SARKARI VYAPAR BHRASHTACHAR
    Posted on September 29, 2011 at 11:45 am
    ***************************************************************************************
    THIS IS THE RIGHT WAY AND ACTION FOR SECURITY OF COUNTRY…..INDIAN GOVT. AND ARMY CAN NOT DO LIKE THIS …..DUE TO MUSLIM VOTES POLITICS……..THERE IS ATLIS 1.5 CRORE PAKISTANI AND BANGLADESHI SHAHNAVAZ .FIRDOSH,AAMIR .KASAB.AFJAL GURU ……WHO NEEDS SHOOT AT SIGHT WITH IMMEDIAT EFFECT WITHOUT ANY PITY…….INDIAN CORRUPT LEADERS,MINISTERS,AND POLICE OFFICERS WEL KNOWN THESE TERRIST PERSONALY. IF ACTION NOT TAKEN ,CRORES OF INOCENT INDIANS MAY BE KILLED BY THE END OF 2011.THIS STATEMENT WILL BE RECORD…………
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    भारतीय सीमा के नजदीक से पकड़ गोली मारीSep 25, 05:43 pmबताएं
    Twitter Delicious Facebook लाहौर। सीमा पार कर भारत के पंजाब प्रांत में घुसने का प्रयास कर रहे व्यक्ति को पाकिस्तान रेंजर्स ने गोली मार दी।
    स्थानीय निवासियों के मुताबिक अर्धसैनिक सीमा रक्षकों ने लाहौर से 40 किलोमीटर दूर अटारी गांव के रहने वाले शाह नवाज को कल सीमा के नजदीक कसूर में पकड़ा और गोली मारकर उसकी हत्या कर दी।

  17. आदरणीय तनवीर जाफरी साहेब की बात और दर्द से सहमत हूँ. दुनिया का कोई भी “वाद” “पंथ” या “धर्म ” यदि अमन चैन की बात करता है तो उसका स्वागत होना चाहिए. आखिर वे भी तो उसीका विरोध कर रहे हैं जिसका हम कर रहे हैं.

  18. श्री राजीव कपूर जी व अन्य लोगों के विचार पढने के बाद मै इस नतीजे पर पहुंचा हूँ की ज्यादातर विचार खुले दिल व दिमाग से न लिखकर पूर्व धारणाओं के अधर पर लिखे गए हैं. यह सही है की सेमेटिक मतों के अनुयायी सामान्यतया कट्टरपंथी होते हैं लेकिन साठ के दशक में महाराष्ट्र में मुस्लिम सत्यशोधक मंडल बना था और उसमे शामिल मुस्लमान कट्टरपंथी न होकर अपनी हिन्दू जड़ों को मानते थे.थोड़े ही सही कुछ मुस्लमान ऐसे जरूर हैं जो पाने हिन्दू पुरखों पर नाज़ करते हैं. ये संख्या बहुत छोटी है लेकिन है. उन्हें पहचान कर उनको मान्यता देकर उन जैसों को अपनी संख्या बढ़ाने का मौका देना आवश्यक है. आखिर आज से ४४ साल पहले पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी ने जनसंघ के कालीकट अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण में यह घोषणा की थी की इस देश को अपनी मात्रभूमि, पित्रभूमि और पुण्यभूमि मानने वाला हर व्यक्ति हिन्दू ही है. जो मुसलमान ऐसे हैं वो मोहम्माद्पंथी हिन्दू ही हैं.परमपूज्य गुरूजी ने डॉ. सैफुद्दीन जिलानी से अपने भेंट वार्ता में भी लगभग ४३ वर्ष पूर्व यह स्पष्ट किया थी की हम अधिक से अधिक राष्ट्रवादी ढंग से सोचने वाले मुसलमानों से संवाद चाहते हैं. श्री इन्द्रेश कुमार जी पिछले अनेक वर्षों से यही काम कर रहे थे. जिससे घबड़ाकर ही सोनिया गाँधी के द्वारा लक्षित हिंसा विधेयक की आड़ में हिन्दुओं को दबाने का कानून बनाने का प्रयास किया जा रहा है.श्री तनवीर जाफरी जी को मै नहीं जानता. लेकिन उनके द्वारा जो कुछ कहा गया है उस पर उनके मतावलंबियों को अमल करने की जरूरत है. कट्टर पंथी असहिष्णु मुसलमानों के विरुद्ध जो भी आवाज उठे उसका स्वागत करना चाहिए. हर बात की आलोचना करना उचित नहीं.

  19. लगता है हम हिन्दू इन नाखारामो के लिए क्यों लड़ रहे है मेरे समज मैं नहीं आता है दीपाजी, शिरीष जी आप आपस मैं बहस क्यों कर रहे है ? रही बात रहीम की उसने कहा कुरान पाक किताब है , होंगी मैंने नहीं पड़ी और पढूंगा भी नहीं क्योकि मेरे लिए कुरान सिर्फ कज्ज का टुकड़ा है और कुछ नहीं रही इस्लाम की बात हर बुरी बात के पीछे कही न कही इस्लाम है वाही उस किताब मैं लिखा है और वाही वो लोग कर रहे है रही बात उपर दिए गए लेख की उन्होंने अपना खुद का चेहरा खुद ही देखाया है की क्या है इस्लाम वैसे इतिहास मैं है उसे बदला नहीं जा सकता जाफरी साहब आप लोग पहेले से ही खुनी और कातिल हो आप लोगो के आने से पहेले दुनिया मैं बहुत शांति थी

  20. !! प्रवक्ता.कॉम के पाठकों से पाठकों से विनम्र अपील !!

    आदरणीय सम्पादक जी,

    आपके माध्यम से प्रवक्ता.कॉम के सभी पाठकों से विनम्रतापूर्वक अनुरोध/अपील करना चाहता हूँ कि-

    1- इस मंच पर हम में से अनेक मित्र अपनी टिप्पणियों में कटु, अप्रिय, व्यक्तिगत आक्षेपकारी और चुभने वाली भाषा का उपयोग करके, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।

    2- केवल इतना ही नहीं, बल्कि हम में से कुछ ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सम्पादक की नीयत पर भी सन्देह किया है। लेकिन जैसा कि मैंने पूर्व में भी लिखा है, फिर से दौहरा रहा हूँ कि प्रवक्ता. कॉम पर, स्वयं सम्पादक के विपरीत भी टिप्पणियाँ प्रकाशित हो रही हैं, जबकि अन्य अनेक पोर्टल पर ऐसा कम ही होता है। जो सम्पादक की नीयत पर सन्देह करने वालों के लिये करार जवाब है।

    3- सम्पादक जी ने बीच में हस्तक्षेप भी किया है, लेकिन अब ऐसा लगने लगा है कि हम में से कुछ मित्र चर्चा के इस प्रतिष्ठित मंच को खाप पंचायतों जैसा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। मैं उनके नाम लेकर मामले को बढाना/तूल नहीं देना चाहता, क्योंकि पहले से ही बहुत कुछ मामला बढाया जा चुका है। हर आलेख पर गैर-जरूरी टिप्पणियाँ करना शौभा नहीं देता है।

    4- कितना अच्छा हो कि हम आदरणीय डॉ. प्रो. मधुसूदन जी, श्री आर सिंह जी, श्री श्रीराम जिवारी जी आदि की भांति सारगर्भित और शालीन टिप्पणियाँ करें, और व्यक्तिगत टिप्पणी करने से बचें, इससे कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। कम से कम हम लेखन से जुडे लोगों का उद्देश्य तो पूरा नहीं हो सकता है। हमें इस बात को समझना होगा कि कोई हमसे सहमत या असहमत हो सकता है, यह उसका अपना मौलिक अधिकार है।

    5- समाज एवं व्यवस्था पर उठाये गये सवालों में सच्चाई प्रतीत नहीं हो या सवाल पूर्वाग्रह से उठाये गये प्रतीत हों तो भी हम संयमित भाषा में जवाब दे सकते हैं। मंच की मर्यादा एवं पत्रकारिता की गरिमा को बनाये रखने के लिये एकदम से लठ्ठमार भाषा का उपयोग करने से बचें तो ठीक रहेगा।

    6- मैं माननीय सम्पादक जी के विश्वास पर इस टिप्पणी को उन सभी लेखों पर डाल रहा हूँ, जहाँ पर मेरी जानकारी के अनुसार असंयमित भाषा का उपयोग हो रहा है। आशा है, इसे प्रदर्शित किया जायेगा।

  21. शिरीष जी, इन मक्कारों की परवाह न करें. झूठे नाम, नकली पहचान से लिखनेवाले लोग फरेबी और धोखेबाज हैं ; इसमें संदेह की तो कोई गुजाईश नहीं. इनकी कुटिल चालों का शिकार बनने से बचना होगा. ये लोग असल मुद्दे से भटकाने और हम लोगों को निवाद में फंसाने के लिए बे मतलब विवाद खड़ा करने का प्रयास करते हैं. ताकि हमारी विश्वसनीयता समाप्त हो, हम मुख्य विषय को छोड़कर इनके फैलाए जाल में उलझ जाएँ. मेरा सुझाव तो यह है कि झूठे नाम और पहचान से पोस्ट भेजने वालों के साथ संवाद ही न किया जाये. क्यों कि उनका उद्देश्य संवाद करना नहीं, हम सबको बेवकूफ बनाने का प्रयास करना और अपने छुपे अजेंडे की पूर्ती करना होता है. आम तौर पर इनका अजेंडा होता है हमें , हमारे संस्कृति, हमारे इतिहास पुरुषों के लिए अश्रद्धा, अविश्वास जगाना ; हमारी संस्कृति व हमारे श्रद्धा पुरुषों को अपमानित करना, हम में हीनता भरना. अतः ऐसे लोगों की पहचान करके हमें उनसे बचना या मुंह तोड़ जवाब देना होगा.

  22. महोदय शिशिर जी ,
    आकी टिपण्णी.
    दीपा जी क्या बात है. पहली बार आपने सकारात्मक विचार लिखा. आप इसके लिए बधाई के पत्र हैं. आपको क्षद्म नाम का सहारा क्यों लेना पड़ता है? आप अपने वास्तविक स्वरुप में आकार भी प्रवक्ता में हिस्सा ले सकती हैं! आप में काफी उंर्जा है. यदि इसको सकारात्मक दिशा में आप मोड़ पायें तो इस्लाम की काफी सेवा कर सकती हैं. अल्लाह आप को ज्ञान बक्शें.
    शिशिर चन्द्र
    कोसम्बा गुजरात——————–
    आपने मेरे कमेन्ट ध्यान से नहीं देखे मेने पहले ही लिखा था की में इस्लाम के मामलो की जानकार नहीं हूँ और जो भी कमेन्ट करती हूँ सिर्फ समन्वय बना रहे इसलिए करती हूँ में कभी किसी पर अनर्गल व्यक्तिगत ब्यान नहीं करती हूँ
    मुझे अफ़सोस है की प्रवक्ता पर इस कदर औछी टिप्पणिया भी होती हैं इस कारन मेने इस मुद्दे से खुद को अलग कर लिया था परन्तु इससे ये सिद्ध नहीं होता है की जो भी व्यक्ति किसी और धर्म की तारीफ करे उसके सन्दर्भ में इस तरह की टिपण्णी सही कहनी चाहिए मेरे कई मुस्लिम मित्र हैं जो हिन्दू धर्म की पैरवी करते हैं तो उनको हिन्दू नहीं कहा जाता है या इस प्रकार की घिर्नित टिप्पणिया नहीं दी जाती हैं में देवभूमि से हूँ यहाँ देवता निवास करते हैं यहाँ हिंदुत्व गुजरात से बेहतर है आपका उग्र स्वरुप हमारी समझ के बहार हे , खैर आप सब लोग मुझसे उम्र में बड़े हैं हो सकता है में कहीं उसकी तुलना में ज्ञान के मामले में कहीं न ठेरती हूँ, परन्तु मेरा मकसद किसी को गन्दी टिपण्णी करने का नहीं होता है न ही में करुँगी न ही मुझे किसी के दिल को दुखाना है यदि किसी को पीड़ा होती है तो में उस मामले से खुद को अलग करना उचित समझती हूँ , वेसे भी मुझे लगता है की प्रवक्ता पर हर बहस घूम फिर कर हिन्दू-मुस्लिम आदि विषय पर आ जाती है, तो अंतिम बार इस सम्बन्ध में टिपण्णी करते हुए की जितने व्यक्तियों ने भी मेरे संधर्भ में टिपण्णी की है wo खुद मूल्यांकन करे क्या इतनी उग्रता उचित है, और मेरी तरफ से यदी किसी को कोई दुःख हुआ हो तो में क्षमा चाहती हूँ ,
    …………………………. दीपा शर्मा

    • प्रिय दीपा जी लगता है आप मुझसे क्ष्ब्ध हो गयीं. आप अपनी कमियों पर ध्यान दें तो अच्छा रहता. आपने आपके हिंदुत्वत को गुजरात से बेहतर बताया है. क्या एक भूभाग को नीचा दिखाना उचित है? मैं छत्तीसगढ़ का रहने वाला हूँ. कृपया गुजरात पर कोई आक्षेप न करें. आपको नहीं लगता की इतनी लम्बी कहानी सी शक्ल के लेख सिर्फ कॉपी और पेस्ट करने से संभव है. आप वो लिंक दे देतीं तो शायद काफी रहता.आप के वजह से प्रवक्ता का पेज ही बड़ी मुश्किल से खुलता है. खैर आपकी हर टिप्पणी को ध्यान से पढता हूँ जो आपकी लिखी हुई है. कॉपी किये हुए भाग छोड़ देता हूँ.

      • मान्निये शिशिर जी
        कॉपी पेस्ट इसलिए करती हूँ ताकि समझ आ जाये किस बात का जवाब दिया है, महोदय आप कुछ उलझे हुए लगते हैं क्रप्या ये देखें ये आपने ही लिखा है ,
        शिशिर चन्द्र
        कोसम्बा गुजरात——————– अब अगर हमने आपको गुजरात का न समझा होता तो क्या करते , टिपण्णी करने से पहले अवलोकन कर लें की आपने पहले क्या लिखा है तो आपको झूट नहीं बोलना पड़ेगा की आप गुजरात से नहीं हो छत्तीसगढ़ से हो
        धन्यवाद ……………….. deepa sharma

        • दीपाजी क्या बात है. मेरे लगाये गए आरोपों का जवाब देने के बजाये उलटे मुझमे कमियां निकलने बैठ गए? जब मैंने स्पष्ट कर ही दिया है तो गलत ठहराने की क्या आवश्यकता है? क्या हर किसी को एक ही जगह रहना चाहिए? मैं छत्तीसगढ़ का ही रहने वाला हूँ और हाल ही में गुजरात आया हूँ. ठीक है. लेकिन क्या किसी भूभाग को नीचा दिखाना उचित है? तसलीमा नसरीन की लज्जा आपने पढ़ ली क्या? गुजरात को गाली देना फैशन बन गया है?

    • समझ नही आया की दीपा जी जाताना क्या चाहती है? मुझे बहुत दुःख हुआ आपकी इस टिप्पड़ी से की हिंदुत्वा गुजरात से बेहतर है. अरे मेरा कहना है की गुजरात हिंदुस्तान से बेहतर है लेकिन एसा कहकर मई अपने वतन को छोटा नही कह सकता मेरा देश मेरी जन मेरी शान है. लेकिन हिंदुस्तान में अगर कोई हिन्दू अपने को सुरक्छित समझता है तो वो जगह केवल गुजरात है. देश की हालत इसी होचुकी है की अगर अगले ५ साल कांग्रेसी सर्कार टिकी तो हमे हिंदुस्तान छोड़कर जाना होगा..

      आज गुजरात ही एक एसा राज्य है जहा पूर्ण गोरक्छा कानून है
      गुजरात में पूरी सरब बंदी है
      गुजरात के मुस्लिम देश में सबसे खुश मुस्लिम है [ देश के बाकि मुस्लिमो से औसत आय भी बहुत अधिक है]
      गुजरात का हर गो इन्टरनेट से जुदा है
      गुजरात के हर गो में २४ घंटे बिजली आती है
      गुजरात की रोड हिंदुस्तान में सबसे अच्छी रोड है
      गुजरात में प्रति व्यक्ति आय हिन्दुतान में सबसे ज्यादा है
      और भी बहुत सी बाते है जो मई यहाँ नहइ कह सकता लेख बहुत लम्बा होजायेगा…

      ये कमेन्ट भी टोपिक से हट कर है लेकिन मैंने केवल इसलिए लिखा क्यूंकि अपने गुजरात को बुरा कहा.. आपकी जानकारी के लिए मई गुजरती नही हु.

  23. एक बात साफ़-साफ़ समझ लेने की है कि——–
    # भारत में जिन पारिभाषिक शब्दों का विकास हुआ, उनमें से अनेकों हैं जिन के समानार्थक शब्द दूसरी भाषाओं में हैं ही नहीं. अतः उन शब्दों के अर्थ अनुवाद से नहीं समझे जा सकते.
    # अनेक शब्द ऐसे हैं जिनके अर्थ भारत के सन्दर्भ में कुछ और हैं तथा पश्चिमी जगत के लिए कुछ और.
    अतः यदि हम बात को सही समझने की इमानदार नीयत रखते हैं तो इन शब्दों के सही अर्थों को समझना होगा. विद्वान लेखक जाफरी जी के इस लेख से सम्बंधित जिस शब्द की चर्चा प्रासंगिक है वह है ”धर्म”. धर्म शब्द का अनुवाद करने का प्रयास कई गंभीर समस्याओं का जनक है. भारतीय सन्दर्भ में विकसित इस शब्द का अर्थ बड़ा व्यापक है. सम्प्रदाय, पंथ या मज़हब के अर्थ में इसका उपयोग करना एक नासमझी की बात है या फिर साजिश है.
    * आर्ष ग्रंथो, गीता आदि में एक भी स्थान पर नहीं कहा गया कि अमुक देवता या पुस्तक को मानना ज़रूरी है. केवल मानवीय, सात्विक गुणों के आचरण की बात कही गई है. यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रशाद, महर्षि अरविन्द, स्वामी विवेकानंद आदि ने हिन्दू धर्म को जीवन शिली माना है ; किसी भी प्रकार से यह कोई मज़हब या सम्प्रदाय नहीं है. याने संसार में धर्म केवल एक ही है जिसका नाम है ”सनातन या हिन्दू धर्म”. इसे हम वैदिक धर्म के नाम से भी जानते हैं. इसके इलावा संसार में सभी जो हैं वे सब सम्प्रदाय, मज़हब, पंथ, रिलिजन हैं.
    * पथ या सम्प्रदाय हम उन्हें कहते है जिनका कोई सस्थापक है, उनकी कोई पुस्तक है या पुस्तकें है. बौध, सिख, जैन, शैव, शाक्त, मुस्लिम, ईसाई आदि सभी सम्प्रदाय हैं. हम ये नहीं कह सकते कि बाईबल को माने बिना कोई ईसाई है, कुरआन को माने बिना मुसल्मान है, गुरु ग्रंथसाहिब को माने बिना सिख है. पर आप गीता, राम, कृष्ण, पुराणों को और यहाँ तक कि ईश्वर को माने बिना भी हिन्दू हो सकते हैं.
    ** दूसरी समझने की महत्वपूर्ण बात ये है कि संसार के सम्प्रदायों को हम दो भागों में बाँट सकते हैं. १. एक तो वे सारे जो भारतीय मूल के सम्प्रदाय हैं. इनकी ख़ास बात ये है कि ये सह अस्तित्व में विश्वास करते हैं. कुछ छोटे-मोटे अपवादों को छोड़कर सह अस्तित्व का सर्वमान्य सिद्धांत इन्हें साथ मिलकर अपना-अपना विकास करने का अवसर देता है.
    २. दूसरे वे सम्प्रदाय हैं जिन्हें हम सेमेटिक सम्प्रदाय या विदेशी सम्प्रदाय भी कह सकते हैं. ये सम्प्रदाय मानते हैं कि केवल उनका सम्प्रदाय ही सही है. दूसरे सम्प्रदाय की सम्पूर्ण समाप्ती इनका परम लक्ष्य है. इनके कारण संसार में पिछले २००० साल में करोड़ों लोगों पर अमानवीय अत्याचार हुए हैं. करोड़ों लोगों को निर्ममता पूर्वक केवल इसलिए मार दिया गया कि वे उनके सम्प्रदाय के नहीं हैं . आश्चर्यजनक विडंबना तो यह है कि पीड़ितों के लिए सूली पर चढ़ जानेवाले ईसा के नाम पर भी करोड़ों की हत्याएं हुईं. यूरोप का इतिहास इनके कारनामों से रंगा पडा है.
    इसी श्रेणी में एक और सम्प्रदाय को मैं गिनना चाहता हूँ और वह है साम्यवाद. इनकी भी एक पुस्तक है ‘दास कैपिटल’, इनका भी एक खुदा है ‘कार्ल मार्क्स’. ये भी सह अस्तित्व में विश्वास नहीं करते और अपने से असहमती रखनेवाले की पूरी समाप्ती का प्रयास करते हैं. इनकी इस प्रवृत्ती के भी असंख्य ऐतिहासिक प्रमाण हैं.
    दोनों विश्वयुद्धो से कहीं अधिक नरसंहार इन असहिष्णु सम्प्रदायों के कारण हुआ है. अतः मानवता के लिए आज ये एक बड़ा ख़तरा बने हुए हैं . श्री तवीर जाफरी जी ने जिस जेहादी हिंसा का वर्णन किया है, उसकी आधार भूमी इस्लाम की सेमेटिक सोच है.
    ## सन्देश ## धर्म शब्द का प्रयोग सम्प्रदाय के अर्थ में करना पूर्णतः अनुचित और अज्ञानता का प्रतीक है. इस गलत प्रयोग से अनेक समस्याओं का जन्म हो रहा है. पर जिनकी नीयत ही खराब ही, वे तो इस बात को समझ कर भी कहाँ मानने लगे. जिन्हें काम ही भारत को कमज़ोर करने का करना है, वे तो धर्म शब्द को बदनाम करने,निंदनीय बनाने में कोई क़सर नहीं छोड़ेंगे. पर सही सोच के ईमानदार लोगों को धर्म, सम्प्रदाय के व भारतीय तथा विदेशी सम्प्रदायों के अंतर को समझना चाहिए, सही अर्थों में इन शब्दों का प्रयोग करना चाहिए.

    * कुछ लोग (विशेष कर ‘घोस्ट’ यानी प्रेत लेखक, गुप्त नाम से लिखने वाले शरारती तत्व ) कही बात के अर्थ शायद जान-बुझ कर गलत समझते हैं. एक ने स्वामी विवेकानंद जी के बारे में मुझे गलत उधृत कर दिया. शायद ऐसा जानबूझकर भी गलत नीयत से किया जाता हो. मुझे नहीं लगता की प्रेत लेखन करने वालों या वालियों का कोई नोटिस लेना चाहिए. वर्तमान परिस्थितियों में तो जो भी भारत-भारतीयता के हित में लेखन करेगा, उसपर प्रत्यक्ष,परोक्ष प्रबल प्रहार होने निश्चित हैं. अतः यह सब तो चलेगा ही.

  24. किसी भी धर्म/मज़हब/रिलिजन को २ -दो निकषों(कसौटियों ) पर परखना चाहिए।
    (१) एक=> वह अपने अनुयायियों की Spiritual-आध्यात्मिक या आत्मिक उन्नति करने में सफल है या नहीं? उसके मार्ग दिखाता है, या नहीं?।{जो भी मानना हो माने, कोई फर्क नहीं} उन्नति होनी चाहिए।
    और दो (२)=> इस संसारमें अन्य धर्मावलंबियों और अन्य सभी के साथ, बंधु भावसे, भाई चारेसे रहना सीखाता है या नहीं? {जो मानना हो वह माने} शाम्ति से रहता है या नहीं? मुख्य है।
    बस इन दो कैटेगरियों मे १०- १० में से गुण दीजिए। (कुल २०)
    अब देखिए (अ) हिंदू,(आ) बौद्ध,(इ) जैन,(ई) सिख्ख,(उ) इस्लाम,(ऊ) यहुदि, (ए) इसाई (ऐ) पारसिक इस निकष पर कैसे और कितने खरे उतरते हैं?
    आध्यात्मिक उन्नति (१०) और भाईचारा(१०), हर धर्म/मज़हब/रिलीजन को गुण दीजिए। आप जान जाएंगे। जैसे आप जीना चाहते हैं, तो जीनेका हक सभीको दीजिए। सभीको समान ट्रिट कीजिए।

  25. ये उम्र कैरंवी का बड़ा भय है भए,
    क्या बात है जो भी सची बात कहता है दुष्प्रचार का शिकार हो जाता है, महोदय उसकी असलियत पुचो , दुष्प्रचार न करो, लोग समझते हैं सब आपकी बातें कितनी सच हैं जी,
    इसलिए सबका पता लिखना अनिवार्य कर दो ताकि तुम लोग बाद में दांत वांट तोड़ सको भी, अब जल भुनकर रह जाते हो जवाब दे नहीं पते हो,
    पता लिया करें संपादक जी, क्योंकि आप ये अच नहीं कर रहें हैं .
    व्यक्तिगत टिपण्णी प्रकाशित हो रही हैं जो की अच नहीं है इससे बहस की मर्यादा ख़त्म हो रही है, मेरा निवेदन है की किसी पर की गयी व्यक्तिगत टिपण्णी और मुद्दे की बहार की बात को प्रकाशित न किया जाये….
    इस पर ध्यान न दिया गया तो हमारी बहने यहाँ टिपण्णी करना छोड़ देंगी आपसे निवेदन है की अपनी साईट की गरिमा बनाये रखें…….
    आप के उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी…
    अगर उम्र, सलीम, जमाल, मिर्ज़ा, भी कुछ कहते हैं तो उनको भी कहना चाहिए परन्तु व्यक्तिगत टिपण्णी का क्या औचितय है,
    यहाँ आपका द्रष्टिकोण हमको अच्छा नहीं लगा
    महोदय से विनती है इस ओर ध्यान देंगे

      • शिशिर जी—
        ऐसे छद्मनामियों से हमे छुटकारा प्राप्त होना, लगभग असंभव हैं। “अपने आपको सच” घोषित यही करेंगे, जैसे बाकी सारे झूठ लिख रहे हैं। नाम भी क्या धारण करते हैं—sachi baat? जैसे बाकी सभी “zuthi baat” लिख रहे हैं।
        यह इनकी विचारधारा की ही सीमा है। अंडेसे बाहर निकल कर देख ही नहीं सकते।अंडा भी किसी “धर्म ग्रंथका” बना हुआ है। Verses की शृंखलासे जो जकडे गए हैं, जिनका चिंतन भी इस धरती पर मुक्त नहीं, वे क्या खाककी मुक्ति आसमानमें पाने वाले हैं? कठघरे के पीछे खडे हुए प्राणी, कल यूं सोचने लगे, कि, बाहर विचरते मनुष्य सारे बंदी है, तो आप क्या कहेंगे?
        सौभाग्यसे सारे ऐसे नहीं है।
        मैं ऐसी टिप्पणियों की ओर ध्यान ना देने में विश्वास करता हूं। पढनेवाले भी बुद्धिमान है। वे भी जानते हैं।
        बाकी अपनी सुविधा के अनुसार, डटे रहिए। आपका योगदान आवश्यक है। मत भेद हो, फिर भी आपकी बात मन गढंत नहीं होती।
        इनकी बुराइ तो हम भी चाहते नहीं है। बिसियों वेब्साइटें बन चुकी है,U S A और पश्चिममें, इनमें सुधार लाने के लिए, पर भारत में वोट बॅंक?
        “डटे रहिए”

      • महोदय,
        दीपा जी आप के विचार बहुत सुलझे हुए हैं. मुझे तो आपसे सीखना पड़ेगा. आप यदि देवनागरी स्क्रिप्ट में हिंदी लिखतीं तो अच्छा रहता. मै परीक्षा में आप की सफलता की कामना करता हूँ.,,,,,,
        ये भी आपका ही कथन है
        महोदय जब हम कही कसीस भी नेट्वोर्किंग में होते हैं तो वो एक परिवार जेसे लगने लगता है और छोटी मोती बातें होती ही रहती हैं परन्तु इतना बुरा response और कट्टरता मेने अपनी जीवन में कहीं नहीं देखि है सवाल का जवाब देने की अपेक्षा इस प्रकार की स्तिथि उत्पान करना की व्यक्ति भाग ही जाये अछा नहीं है,
        शुभकामनाओ के साथ

  26. ॥ विवेकानंदजी ने कहां, किस के सामने, और क्या कहा?-इस का संदर्भ जाने॥
    नहीं तो उनकी वाणीमें आपको अंतर्विरोध (Contradiction) प्रतीत होगा॥—
    बहुतों ने विवेकानंदजी को उद्धृत किया है, उद्धरण सही होते हुए भी परिप्रेक्ष्य़ गलत है।
    हर कोई को सीखा ने का, उन का उद्देश्य था।हिंदू, अन्यों से (इस्लाम से, इसाइयत से, इ.) क्या सीख सकता है, वह हिंदु को बताते थे। पाश्चिमात्य, भारत से क्या सीखें? वह उनको बताते थे।
    विवेकानंद जी ने (१) हिंदुओं के सामने व्याख्यान देते समय, इस्लाम की अच्छाइयों से सीखने योग्य पाठ दिखाए थे। (२) वैसे ही अमरिका में वहां के नागरिकों को भारत से और हिंदु धर्म से क्या सीखा जा सकता है, वह बताया था। (३) इस से विपरित जब भारत में बोलते थे, तो सर्व साधारण हिंदु को पश्चिम की अच्छायियोंके विषयमें सीखने की बाते होती थी।
    महान व्यक्तित्व थे वें, हर स्थान पर, श्रोताओं को ध्यान में रखकर उन के लिए श्रेयस्कर बोलते थे। कभी स्वाभिमान, अस्मिता, आत्म-गौरव, और देश भक्ति जगाने के लिए भारतकी गौरव पूर्ण बाते भी हिंदुको बताते थे। यह स्वाभाविक भी है।
    जैसे-जब, आपका बेटा असफल हो कर आता है, तो उसे आप उत्साह दिलाने के लिए उसीके पूर्व पराक्रम, सफलताएं, स्मरण कराते हैं। उत्साह जगाकर कर्म प्रवण कर आगे बढनेका मार्ग इंगित करते हैं, और जब बडी सफलता प्राप्त कर गर्व करने लगता है, तो उसे भी आप कहते हैं, कि बेटा ऐसा गर्व ना कर, तुझे और भी बहुत कुछ सीखना है, तू परि पूर्ण नहीं है।–उद्धरण, संदर्भ बिना अर्थ व्यक्त नहीं कर सकते,–ऐसी बहस सच्चायी की खोज, नहीं कर सकती।
    ॥आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः॥—ऋग्वेद का कथन है–कि,
    ==श्रेष्ठतम विचार प्रत्येक दिशासे हमारी ओर आते रहें==यही विवेकानंदजी का प्रेरणा स्रोत प्रतीत होता है।

  27. रविन्द्र जी आप ने अपने विचारों से काफी प्रभावित किया है. आप के विचार न केवल उत्तेजक और प्रासंगिक हैं, अपितु आँखें खोलने वाला भी है. आप इस्लाम धर्म के अनुयायीओं को सही मार्गदर्शन का सामर्थ्य रखते है.
    भारतीय मुसलमानों को सुधार की प्रक्रिया तेज करनी होगी. अन्यथा यह धर्म विनाश की ओर उद्यत है. पैगम्बर मोहम्मद द्वारा बताई गई काल्पनिक और बेकार की बातों से मुसलमानों को बहार निकलना होगा. पैगम्बर हजरत ने अरब की शानदार संस्कृति को बर्बाद कर दिया. दुनिया को नास्तिकता की सीख अरब की संस्कृति ने ही दिया था. कार्ल मार्क्स तो बाद में पैदा हुए. तात्कालिक फायदे के लिए स्वार्थी ताकतों ने इस्लाम अपना लिया. अन्यथा पैगम्बर हजरत की करारी हार सुनिश्चित थी.पैगम्बर हजरत ने अपने धर्म के प्रचार के लिए लाखों अरबों को मौत के घाट उतर दिया था. लाशों पर खड़ा हुआ धर्म शान्ति और सद्भाव का क्या उपदेश देगा? लाशों की ही राजनीती करेगा. मूल अरब सभ्यता में कई दोष थे लेकिन यह इस्लाम के दोषों से मुक्त था. इसमें वैज्ञानिकता को badhava दिया jata था. atadhik hinsa ही मूल अरब का mukhya दोष था. jisko इस्लाम ने hu ba hu sweekar कर लिया. aaj भी अरब deshon और इस्लाम के kanoon himsa को ही mukhya astra banaye हुए है.

  28. रविन्द्र नाथ जी ! अभिनन्दन स्वीकार करें. देश के गुप्त शत्रुओं को प्रमाणिक जवाब देने की आपकी क्षमता प्रशंसनीय है. ईश्वर आपको और अधिक सामर्थ्य प्रदान करे. ये दानवी लोग बुझते दीपक के सामान अंतिम छट पटाहट प्रदर्शित कर रहे हैं. इन देशद्रोहियों और विदेशी दुश्मनों की आयु अब दो साल से कम रह गई है. इस बहु आयामी संघर्ष में आप सरीखों का बहुमूल्य योगदान बड़ा महत्व पूर्ण सिद्ध होगा.
    * आर. ए. अंसारी सरीखे मुस्लिम भाईयों को पढ़ कर लगता है कि देश में उन जैसे देशभक्त मुस्लिम भाई भी हैं. उन्हें मेरा नमस्कार.
    * भाई बी.एन. शर्मा जी ने कमाल की खोज की है. दीपा शर्मा के तर्क अतिवादी हिन्दू विरोधी व मुस्लिम आतंक के पक्ष में अंध पक्षपाती होते थे, अब समझ आया कि ये नाम भी देश के दुश्मनों का एक चेहरा है. शर्मा जी आपका न्याक्तीगत आभार व्यक्त करता हूँ.

  29. क्या आपको पता नहीं है की दीपा शर्मा उमर्कारानावी है .इसने कई नामों से दूसरे ब्लोगों पर कमेन्ट देने का काम शुरू कर दिया है .जैसे दीपा शर्मा ,सत्य गौतम ,कामादार्शी नवल किशोर आदि .इसका काम धर्मांतरण कराना है .यह अक्सर दो तीन किताबों से ही कोपी करके कमेन्ट करता है .जैसे अंतिम अवतार ,इस्लाम इन हिन्दी ,हिन्दू ग्रन्थ आदि .इसके इश्तेदार पाकिस्तान में हैं …… .कैरान्वी का पूरा गिरोह जासूसी भी करता है ,जिसके लिए इन्हें कई जगहों से रुपया मिलाता है इसलिए इन लोगों की बातों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए ……

    • अच्छा किया, आपने बता दिया। ऐसा संदेह कुछ हो ही रहा था। जैसी भद्दी भाषा के प्रयोगसे, और कुछ तर्करहित, और लेख के अलिखित बिंदुओंको घसीटकर चर्चा में खींच लाने से, संदेह भी, हो रहा था। और भाषा भी स्त्री-सुलभ नम्रतासे प्रायोजित नहीं होती थी। ऐसे दांभिक-विवादी व्यक्ति को घास ना डाले, यह सभी टिप्पणीकारों से बिनती।

      • आदरणीय मधुसुधन जी ,
        आप एक उस जगह को इंगित कर सकते हैं जहाँ मेरा कमेन्ट मर्यादित नहीं है , या मेने अभद्र भाषा का प्रयोग किया है , कम से कम आप जेसे विद्वान से तो इतनी हलकी टिपण्णी की उम्मीद नहीं कर रही थी,
        ………….अशिर्वदाभिलासी दीपा शर्मा , धर्मपुर , देहरादून

  30. एक बात जो इस्लाम में बहस का मुद्दा हो सकती है या कहुं की सरे मज़हब का सुधर कर सकती है की क्या कुरआन और शरियत के बहार जाया जा सकता है क्या आज के समय के हिसाब से चला जा सकता है , तो में यही कहूँगा ( चाहे इसके बाद मेरे खिलाफ फतवों की बारिश भी हो जाये ) हाँ बिलकुल जाना चाहिए , और ये मुहम्मद सल्लालाहू अ.व ने भी कहा था की जब किसी नतीजे पर न जा सको तो अपने दिमाग से काम लेना हो सकता है हर बात का जवाब कुरान या हदीस न दे पाए,
    एक समय जो इस्लाम का सुनहरा दौर कहा जाता है उस वक्त तब एक शब्द का ज्यादा इस्तेमाल होता था एवं उसे ‘इज्तीहाद कहा जाता था। इस शब्द का अर्थ है स्वतंत्र चिन्तन। व्यवहार में यह शब्द हर आदमी औरत को यह आज़ादी देता था कि वे महजबी सीखों को आज के दौर की कसौटी पर कसें एवं फिर उन पर अमल करें। किन्तु जैसे-जैसे मुस्लिम साम्राज्य स्पेन से बगदाद तक फैला मुफ्तियों ने इस सल्तनत की रक्षा के लिए स्वतंत्र चिन्तन के द्वार बन्द कर दिये। इस तर्क एवं चिन्तन का स्थान फतवों ने ले लिया एवं मुसलमानों को सिखाया गया कि वे खुद सोचने की जगह इन फतवों पर अमल करें। इस्लाम के वर्तमान युग की त्रासदी यही है कि मुसलमान अपने दिमाग में उठने वाले सवालों को खुले में उठाने से डरते हैं एवं मुल्ला मौलवियों द्वारा जो कुछ भी कहा जाता है उस पर अमल करते हैं।
    और यही सरे फसाद की जड़ है ,
    मेरा सभी मुसलमान भाई और बहनों से निवेदन है की ज़रा इस बात पर ज़रूर गौर करें
    *********************************************************************
    अगर हम अपने उलेमा , राजनीतिज्ञों एवं मुल्लावों की तकरीरों को सुने
    तो वे हमेशा पश्चिमी सभ्यता के खोट गिनाते दिखेंगे किन्तु वही मुल्ला एवं पालिटीशियन अपने बच्चों को अमेरिका के स्कूल एवं कॉलेजों में दाखिले के लिए जमीन आसमान एक किये रहते हैं। तमाम अमीर मुसलमान परिवार पश्चिम में छुट्टियाँ मनाते नजर आते हैं। यहाँ तक कि धन से भरपूर खाड़ी के देशों में भी वहाँ की अवाम अपने को सोने के पिंजरे में बन्द महसूस करती है। आखिर क्या वजह है कि इस्लाम रचनात्मकता, नई सोच और मानवाधिकारों का गला घोटने वाला मजहब बन गया है। पाकिस्तान १९४७ में वजूद में आया था लेकिन एक साल बाद जन्म लेने वाले इजराइल से कहीं पीछे रह गया है।
    इस्लाम के पिछड़ेपन की एक बड़ी वजह यह भी है कि इस मजहब का जन्म अरब में हुआ जहाँ घुमन्तु रेगिस्तानी कबीले रहा करते थे। कबीलों की एक विशेष संस्कृति होती है। उनका अस्तित्व किसी शेख का हुकुम मानने पर निर्भर करता है। वहाँ मर्द राज करता है एवं औरत की कोई अहमियत नहीं होती।
    आज भी अरब लोग खुद को असली मुसलमान और बाकी इस्लामी दुनिया को धर्मान्तरित मुसलमान समझते हैं। बाकी दुनिया के मुसलमान भी इसी अरबी मानसिकता को पालने एवं रीति रिवाजों की नकल करना चाहते हैं। मांजी का मत है कि मुस्लिम जगत पर औरतों की यह पकड़ दुनिया का सबसे बड़ा उपनिवेशवाद है। इक्कीसवीं सदी में जरूरत इस बात की है कि दुनिया के बाकी मुसलमान अरबों की इस कबीलाई सोच एवं रीति रिवाजों से छुटकारा पायें।
    हम अरबी मुसलमान नहीं हैं हम हिन्दुस्तानी मुसलमान हैं और हमको चाहिए की जो रिवाज हमारे हैं अगर हम गोर करें तो कहीं भी इस्लाम के खिलाफ नहीं हैं बल्कि अरब मुल्कों से कहीं ज्यादा बेहतर हमारे मुल्क के रिवाज हैं हमको खुद को अपने मज़हबी दायरे में रहकर खुद में बदलाव लाना चाहिए जो आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है …………….
    अगर किसी को मेरी बात से दुःख या टेस लगे तो माफ़ करना लेकिन हकीकत से मुहं छुपाना कायरता होती है ………………………
    इल्तिमसे दुआ , आर . ऐ . अंसारी …………..

  31. मेरे हिसाब से मुसलमानों के साथ जो मैं दिक्कते हैं वो मज़हब की नहीं बल्कि समझ की हैं हम लोग दिमाग से काम लेना ही नहीं चाहते हैं सिर्फ लकीर के फकीर बने रहना चाहते हैं, कुछ बेबुनियाद सी कहानिया हैं जो सुनते रहतें है जिनका आज के दौर में कोइ मतलब ही नहीं है , निचे लिखे हुए कमेन्ट के हिसाब से कुछ बुनयादी बातें जो मुसलमान नहीं समझ पा रहे हैं वो ये हो सकती हैं ………..
    १- कोई भी मुसलमानों में समाज सुधारक नहीं बन पाता है इसकी एक वजह है की परंपरागत उलेमा हमेशा से सामाजिक सुधारों का विरोध करते रहे हैं. कुरान की कुछ चुनी हुई आयतों और हदीस के गलत उद्वरणों का इस्तेमाल वे अपने लिए मुस्लिम समाज का समर्थन जुटाने या पाने के लिए करते रहे हैं. वे अक्सर समाज सुधारकों को काफिर या मुल्हिद या प्रकृति पूजक करार देते हैं. उनके खिलाफ फतवा जारी हो जाने के बाद समाज सुधारकों की जिंदगी बहुत मुश्किल हो जाती है. वे अकेले पड़ जाते हैं और अपने काम को आगे नहीं बढ़ा पाते. इतिहास गवाह है कि इस्लामिक समाज सुधारकों को हमेशा से इस परेशानी का सामना करना पड़ा है, विशेषकर 19वीं सदी में, जब ब्रिटिश शासन के दौरान ”उन्नत” पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से कई समाज-सुधार आंदोलन शुरू हुए.

    यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि समाज सुधार से हमारा क्या आशय है. जैसे ही कोई समाज सुधार की बात करता है, उस पर यह आरोप चस्पा कर दिया जाता है कि वो ”दैवीय” शरीयत को बदलना चाहता है और दैवीय कानून को बदलना, अल्लाह की हुक्मउदूली करना है. इस तर्क से, वो उसको मुसलमान होने की हद से बहार कर देते हैं ……..
    २. इस्लाम में मौलानाओं और मौलवियों ने मुसलमानों की भावनाओं का इस्तेमाल उन पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए किया और मज़हब , मुसलमानों की भावनाओं को जागृत करने का सबसे प्रभावी माध्यम था. सच तो यह है कि कोई भी सच्चा मज़हबी व्यक्ति हमेशा तर्क और गंभीर चिन्तन के बाद किसी नतीजे पर पहुंचता है. कुरान बार-बार मज़हब में विश्वास करने वालों और विश्वास न करने वालों को भी विचार और चिंतन करने के लिए कहती है (6:50, 7:184).
    लेकिन उलेंमा , मोलवी, ने लंबे समय से आम मुसलमानों के दिलो-दिमाग पर कब्जा जमा रखा है और उन्हें ऐसा लगता है कि किसी भी बदलाव से नया मज़हबी नेतृत्व उभर सकता है और उनकी कुर्सी खतरे में पड़ सकती है. वे अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए हर बदलाव का विरोध करते हैं, और लोगों को प्रभावित करने के लिए वे इस विरोध को मज़हबी रंग दे देते हैं और कुरआन का मनमाने ढंग से विश्लेषण करते हैं
    आज ज़रूरत है इन लोगों की मुखालफत की जानी चाहिए न की हिन्दुज्म की कमी तलाशनी चाहिए , अगर हिन्दुज्म में कमियां थी भी तो उनमे समय के साथ सुधर हुआ है लेकिन इस्लाम में प्रक्टिकली कोई बदलाव नहीं आया है जो दुःख की बात है, अभी भी वक्त है अगर अब भी न होश आया तो कभी नहीं आएगा

  32. अस्सलाम वालेकुम,
    में तनवीर जी को उनके बेहतरीन कलम की मुबारकबाद देता हूँ जो उन्होंने इतनी साफगोई से लिखा है में कुछ कहना चाहूँगा लेकिन सभी लोगो से मेरी गुज़ारिश है की वो इस बात पर ध्यान ज़रूर दें और मज़हब के दायरे से बहार आकर जवाब दें ,
    १- में एक हिन्दुस्तानी हूँ जो की मुसलमान है इस पर भी ध्यान दें की में पहले हिन्दुस्तानी हूँ फिर मुसलमान हूँ और इस बात पर मुझे फख्र है
    २- मेरा अपना ये मानना है की भारत में इस्लाम और मुसलमान कोम को जितना नुक्सान खुद मुसलमानों ने दिया है उतना किसी और कोम या किसी ने भी नहीं दिया है इसकी कुछ उदाहरण ये हैं की –
    १ जमा मस्जिद देहली के इमाम साहब जो अब गुज़र चुके हैं अल्लाह उनको बख्शे कहते हैं की में I .S .I का सबसे बड़ा AGENT हूँ मुझे गिरफ्तार कर के दिखाओ , मुझे उनकी अकाल पर तरस आता है और ये भी हैरानी होती है की वो इस बात से कोन सा भला करने वाले थे, उनका वोट देने का फतवा भी जहालत की अलामत ही था , हो सकता है मेरे कुछ मुस्लिम भाइयों को ये बात पसंद न आये लेकिन ये हकीकत है ,
    २, आज़म खान – इस आदमी ने कहा की भारत माँ डायन है और मुझे शर्म आती है की एक भी फतवा इसके खिलाफ जारी नहीं हुआ आज भी ये खुल्ले सांड की तरह घूम रहा है और निकम्मी सरकारों ने कुछ नहीं किया ये लोग सिर्फ फसादी लोग हैं जिनकी वजह से पूरा मज़हब शर्मिंदा होता है
    ३. शाहिद सिद्दीकी – UP से सांसद बुश के सर पर इनाम
    ४. मकबूल फ़िदा हुसैन
    ५. सिमी के हजारों कार्यकर्ता
    ६, अफज़ल गुरु जेसे कमीने लोग, जिनके खिलाफ कोई फतवा जारी नहीं होता , अगर होता है तो सिर्फ कोम की लड़कियों के लिए होता है
    नोट- हो सकता है कुछ लोग ये भी कहें की इस्लाम आतंक नहीं सिखाता है , ठीक है कोई मज़हब भी आतंक नहीं सिखाता है लेकिन प्रक्टिकल POSITION क्या है वो भी तो देखना चाहिए , सिख आतंक हुआ था, उनके धर्मगुरों ने सारी स्तिथि संभल ली थी उन लोगो ने अपनी कोम को सुधार , लेकिन हमारे यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं होता है ,
    कुर्बानी सिर्फ जानवरों को जिबह करना ही नहीं है इनको चाहिए की आगे आयें और आतंक के खिलाफ लड़ें लेकिन ये लोग ऐसा नहीं करेंगे आज का युवा मुसलमान इस सबसे कितना विचलित है ये हमसे पूछो,
    जब इस्लाम के नाम पर खून बहाया जा रहा है तो ये भी मुसलमानों की ही ज़िम्मेदारी है की वो इसके खिलाफ लड़ें अगर हम नहीं विरोध करतें हैं तो फिर ये कहना गलत नहीं होगा की हम उसका समर्थन कर रहें हैं , चुनना हमको है की हमको जिन्ना बनना है या कलाम, ये सब कुछ अपवादों को छोड़कर, वो भी इसलिए की आज हालत खराब हैं, कहना की भारत में भेदभाव होता है मुस्लिमो के साथ, देशद्रोह है,
    हमारे साथ एक समस्या और है एक तो कोई हमारा रहनुमा या सालार नहीं है अगर कोई बनता भी है और जायज़ बात कहने की हिम्मत करता भी है तो उसको हिंदूवादी संघ आदि का AGENT बता दिया जाता है , लेकिन हम इस सबसे अपनी जान नहीं बचा सकते हैं अब समय आ गया है की मुस्लिमो को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी , और इन सब के बारे में कोइ ठोस कदम बढ़ाना होगा अगर हम हिन्दुस्तानी है तो……………………
    वरना फिरकापरस्तों के लिए ६० साल पहले जो दोज़ख बना था उनको वहीँ चले जाना चाहिए ……………………….
    आगे भी जारी रहेगा, खुदा ने भी उस कोम की आज तक हालत नहीं बदली जिसको अपनी हालत बदलने का कोई जज्बा ही न हो …………..
    अल्लाह हाफिज़ , जय हिंद

    • ansari ji apko sadar naman …
      apke vicharo ko sunkar bahut accha lag rha hai kash ap jaisi soch desh ki muslim kaum ke 5% log bhi bana le to hum bahut aage tak jayenge.

    • Asslamualikum..

      Ansari g me aap se kehna chahta hu ki aap sahi aur galat me kya farq bata sakte he. aap khud ek muslman hoker jo bachpan se bacho ko sikhaya jata he “Asslam” wo hi aap ko sahi malom nahi he aur aap batein itni lambi lambi ker rahe ho “अस्सलाम वालेकुम,” ye kon sa Asslam he. Mujhe sharm aati he aise muslmano per jo itni umar hone per bhi islam ke basic bhi nahi jante. ye “Asslam walikum” nahi hota he “Asslamu Alikum” hota he.

      “WAMA ALINA ILLAL BLAG”

  33. महोदय.
    आप लोगो को आपकी ही भाषा में जवाब मिला तो तड़प गए , महोदय मेने आप लोगो पे व्यक्तिगत टिपण्णी नहीं की लेकिन आप लोगो NE YE KARKE उसी संस्कृति का परिचय दिया है जो ८५ साल से भारत को खोखला कर रही है, झूठा इतिहास, जूठा राष्ट्रवाद , और कतिथ नारी सम्मान, अगर आप में बहस करने का सहास और धैर्य नहीं है तो फिर न करा करे ………………..
    दीपा शर्मा

  34. dr rajesh kapor ji. you are most welcome for your comments on me and my comments. i am very happy to know about your serious though about hindutava and opinion about islam. i have also a limitation kapoor ji. but i am unhappy and dissident with present system and arrangement. it’s going in a wrong way. but i am proud that there are such brave people who express themselves in right direction and without fear. they must try to make a consensus for their opinion. i like the thought of EVM. this is our main enimy. but it is not enimy of india but also the UK, France, Germany and other european country too. muslims are using democracy/ EVM like a tool against nonmuslims. we must be alert for their ill strategy. non muslims come strictly with muslims for any walk of life if they want to make a chaos or turbulence in any level. we must be catious and vigil. non muslims must try to make musims modern. this is their main responsibility if they want to serve for mankind. there must be strictly watch on Madarasa and other fundamentlist education. extra judicial system of muslims must be collapsed by laws and strictly compliance must be adhere. i think modernization of islam is a unique way to make them good human being and it must be started from nonmuslim countries like India. even india must think about banning the weil like France.

  35. श्रीयुत सुरेश चिपलूनकर जी ! सशक्त.स्पष्ट, दोटूक, सोत्साहक टिप्पणी के लिए धन्यवाद. ऐसा नहीं की गिनती में कम पड़ने के कारण हम में से किसी एक का भी संघर्ष का उत्साह कम पड़ जाएगा, किन्तु समर्थक स्वरों से सन्देश मिलता है, पता चलता है कि कितने लोग हैं जो मैकाले के मानस पुत्र नहीं, आस्तीन का सांप बन कर देश को डंसने का काम नहीं कर रहे. उनकी औसत संख्या का अनुमान होता है. देशभक्तों के प्रोत्साहन के लिए सही सन्देश जाना ही चाहिए कि हम सब सही सोच वाले साथ हैं.
    ## आपके एक लेख में द्वारा उठाया गया ‘ई.वी.एम् ‘ का मुद्दा बहुत बड़े राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा है. लोकतंत्र के अस्तित्व का प्रश्न है. इतना बड़ा विषय उपेक्षित क्यों हो गया. इसका महत्व मजहबी आतंकवाद से कहीं अधिक बड़ा है, क्योंकी सता से ही तो इन लोगों को ताकत मिलती है और सत्ता पर इनके देश के दुश्मनों के कब्जे को ये मतदान की मशीनें सुनिश्चित करती हैं. इसे बात को प्रभावी ढंग से उठाये जाने की ज़रूरत है. यह कैसे होगा ? ##
    रविन्द्र जी, आपने तो एक वाक्य में ही बहुत कुछ कह दिया. आगे भी यूँ ही जारी रहे.

  36. deepa tu darpok hai himmat hai to samne aa. dekhata hun kitna dam hai tere mei. Hindu dharm kabhi na khatm hone vali chig hai. hamne sapon ko dudh bhi pilate hai agar vo phupkare to uska badh bhi karte hai.

    Musalman yah kahta hai hum khuda ki ibadat karte hai. hindu to kafir hai. Jis aalaa tala per garv hai rahna chahiye magar hindu bhi khuda ki puja karta hai
    murti pooja to class kg 1 hai,

    क़ष्‍ण ने गीता में क्‍या कहा है
    मत्‍तह पर तरं नास्ति किंचदअस्ति धनंजयह
    सर्वजगत मया प्रोतं सूत्रे मणिगणायइव
    जर्रे जरें में खुदा है हिन्‍ूद को भी पता है सिर्फ मूर्तिपूजा से वो काफिर नही होता
    हिन्‍दू धर्म को इस्‍लाम वालों ने समझा ही नही हैा

    जो धर्म सबमें खुदा को नही देख सकता वो धर्म नही होता
    जो मुसलमान के अतिरिक्‍त सबकों मारने को कहता है क्‍या उसे धारण किया जा सकता हैा
    क्‍या खुदा मुसलमान के अंदर ही होता है
    हिन्‍दू के अंदर नहीा

    इस्‍लाम तो बहुत ……………..

  37. स्नेहिल दीपाजी ! आपको शिकायत है कि आप द्वारा दिए ऐतिहासक तथ्यों और प्रमाणों पर मैंने क्यों ध्यान नहीं दिया. आपको नहीं लगता कि आप को जो प्रमाण मैंने दिए उनका कोई नोटिस आपने नहीं लिया. मेरा आग्रह है कि एक बार पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर उन्हें पढ़ लें, केवल जवाब देने और उनका खंडन करने की भूमिका से नहीं. आशा है कि आपको पढ़ कर कुछ नई बातें ध्यान में आयेंगी. फिर एक बार नए सिरे से विचार करिएगा. उसके बाद आपके दिए तथ्यों व प्रमाणों पर भी बात करेंगे. मेरी शुभकामनाएं और आशीर्वाद!

    • आदरणीय गुप्ता जी,
      आपने कहा, “…इस्लाम की प्रशंसा करने का अतिवादी दुराग्रह और भारत को बुरा कहने का एकांगी, “विक्षिप्तता की सीमा तक बढ़ा हुआ दुराग्रह”; ऐसे लोगों से कैसे संवाद हो, यह नहीं समझ पा रहा था. भारत के पक्ष का हर तर्क उनके सर के ऊपर से गुज़र जाता है. भारत में बुराईयों के सिवा उन्हें कुछ नज़र ही नहीं आता. ऐसा कैसे हो सकता है की भारत की कोई अछाईयाँ हों ही नहीं ? याने ऐसे लोग भारत विरोध की कसम खाए बैठे हैं.…”

      यही एक हकीकत है… जिसे सो कॉल्ड “गंगा-जमनी” टाइप के लोग समझ नहीं पाते और महेश भट्ट बन जाते हैं… 🙂 🙂

      • suresh chiplunakar ji aap ke neerbhik vicharon ke liye aap badhai ke patra hain. aapka pravakta me swagat karte hain. muslim samaj ki buraiyon ko door karne ke liye aapki salah kaphi upyogi sabit ho sakti hai. mujhko lagta hai muslim samaj ek hathdharmi samaj hai jisse niptna aasan nahi hoga. inhone isi prithvi ke andar ek anya sansar bana liya hai. bharat ke muslim purnataya confused lagte hain. apne root ko chhorh nahi pa rahe hain aur arab ka moh bhi. in musalmanon ko khuda aasirwad de ki unki sochne aur samajhne ki shakti wapis aa jaye, jo paigambar mohammad ne satwin sadi me inse chhin li hai. aasha hai inhin ke beech se kitne tasleema nasreen, salmaan rushdi paida honge. jo islam ke vaicharik arajakata ko chunauti denge. islam sirf aur sift viddhansh kar sakta hai. nirman nahi kar sakta. aasha karta hoon ugrawado samuhon ki tarh islam ko bhi koi desh ban kare. islam sabyata ka dushman hai

  38. शिरीष जी, सही बात कहने के लिए आप में बड़ा धैर्य है. आप जितनी कन्विक्शन और नपे-तुले धग से अपनीं बात कह रहे हैं, उसके बाद नहीं लगता की कुछ और कहने की ज़रूरत है. मेरी शुभ कामनाएं !
    इस्लाम की प्रशंसा करने का अतिवादी दुराग्रह और भारत को बुरा कहने का एकांगी, विक्षिप्तता की सीमा तक बढ़ा हुआ दुराग्रह; ऐसे लोगों से कैसे संवाद हो, यह नहीं समझ पा रहा था. भारत के पक्ष का हर तर्क उनके सर के ऊपर से गुज़र जाता है. भारत में बुराईयों के सिवा उन्हें कुछ नज़र ही नहीं आता. ऐसा कैसे हो सकता है की भारत की कोई अछाईयाँ हों ही नहीं ? याने ऐसे लोग भारत विरोध की कसम खाए बैठे हैं. ऐसे लोगों के साथ भी आप धैर्य के साथ संवाद करते हैं, यह प्रशंसनीय है. असर होने की आशा तो नहीं पर अन्य पाठक भ्रमित होने से बच जायेंगे. मेरी शुभ कामनाएं !

    • आदरणीय गुप्ता जी,

      कृपया “इस्लाम” की विशेष जानकार(?) दीपा शर्मा जी से पूछिये कि – 1) क्या वे वाकई हिन्दू ही हैं? 2) क्या वाकई में वे लड़की ही हैं? 3) क्या उनकी यह तस्वीर असली है?

      हिन्दू विरोध, हिन्दुत्व विरोध और गैर-मुस्लिमों की सो कॉल्ड “गंगा-जमुनी संस्कृति” वाले कमेण्ट काफ़ी शंकास्पद हैं…

      साथ ही उनकी लेखन शैली, कथ्य और तथाकथित “तथ्य”(?) काफ़ी कुछ शक पैदा करते हैं और फ़िलहाल हिन्दी ब्लॉग जगत में जो “जेहादी गैंग” सक्रिय है, उससे मिलती-जुलती है… 🙂 🙂

      वरना बाद में पता चला कि हम खामखा पत्थर से माथाफ़ोड़ी कर रहे हैं… 🙂

      • सुरेश जी आपने सही पहचाना, यह जेहादी गैंग ही है।

      • Suresh ji, aapka mujh per persnol comment karna darshata he ki aap hatash hen aur mere answer par comment karne ke bajay mujh par comment kar rahe hain. Mahoday me apki hatasha samajh sakti hun. Lekin mene to usi shailee me answer diyen hen jo apki he. Mahoday agar aapne mere comment par dhyan diya hota to aisa na hota. Aapki profile ke anurup to aap nazar nahee aaye. Blogger ji, mahoday wese bhi jo bhi yahan sangh ki bhasha nahi bolta he aap use gair hindu ya jehadi ka fatwa dilwa hi dete hen. Mujhe hindu hone ka certificate aap logo se ni chaiye. Aap shayad maharashtr se lagte hen. Haha fhir to aapki baat ka bura manna bekar he.

        • EK HINDU LADKI KE NAME KI AAD LEKAR….LOGO KO KAB TAK BEWKOOF BANOGE….YAHI TUMHARA KAAM HAI, TUM LOGO KE YAHI PEHCHAAN HAI…

          HAMESHA JHOOT KA SAHARA….TUMKO SHAYAD NAHI PATA KI TUM LOGO KI HAR CHAAL LOGO KO SAMJH MAIN AATI HAI….

    • dr rajesh kapoor ji meri taariph ke liye main aapka shukriya ada karta hoon. main hindi me likhna chata tha lekin mera system mera saath nahi de raha hai. rajesh ji mere bahut saare muslim dost hain. aur mujhe apne tark bade dhairya se hi dene padte hain. main muslim basti me rahta hoon. jahan dange ki sambhawna kabhi bhi ban sakti hai. khair mujhe kabhi saamna nahi karna pada. lekin masjid ki aawaj aur musalmaanon ki sochne samjhne ki shakti ki shunyata mujhko aahat karti hai. muslims ka purnataya brain wash ho gaya rahta hai. madarse ki shiksha unme jahar ghol deti hai. sarkaaren mukdarshak bani hui hain.

  39. भाई इमरान जी ! सच को कहने के आपके अद्भुत साहस के लिए आपकाअभिनन्दन. आप सरीखे मुस्लिम भाईयों के प्रयास से शायद इस्लाम का चेहरा कुछ सुधर सके. सच पर परदे डाल कर भाईचारा स्थापित कने के ना समझ प्रयास तो अनेकों हुए हैं, पर वे न कभी सफल हुए और न कभी होंगे. सच को उद्घाटित करके ही समाधान संभव है, इस दिशा में आपका प्रयास अभिनंदनीय, प्रशंसनीय है. हम सब जानते हैं कि इसमें खतरे भी कम नहीं.

    • महोदय सत्य kehne me koi khatra nahi hota , aap jin खतरों से dara rahe ho wo sirf ek होव्वा है……….
      उससे अधिक तो जीवन में दिन भर खतरे आते ही रहते hain

  40. इस्लाम के बारे में अनेकों उद्धरण हमाँरे सामने हैं – पक्ष और विपक्ष में.
    एक प्रश्न ज़रूर करना चाहूँगा. इस्लाम के पक्ष में जिन महापुरुषों को उधृत किया जा रहा है, यदि उन्हें आप प्रमाण मानते हैं तो फिर उन्होंने इस्लाम के विरोध में जो कहा है, उसको आप प्रमाण क्यों नहीं मानते ? मीठा-मीठा हज़म, कड़वा-कड़वा थू. ये दोहरे माप दंड क्यों ? दोनों पक्षों का विश्लेषण करके सच तक पहुँचने के प्रयास उन्हें तो करने ही चाहियें जो सच की तलाश में हैं, पूर्वाग्रहों , दुराग्रहों के शिकार नहीं हैं.
    एक ही महान पुरुष के परस्पर विरोधी कथनों का कारण और सन्दर्भ तो समझने पड़ेंगे, अगर आप केवल अपनी बात को अंतिम सत्य मानने की तानाशाही मानसिकता के शिकार नहीं. या कलम / वाणी बिकी नहीं. ( कृपया बुरा न मानें, ऐसा होने के अनेक लिखित प्रमाण मेरे पास हैं, आपके पास भी होंगे.विश्व के अनेक देशों में यह चल रहा है. भारत में तो कुछ अधिक ही है.) हम इस बात को बार-बार गोल कर जाते हैं, उसपर पर्दा डालते जा रहे हैं कि इस्लामी बस्तियों या देशों में दूसरे सम्प्रदायों के लोग असुरक्षित क्यों हैं? उन्हें अपने सम्प्रदायों को मानने की आजादी क्यों नहीं , उनके ज़र, जोरू, ज़मीन ही नहीं, जीवन तक खतरे में क्यों हैं ?
    ** तनवीर जाफरी जी, राजीव जी, मो. इमरान जी तथा प्रो. मधु सूदन जी ने जो मुद्दे उठाये हैं, उनका तो किसी ने प्रमाणिक जवाब दिया नहीं. कथनों के जवाब में कुछ और कथन उधृत कर दिए.
    हमसे जवाब चाहिए तो इतना ही कहना काफी होना चाहिए, # सभी सम्प्रदायों को सामान मानने की परम्परा केवल भारत की है. अतः सबने अन्य पंथों के समान इस्लाम को भी भारत के दूसरे पंथों की तरह माना. पर जब व्यवहारिक कटु अनुभव सामने आये तो उन महान पुरुषों के विचार बदले और उन्हें कटु शब्द इस्लाम के बारे में कहने पड़े. # आप के पास है कोई जवाब कि प्रशंसा करने वाले इस्लाम को बाद में बुरा क्यों कहने लगे ?

    • महोदय आपसे निवेदन है की निसंकोच होकर कमेन्ट करें मुझे आपके कमेन्ट हमेशा पसंद आते है क्योंकी ये मेरे लिए चुनौती के सामान होते हैं और मुझे इन पर काफी मेहनत करनी पड़ती है उम्मीद करती हूँ आपका आशीर्वाद हमेशा ऐसे ही मुझे मिलता रहेगा ………………
      लेकिन महोदय मुझे आपसे एक शिकायत भी है की आप सिर्फ अपने मतलब के बातों पर ही ध्यान देते हैं मेने कई और कमेन्ट भी किये लेकिन आपने वहां कोई जवाब नहीं दिया जो की इतिहास पर आधारित थे…………
      महोदय एक बात और अगर आप ये विचारधारा के आधार पर लिखते हैं तो अफ़सोस होगा लेकिन अगर इसलिए लिखते हैं की मुसलमान जागरूक हों ( जो की असंभव है) तो बहुत प्रशसनीय बात है …………..
      महोदय में आपकी किसी बात से आहात नहीं होती इसलिए खेद प्रकट कभी न करें , हमारे देश में तो गाँधी जी सरीखे महा पुरुष को नहीं बख्शा गया है हम क्या औकात रखतें हैं ……………….
      महोदय आपका आभार प्रकट करते हुए आशीर्वाद दें की हम इसी प्रकार आपके मार्गदर्शन में रहें…………… दीपा शर्मा

  41. मुस्लिम जनसंख्या बढ़ने से होने वाले दुष्परिणाम

    जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी कहते हैं कि कुरान के अनुसार विश्व दो भागों में बँटा हुआ है, एक वह जो अल्लाह की तरफ़ हैं और दूसरा वे जो शैतान की तरफ़ हैं। देशो की सीमाओं को देखने का इस्लामिक नज़रिया कहता है कि विश्व में कुल मिलाकर सिर्फ़ दो खेमे हैं, पहला दार-उल-इस्लाम (यानी मुस्लिमों द्वारा शासित) और दार-उल-हर्ब (यानी “नास्तिकों” द्वारा शासित)। उनकी निगाह में नास्तिक का अर्थ है जो अल्लाह को नहीं मानता, क्योंकि विश्व के किसी भी धर्म के भगवानों को वे मान्यता ही नहीं देते हैं।
    इस्लाम सिर्फ़ एक धर्म ही नहीं है, असल में इस्लाम एक पूजापद्धति तो है ही, लेकिन उससे भी बढ़कर यह एक समूची “व्यवस्था” के रूप में मौजूद रहता है। इस्लाम की कई शाखायें जैसे धार्मिक, न्यायिक, राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सैनिक होती हैं। इन सभी शाखाओं में सबसे ऊपर, सबसे प्रमुख और सभी के लिये बन्धनकारी होती है धार्मिक शाखा, जिसकी सलाह या निर्देश (बल्कि आदेश) सभी धर्मावलम्बियों को मानना बाध्यकारी होता है। किसी भी देश, प्रदेश या क्षेत्र के “इस्लामीकरण” करने की एक प्रक्रिया है। जब भी किसी देश में मुस्लिम जनसंख्या एक विशेष अनुपात से ज्यादा हो जाती है तब वहाँ इस्लामिक आंदोलन शुरु होते हैं। शुरुआत में उस देश विशेष की राजनैतिक व्यवस्था सहिष्णु और बहु-सांस्कृतिकवादी बनकर मुसलमानों को अपना धर्म मानने, प्रचार करने की इजाजत दे देती है, उसके बाद इस्लाम की “अन्य शाखायें” उस व्यवस्था में अपनी टाँग अड़ाने लगती हैं। इसे समझने के लिये हम कई देशों का उदाहरण देखेंगे, आईये देखते हैं कि यह सारा “खेल” कैसे होता है
    जब तक मुस्लिमों की जनसंख्या किसी देश/प्रदेश/क्षेत्र में लगभग 2% के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानूनपसन्द अल्पसंख्यक बनकर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते, जैसे –
    अमेरिका – मुस्लिम 0.6%
    ऑस्ट्रेलिया – मुस्लिम 1.5%
    कनाडा – मुस्लिम 1.9%
    चीन – मुस्लिम 1.8%
    इटली – मुस्लिम 1.5%
    नॉर्वे – मुस्लिम 1.8%
    जब मुस्लिम जनसंख्या 2% से 5% के बीच तक पहुँच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलम्बियों में अपना “धर्मप्रचार” शुरु कर देते हैं, जिनमें अक्सर समाज का निचला तबका और अन्य धर्मों से असंतुष्ट हुए लोग होते हैं, जैसे कि –
    डेनमार्क – मुस्लिम 2%
    जर्मनी – मुस्लिम 3.7%
    ब्रिटेन – मुस्लिम 2.7%
    स्पेन – मुस्लिम 4%
    थाईलैण्ड – मुस्लिम 4.6%
    मुस्लिम जनसंख्या के 5% से ऊपर हो जाने पर वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलम्बियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना “प्रभाव” जमाने की कोशिश करने लगते हैं। उदाहरण के लिये वे सरकारों और शॉपिंग मॉल पर “हलाल” का माँस रखने का दबाव बनाने लगते हैं, वे कहते हैं कि “हलाल” का माँस न खाने से उनकी धार्मिक मान्यतायें प्रभावित होती हैं। इस कदम से कई पश्चिमी देशों में “खाद्य वस्तुओं” के बाजार में मुस्लिमों की तगड़ी पैठ बनी। उन्होंने कई देशों के सुपरमार्केट के मालिकों को दबाव डालकर अपने यहाँ “हलाल” का माँस रखने को बाध्य किया। दुकानदार भी “धंधे” को देखते हुए उनका कहा मान लेता है (अधिक जनसंख्या होने का “फ़ैक्टर” यहाँ से मजबूत होना शुरु हो जाता है), ऐसा जिन देशों में हो चुका वह हैं –
    फ़्रांस – मुस्लिम 8%
    फ़िलीपीन्स – मुस्लिम 6%
    स्वीडन – मुस्लिम 5.5%
    स्विटजरलैण्ड – मुस्लिम 5.3%
    नीडरलैण्ड – मुस्लिम 5.8%
    त्रिनिदाद और टोबैगो – मुस्लिम 6%
    इस बिन्दु पर आकर “मुस्लिम” सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके “क्षेत्रों” में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के मुताबिक चलने दिया जाये (क्योंकि उनका अन्तिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व “शरीयत” कानून के हिसाब से चले)। जब मुस्लिम जनसंख्या 10% से अधिक हो जाती है तब वे उस देश/प्रदेश/राज्य/क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिये परेशानी पैदा करना शुरु कर देते हैं, शिकायतें करना शुरु कर देते हैं, उनकी “आर्थिक परिस्थिति” का रोना लेकर बैठ जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे, तोड़फ़ोड़ आदि पर उतर आते हैं, चाहे वह फ़्रांस के दंगे हों, डेनमार्क का कार्टून विवाद हो, या फ़िर एम्स्टर्डम में कारों का जलाना हो, हरेक विवाद को समझबूझ, बातचीत से खत्म करने की बजाय खामख्वाह और गहरा किया जाता है, जैसे कि –
    गुयाना – मुस्लिम 10%
    भारत – मुस्लिम 15%
    इसराइल – मुस्लिम 16%
    केन्या – मुस्लिम 11%
    रूस – मुस्लिम 15% (चेचन्या – मुस्लिम आबादी 70%)
    जब मुस्लिम जनसंख्या 20% से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न “सैनिक शाखायें” जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरु हो जाता है, जैसे-
    इथियोपिया – मुस्लिम 32.8%
    जनसंख्या के 40% के स्तर से ऊपर पहुँच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याऐं, आतंकवादी कार्रवाईयाँ आदि चलने लगते हैं, जैसे –
    बोस्निया – मुस्लिम 40%
    चाड – मुस्लिम 54.2%
    लेबनान – मुस्लिम 59%
    जब मुस्लिम जनसंख्या 60% से ऊपर हो जाती है तब अन्य धर्मावलंबियों का “जातीय सफ़ाया” शुरु किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोड़ना, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है, जैसे –
    अल्बानिया – मुस्लिम 70%
    मलेशिया – मुस्लिम 62%
    कतर – मुस्लिम 78%
    सूडान – मुस्लिम 75%
    जनसंख्या के 80% से ऊपर हो जाने के बाद तो सत्ता/शासन प्रायोजित जातीय सफ़ाई की जाती है, अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है, सभी प्रकार के हथकण्डे/हथियार अपनाकर जनसंख्या को 100% तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है, जैसे –
    बांग्लादेश – मुस्लिम 83%
    मिस्त्र – मुस्लिम 90%
    गाज़ा पट्टी – मुस्लिम 98%
    ईरान – मुस्लिम 98%
    ईराक – मुस्लिम 97%
    जोर्डन – मुस्लिम 93%
    मोरक्को – मुस्लिम 98%
    पाकिस्तान – मुस्लिम 97%
    सीरिया – मुस्लिम 90%
    संयुक्त अरब अमीरात – मुस्लिम 96%
    बनती कोशिश पूरी 100% जनसंख्या मुस्लिम बन जाने, यानी कि दार-ए-स्सलाम होने की स्थिति में वहाँ सिर्फ़ मदरसे होते हैं और सिर्फ़ कुरान पढ़ाई जाती है और उसे ही अन्तिम सत्य माना जाता है, जैसे –
    अफ़गानिस्तान – मुस्लिम 100%
    सऊदी अरब – मुस्लिम 100%
    सोमालिया – मुस्लिम 100%
    यमन – मुस्लिम 100%
    आज की स्थिति में मुस्लिमों की जनसंख्या समूचे विश्व की जनसंख्या का 22-24% है, लेकिन ईसाईयों, हिन्दुओं और यहूदियों के मुकाबले उनकी जन्मदर को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस शताब्दी के अन्त से पहले ही मुस्लिम जनसंख्या विश्व की 50% हो जायेगी (यदि तब तक धरती बची तो)… भारत में कुल मुस्लिम जनसंख्या 15% के आसपास मानी जाती है, जबकि हकीकत यह है कि उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और केरल के कई जिलों में यह आँकड़ा २० से ३०% तक पहुँच चुका है… अब देश में आगे चलकर क्या परिस्थितियाँ बनेंगी यह कोई भी (“सेकुलरों” को छोड़कर) आसानी से सोच-समझ सकता है…
    (सभी सन्दर्भ और आँकड़े : डॉ पीटर हैमण्ड की पुस्तक “स्लेवरी, टेररिज़्म एण्ड इस्लाम – द हिस्टोरिकल रूट्स एण्ड कण्टेम्पररी थ्रेट तथा लियोन यूरिस – “द हज”, से साभार)

    • राजीव जी आपके द्वारा दिए गए ये आंकड़े साबित करते हैं की आपकी मंशा क्या है मेरी समझ में आज तक एक बात नहीं आती है की इस तरह की बातों से आप क्या साबित कर सकते हैं या क्या करना चाहते हैं महोदय, ये आपको भी पता है की ना आप ना आपकी सोच इस्लाम मिटा सकती है बेहतर होगा हम ऐसी बातें लिखे जिससे समन्वय हो ये हमारी विनती है बाकी आपकी ichcha है …………….. आपके लिए शुभकामना………… deepa sharma

      • Agar Sabhi dharm muslim jaise kattar ho jaye to yeh dunia hell ban jayegi. Aur ab dunia usi disha main barh rahi hai. Bharat main bahut jaldi hi grahyudh hoga, sabhi ko iske liye taiyar ho jana chahiye.

    • मेरा प्रश्न है कि – ‘
      शंकराचार्य, दयानन्द पाण्डे, साधवी प्रज्ञा, लेफ्टी नेन्ट कर्नल पुरोहित, और देवेन्द्र गुप्ता को मालीगांव के कब्रिस्तान, अजमेर की दरगाह और हैदराबाद की मक्का मस्जिद में बडे पैमाने पर तबाही मचाने के लिए किस धर्म पुस्तक ने प्रेरित किया ?
      और ज़रा रूक कर ये भी सुने कि अभी तक जो जो मुसलमान आंतकी पकडे गये हैं वह सामान्य लोग थे । जबकि हिन्दु आंतकियों में बडे-बडे धर्म गुरू, साध्वी, ‘

      शंकराचार्य, लैफ्टीनैन्ट कर्नल आदि ‘शामिल हैं । (ख्याल रहे कि दुनिया में दो ही किंगडम होते हैं एक धार्मिक किंगडम और दुसरा फौजी किंगडम) यहाँ तो दोनों की किंगडम आंतक में लिप्त हैं ।
      एक दुसरा अंतर भी देखें, मुसलमानों ने आंतकियों पर कभी फूल नहीं बरसाये और न ही उनकी हिमायत की जबकि लैफ्टिनैन्ट कर्नल पुरोहित जब न्यायालय में पेश हुए तो कईं हिन्दू संगठनों ने उनका फूलों से स्वागत किया और ये नारे लगाये – आया आया भारत का ‘शेर आया।

      मेरा प्रश्न है कि अशोक महान को रक्तपात करने, पृथ्वीराज को जयचन्द पर हमला करने और उसकी बेटी को भरे दरबार से उठा ले जाने के लिए किसने प्रेरित किया ?
      मैं पूछना चाहती हूं कि मराठा सरदार शिवाजी ने धोके से अपने घर बुलाकर अफज़ल खान का वध क्यों किया ? इसी में महात्मा गांधी का आर.एस.एस. के गौडसे ने वध क्यों किया ?

      मेरा प्रश्न है कि जुआ खेलकर राजकाज के साथ पांच पांडवो की एक मात्र पत्नी द्रोपदी को भी जिता देना और जुवें में जिताए हुये को महाभारत अर्थात महायुद्ध बरपा करके दो करोड़ से अधिक इनसानों को मार देनें का प्रेरणा स्रोत आखिर कौन हैं ?

      अगर आप कोई जवाब न दे सकें तो मैं बताती हूं इसका प्रेरणा स्रोत वह धर्म पुस्तक है जिस पर हमको को इतना गर्व है कि हाईकोर्ट के एक माननीय न्यायधीश ने यह मशवरा तक दे दिया था के इसे राष्ट्रीय पुस्तक बनाया जाए । मेरी मुराद गीता से है जिसमें श्री कृष्ण अर्जून को युद्ध करने पर उभारते हुए कहते है कि युद्ध करना ही तुम्हारा धर्म है अगर युद्ध नहीं करोगे तो अधर्म हो जायेगा।

      मेरा दूसरा प्रश्न है कि – आर्यो के द्वारा भारत पर आक्रमण कर यहाँ के मूल निवासियों पर अत्याचार करना और उनको दास और ‘

      शूद्र बना देने का प्रेरणा स्रोत आखिर कौन है?
      अगर आपको नहीं मालूम तो मैं बताती हूँ।
      वेदों के ये मंत्र देखें –
      1. हमारे चारों ओर दस्यू जाति के लोग हैं वह यज्ञ नहीं करते कुछ मानते नहीं, वह अन्यवृत व अमानुष हैं । हे ‘शत्रु हन्ता इन्द्र तुम इनका वध करो । (ऋगवेद 10-22-8)
      2. इन्द्र तुम यज्ञाभिलाषी हो जो तुम्हारी निन्दा करता है उसका धन आहरत करके तुम प्रश्न होते हो, प्रचुरधन इन्द्र तुम हमें दोनों जांगों के बीच छुपा लो, और ‘

      शत्रुओं को मार डालो । (ऋगवेद 8-59-10)
      3. हे इन्द्र तो समस्त अनआर्यो को समाप्त कर दों । (ऋगवेद 1-5-113)

      4. धर्मात्मा लोग अर्धमियों का नाश करने में सदा उधत रहते हैं । (अथर्व वेद 12-5-62)

      5. उसकी दोनों आंखे छेद डालो, ह्रदय छेद डालो, आंखे फोड डालो, जीभ को काटो और दांतों का तोड डालो । (अथर्व वेद 5-29-4)
      6. धर्मात्मा लोग धर्महित कार्यो से प्रिय व्यवहार करें । और दुष्टों को कष्ट देते रहें । (अथर्व वेद 12-3-49)

      इस प्रकार के कई सौ मंत्र वेदों में हैं । मैं जानती हूँ कि आप इनका अर्थ बदलने का प्रयास करेंगे परन्तु आपके इस कथन के सन्दर्भ में —

      ‘‘ क्या उसामा बिन लादेन आदि को इस्लाम की सही जानकरी नहीं, और केवल सैकुलरिस्टों को ही सही ज्ञान है’’

      मैं भी पूछना चाहती हूं कि दयानन्द पाण्डे और साध्वी प्रज्ञा, देवेन्द्र गुप्ता को हिन्दू धर्म की सही जानकारी नहीं और संघ प्रचारकों को ही सही ज्ञान है ।
      ——————————————————————————–
      महोदय, अब तो इस घोर पाप क्रिया से बाहर आ जाइये कब तक लोगो को भड़काते रहेंगे ………..

      • शंकराचार्य, दयानन्द पाण्डे, साधवी प्रज्ञा, लेफ्टी नेन्ट कर्नल पुरोहित, और देवेन्द्र गुप्ता आरोपी है न की दोष सिद्ध।
        और ज़रा रूक कर ये भी सुने कि अभी तक जो जो मुसलमान आंतकी पकडे गये हैं वह सामान्य लोग थे, ——–>>>क्योंकि बडे मुस्लिम नेता वोट बैंक के चलते राजनीतिक शरण पाते हैं।

        पृथ्वीराज को जयचन्द पर हमला करने और उसकी बेटी को भरे दरबार से उठा ले जाने के लिए किसने प्रेरित किया ?——————>>>>>> इतनी बडी बडी बाते पहले की लगा कि सारा इतिहास तुमको ही मलूम है, पर कब तक झूठ छुपता, अरे मूर्ख, स्वं स्युक्ता ने पृथ्वीराज को बुलाया था स्वयवर से ले जाने को, जयचंद के विरोध के बावजूद।

        मैं पूछना चाहती हूं कि मराठा सरदार शिवाजी ने धोके से अपने घर बुलाकर अफज़ल खान का वध क्यों किया ?—————>>>>>>> फिर से मूर्खता पूर्ण प्रश्न, अफजल खान ने पहले शिवाजी को मारने के लिये दबोचा, पर सिंह को कभी गीदड़ मार पाया है भला, मारा गया गीदड़ अफज़ल खान।

        इसी में महात्मा गांधी का आर.एस.एस. के गौडसे ने वध क्यों किया ?——>>>>> गोडसे काग्रेस का कार्यकर्ता था, निराश हो कर काग्रेस छोड दी, कभी आर.एस.एस मे नही रहा। उसने गांधी क वध इसलिये किया क्योंकि जब भारत पोर्किस्तान का युद्ध चल रहा था तब पटेल के विरोध के बावजूद वो पोर्किस्तान को ५० करोड रुपये दिलवाने के लिये भूख हडताल पर बैठे, निश्चित तौर पर पोर्किस्तान ने उस धन का उपयोग हमारे जवानो के विरुद्ध किया होगा, ज्यादा जानने के लिये गोपाल गोडसे कि पुस्तक, गांधी वध क्यों पढो।

        मेरा प्रश्न है कि जुआ खेलकर राजकाज के साथ पांच पांडवो की एक मात्र पत्नी द्रोपदी को भी जिता देना और जुवें में जिताए हुये को महाभारत अर्थात महायुद्ध बरपा करके दो करोड़ से अधिक इनसानों को मार देनें का प्रेरणा स्रोत आखिर कौन हैं ?

        अगर आप कोई जवाब न दे सकें तो मैं बताती हूं इसका प्रेरणा स्रोत वह धर्म पुस्तक है जिस पर हमको को इतना गर्व है कि हाईकोर्ट के एक माननीय न्यायधीश ने यह मशवरा तक दे दिया था के इसे राष्ट्रीय पुस्तक बनाया जाए । मेरी मुराद गीता से है जिसमें श्री कृष्ण अर्जून को युद्ध करने पर उभारते हुए कहते है कि युद्ध करना ही तुम्हारा धर्म है अगर युद्ध नहीं करोगे तो अधर्म हो जायेगा। ——–>>>>>>> गज़ब की बात है, मुझे आज तक नही मलूम था कि गीता ज्ञान के पश्चात जुआ का खेल हुआ था, कृपया महाभारत की यह अनमोल कृति हम सबके साथ साझा कीजीए।

        मेरा दूसरा प्रश्न है कि – आर्यो के द्वारा भारत पर आक्रमण कर यहाँ के मूल निवासियों पर अत्याचार करना और उनको दास और शूद्र बना देने का प्रेरणा स्रोत आखिर कौन है?
        अगर आपको नहीं मालूम तो मैं बताती हूँ।
        वेदों के ये मंत्र देखें –
        1. हमारे चारों ओर दस्यू जाति के लोग हैं वह यज्ञ नहीं करते कुछ मानते नहीं, वह अन्यवृत व अमानुष हैं । हे ‘शत्रु हन्ता इन्द्र तुम इनका वध करो । (ऋगवेद 10-22-8)
        2. इन्द्र तुम यज्ञाभिलाषी हो जो तुम्हारी निन्दा करता है उसका धन आहरत करके तुम प्रश्न होते हो, प्रचुरधन इन्द्र तुम हमें दोनों जांगों के बीच छुपा लो, और ‘

        शत्रुओं को मार डालो । (ऋगवेद 8-59-10)
        3. हे इन्द्र तो समस्त अनआर्यो को समाप्त कर दों । (ऋगवेद 1-5-113)

        4. धर्मात्मा लोग अर्धमियों का नाश करने में सदा उधत रहते हैं । (अथर्व वेद 12-5-62)

        5. उसकी दोनों आंखे छेद डालो, ह्रदय छेद डालो, आंखे फोड डालो, जीभ को काटो और दांतों का तोड डालो । (अथर्व वेद 5-29-4)
        6. धर्मात्मा लोग धर्महित कार्यो से प्रिय व्यवहार करें । और दुष्टों को कष्ट देते रहें । (अथर्व वेद 12-3-49)

        तुम्हारे महाभारत की ही भांति यह वेद भी कुछ नये लगते हैं।

        • I don’t have any problem even these statements are from the Veds. Even I have seen the contradictory statements in the Veds and Upnishads. Hindu religion has refined it self with the time. Most of statement, which were abmigiuos or factual incorrect, were corrected in the other books.
          the problem is that we are ready to contradict and debate on our old books but how many other religions are ready to do that.

          Most the monotheistic religions are not able to accept any other thought. For them, their path is only correct and there can’t be any argument.

          All the books either GEETA or KORAN is written by Human beings and worth to be debatable.

    • राजीव जी ये आंकड़े और जानकारियाँ निस्संदेह काफी ज्ञानवर्धक और आँखें खोलने वाला है. आपने ये आंकड़े देकर हिन्दुओं की काफी सेवा की है. उम्मीद है मुसलमानों को उन्हीं की भाषा में प्रतुत्तर मिलेगा. यदि इससे भी हिन्दू नहीं जागते तो हिन्दू संस्कृति का अंत सुनिश्चित है. अभी भी समय है की दुनिया भर के गैर मुस्लिम यदि मिलकर मुसलमानों को जवाब दें तो उनको बिलों में छुप जाना पड़ेगा. दुनिया के सभी देशों को मिलकर इस्लाम से लड़ना होगा. इस लड़ाई को आज अमेरिका काफी हद तक अकेले लड़ रहा है. हमें इसराइल का भरपूर साथ देना होगा. गरीब मुसलमानों को मास में धर्म परिवर्तन कराना चाहिए. मुझको लगता है इस कला में इसाई मिशनरिएस माहिर हैं. जापान को नास्तिक बनाने का जो अभियान अमेरिका ने छेड़ा था कुछ ऐसा ही जंग मुस्लिम विश्व में छेड़ना चाहिए. शुरुआत अफगानिस्तान से की जा सकती है. इसके बाद इराक फिर पाकिस्तान, इरान हो सकता है. भारत का महती योगदान हो सकता है. अपने यहाँ मुसलमानों को हर इस स्तर में धर्म के प्रति हतोत्साहित करना होगा. तसलीमा नसरीन, सलमान रुश्दी को सम्मानित करने की जरुरत है. केरला में शुरुआत हो चुकी है. गुजरात में भी. एक व्यक्ति का हाथ काटने के कारन गैर मुस्लिम एकजुट होने लगे है. मुसलमानों को उनकी गलत हरकतों पर करार सबक देने की जरुरत है. यह लड़ाई हर स्तर पर लड़ी जनि चाहिए. जिससे इस्लामी हिंसा और उपनिवेशवाद से बचा जा सके. इस्लाम सिर्फ और सिर्फ कड़े विरोध से ही अपना उठान से बच सकती है.

  42. इस्लाम व कुरान पर भारत के महापुरुषों द्वारा दिए गए क्रातिकारी विचार

    स्वामी विवेकानन्द
    ऎसा कोई अन्य मजहब नहीं जिसने इतना अधिक रक्तपात किया हो और अन्य के लिए इतना क्रूर हो । इनके अनुसार जो कुरान को नहीं मानता कत्ल कर दिया जाना चाहिए । उसको मारना उस पर दया करना है । जन्नत ( जहां हूरे और अन्य सभी प्रकार की विलासिता सामग्री है ) पाने का निश्चित तरीका गैर ईमान वालों को मारना है । इस्लाम द्वारा किया गया रक्तपात इसी विश्वास के कारण हुआ है ।

    कम्प्लीट वर्क आफ विवेकानन्द वॉल्यूम २ पृष्ठ २५२-२५३

    गुरु नानक देव जी
    मुसलमान सैय्यद , शेख , मुगल पठान आदि सभी बहुत निर्दयी हो गए हैं । जो लोग मुसलमान नहीं बनते थें उनके शरीर में कीलें ठोककर एवं कुत्तों से नुचवाकर मरवा दिया जाता था ।

    नानक प्रकाश तथा प्रेमनाथ जोशी की पुस्तक पैन इस्लाममिज्म रोलिंग बैंक पृष्ठ ८०

    महर्षि दयानन्द सरस्वती
    इस मजहब में अल्लाह और रसूल के वास्ते संसार को लुटवाना और लूट के माल में खुदा को हिस्सेदार बनाना शबाब का काम हैं । जो मुसलमान नहीं बनते उन लोगों को मारना और बदले में बहिश्त को पाना आदि पक्षपात की बातें ईश्वर की नहीं हो सकती । श्रेष्ठ गैर मुसलमानों से शत्रुता और दुष्ट मुसलमानों से मित्रता , जन्नत में अनेक औरतों और लौंडे होना आदि निन्दित उपदेश कुएं में डालने योग्य हैं । अनेक स्त्रियों को रखने वाले मुहम्मद साहब निर्दयी , राक्षस व विषयासक्त मनुष्य थें , एवं इस्लाम से अधिक अशांति फैलाने वाला दुष्ट मत दसरा और कोई नहीं । इस्लाम मत की मुख्य पुस्तक कुरान पर हमारा यह लेख हठ , दुराग्रह , ईर्ष्या विवाद और विरोध घटाने के लिए लिखा गया , न कि इसको बढ़ाने के लिए । सब सज्जनों के सामन रखने का उद्देश्य अच्छाई को ग्रहण करना और बुराई को त्यागना है ।।

    सत्यार्थ प्रकाश १४ वां समुल्लास विक्रमी २०६१

    महर्षि अरविन्द
    हिन्दू मुस्लिम एकता असम्भव है क्योंकि मुस्लिम कुरान मत हिन्दू को मित्र रूप में सहन नहीं करता । हिन्दू मुस्लिम एकता का अर्थ हिन्दुओं की गुलामी नहीं होना चाहिए । इस सच्चाई की उपेक्षा करने से लाभ नहीं ।किसी दिन हिन्दुओं को मुसलमानों से लड़ने हेतु तैयार होना चाहिए । हम भ्रमित न हों और समस्या के हल से पलायन न करें । हिन्दू मुस्लिम समस्या का हल अंग्रेजों के जाने से पहले सोच लेना चाहिए अन्यथा गृहयुद्ध के खतरे की सम्भावना है । ।
    ए बी पुरानी इवनिंग टाक्स विद अरविन्द पृष्ठ २९१-२८९-६६६

    सरदार वल्लभ भाई पटेल
    मैं अब देखता हूं कि उन्हीं युक्तियों को यहां फिर अपनाया जा रहा है जिसके कारण देश का विभाजन हुआ था । मुसलमानों की पृथक बस्तियां बसाई जा रहीं हैं । मुस्लिम लीग के प्रवक्ताओं की वाणी में भरपूर विष है । मुसलमानों को अपनी प्रवृत्ति में परिवर्तन करना चाहिए । मुसलमानों को अपनी मनचाही वस्तु पाकिस्तान मिल गया हैं वे ही पाकिस्तान के लिए उत्तरदायी हैं , क्योंकि मुसलमान देश के विभाजन के अगुआ थे न कि पाकिस्तान के वासी । जिन लोगों ने मजहब के नाम पर विशेष सुविधांए चाहिंए वे पाकिस्तान चले जाएं इसीलिए उसका निर्माण हुआ है । वे मुसलमान लोग पुनः फूट के बीज बोना चाहते हैं । हम नहीं चाहते कि देश का पुनः विभाजन हो ।
    संविधान सभा में दिए गए भाषण का सार ।

    बाबा साहब भीम राव अंबेडकर
    हिन्दू मुस्लिम एकता एक अंसभव कार्य हैं भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक हल है । यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं । साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा । विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी । पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी ? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं है । मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है । कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है , इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है । मुसलामनों के निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है । इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता । संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान भी अपेन शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया । कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है । गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है । इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं । धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते । मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती । वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते ।
    प्रमाण सार डा अंबेडकर सम्पूर्ण वाग्मय , खण्ड १५१

    माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर श्री गुरू जी
    पाकिस्तान बनने के पश्चात जो मुसलमान भारत में रह गए हैं क्या उनकी हिन्दुओं के प्रति शत्रुता , उनकी हत्या , लूट दंगे, आगजनी , बलात्कार , आदि पुरानी मानसिकता बदल गयी है , ऐसा विश्वास करना आत्मघाती होगा । पाकिस्तान बनने के पश्चात हिन्दुओं के प्रति मुस्लिम खतरा सैकड़ों गुणा बढ़ गया है । पाकिस्तान और बांग्लादेश से घुसपैठ बढ़ रही है । दिल्ली से लेकर रामपुर और लखनउ तक मुसलमान खतरनाक हथियारों की जमाखोरी कर रहे हैं । ताकि पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण करने पर वे अपने भाइयों की सहायता कर सके । अनेक भारतीय मुसलमान ट्रांसमीटर के द्वारा पाकिस्तान के साथ लगातार सम्पर्क में हैं । सरकारी पदों पर आसीन मुसलमान भी राष्ट्र विरोधी गोष्ठियों में भाषण देते हें । यदि यहां उनके हितों को सुरक्षित नहीं रखा गया तो वे सशस्त्र क्रांति के खड़े होंगें ।
    बंच आफ थाट्स पहला आंतरिक खतरा मुसलमान पृष्ठ १७७-१८७

    गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर
    ईसाई व मुसलमान मत अन्य सभी को समाप्त करने हेतु कटिबद्ध हैं । उनका उद्देश्य केवल अपने मत पर चलना नहीं है अपितु मानव धर्म को नष्ट करना है । वे अपनी राष्ट्र भक्ति गैर मुस्लिम देश के प्रति नहीं रख सकते । वे संसार के किसी भी मुस्लिम एवं मुस्लिम देश के प्रति तो वफादार हो सकते हैं परन्तु किसी अन्य हिन्दू या हिन्दू देश के प्रति नहीं । सम्भवतः मुसलमान और हिन्दू कुछ समय के लिए एक दूसरे के प्रति बनवटी मित्रता तो स्थापित कर सकते हैं परन्तु स्थायी मित्रता नहीं । ; – रवीन्द्र नाथ वाडमय २४ वां खण्ड पृच्च्ठ २७५ , टाइम्स आफ इंडिया १७-०४-१९२७ , कालान्तर

    मोहनदास करम चन्द्र गांधी
    मेरा अपना अनुभव है कि मुसलमान कूर और हिन्दू कायर होते हैं मोपला और नोआखली के दंगों में मुसलमानों द्वारा की गयी असंख्य हिन्दुओं की हिंसा को देखकर अहिंसा नीति से मेरा विचार बदल रहा है ।
    गांधी जी की जीवनी, धनंजय कौर पृष्ठ ४०२ व मुस्लिम राजनीति श्री पुरूषोत्तम योग

    लाला लाजपत राय
    मुस्लिम कानून और मुस्लिम इतिहास को पढ़ने के पश्चात मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि उनका मजहब उनके अच्छे मार्ग में एक रुकावट है । मुसलमान जनतांत्रिक आधार पर हिन्दुस्तान पर शासन चलाने हेतु हिन्दुओं के साथ एक नहीं हो सकते । क्या कोई मुसलमान कुरान के विपरीत जा सकता है ? हिन्दुओं के विरूद्ध कुरान और हदीस की निषेधाज्ञा की क्या हमें एक होने देगी ? मुझे डर है कि हिन्दुस्तान के ७ करोड़ मुसलमान अफगानिस्तान , मध्य एशिया अरब , मैसोपोटामिया और तुर्की के हथियारबंद गिरोह मिलकर अप्रत्याशित स्थिति पैदा कर देंगें ।

    पत्र सी आर दास बी एस ए वाडमय खण्ड १५ पृष्ठ २७५

    समर्थ गुरू राम दास जी
    छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरू अपने ग्रंथ दास बोध में लिखते हैं कि मुसलमान शासकों द्वारा कुरान के अनुसार काफिर हिन्दू नारियों से बलात्कार किए गए जिससे दुःखी होकर अनेकों ने आत्महत्या कर ली । मुसलमान न बनने पर अनेक कत्ल किए एवं अगणित बच्चे अपने मां बाप को देखकर रोते रहे । मुसलमान आक्रमणकारी पशुओं के समान निर्दयी थे , उन्होंने धर्म परिवर्तन न करने वालों को जिन्दा ही धरती में दबा दिया ।

    – डा एस डी कुलकर्णी कृत एन्कांउटर विद इस्लाम पृष्ठ २६७-२६८

    राजा राममोहन राय
    मुसलमानों ने यह मान रखा है कि कुरान की आयतें अल्लाह का हुक्म हैं । और कुरान पर विश्वास न करने वालों का कत्ल करना उचित है । इसी कारण मुसलमानों ने हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार किए , उनका वध किया , लूटा व उन्हें गुलाम बनाया ।

    वाङ्मय-राजा राममोहन राय पृष्ट ७२६-७२७

    श्रीमति ऐनी बेसेन्ट
    मुसलमानों के दिल में गैर मुसलमानों के विरूद्ध नंगी और बेशर्मी की हद तक तक नफरत हैं । हमने मुसलमान नेताओं को यह कहते हुए सुना है कि यदि अफगान भारत पर हमला करें तो वे मसलमानों की रक्षा और हिन्दुओं की हत्या करेंगे । मुसलमानों की पहली वफादार मुस्लिम देशों के प्रति हैं , हमारी मातृभूमि के लिए नहीं । यह भी ज्ञात हुआ है कि उनकी इच्छा अंग्रेजों के पश्चात यहां अल्लाह का साम्राज्य स्थापित करने की है न कि सारे संसार के स्वामी व प्रेमी परमात्मा का का । स्वाधीन भारत के बारे में सोचते समय हमें मुस्लिम शासन के अंत के बारे में विचार करना होगा ।

    – कलकत्ता सेशन १९१७ डा बी एस ए सम्पूर्ण वाङ्मय खण्ड, पृष्ठ २७२-२७५

    स्वामी रामतीर्थ
    अज्ञानी मुसलमानों का दिल ईश्वरीय प्रेम और मानवीय भाईचारे की शिक्षा के स्थान पर नफरत , अलगाववाद , पक्षपात और हिंसा से कूट कूट कर भरा है । मुसलमानों द्वारा लिखे गए इतिहास से इन तथ्यों की पुष्टि होती है । गैर मुसलमानों आर्य खालसा हिन्दुओं की बढ़ी संख्या में काफिर कहकर संहार किया गया । लाखों असहाय स्त्रियों को बिछौना बनाया गया । उनसे इस्लाम के रक्षकों ने अपनी काम पिपासा को शान्त किया । उनके घरों को छीना गया और हजारों हिन्दुओं को गुलाम बनाया गया । क्या यही है शांति का मजहब इस्लाम ? कुछ एक उदाहरणों को छोड़कर अधिकांश मुसलमानों ने गैरों को काफिर माना है ।

    – भारतीय महापुरूषों की दृष्टि में इस्लाम पृष्ठ ३५-३६

    • mahoday imran ji aap badhai ke patr hain kya kya likh diya hai.. jab tak aap jese musalmaan hain is desh ka kuch nahi hone wala aap kya likna chah rahe thay shayad aapko bhi nahi malum tha fir bhi………..
      hamari shubhkaamnaey aapke sath hai

    • mo. imaraan i read your quotation. sure you have keep strongly your opinion and i congrate you for your brave opinion. do you think is there possibility to backtrack the islam? what would be best way for sake of this religion? इ थिंक ओने मुस्त कीप थे solution too.
      ok again thanx for your kandid writing.

    • बेटा राजीव आपने अपनी तस्वीर इमरान के कमेन्ट पैर भी लगा दी. हो गयी न गड़बड़, पकड़ा गया चोर.

  43. आगे जारी रखते हुए ………………………..
    ८—- तरुण विजय सम्पादक, हिन्दी साप्ताहिक ‘पाञ्चजन्य’ (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पत्रिका)
    — ‘‘…क्या इससे इन्कार मुम्किन है कि पैग़म्बर मुहम्मद एक ऐसी जीवन-पद्धति बनाने और सुनियोजित करने वाली महान विभूति थे जिसे इस संसार ने पहले कभी नहीं देखा? उन्होंने इतिहास की काया पलट दी और हमारे विश्व के हर क्षेत्र पर प्रभाव डाला। अतः अगर मैं कहूँ कि इस्लाम बुरा है तो इसका मतलब यह हुआ कि दुनिया भर में रहने वाले इस धर्म के अरबों (Billions) अनुयायियों के पास इतनी बुद्धि-विवेक नहीं है कि वे जिस धर्म के लिए जीते-मरते हैं उसी का विश्लेषण और उसकी रूपरेखा का अनुभव कर सवें$। इस धर्म के अनुयायियों ने मानव-जीवन के लगभग सारे क्षेत्रों में बड़ा नाम कमाया और हर किसी से उन्हें सम्मान मिला…।’’
    ‘‘हम उन (मुसलमानों) की किताबों का, या पैग़म्बर के जीवन-वृत्तांत का, या उनके विकास व उन्नति के इतिहास का अध्ययन कम ही करते हैं… हममें से कितनों ने तवज्जोह के साथ उस परिस्थिति पर विचार किया है जो मुहम्मद के, पैग़म्बर बनने के समय, 14 शताब्दियों पहले विद्यमान थे और जिनका बेमिसाल, प्रबल मुक़ाबला उन्होंने किया? जिस प्रकार से एक अकेले व्यक्ति के दृढ़ आत्म-बल तथा आयोजन-क्षमता ने हमारी ज़िन्दगियों को प्रभावित किया और समाज में उससे एक निर्णायक परिवर्तन आ गया, वह असाधारण था। फिर भी इसकी गतिशीलता के प्रति हमारा जो अज्ञान है वह हमारे लिए एक ऐसे मूर्खता के सिवाय और कुछ नहीं है जिसे माफ़ नहीं किया जा सकता।’’
    ‘‘पैग़म्बर मुहम्मद ने अपने बचपन से ही बड़ी कठिनाइयाँ झेलीं। उनके पिता की मृत्यु, उनके जन्म से पहले ही हो गई और माता की भी, जबकि वह सिर्प़$ छः वर्ष के थे। लेकिन वह बहुत ही बुद्धिमान थे और अक्सर लोग आपसी झगड़े उन्हीं के द्वारा सुलझवाया करते थे। उन्होंने परस्पर युद्धरत क़बीलों के बीच शान्ति स्थापित की और सारे क़बीलों में ‘अल-अमीन’ (विश्वसनीय) कहलाए जाने का सम्मान प्राप्त किया जबकि उनकी आयु मात्रा 35 वर्ष थी। इस्लाम का मूल-अर्थ ‘शान्ति’ था…। शीघ्र ही ऐसे अनेक व्यक्तियों ने इस्लाम ग्रहण कर लिया, उनमें ज़ैद जैसे गु़लाम (Slave) भी थे, जो सामाजिक न्याय से वंचित थे। मुहम्मद के ख़िलाफ़ तलवारों का निकल आना कुछ आश्चर्यजनक न था, जिसने उन्हें (जन्म-भूमि ‘मक्का’ से) मदीना प्रस्थान करने पर विवश कर दिया और उन्हें जल्द ही 900 की सेना का, जिसमें 700 ऊँट और 300 घोड़े थे मुक़ाबला करना पड़ा। 17 रमज़ान, शुक्रवार के दिन उन्होंने (शत्रु-सेना से) अपने 300 अनुयायियों और 4 घोड़ों (की सेना) के साथ बद्र की लड़ाई लड़ी। बाक़ी वृत्तांत इतिहास का हिस्सा है। शहादत, विजय, अल्लाह की मदद और (अपने) धर्म में अडिग विश्वास!’’

    —आलेख (‘Know thy neighbor, it’s Ramzan’
    अंग्रेज़ी दैनिक ‘एशियन एज’, 17 नवम्बर 2003 से उद्धृत

    ९—कोडिक्कल चेलप्पा (बैरिस्टर, अध्यक्ष-संविधान सभा)
    …. ‘‘…मानवजाति के लिए अर्पित, इस्लाम की सेवाएं महान हैं। इसे ठीक से जानने के लिए वर्तमान के बजाय 1400 वर्ष पहले की परिस्थितियों पर दृष्टि डालनी चाहिए, तभी इस्लाम और उसकी महान सेवाओं का एहसास किया जा सकता है। लोग शिक्षा, ज्ञान और संस्कृति में उन्नत नहीं थे। साइंस और खगोल विज्ञान का नाम भी नहीं जानते थे। संसार के एक हिस्से के लोग, दूसरे हिस्से के लोगों के बारे में जानते न थे। वह युग ‘अंधकार युग’ (Dark-Age) कहलाता है, जो सभ्यता की कमी, बर्बरता और अन्याय का दौर था, उस समय के अरबवासी घोर अंधविश्वास में डूबे हुए थे। ऐसे ज़माने में, अरब मरुस्थलदृजो विश्व के मध्य में है—में (पैग़म्बर) मुहम्मद पैदा हुए।’’
    पैग़म्बर मुहम्मद ने पूरे विश्व को आह्वान दिया कि ‘‘ईश्वर ‘एक’ है और सारे इन्सान बराबर हैं।’’ (इस एलान पर) स्वयं उनके अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और नगरवासियों ने उनका विरोध किया और उन्हें सताया।’’
    ‘‘पैग़म्बर मुहम्मद हर सतह पर और राजनीति, अर्थ, प्रशासन, न्याय, वाणिज्य, विज्ञान, कला, संस्कृति और समाजोद्धार में सफल हुए और एक समुद्र से दूसरे समुद्र तक, स्पेन से चीन तक एक महान, अद्वितीय संसार की संरचना करने में सफलता प्राप्त कर ली।
    इस्लाम का अर्थ है ‘शान्ति का धर्म’। इस्लाम का अर्थ ‘ईश्वर के विधान का आज्ञापालन’ भी है। जो व्यक्ति शान्ति-प्रेमी हो और क़ुरआन में अवतरित ‘ईश्वरीय विधान’ का अनुगामी हो, ‘मुस्लिम’ कहलाता है। क़ुरआन सिर्फ ‘एकेश्वरत्व’ और ‘मानव-समानता’ की ही शिक्षा नहीं देता बल्कि आपसी भाईचारा, प्रेम, धैर्य और आत्म-विश्वास का भी आह्नान करता है।
    इस्लाम के सिद्धांत और व्यावहारिक कर्म वैश्वीय शान्ति व बंधुत्व को समाहित करते हैं और अपने अनुयायियों में एक गहरे रिश्ते की भावना को क्रियान्वित करते हैं। यद्यपि कुछ अन्य धर्म भी मानव-अधिकार व सम्मान की बात करते हैं, पर वे आदमी को, आदमी को गु़लाम बनाने से या वर्ण व वंश के आधार पर, दूसरों पर अपनी महानता व वर्चस्व का दावा करने से रोक न सके। लेकिन इस्लाम का पवित्रा ग्रंथ स्पष्ट रूप से कहता है कि किसी इन्सान को दूसरे इन्सान की पूजा करनी, दूसरे के सामने झुकना, माथा टेकना नहीं चाहिए। हर व्यक्ति के अन्दर क़ुरआन द्वारा दी गई यह भावना बहुत गहराई तक जम जाती है। किसी के भी, ईश्वर के अलावा किसी और के सामने माथा न टेकने की भावना व विचारधारा, ऐसे बंधनों को चकना चूर कर देती है जो इन्सानों को ऊँच-नीच और उच्च-तुच्छ के वर्गों में बाँटते हैं और इन्सानों की बुद्धि-विवेक को गु़लाम बनाकर सोचने-समझने की स्वतंत्रता का हनन करते हैं। बराबरी और आज़ादी पाने के बाद एक व्यक्ति एक परिपूर्ण, सम्मानित मानव बनकर, बस इतनी-सी बात पर समाज में सिर उठाकर चलने लगता है कि उसका ‘झुकना’ सिपऱ्$ अल्लाह के सामने होता है।
    बेहतरीन मौगनाकार्टा (Magna Carta) जिसे मानवजाति ने पहले कभी नहीं देखा था, ‘पवित्र क़ुरआन’ है। मानवजाति के उद्धार के लिए पैग़म्बर मुहम्मद द्वारा लाया गया धर्म एक महासागर की तरह है। जिस तरह नदियाँ और नहरें सागर-जल में मिलकर एक समान, अर्थात सागर-जल बन जाती हैं उसी तरह हर जाति और वंश में पैदा होने वाले इन्सान—वे जो भी भाषा बोलते हों, उनकी चमड़ी का जो भी रंग हो—इस्लाम ग्रहण करके, सारे भेदभाव मिटाकर और मुस्लिम बनकर ‘एक’ समुदाय (उम्मत), एक अजेय शक्ति बन जाते हैं।’’
    ‘‘ईश्वर की सृष्टि में सारे मानव एक समान हैं। सब एक ख़ुदा के दास और अन्य किसी के दास नहीं होतेदृचाहे उनकी राष्ट्रीयता और वंश कुछ भी हो, वह ग़रीब हों या धनवान।

    ‘‘वह सिर्फ़ ख़ुदा है जिसने सब को बनाया है।’’

    ईश्वर की नेमतें तमाम इन्सानों के हित के लिए हैं। उसने अपनी असीम, अपार कृपा से हवा, पानी, आग, और चाँद व सूरज (की रोशनी तथा ऊर्जा) सारे इन्सानों को दिया है। खाने, सोने, बोलने, सुनने, जीने और मरने के मामले में उसने सारे इन्सानों को एक जैसा बनाया है। हर एक की रगों में एक (जैसा) ही ख़ून प्रवाहित रहता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी इन्सान एक ही माता-पिता—आदम और हव्वा—की संतान हैं अतः उनकी नस्ल एक ही है, वे सब एक ही समुदाय हैं। यह है इस्लाम की स्पष्ट नीति। फिर एक के दूसरे पर वर्चस्व व बड़प्पन के दावे का प्रश्न कहाँ उठता है? इस्लाम ऐसे दावों का स्पष्ट रूप में खंडन करता है। अलबत्ता, इस्लाम इन्सानों में एक अन्तर अवश्य करता है—‘अच्छे’ इन्सान और ‘बुरे’ इन्सान का अन्तर; अर्थात्, जो लोग ख़ुदा से डरते हैं, और जो नहीं डरते, उनमें अन्तर। इस्लाम एलान करता है कि ईशपरायण व्यक्ति वस्तुतः महान, सज्जन और आदरणीय है। दरअस्ल इसी अन्तर को बुद्धि-विवेक की स्वीकृति भी प्राप्त है। और सभी बुद्धिमान, विवेकशील मनुष्य इस अन्तर को स्वीकार करते हैं।
    इस्लाम किसी भी जाति, वंश पर आधारित भेदभाव को बुद्धि के विपरीत और अनुचित क़रार देकर रद्द कर देता है। इस्लाम ऐसे भेदभाव के उन्मूलन का आह्वान करता है।’’
    ‘‘वर्ण, भाषा, राष्ट्र, रंग और राष्ट्रवाद की अवधारणाएँ बहुत सारे तनाव, झगड़ों और आक्रमणों का स्रोत बनती हैं। इस्लाम ऐसी तुच्छ, तंग और पथभ्रष्ट अवधारणाओं को ध्वस्त कर देता है।’’

    —‘लेट् अस मार्च टुवर्ड्स इस्लाम’
    पृष्ठ 26-29, 34-35 से उद्धृत
    इस्लामिया एलाकिया पानमनानी, मैलदुतुराइ, तमिलनाडु, 1990 ई॰
    (श्री कोडिक्कल चेलप्पा ने बाद में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था)

    १०— डॉ॰ बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर (बैरिस्टर, अध्यक्ष-संविधान निर्मात्री सभा)

    ‘‘…इस्लाम धर्म सम्पूर्ण एवं सार्वभौमिक धर्म है जो कि अपने सभी अनुयायियों से समानता का व्यवहार करता है (अर्थात् उनको समान समझता है)। यही कारण है कि सात करोड़ अछूत हिन्दू धर्म को छोड़ने के लिए सोच रहे हैं और यही कारण था कि गाँधी जी के पुत्र (हरिलाल) ने भी इस्लाम धर्म ग्रहण किया था। यह तलवार नहीं थी कि इस्लाम धर्म का इतना प्रभाव हुआ बल्कि वास्तव में यह थी सच्चाई और समानता जिसकी इस्लाम शिक्षा देता है…।’’

    —‘दस स्पोक अम्बेडकर’ चौथा खंड—भगवान दास
    पृष्ठ 144-145 से उद्धृत

    ११—पेरियार ई॰ वी॰ रामास्वामी (राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत, द्रविड़ प्रबुद्ध विचारक, पत्रकार, समाजसेवक व नेता, तमिलनाडु)

    ‘‘…हमारा शूद्र होना एक भयंकर रोग है, यह कैंसर जैसा है। यह अत्यंत पुरानी शिकायत है। इसकी केवल एक ही दवा है, और वह है इस्लाम। इसकी कोई दूसरी दवा नहीं है। अन्यथा हम इसे झेलेंगे, इसे भूलने के लिए नींद की गोलियाँ लेंगे या इसे दबा कर एक बदबूदार लाश की तरह ढोते रहेंगे। इस रोग को दूर करने के लिए उठ खड़े हों और इन्सानों की तरह सम्मानपूर्वक आगे बढ़ें कि केवल इस्लाम ही एक रास्ता है…।’’
    ‘‘…अरबी भाषा में इस्लाम का अर्थ है शान्ति, आत्म-समर्पण या निष्ठापूर्ण भक्ति। इस्लाम का मतलब है सार्वजनिक भाईचारा, बस यही इस्लाम है। सौ या दो सौ वर्ष पुराना तमिल शब्द-कोष देखें। तमिल भाषा में कदावुल देवता (Kadavul) का अर्थ है एक ईश्वर, निराकार, शान्ति, एकता, आध्यात्मिक समर्पण एवं भक्ति। ‘कदावुल’ (Kadavul) द्रविड़ शब्द है। अंग्रेज़ी भाषा का शब्द गॉड (God) अरबी भाषा में ‘अल्लाह’ है। ….भारतीय मुस्लिम इस्लाम की स्थापना करने वाले नहीं बल्कि उसका एक अंश हैं…।’’
    ‘‘…मलायाली मोपले (Malayali Mopillas), मिस्री, जापानी, और जर्मन मुस्लिम भी इस्लाम का अंश हैं। मुसलमान एक बड़ा गिरोह है। इन में अफ़्रीक़ी, हब्शी और नेग्रो मुस्लिम भी है। इन सारे लोगों के लिए अल्लाह एक ही है, जिसका न कोई आकार है, न उस जैसा कोई और है, उसके न पत्नी है और न बच्चे, और न ही उसे खाने-पीने की आवश्यकता है।’’
    ‘‘…जन्मजात समानता, समान अधिकार, अनुशासन इस्लाम के गुण हैं। अन्तर के कारण यदि हैं तो वे वातावरण, प्रजातियाँ और समय हैं। यही कारण है कि संसार में बसने वाले लगभग साठ करोड़ मुस्लिम एक-दूसरे के लिए जन्मजात भाईचारे की भावना रखते हैं। अतः जगत इस्लाम का विचार आते ही थरथरा उठता है…।’’
    ‘‘…इस्लाम की स्थापना क्यों हुई? इसकी स्थापना अनेकेश्वरवाद और जन्मजात असमानताओं को मिटाने के लिए और ‘एक ईश्वर, एक इन्सान’ के सिद्धांत को लागू करने के लिए हुई, जिसमें किसी अंधविश्वास या मूर्ति-पूजा की गुंजाइश नहीं है। इस्लाम इन्सान को विवेकपूर्ण जीवन व्यतीत करने का मार्ग दिखाता है…।’’
    ‘‘…इस्लाम की स्थापना बहुदेववाद और जन्म के आधार पर विषमता को समाप्त करने के लिए हुई थी। ‘एक ईश्वर और एक मानवजाति’ के सिद्धांत को स्थापित करने के लिए हुई थी; सारे अंधविश्वासों और मूर्ति पूजा को ख़त्म करने के लिए और युक्ति-संगत, बुद्धिपूर्ण (Rational) जीवन जीने के लिए नेतृत्व प्रदान करने के लिए इसकी स्थापना हुई
    थी…।’’

    —‘द वे ऑफ सैल्वेशन’
    पृ॰ 13,14,21 से उद्धृत
    (18 मार्च 1947 को तिरुचिनपल्ली में दिया गया भाषण)
    अमन पब्लिकेशन्स, दिल्ली, 1995 ई॰

    १३– लाला काशी राम चावला

    ‘‘…न्याय ईश्वर के सबसे बड़े गुणों में से एक अतिआवश्यक गुण है। ईश्वर के न्याय से ही संसार का यह सारा कार्यालय चल रहा है। उसका न्याय सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कण-कण में काम कर रहा है। न्याय का शब्दिक अर्थ है एक वस्तु के दो बराबर-बराबर भाग, जो तराज़ू में रखने से एक समान उतरें, उनमें रत्ती भर फ़र्व़$ न हो और व्यावहारतः हम इसका मतलब यह लेते हैं कि जो बात कही जाए या जो काम किया जाए वह सच्चाई पर आधारित हो, उनमें तनिक भी पक्षपात या किसी प्रकार की असमानता न हो…।’’
    ‘‘…इस्लाम में न्याय को बहुत महत्व दिया गया है और कु़रआन में जगह-जगह मनुष्य को न्याय करने के आदेश मौजूद हैं। इसमें जहाँ गुण संबंधी ईश्वर के विभिन्न नाम आए हैं, वहाँ एक नाम आदिल अर्थात् न्यायकर्ता भी आया है। ईश्वर चूँकि स्वयं न्यायकर्ता है, वह अपने बन्दों से भी न्याय की आशा रखता है। पवित्र क़ुरआन में है कि ईश्वर न्याय की ही बात कहता है और हर बात का निर्णय न्याय के साथ ही करता है…।’’
    ‘‘…इस्लाम में पड़ोसी के साथ अच्छे व्यवहार पर बड़ा बल दिया गया है। परन्तु इसका उद्देश्य यह नहीं है कि पड़ोसी की सहायता करने से पड़ोसी भी समय पर काम आए, अपितु इसे एक मानवीय कर्तव्य ठहराया गया है, इसे आवश्यक क़रार दिया गया है और यह कर्तव्य पड़ोसी ही तक सीमित नहीं है बल्कि किसी साधारण मनुष्य से भी असम्मानजनक व्यवहार न करने की ताकीद की गई है…।’’
    ‘‘…निस्सन्देह अन्य धर्मों में हर एक मनुष्य को अपने प्राण की तरह प्यार करना, अपने ही समान समझना, सब की आत्मा में एक ही पवित्र ईश्वर के दर्शन करना आदि लिखा है। किन्तु स्पष्ट रूप से अपने पड़ोसी के साथ अच्छा व्यवहार करने और उसके अत्याचारों को भी धैर्यपूर्वक सहन करने के बारे में जो शिक्षा पैग़म्बरे इस्लाम ने खुले शब्दों में दी है वह कहीं और नहीं पाई जाती…।’’

    —‘इस्लाम, मानवतापूर्ण ईश्वरीय धर्म’
    पृ॰ 28,41,45 से उद्धृत
    मधुर सन्देश संगम, नई दिल्ली, 2003 ई॰

    १४– राजेन्द्र नारायण लाल (एम॰ ए॰ (इतिहास) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)

    ‘‘…संसार के सब धर्मों में इस्लाम की एक विशेषता यह भी है कि इसके विरुद्ध जितना भ्रष्ट प्रचार हुआ किसी अन्य धर्म के विरुद्ध नहीं हुआ । सबसे पहले तो महाईशदूत मुहम्मद साहब की जाति कु़रैश ही ने इस्लाम का विरोध किया और अन्य कई साधनों के साथ भ्रष्ट प्रचार और अत्याचार का साधन अपनाया। यह भी इस्लाम की एक विशेषता ही है कि उसके विरुद्ध जितना प्रचार हुआ वह उतना ही फैलता और उन्नति करता गया तथा यह भी प्रमाण है—इस्लाम के ईश्वरीय सत्य-धर्म होने का। इस्लाम के विरुद्ध जितने प्रकार के प्रचार किए गए हैं और किए जाते हैं उनमें सबसे उग्र यह है कि इस्लाम तलवार के ज़ोर से फैला, यदि ऐसा नहीं है तो संसार में अनेक धर्मों के होते हुए इस्लाम चमत्कारी रूप से संसार में कैसे फैल गया? इस प्रश्न या शंका का संक्षिप्त उत्तर तो यह है कि जिस काल में इस्लाम का उदय हुआ उन धर्मों के आचरणहीन अनुयायियों ने धर्म को भी भ्रष्ट कर दिया था। अतः मानव कल्याण हेतु ईश्वर की इच्छा द्वारा इस्लाम सफल हुआ और संसार में फैला, इसका साक्षी इतिहास है…।’’
    ‘‘…इस्लाम को तलवार की शक्ति से प्रसारित होना बताने वाले (लोग) इस तथ्य से अवगत होंगे कि अरब मुसलमानों के ग़ैर-मुस्लिम विजेता तातारियों ने विजय के बाद विजित अरबों का इस्लाम धर्म स्वयं ही स्वीकार कर लिया। ऐसी विचित्र घटना कैसे घट गई? तलवार की शक्ति जो विजेताओं के पास थी वह इस्लाम से विजित क्यों हो गई…?’’
    ‘‘…मुसलमानों का अस्तित्व भारत के लिए वरदान ही सिद्ध हुआ। उत्तर और दक्षिण भारत की एकता का श्रेय मुस्लिम साम्राज्य, और केवल मुस्लिम साम्राज्य को ही प्राप्त है। मुसलमानों का समतावाद भी हिन्दुओं को प्रभावित किए बिना नहीं रहा। अधिकतर हिन्दू सुधारक जैसे रामानुज, रामानन्द, नानक, चैतन्य आदि मुस्लिम-भारत की ही देन है। भक्ति आन्दोलन जिसने कट्टरता को बहुत कुछ नियंत्रित किया, सिख धर्म और आर्य समाज जो एकेश्वरवादी और समतावादी हैं, इस्लाम ही के प्रभाव का परिणाम हैं। समता संबंधी और सामाजिक सुधार संबंधी सरकरी क़ानून जैसे अनिवार्य परिस्थिति में तलाक़ और पत्नी और पुत्री का सम्पत्ति में अधिकतर आदि इस्लाम प्रेरित ही हैं…।’’

    —‘इस्लाम एक स्वयंसिद्ध ईश्वरीय जीवन व्यवस्था’
    पृष्ठ 40,42,52 से उद्धृत
    साहित्य सौरभ, नई दिल्ली, 2007 ई॰

    ————————————————— ध्यान देने योग्य ये है की ये सब लोग भारतीय हैं और आपकी ही हमारी तरह हैं लेकिन हमसे बेहतर समझ वाले और स्तीथि वाले हैं उम्मीद करती हूँ शायद इसका कुछ फायदा होगा

    • तरुण विजय या पाञ्चजन्य ने कभी भी ऐसा लेख नहीं छापा। झूठ की हर हद पार की है तुमने।

      यदि बाबा साहब इस्लाम के प्रति इतना उच्च विचार रखते थे तो क्या करण था कि उन्होने इस्लाम को न अपना कर बौद्ध अपनाया?

      आर्य समाज इस्लाम की देन है इसीलिये इस्लाम को पानी पी पी कर गालिया दी है सत्यार्थ प्रकाश मे।

  44. आदरणीय राजेश कपूर जी, मधुसुधन जी और शिशिर जी…………
    राजेश कपूर जी आप तो स्वामी विवेकानंद को रोगी बता चुके हैं पता नहीं आप पर तो इस बात का कितना असर होगा जबकि पूरी दुनिया में हिन्दू धरम को पुनर्जीवन स्वामी विवेकानंद ने ही दिया है फिर भी आपकी सेवा में ये लिख रही हूँ की कुछ भारतीयों के इस्लाम धरम के बारे में क्या विचार हैं शायद अब आप उनको भारतीय ही न माने फिर भी……………………
    १- स्वामी विवेकानंद (विश्व-विख्यात धर्मविद्)

    ‘‘…मुहम्मद (इन्सानी) बराबरी, इन्सानी भाईचारे और तमाम मुसलमानों के भाईचारे के पैग़म्बर थे। …जैसे ही कोई व्यक्ति इस्लाम स्वीकार करता है पूरा इस्लाम बिना किसी भेदभाव के उसका खुली बाहों से स्वागत करता है, जबकि कोई दूसरा धर्म ऐसा नहीं करता। …हमारा अनुभव है कि यदि किसी धर्म के अनुयायियों ने इस (इन्सानी) बराबरी को दिन-प्रतिदिन के जीवन में व्यावहारिक स्तर पर बरता है तो वे इस्लाम और सिर्फ़ इस्लाम के अनुयायी हैं। …मुहम्मद ने अपने जीवन-आचरण से यह बात सिद्ध कर दी कि मुसलमानों में भरपूर बराबरी और भाईचारा है। यहाँ वर्ण, नस्ल, रंग या लिंग (के भेद) का कोई प्रश्न ही नहीं। …इसलिए हमारा पक्का विश्वास है कि व्यावहारिक इस्लाम की मदद लिए बिना वेदांती सिद्धांत—चाहे वे कितने ही उत्तम और अद्भुत हों—विशाल मानव-जाति के लिए मूल्यहीन (Valueless) हैं…।’’

    —‘टीचिंग्स ऑफ विवेकानंद, पृष्ठ-214, 215, 217, 218)
    अद्वैत आश्रम, कोलकाता-2004
    2- मुंशी प्रेमचंद (प्रसिद्ध साहित्यकार)
    ‘‘…जहाँ तक हम जानते हैं, किसी धर्म ने न्याय को इतनी महानता नहीं दी जितनी इस्लाम ने। …इस्लाम की बुनियाद न्याय पर रखी गई है। वहाँ राजा और रंक, अमीर और ग़रीब, बादशाह और फ़क़ीर के लिए ‘केवल एक’ न्याय है। किसी के साथ रियायत नहीं किसी का पक्षपात नहीं। ऐसी सैकड़ों रिवायतें पेश की जा सकती है जहाँ बेकसों ने बड़े-बड़े बलशाली आधिकारियों के मुक़ाबले में न्याय के बल से विजय पाई है। ऐसी मिसालों की भी कमी नहीं जहाँ बादशाहों ने अपने राजकुमार, अपनी बेगम, यहाँ तक कि स्वयं अपने तक को न्याय की वेदी पर होम कर दिया है। संसार की किसी सभ्य से सभ्य जाति की न्याय-नीति की, इस्लामी न्याय-नीति से तुलना कीजिए, आप इस्लाम का पल्ला झुका हुआ पाएँगे…।’’
    ‘‘…जिन दिनों इस्लाम का झंडा कटक से लेकर डेन्युष तक और तुर्किस्तान से लेकर स्पेन तक फ़हराता था मुसलमान बादशाहों की धार्मिक उदारता इतिहास में अपना सानी (समकक्ष) नहीं रखती थी। बड़े से बड़े राज्यपदों पर ग़ैर-मुस्लिमों को नियुक्त करना तो साधारण बात थी, महाविद्यालयों के कुलपति तक ईसाई और यहूदी होते थे…।’’
    ‘‘…यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि इस (समता) के विषय में इस्लाम ने अन्य सभी सभ्यताओं को बहुत पीछे छोड़ दिया है। वे सिद्धांत जिनका श्रेय अब कार्ल मार्क्स और रूसो को दिया जा रहा है वास्तव में अरब के मरुस्थल में प्रसूत हुए थे और उनका जन्मदाता अरब का वह उम्मी (अनपढ़, निरक्षर व्यक्ति) था जिसका नाम मुहम्मद (सल्ल॰) है। मुहम्मद (सल्ल॰) के सिवाय संसार में और कौन धर्म प्रणेता हुआ है जिसने ख़ुदा के सिवाय किसी मनुष्य के सामने सिर झुकाना गुनाह ठहराया है…?’’
    ‘‘…कोमल वर्ग के साथ तो इस्लाम ने जो सलूक किए हैं उनको देखते हुए अन्य समाजों का व्यवहार पाशविक जान पड़ता है। किस समाज में स्त्रियों का जायदाद पर इतना हक़ माना गया है जितना इस्लाम में? …हमारे विचार में वही सभ्यता श्रेष्ठ होने का दावा कर सकती है जो व्यक्ति को अधिक से अधिक उठने का अवसर दे। इस लिहाज़ से भी इस्लामी सभ्यता को कोई दूषित नहीं ठहरा सकता।’’
    ‘‘…हज़रत (मुहम्मद सल्ल॰) ने फ़रमाया—कोई मनुष्य उस वक़्त तक मोमिन (सच्चा मुस्लिम) नहीं हो सकता जब तक वह अपने भाई-बन्दों के लिए भी वही न चाहे जितना वह अपने लिए चाहता है। …जो प्राणी दूसरों का उपकार नहीं करता ख़ुदा उससे ख़ुश नहीं होता। उनका यह कथन सोने के अक्षरों में लिखे जाने योग्य है—‘‘ईश्वर की समस्त सृष्टि उसका परिवार है वही प्राणी ईश्वर का (सच्चा) भक्त है जो ख़ुदा के बन्दों के साथ नेकी करता है।’’ …अगर तुम्हें ख़ुदा की बन्दगी करनी है तो पहले उसके बन्दों से मुहब्बत करो।’’
    ‘‘…सूद (ब्याज) की पद्धति ने संसार में जितने अनर्थ किए हैं और कर रही है वह किसी से छिपे नहीं है। इस्लाम वह अकेला धर्म है जिसने सूद को हराम (अवैध) ठहराया है…।’’

    —‘इस्लामी सभ्यता’ साप्ताहिक प्रताप
    विशेषांक दिसम्बर 1925
    3-रामधारी सिंह दिनकर (प्रसिद्ध साहित्यकार और इतिहासकार)
    जब इस्लाम आया, उसे देश में फैलने से देर नहीं लगी। तलवार के भय अथवा पद के लोभ से तो बहुत थोड़े ही लोग मुसलमान हुए, ज़्यादा तो ऐसे ही थे जिन्होंने इस्लाम का वरण स्वेच्छा से किया। बंगाल, कश्मीर और पंजाब में गाँव-के-गाँव एक साथ मुसलमान बनाने के लिए किसी ख़ास आयोजन की आवश्यकता नहीं हुई। …मुहम्मद साहब ने जिस धर्म का उपदेश दिया वह अत्यंत सरल और सबके लिए सुलभ धर्म था। अतएव जनता उसकी ओर उत्साह से बढ़ी। ख़ास करके, आरंभ से ही उन्होंने इस बात पर काफ़ी ज़ोर दिया कि इस्लाम में दीक्षित हो जाने के बाद, आदमी आदमी के बीच कोई भेद नहीं रह जाता है। इस बराबरी वाले सिद्धांत के कारण इस्लाम की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई और जिस समाज में निम्न स्तर के लोग उच्च स्तर वालों के धार्मिक या सामाजिक अत्याचार से पीड़ित थे उस समाज के निम्न स्तर के लोगों के बीच यह धर्म आसानी से फैल गया…।
    ‘‘…सबसे पहले इस्लाम का प्रचार नगरों में आरंभ हुआ क्योंकि विजेयता, मुख्यतः नगरों में ही रहते थे…अन्त्यज और निचली जाति के लोगों पर नगरों में सबसे अधिक अत्याचार था। ये लोग प्रायः नगर के भीतर बसने नहीं दिए जाते थे…इस्लाम ने जब उदार आलिंगन के लिए अपनी बाँहें इन अन्त्यजों और ब्राह्मण-पीड़ित जातियों की ओर पढ़ाईं, ये जातियाँ प्रसन्नता से मुसलमान हो गईं।
    कश्मीर और बंगाल में तो लोग झुंड-के-झुंड मुसलमान हुए। इन्हें किसी ने लाठी से हाँक कर इस्लाम के घेरे में नहीं पहुँचाया, प्रत्युत, ये पहले से ही ब्राह्मण धर्म से चिढ़े हुए थे…जब इस्लाम आया…इन्हें लगा जैसे यह इस्लाम ही उनका अपना धर्म हो। अरब और ईरान के मुसलमान तो यहाँ बहुत कम आए थे। सैकड़े-पच्चानवे तो वे ही लोग हैं जिनके बाप-दादा हिन्दू थे…।
    ‘‘जिस इस्लाम का प्रवर्त्तन हज़रत मुहम्मद ने किया था…वह धर्म, सचमुच, स्वच्छ धर्म था और उसके अनुयायी सच्चरित्र, दयालु, उदार, ईमानदार थे। उन्होंने मानवता को एक नया संदेश दिया, गिरते हुए लोगों को ऊँचा उठाया और पहले-पहल दुनिया में यह दृष्टांत उपस्थित किया कि धर्म के अन्दर रहने वाले सभी आपस में समान हैं। उन दिनों इस्लाम ने जो लड़ाइयाँ लड़ीं उनकी विवरण भी मनुष्य के चरित्रा को ऊँचा उठाने वाला है।’’

    —‘संस्कृति के चार अध्याय’
    लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 1994
    पृष्ठ-262, 278, 284, 326, 317
    ४-विशम्भर नाथ पाण्डे भूतपूर्व राज्यपाल, उड़ीसा
    क़ुरआन ने मनुष्य के आध्यात्मिक, आर्थिक और राजकाजी जीवन को जिन मौलिक सिद्धांतों पर क़ायम करना चाहा है उनमें लोकतंत्र को बहुत ऊँची जग हदी गई है और समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व-भावना के स्वर्णिम सिद्धांतों को मानव जीवन की बुनियाद ठहराया गया है।
    क़ुरआन ‘‘तौहीद’’ यानी एकेश्वरवाद को दुनिया की सबसे बड़ी सच्चाई बताता है। वह आदमी की ज़िन्दगी के हर पहलू की बुनियाद इसी सच्चाई पर क़ायम करता है। क़ुरआन का कहना है कि जब कुल सृष्टि का ईश्वर एक है तो लाज़मी तौर पर कुल मानव समाज भी उसी ईश्वर की एकता का एक रूप है। आदमी अपनी बुद्धि और अपनी आध्यात्मिक शक्तियों से इस सच्चाई को अच्छी तरह समझ सकता इै। इसलिए आदमी का सबसे पहला कर्तव्य यह है कि ईश्वर की एकता को अपने धर्म-ईमान की बुनियाद बनाए और अपने उस मालिक के सामने, जिसने उसे पैदा किया और दुनिया की नेमतें दीं, सर झुकाए। आदमी की रूहानी ज़िन्दगी का यही सबसे पहला उसूल है।
    एकेश्वरवाद के सिद्धांत पर ही आधारित क़ुरआन ने दो तरह के कर्तव्य हर आदमी के सामने रखे हैं—एक, जिन्हें वह ‘हक़ूक़-अल्लाह’ अर्थात ईश्वर के प्रति मनुष्य के कर्तव्य कहता है और दूसरे, जिन्हें वह ‘हक़ूक़-उल-अबाद’ अर्थात मानव के प्रति-मानव के कर्तव्य। हक़ू$क़-अल्लाह में नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात, आख़रत और देवदूतों (फ़रिश्तों) पर विश्वास जैसी बातें शामिल हैं, जिन्हें हर व्यक्ति देश काल के अनुसार अपने ढंग से पूरा कर सकता है।
    क़ुरआन ने इन्हें इन्सान के लिए फ़र्ज़ बताया है इसे ही वास्तविक इबादत (ईश्वर पूजा) कहा है। इन कर्तव्यों के पूरा करने से आदमी में रूहानी शक्ति आती है।
    ‘हक़ू$क़-अल्लाह’ के साथ ही क़ुरआन ने हक़ू$क़-उल-अबाद’ अर्थात मानव के प्रति मानव के कर्तव्य पर भी ज़ोर दिया है और साफ़ कहा है कि अगर हक़ूक़-अल्लाह के पूरा करने में किसी तरह की कमी रह जाए तो ख़ुदा माफ़ कर सकता है, लेकिन अगर हक़ूक़-उल-अबाद के पूरा करने में ज़र्रा बराबर की कमी रह जाए तो ख़ुदा उसे हरगिज़ माफ़ न करेगा। ऐसे आदमी को इस दुनिया और दूसरी दुनिया, दोनों में, ख़िसारा अर्थात् घाटा उठाना होगा।
    क़ुरआन का यह पहला बुनियादी उसूल हुआ।
    क़ुरआन का दूसरा उसूल यह है कि हक़ूक़-अल्लाह यानी नमाज़ रोज़ा, ज़कात और हज आदमी के आध्यात्मिक (रूहानी) जीवन और आत्मिक जीवन (Spiritual Life) से संबंध रखते हैं। इसलिए इन्हें ईमान (श्रद्धा), ख़ुलूसे क़ल्ब (शुद्ध हृदय) और बेग़रज़ी (निस्वार्थ भावना) के साथ पूरा करना चाहिए, यानी इनके पूरा करने में अपने लिए कोई निजी या दुनियावी फ़ायदा, …निगाह में नहीं होनी चाहिए। यह केवल अल्लाह के निकट जाने के लिए और रूहानी शक्ति हासिल करने के लिए हैं ताकि आदमी दीन-धर्म की सीधी राह पर चल सके। अगर इनमें कोई भी स्वार्थ या ख़ुदग़रज़ी आएगी तो इनका वास्तविक उद्देश्य जाता रहेगा और यह व्यर्थ हो जाएँगे।
    आदमी की समाजी ज़िन्दगी का पहला फ़र्ज़ क़ुरआन में ग़रीबों, लाचारों, दुखियों और पीड़ितों से सहानुभूति और उनकी सहायता करना बताया गया है। क़ुरआन ने इन्सान के समाजी जीवन की बुनियाद ईश्वर की एकता और इन्सानी भाईचारे पर रखी है। क़ुरआन की सबसे बड़ी ख़ूबी यह है कि वह इन्सानियत के, मानवता के, टुकड़े नहीं करता। इस्लाम के इन्सानी भाईचारे की परिधि में कुल मानवजाति, कुल इन्सान शामिल हैं और हर व्यक्ति को सदा सबकी अर्थात् आखिल मानवता की भलाई, बेहतरी और कल्याण का ध्येय अपने सामने रखना चाहिए। क़ुरआन का कहना है कि सारा मानव समाज एक कुटुम्ब है। क़ुरआन की कई आयतों में नबियों और पैग़म्बरों को भी भाई शब्द से संबोधित किया गया है। मुहम्मद साहब हर समय की नमाज़ के बाद आमतौर पर यह कहा करते थे—‘‘मैं साक्षी हूँ कि दुनिया के सब आदमी एक-दूसरे के भाई हैं।’’ यह शब्द इतनी गहराई और भावुकता के साथ उनके गले से निकलते थे कि उनकी आँखों से टप-टप आंसू गिरने लगते थे।
    इससे अधिक स्पष्ट और ज़ोरदार शब्दों में मानव-एकता और मानवजाति के एक कुटुम्ब होने का बयान नहीं किया जा सकता। कु़रआन की यह तालीम और इस्लाम के पैग़म्बर की यह मिसाल उन सारे रिवाजों और क़ायदे-क़ानूनों और उन सब क़ौमी, मुल्की, और नसली…गिरोहबन्दियों को एकदम ग़लत और नाजायज़ कर देती है जो एक इन्सान को दूसरे इन्सान से अलग करती हैं और मानव-मानव के बीच भेदभाव और झगड़े पैदा करती हैं।

    —‘पैग़म्बर मुहम्मद, कु़रआन और हदीस, इस्लामी दर्शन’
    गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति, नई दिल्ली, 1994

    ५- वेनगताचिल्लम अडियार

    जन्म: 16, मई 1938
    ● वरिष्ठ तमिल लेखक; न्यूज़ एडीटर: दैनिक ‘मुरासोली’
    ● तमिलनाडु के 3 मुख्यमंत्रियों के सहायक
    ● कलाइममानी अवार्ड (विग जेम ऑफ आर्ट्स) तमिलनाडु सरकार; पुरस्कृत 1982
    ● 120 उपन्यासों, 13 पुस्तकों, 13 ड्रामों के लेखक
    ● संस्थापक, पत्रिका ‘नेरोत्तम’
    …..‘‘औरत के अधिकारों से अनभिज्ञ अरब समाज में प्यारे नबी (सल्ल॰) ने औरत को मर्द के बराबर दर्जा दिया। औरत का जायदाद और सम्पत्ति में कोई हक़ न था, आप (सल्ल॰) ने विरासत में उसका हक़ नियत किया। औरत के हक़ और अधिकार बताने के लिए क़ुरआन में निर्देश उतारे गए।
    माँ-बाप और अन्य रिश्तेदारों की जायदाद में औरतों को भी वारिस घोषित किया गया। आज सभ्यता का राग अलापने वाले कई देशों में औरत को न जायदाद का हक़ है न वोट देने का। इंग्लिस्तान में औरत को वोट का अधिकार 1928 ई॰ में पहली बार दिया गया। भारतीय समाज में औरत को जायदाद का हक़ पिछले दिनों में हासिल हुआ।
    लेकिन हम देखते हैं कि आज से चौदह सौ वर्ष पूर्व ही ये सारे हक़ और अधिकार नबी (सल्ल॰) ने औरतों को प्रदान किए। कितने बड़े उपकारकर्ता हैं आप।
    आप (सल्ल॰) की शिक्षाओं में औरतों के हक़ पर काफ़ी ज़ोर दिया गया है। आप (सल्ल॰) ने ताकीद की कि लोग कर्तव्य से ग़ाफ़िल न हों और न्यायसंगत रूप से औरतों के हक़ अदा करते रहें। आप (सल्ल॰) ने यह भी नसीहत की है कि औरत को मारा-पीटा न जाए।
    औरत के साथ कैसा बर्ताव किया जाए, इस संबंध में नबी (सल्ल॰) की बातों का अवलोकन कीजिए:
    1. अपनी पत्नी को मारने वाला अच्छे आचरण का नहीं है।
    2. तुममें से सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति वह है जो अपनी पत्नी से अच्छा सुलूक करे।
    3. औरतों के साथ अच्छे तरीक़े से पेश आने का ख़ुदा हुक्म देता है, क्योंकि वे तुम्हारी माँ, बहन और बेटियाँ हैं।
    4. माँ के क़दमों के नीचे जन्नत है।
    5. कोई मुसलमान अपनी पत्नी से नफ़रत न करे। अगर उसकी कोई एक आदत बुरी है तो उसकी दूसरी अच्छी आदत को देखकर मर्द को ख़ुश होना चाहिए।
    6. अपनी पत्नी के साथ दासी जैसा व्यवहार न करो। उसको मारो भी मत।
    7. जब तुम खाओ तो अपनी पत्नी को भी खिलाओ। जब तुम पहनो तो अपनी पत्नी को भी पहनाओ।
    8. पत्नी को ताने मत दो। चेहरे पर न मारो। उसका दिल न दुखाओ। उसको छोड़कर न चले जाओ।
    9. पत्नी अपने पति के स्थान पर समस्त अधिकारों की मालिक है।
    10. अपनी पत्नियों के साथ जो अच्छी तरह बर्ताव करेंगे, वही तुम में सबसे बेहतर हैं।
    मर्द को किसी भी समय अपनी काम-तृष्णा की ज़रूरत पेश आ सकती है। इसलिए कि उसे क़ुदरत ने हर हाल में हमेशा सहवास के योग्य बनाया है जबकि औरत का मामला इससे भिन्न है।
    माहवारी के दिनों में, गर्भावस्था में (नौ-दस माह), प्रसव के बाद के कुछ माह औरत इस योग्य नहीं होती कि उसके साथ उसका पति संभोग कर सके।
    सारे ही मर्दों से यह आशा सही न होगी कि वे बहुत ही संयम और नियंत्रण से काम लेंगे और जब तक उनकी पत्नियाँ इस योग्य नहीं हो जातीं कि वे उनके पास जाएँ, वे काम इच्छा को नियंत्रित रखेंगे। मर्द जायज़ तरीक़े से अपनी ज़रूरत पूरी कर सके, ज़रूरी है कि इसके लिए राहें खोली जाएँ और ऐसी तंगी न रखी जाए कि वह हराम रास्तों पर चलने पर विवश हो। पत्नी तो उसकी एक हो, आशना औरतों की कोई क़ैद न रहे। इससे समाज में जो गन्दगी फैलेगी और जिस तरह आचरण और चरित्रा ख़राब होंगे इसका अनुमान लगाना आपके लिए कुछ मुश्किल नहीं है।
    व्यभिचार और बदकारी को हराम ठहराकर बहुस्त्रीवाद की क़ानूनी इजाज़त देने वाला बुद्धिसंगत दीन इस्लाम है।
    एक से अधिक शादियों की मर्यादित रूप में अनुमति देकर वास्तव में इस्लाम ने मर्द और औरत की शारीरिक संरचना, उनकी मानसिक स्थितियों और व्यावहारिक आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा है और इस तरह हमारी दृष्टि में इस्लाम बिल्कुल एक वैज्ञानिक धर्म साबित होता है। यह एक हक़ीक़त है, जिस पर मेरा दृढ़ और अटल विश्वास है।
    इतिहास में हमें कोई ऐसी घटना नहीं मिलती कि अगर किसी ने इस्लाम क़बूल करने से इन्कार किया तो उसे केवल इस्लाम क़बूल न करने के जुर्म में क़त्ल कर दिया गया हो, लेकिन कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट के बीच संघर्ष में धर्म की बुनियाद पर बड़े पैमाने पर ख़ून-ख़राबा हुआ। दूर क्यों जाइए, तमिलनाउु के इतिहास ही को देखिए, मदुरै में ज्ञान समुन्द्र के काल में आठ हज़ार समनर मत के अनुयायियों को सूली दी गई, यह हमारा इतिहास है।
    अरब में प्यारे नबी (सल्ल॰) शासक थे तो वहाँ यहूदी भी आबाद थे और ईसाई भी, लेकिन आप (सल्ल॰) ने उन पर कोई ज़्यादती नहीं की।
    हिन्दुस्तान में मुस्लिम शासकों के ज़माने में हिन्दू धर्म को अपनाने और उस पर चलने की पूर्ण अनुमति थी। इतिहास गवाह है कि इन शासकों ने मन्दिरों की रक्षा और उनकी देखभाल की है।
    मुस्लिम फ़ौजकशी अगर इस्लाम को फैलाने के लिए होती तो दिल्ली के मुस्लिम सुल्तान के ख़िलाफ़ मुसलमान बाबर हरगिज़ फ़ौजकशी न करता। मुल्कगीरी उस समय की सर्वमान्य राजनीति थी। मुल्कगीरी का कोई संबंध धर्म के प्रचार से नहीं होता। बहुत सारे मुस्लिम उलमा और सूफ़ी इस्लाम के प्रचार के लिए हिन्दुस्तान आए हैं और उन्होंने अपने तौर पर इस्लाम के प्रचार का काम यहाँ अंजाम दिया, उसका मुस्लिम शासकों से कोई संबंध न था, इसके सबूत में नागोर में दफ़्न हज़रत शाहुल हमीद, अजमेर के शाह मुईनुद्दीन चिश्ती वग़ैरह को पेश किया जा सकता है।
    इस्लाम अपने उसूलों और अपनी नैतिक शिक्षाओं की दृष्टि से अपने अन्दर बड़ी कशिश रखता है, यही वजह है कि इन्सानों के दिल उसकी तरफ़ स्वतः खिंचे चले आते हैं। फिर ऐसे दीन को अपने प्रचार के लिए तलवार उठाने की आवश्यकता ही कहाँ शेष रहती है?
    श्री वेनगाताचिल्लम अडियार ने बाद में (6 जून 1987 को) इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। और ‘अब्दुल्लाह अडियार’ नाम रख लिया था।
    श्री अडियार से प्रभावित होकर जिन लोगों ने इस्लाम धर्म स्वीकार किया उनमें उल्लेखनीय विभूतियाँ हैं :
    1) श्री कोडिक्कल चेलप्पा, भूतपूर्व ज़िला सचिव, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (अब ‘कोडिक्कल शेख़ अब्दुल्लाह’)
    2) वीरभद्रनम, डॉ॰ अम्बेडकर के सहपाठी (अब ‘मुहम्मद बिलाल’)
    3) स्वामी आनन्द भिक्खू—बौद्ध भिक्षु (अब ‘मुजीबुल्लाह’)
    श्री अब्दुल्लाह अडियार के पिता वन्कटचिल्लम और उनके दो बेटों ने भी इस्लाम स्वीकार कर लिया था।

    —‘इस्लाम माय फ़सिनेशन’
    एम॰एम॰आई॰ पब्लिकेशंस, नई दिल्ली, २००७

    ६—- प्रोफ़ेसर के॰ एस॰ रामाकृष्णा राव (अध्यक्ष, दर्शन-शास्त्र विभाग, राजकीय कन्या विद्यालय मैसूर, कर्नाटक)
    ……..‘‘पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) की शिक्षाओं का ही यह व्यावहारिक गुण है, जिसने वैज्ञानिक प्रवृत्ति को जन्म दिया। इन्हीं शिक्षाओं ने नित्य के काम-काज और उन कामों को भी जो सांसारिक काम कहलाते हैं आदर और पवित्राता प्रदान की। क़ुरआन कहता है कि इन्सान को ख़ुदा की इबादत के लिए पैदा किया गया है, लेकिन ‘इबादत’ (पूजा) की उसकी अपनी अलग परिभाषा है। ख़ुदा की इबादत केवल पूजा-पाठ आदि तक सीमित नहीं, बल्कि हर वह कार्य जो अल्लाह के आदेशानुसार उसकी प्रसन्नता प्राप्त करने तथा मानव-जाति की भलाई के लिए किया जाए इबादत के अंतर्गत आता है। इस्लाम ने पूरे जीवन और उससे संबद्ध सारे मामलों को पावन एवं पवित्र घोषित किया है। शर्त यह है कि उसे ईमानदारी, न्याय और नेकनियती के साथ किया जाए। पवित्र और अपवित्र के बीच चले आ रहे अनुचित भेद को मिटा दिया। क़ुरआन कहता है कि अगर तुम पवित्र और स्वच्छ भोजन खाकर अल्लाह का आभार स्वीकार करो तो यह भी इबादत है। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को खाने का एक लुक़्मा खिलाता है तो यह भी नेकी और भलाई का काम है और अल्लाह के यहाँ वह इसका अच्छा बदला पाएगा। पैग़म्बर की एक और हदीस है—‘‘अगर कोई व्यक्ति अपनी कामना और ख़्वाहिश को पूरा करता है तो उसका भी उसे सवाब मिलेगा। शर्त यह है कि इसके लिए वही तरीक़ा अपनाए जो जायज़ हो।’’ एक साहब जो आपकी बातें सुन रहे थे, आश्चर्य से बोले, ‘‘हे अल्लाह के पैग़म्बर वह तो केवल अपनी इच्छाओं और अपने मन की कामनाओं को पूरा करता है। आपने उत्तर दिया, ‘यदि उसने अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अवैध तरीक़ों और साधनों को अपनाया होता तो उसे इसकी सज़ा मिलती, तो फिर जायज़ तरीक़ा अपनाने पर उसे इनाम क्यों नहीं मिलना चाहिए?
    धर्म की इस नयी धारणा ने कि, ‘धर्म का विषय पूर्णतः अलौकिक जगत के मामलों तक सीमित न रहना चाहिए, बल्कि इसे लौकिक जीवन के उत्थान पर भी ध्यान देना चाहिए; नीति-शास्त्रा और आचार-शास्त्र के नए मूल्यों एवं मान्यताओं को नई दिशा दी। इसने दैनिक जीवन में लोगों के सामान्य आपसी संबंधों पर स्थाई प्रभाव डाला। इसने जनता के लिए गहरी शक्ति का काम किया, इसके अतिरिक्त लोगों के अधिकारों और कर्तव्यों की धारणाओं को सुव्यवस्थित करना और इसका अनपढ़ लोगों और बुद्धिमान दार्शनिकों के लिए समान रूप से ग्रहण करने और व्यवहार में लाने के योग्य होना पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं की प्रमुख विशेषताएँ हैं। यहाँ यह बात सतर्कता के साथ दिमाग़ में आ जानी चाहिए कि भले कामों पर ज़ोर देने का अर्थ यह नहीं है कि इसके लिए धार्मिक आस्थाओं की पवित्रता एवं शुद्धता को कु़र्बान किया गया है। ऐसी बहुत-सी विचारधाराएँ हैं, जिनमें या तो व्यावहारिता के महत्व की बलि देकर आस्थाओं ही को सर्वोपरि माना गया है या फिर धर्म की शुद्ध धारणा एवं आस्था की परवाह न करके केवल कर्म को ही महत्व दिया गया है। इनके विपरीत इस्लाम सत्य आस्था एवं सतकर्म (के सामंजस्य) के नियम पर आधारित है। यहाँ साधन भी उतना ही महत्व रखते हैं जितना लक्ष्य। लक्ष्यों को भी वही महत्ता प्राप्त है जो साधनों को प्राप्त है। यह एक जैव इकाई की तरह है, इसके जीवन और विकास का रहस्य इनके आपस में जुड़े रहने में निहित है। अगर ये एक-दूसरे से अलग होते हैं तो ये क्षीण और विनष्ट होकर रहेंगे। इस्लाम में ईमान और अमल को अलग-अलग नहीं किया जा सकता। सत्य ज्ञान को सत्कर्म में ढल जाना चाहिए। ताकि अच्छे फल प्राप्त हो सवें$। ‘जो लोग ईमान रखते हैं और नेक अमल करते हैं, केवल वे ही स्वर्ग में जा सकेंगे’ यह बात क़ुरआन में कितनी ही बार दोहराई गयी है। इस बात को पचास बार से कम नहीं दोहराया गया है। सोच-विचार और ध्यान पर उभारा अवश्य गया है, लेकिन मात्र ध्यान और सोच-विचार ही लक्ष्य नहीं है। जो लोग केवल ईमान रखें, लेकिन उसके अनुसार कर्म न करें उनका इस्लाम में कोई मक़ाम नहीं है। जो ईमान तो रखें लेकिन कुकर्म भी करें उनका ईमान क्षीण है। ईश्वरीय क़ानून मात्र विचार-पद्धति नहीं, बल्कि वह एक कर्म और प्रयास का क़ानून है। यह दीन (धर्म) लोगों के लिए ज्ञान से कर्म और कर्म से परितोष द्वारा स्थाई एवं शाश्वत उन्नति का मार्ग दिखलाता है।
    लेकिन वह सच्चा ईमान क्या है, जिससे सत्कर्म का आविर्भाव होता है, जिसके फलस्वरूप पूर्ण परितोष प्राप्त होता है? इस्लाम का बुनियादी सिद्धांत ऐकेश्वरवाद है ‘अल्लाह बस एक ही है, उसके अतिरिक्त कोई इलाह नहीं’ इस्लाम का मूल मंत्र है। इस्लाम की तमाम शिक्षाएँ और कर्म इसी से जुड़े हुए हैं। वह केवल अपने अलौकिक व्यक्तित्व के कारण ही अद्वितीय नहीं, बल्कि अपने दिव्य एवं अलौकिक गुणों एवं क्षमताओं की दृष्टि से भी अनन्य और बेजोड़ है।’’

    —‘मुहम्मद, इस्लाम के पैग़म्बर’
    मधुर संदेश संगम, नई दिल्ली, १९९०

    ७–एम॰ एन॰ रॉय संस्थापक-कम्युनिस्ट पार्टी, मैक्सिको कम्युनिस्ट पार्टी, भारत
    …‘‘इस्लाम के एकेश्वरवाद के प्रति अरब के बद्दुओं के दृढ़ विश्वास ने न केवल क़बीलों के बुतों को ध्वस्त कर दिया बल्कि वे इतिहास में एक ऐसी अजेय शक्ति बनकर उभरे जिसने मानवता को बुतपरस्ती की लानत से छुटकारा दिलाया। ईसाइयों के, संन्यास और चमत्कारों पर भरोसा करने की घातक प्रवृत्ति को झिकझोड़ कर रख दिया और पादरियों और हवारियों (मसीह के साथियों) के पूजा की कुप्रथा से भी छुटकारा दिला दिया।’’
    ‘‘सामाजिक बिखराव और आध्यात्मिक बेचैनी के घोर अंधकार वाले वातावरण में अरब के पैग़म्बर की आशावान एवं सशक्त घोषणा आशा की एक प्रज्वलित किरण बनकर उभरी। लाखों लोगों का मन उस नये धर्म की सांसारिक एवं पारलौकिक सफलता की ओर आकर्षित हुआ। इस्लाम के विजयी बिगुल ने सोई हुई निराश ज़िन्दगियों को जगा दिया। मानव-प्रवृ$ति के स्वस्थ रुझान ने उन लोगों में भी हिम्मत पैदा की जो ईसा के प्रतिष्ठित साथियों के पतनशील होने के बाद संसार-विमुखता के अंधविश्वासी कल्पना के शिकार हो चुके थे। वे लोग इस नई आस्था से जुड़ाव महसूस करने लगे। इस्लाम ने उन लोगों को जो अपमान के गढ़े में पड़े हुए थे एक नई सोच प्रदान की। इसलिए जो उथल-पुथल पैदा हुई उससे एक नए समाज का गठन हुआ जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को यह अवसर उपलब्ध था कि वह अपनी स्वाभाविक क्षमताओं के अनुसार आगे बढ़ सके और तरक़्क़ी कर सके। इस्लाम की जोशीली तहरीक और मुस्लिम विजयताओं के उदार रवैयों ने उत्तरी अफ़्रीक़ा की उपजाऊ भूमि में लोगों के कठिन परिश्रम के कारण जल्द ही हरियाली छा गई और लोगों की ख़ुशहाली वापस आ गई…।’’
    ‘‘…ईसाइयत के पतन ने एक नये शक्तिशाली धर्म के उदय को ऐतिहासिक ज़रूरत बना दिया था। इस्लाम ने अपने अनुयायियों को एक सुन्दर स्वर्ग की कल्पना ही नहीं दी बल्कि उसने दुनिया को पराजित करने का आह्वान भी किया। इस्लाम ने बताया कि जन्नत की ख़ुशियों भरी ज़िन्दगी इस दुनिया में भी संभव हैं। मुहम्मद ने अपने लोगों को क़ौमी एकता के धागे में ही नहीं पिरोया बल्कि पूरी क़ौम के अन्दर वह भाव और जोश पैदा किया कि वे हर जगह इन्क़िलाब का नारा बुलन्द करे जिसे सुनकर पड़ोसी देशों के शोषित/पीड़ित लोगों ने भी इस्लाम का आगे बढ़कर स्वागत किया।
    इस्लाम की इस नाटकीय सफलता का कारण आध्यात्मिक भी था, सामाजिक भी था और राजनीतिक भी। इसी बात पर ज़ोर देते हुए गिबन कहता है: ज़रतुश्त की व्यवस्था से अधिक स्वच्छ एवं पारदर्शी और मूसा के क़ानूनों से कहीं अधिक लचीला मुहम्मद का यह धर्म, बुद्धि एवं विवेक से अधिक निकट है। अंधविश्वास और पहेली से इसकी तुलना नहीं की जा सकती जिसने सातवीं शताब्दी में मूसा की शिक्षाओं को बदनुमा बना दिया था…।’’
    ‘‘…हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) का धर्म एकेश्वरवाद पर आधारित है और एकेश्वरवाद की आस्था ही उसकी ठोस बुनियाद भी है। इसमें किसी प्रकार के छूट की गुंजाइश नहीं और अपनी इसी विशेषता के कारण वह धर्म का सबसे श्रेष्ठ पैमाना भी बना। दार्शनिक दृष्टिकोण से भी एकेश्वरवाद की कल्पना ही इस धर्म की बुनियाद है। लेकिन एकेश्वरवाद की यह कल्पना भी अनेक प्रकार के अंधविश्वास को जन्म दे सकती है यदि यह दृष्टिकोण सामने न हो कि अल्लाह ने सृष्टि की रचना की है और इस सृष्टि से पहले कुछ नहीं था।
    प्राचीन दार्शनिक, चाहे वे यूनान के हों या भारत के, उनके यहां सृष्टि की रचना की यह कल्पना नहीं मिलती। यही कारण है कि जो धर्म उस प्राचीन दार्शनिक सोच से प्रभावित थे वे एकेश्वरवाद का नज़रिया क़ायम नहीं कर सके। जिसकी वजह से सभी बड़े-बड़े धर्म, चाहे वह हिन्दू धर्म हो, यहूदियत हो या ईसाइयत, धीरे-धीरे कई ख़ुदाओं को मानने लगे। यही कारण है कि वे सभी धर्म अपनी महानता खो बैठे। क्योंकि कई ख़ुदाओं की कल्पना सृष्टि को ख़ुदा के साथ सम्मिलित कर देती है जिससे ख़ुदा की कल्पना पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है। इससे पैदा करने की कल्पना ही समाप्त हो जाती है, इसलिए ख़ुदा की कल्पना भी समाप्त हो जाती है। यदि यह दुनिया अपने आप स्थापित हो सकती है तो यह ज़रूरी नहीं कि उसका कोई रचयिता भी हो और जब उसके अन्दर से पैदा करने की क्षमता समाप्त हो जाती है तो फिर ख़ुदा की भी आवश्यकता नहीं रहती।
    मुहम्मद का धर्म इस कठिनाई को आसानी से हल कर लेता है। यह ख़ुदा की कल्पना को आरंभिक बुद्धिवादियों की कठिनाइयों से आज़ाद करके यह दावा करता है कि अल्लाह ने ही सृष्टि की रचना की है। इस रचना से पहले कुछ नहीं था। अब अल्लाह अपनी पूरी शान और प्रतिष्ठा के साथ विराजमान हो जाता है। उसके अन्दर इस चीज़ की क्षमता एवं शक्ति है कि न केवल यह कि वह इस सृष्टि की रचना कर सकता है बल्कि अनेक सृष्टि की रचना करने की क्षमता रखता है। यह उसके शक्तिशाली और हैयुल क़ैयूम होने की दलील है। ख़ुदा को इस तरह स्थापित करने और स्थायित्व प्रदान करने की कल्पना ही मुहम्मद कारनामा है।
    अपने इस कारनामे के कारण ही इतिहास ने उन्हें सबसे स्वच्छ एवं पाक धर्म की बुनियाद रखने वाला मानता है। क्योंकि दूसरे सभी धर्म अपने समस्त भौतिक/प्राभौतिक कल्पनाओं, धार्मिक बारीकियों और दार्शनिक तर्कों/कुतर्कों के कारण न केवल त्रुटिपूर्ण धर्म हैं बल्कि केवल नाम के धर्म हैं…।’’
    ‘‘…यह बात तो बिल्कुल स्पष्ट है कि भारत में मुसलमानों की विजय के समय ऐसे लाखों लोग यहां मौजूद थे जिनके नज़दीक हिन्दू क़ानूनों के प्रति व़फादार रहने का कोई औचित्य नहीं था। और ब्राह्मणों की कट्टर धार्मिकता एवं परम्पराओं की रक्षा उनके नज़दीक निरर्थक थे। ऐसे सभी लोग अपनी हिन्दू विरासत को इस्लाम के समानता के क़ानून के लिए त्यागने को तैयार थे जो उन्हें हर प्रकार की सुरक्षा भी उपलब्ध करा रहा था ताकि वे कट्टर हिन्दुत्ववादियों के अत्याचार से छुटकारा हासिल कर सवें$। फिर भी हैवेल (Havel) इस बात से संतुष्ट नहीं था। हार कर उसने कहा: ‘‘यह इस्लाम का दर्शनशास्त्र नहीं था बल्कि उसकी सामाजिक योजना थी जिसके कारण लाखों लोगों ने इस धर्म को स्वीकार कर लिया। यह बात बिल्कुल सही है कि आम लोग दर्शन से प्रभावित नहीं होते। वे सामाजिक योजनाओं से अधिक प्रभावित होते हैं जो उन्हें मौजूदा ज़िन्दगी से बेहतर ज़िन्दगी की ज़मानत दे रहा था। इस्लाम ने जीवन की ऐसी व्यवस्था दी जो करोड़ों लोगों की ख़ुशी की वजह बना।’’
    ‘‘….ईरानी और मुग़ल विजेयताओं के अन्दर वह पारम्परिक उदारता और आज़ादपसन्दी मिलती है जो आरंभिक मुसलमानों की विशेषता थी। केवल यह सच्चाई कि दूर-दराज़ के मुट्ठी भर हमलावर इतने बड़े देश का इतनी लंबी अवधि तक शासक बने रहे और उनके अक़ीदे को लाखों लोगों ने अपनाकर अपना धर्म परिवर्तन कर लिया, यह साबित करने के लिए काफ़ी है कि वे भारतीय समाज की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा कर रहे थे। भारत में मुस्लिम शक्ति केवल कुछ हमलावरों की बहादुरी के कारण संगठित नहीं हुई थी बल्कि इस्लामी क़ानून के विकासमुखी महत्व और उसके प्रचार के कारण हुई थी। ऐसा हैवेल जैसा मुस्लिम विरोधी इतिहासकार भी मानता है। मुसलमानों की राजनैतिक व्यवस्था का हिन्दू सामाजिक जीवन पर दो तरह का प्रभाव पड़ा। इससे जाति-पाति के शिवं$जे और मज़बूत हुए जिसके कारण उसके विरुद्ध बग़ावत शुरू हो गई। साथ ही निचली और कमज़ोर जातियों के लिए बेहतर जीवन और भविष्य की ज़मानत उन्हें अपना धर्म छोड़कर नया धर्म अपनाने के लिए मजबूर करती रही। इसी की वजह से शूद्र न केवल आज़ाद हुए बल्कि कुछ मामलों में वे ब्राह्मणों के मालिक भी बन गए।’’

    —‘हिस्टोरिकल रोल ऑफ इस्लाम
    ऐन एस्से ऑन इस्लामिक कल्चर’
    क्रिटिकल क्वेस्ट पब्लिकेशन कलकत्ता-1939 से उद्धृत

    • WAH ITNI TAIYAARI TO KOI phd KE LIYE BHI NAHI KARTA…..MAN GAYE APKI ……..KAM KARNE KI DRIDTA….PAKKA JANNAT MILEGI APKO…

    • झूठ के प्रचार का माध्यम प्रवक्ता को बनाने की कोशिश मत करो कीड़ानवी।

      स्वामी विवेकानन्द जी की ख्याति विश्व मे हिन्दु धर्म के विषय मे भ्रांति दूर करने के लिये एवं हिन्दु धर्म की प्रशंसा के लिये है न कि इस्लाम की प्रशंसा के लिये। तुमने जिस पुस्तक का यहाँ उद्धरण दिया है, संयोग से वो पुस्तक दुनिया मे तुम्हारे सिवा किसी और को उपलब्ध नही होगी। वैसे तुम्हारी जानकारी के लिये स्वामी जी ने कहा था कि जब किसी अयोग्य व्यक्ति को अलौकिक शक्ति प्राप्त होती है तो इस्लाम जैसी भूल का निर्माण होता है।

      मुंशी प्रेमचंद ने अलग अलग जगह पर सभी धर्मों की प्रशंसा की है, इस्लाम की भी की होगी।

      रामधारी सिंह दिनकर जी ने कभी ऐसा कहा हो, मैने तो स्नातक की पुस्तकों मे नहीं पढा, और प्रथम उदाहरण झूठा होने के कारण इस पर भी विश्वास नही करता।

      विशम्भर नाथ पाण्डे भूतपूर्व राज्यपाल, उड़ीसा – इस्लाम और लोकतंत्र????? या तो यह व्यक्तव्य भी झूठा है या यह राजनेता।

      इस्लाम के इन्सानी भाईचारे की परिधि में कुल मानवजाति, कुल इन्सान शामिल हैं और हर व्यक्ति को सदा सबकी अर्थात् आखिल मानवता की भलाई, बेहतरी और कल्याण का ध्येय अपने सामने रखना चाहिए। – तरीका क्या रहेगा, लादेन का?

      …..‘‘औरत के अधिकारों से अनभिज्ञ अरब समाज में प्यारे नबी (सल्ल॰) ने औरत को मर्द के बराबर दर्जा दिया। — कैसे? २ औरतों की गवाही को एक मर्द की गवाही के बराबर मान कर? मर्द को ४ शादी की छूट है, क्या औरतें भी कर सकती हैं? मर्द औरत को मार सकता है, क्या औरत भी मर्द को मार सकती है? औरतों को बुर्का अनिवार्य है, क्या मर्दों को भी?

      एक से अधिक शादियों की मर्यादित रूप में अनुमति देकर वास्तव में इस्लाम ने मर्द और औरत की शारीरिक संरचना, उनकी मानसिक स्थितियों और व्यावहारिक आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा है –> जहाँ मर्द औरत की जरूरते पूरी ना कर सके, क्या औरत भी २,३ या ४ मर्द कर ले?

      इतिहास में हमें कोई ऐसी घटना नहीं मिलती कि अगर किसी ने इस्लाम क़बूल करने से इन्कार किया तो उसे केवल इस्लाम क़बूल न करने के जुर्म में क़त्ल कर दिया गया हो —> गुरु तेग बहादुर सिंह, सम्भाजी, गुरु गोविंद सिंह के बेटे……………………बहुत हैं

      हिन्दुस्तान में मुस्लिम शासकों के ज़माने में हिन्दू धर्म को अपनाने और उस पर चलने की पूर्ण अनुमति थी। इतिहास गवाह है कि इन शासकों ने मन्दिरों की रक्षा और उनकी देखभाल की है। —> कुतुबमीनार के पास कुब्बत -उल – इस्लाम मस्जिद हैं उसकी दिवालो पर आज भी हिन्दू और जैन देवी देवतावो कि तस्वीर नजर आ जाएगी। वहां पुरातत्व विभाग का बोर्ड भी लगा है, कि यह मस्जिद मंदिर तोड़ कर बनाई गई है। ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा कृष्ण जन्मभूमी स्पष्टतः हिन्दु भवनों के उपर बना दिखता है।

  45. पहला सवाल है की इस्लाम तलवार के बल पर फैला………
    कितना अलग नजरिया है हमारा और भेदभावपूर्ण भी, हम ब्रिटिश पुर्तगाली मंगोल हूण इत्यादि को तो कभी उनके धरम के आधार पर हमला नहीं मानते है परन्तु जहाँ इस्लाम की बात आती है उसको सही ठहरा देते हैं, यही से साडी गड़बड़ शुरी हो जाती है क्या इस्लाम तलवार से आया क्या वो धार्मिक हमला था इसको हम निम्न उदाह्र्नो से समझ सकते हैं …………………
    SYED ASIF IMAM KAKVI ने अपने ब्लॉग में जो कुछ लिखा है उसके आधार पर समझा जा सकता है की भारत पर जो हमला हुआ क्या वो धार्मिक हमला था……………..
    https://www.youbihar.com/profiles/blogs/2621418:BlogPost:५५३६६
    इस लिंक पर पूरा लिख देखा जा सकता है पर में आपकी सुविधा के लिए यहाँ लिख देती हूँ
    आज का ब्लॉग लिखने से पहले मैंने काफी सोच विचार किया, कई बार सोचा की यह
    एक संवेदनशील विषय है और मैं एक साधारण आदमी, फिर सोचा की जितनी भी
    मालूमात है उसको दुसरो से शेयर करने में कोई हर्ज नहीं है !

    शुरुआत करता हू इस्लाम धर्म के पैग़म्बर मोहम्मद साहब के इस कथन से की

    “हिंद से मुझे मुहब्बत की खुशबू आती है”

    अब अपने को मुसलमान कहने वालो के लिए तो यह शब्द ईमान का दर्जा रखते है.

    अब एक और बात, इस्लाम के दुसरे खलीफा हज़रात उमर जिनके दौर में यूरोप
    वगैरह मुसलमानों के कब्जे में आये, उन्होंने अपना एक दूत भारत भी भेजा था,
    उसने वापस आ कर भारत की इतनी प्रसंशा किया की हज़रत उमर ने भारत में
    सेना न भेजने का फैसला किया!

    तीसरी और काफी अहम् बात की जब इमाम हुसैन का काफिला कर्बला में था और
    बेहद परेशानी और मुसीबत में था उस वक़्त इमाम हुसैन ने जो ३ बाते रक्खी थी,
    उनमे से एक थी की मुझे छोड़ दो मैं अपने परिवार के साथ हिंद की तरफ चला
    जाओ !

    यह तीनो बाते ऐसी शख्सियतो से है जिनसे इस्लाम है! इनके शब्द और करनी
    बताती है कि इन महापुरुषों के दिल में हिंद (भारत) के लिए क्या जज्बा था !!

    इस्लाम कि इन महान हस्तियों के बाद जब बादशाहत का दौर आया तो असल इस्लाम
    इन बादशाहों के दिलो से जाता रहा, वास्तव में इस्लाम में बादशाहत है ही नहीं, तो
    यह बादशाह कही से भी इस्लामिक दुनिया के स्तम्भ नहीं थे यह सिर्फ बादशाह थे और
    अगर आप देखे तो इनके दौर में मुस्लिम धर्म गुरुओ को जो इनकी ग़लत बातो पर
    आपत्ति करते थे , बुरी तरह मारे गए, जेल में बंद किये गए, जिसका सब से बड़ी
    मिसाल तो खुद कर्बला है, इमाम हुसैन ने यज़ीद कि हुकूमत को नहीं माना क्योंकि
    एक मुस्लमान होने के बावजूद उसके अन्दर सब बुराइया थी! यज़ीद शासक था और
    अपनी हुकूमत के लिए इमाम को मार डाला !! आज सारी दुनिया क्या हिन्दू क्या
    मुसलमान सब इमाम हुसैन को याद करते है और रोते !!

    अगर हम भारत के बारे में बात करे तो यहाँ जो भी आक्रमण हुए उनमे किसी का
    आधार धार्मिक नहीं था, अगर धार्मिक होता को हजरत उमर खुद इसकी शरुआत करते
    न की वोह बादशाह जो खुद ही इस्लाम के मूल आधार पर चोट कर के बादशाह बने !
    इनके आक्रमण का आधार या तो लूटपाट करना था या अपने राज्य का विस्तार !

    यदि हम मुगलों की बात करे तो ज़रा सोचिए बाबर हिंदुस्तान कैसे आया, क्या
    वह इस्लाम का प्रचार करने आया था ? नहीं, बल्कि वोह तो एक हिन्दू शासक के
    कहने पर एक मुस्लिम शासक इब्राहीम लोधी से जंग करने आया था और फिर
    यहाँ हुकूमत कायम कर लिया, उसके बाद मुग़ल भारतीयता के रंग में रंगते गए और
    इनका अंत बहादुर शाह ज़फर जैसे एक भारतीय क्रांतिकारी के रूप में हुआ !

    अब भारत तो जो इस्लाम के प्रचार की बात है तो वह सूफी संतो के ज़रिये फैला है
    जिसमे मुख्य रूप से ग़रीब नवाज़ अजमेरी, बाबा फरीद, हजरत निजामुद्दीन आदि है,
    जो बादशाहों से बहुत दूर रहते थे, और अगर देखे तो ज्यादा तर बादशाहों ने इनको
    महान संतो को नुकसान ही पहुचाया है! “अभी दिल्ली दूर है” यह कहानी तो सभी
    को मालूम होगी जब दिल्ली का मुस्लिम बादशाह निजामुद्दीन पर हमला करने आ रहा
    था! भारत में इस्लाम तलवार या हुकूमत से नहीं फैला, बल्कि इन सूफी संतो से फैला
    जिन्हों ने मुस्लिम और गैर मुस्लिम में कोई फर्क नहीं समझा , उनकी नज़र में सब
    इंसान थे और बराबर थे, उनके दर से कल भी सबको फायदा पहुचता था और आज भी
    उनकी दरगाहे टूटे और दुखी दिलो का सहारा है !

    हमको महापुरुषों और शासको में अंतर समझना चाहिए ! शासक पहले शासक होता है
    और उसकी अपनी सत्ता उसको सब से प्यारी होती वोह इसके लिए हजारो पर ज़ुल्म करता
    है , दीन , धरम से उसका मतलब ज्यादातर अपनी सत्ता बचाने तक ही होता है!!

    भारतीय मुसलमानों का आदर्श हजरत उमर / इमाम हुसैन और सूफी संत है जिनकी
    दरगाहो पर आज भी मुसलमानों से ज्यादा गैर मुस्लिम जाते है, वह आक्रमणकारी
    नहीं जिन्हों ने यहाँ लूट पाट की.
    1-इसके अतिरिक्त कई देश जेसे इंडोनेशिया और मलेशिया में तो कभी मुस्लिम हमला नहीं हुआ वहां इस्लाम केसे फ़ैल गया है
    2- अफ्रीका के पूर्वी तट की और कोण सी मुस्लिम सेना गयी थी
    3- एक करोड़ चालीस लाख अरबी आबादी नस्ली इसाई है यदि तलवार ही चलती तो वो लोग केसे बचे रहे,
    ४- भारत के ८० % लोग जो हिन्दू बहुल हैं ७०० साल तलवार से केसे बचे रहे है
    ५- स्पेन पर MUSLIMO ने 800 साल शासन किया लेकिन इसाई आये उन लोगो ने वहां तबाही फैलाई और मुस्लिमो को मिटा दिया तो क्या तब भी इस्लाम की गलती है देखा जा सकता है अगर वो तलवार के बल पर धरम फैलाते तो वहां सब मुस्लिम ही होते ईसाईयों के वापस आने का कोई मोका ना रहता ………………………………………….
    मेरा सिर्फ ये ही कहना है की अगर हम इसी तरह से बेबुनियाद इतिहास बताते रहे तो वो दिन दूर नहीं की जो मुस्लिम भारत से हद तक प्रेम करते हैं हताशा में भटक जायेंगे जिसके इक्के दुक्के उदहारण आजकल हम देख रहे हैं इसलिए मेरा निवेदन है की क्रप्या ज़िम्मेदारी समझकर सावधानी पूर्वक लिखें सिर्फ विचारधारा का अंधा बहाव हमको डुबो देगा …………………………………… शुभकामनाओं के साथ दीपा शर्मा

    • दीपा शर्मा या कीड़ानवी या सलीम या ज़मालगोटा तुम जो भी हो, अगर तुम जो ज्ञान हमारे सम्मुख बघार रहे हो, उसकी सत्यता पर निश्चिन्त हो तो जाओ और पूछो इमाम बुखारी से कि जिस हिन्दुस्तान के लिये तुम्हारा पैगम्बर इतना अच्छे विचार रखता था उसके क्यों शाही मस्जिद से उस देश के दुश्मन ISI का agent होने का एलान करता है? पूछो इस देश के सभी इमामों से कि किस बिना पर लादेन की सलामती के लिये दुआ मांगने के लिये विशेष नमाज़ पढी गई जब कि लादेन ने हिन्दुस्तान को अपना लक्ष्य (हमले के लिये) घोषित कर रखा है? पूछो जा कर उन सभी मुसलमानों से जिन्होने देश के बटवारे के लिये १९४५ मे वोट दिया। इसका ज़बाब जब मिले तब बातें बनाना।

      भारत मे इस्लाम अगर सूफी संतों के कारण फैला है तो ज़जिया कर क्या हिन्दु राजाओं ने लगाया था? इस्लाम मानने वालों को राजाश्रय और अन्य की सम्पत्ति, बहु बेटियाँ भी खतरे मे रहते थे इसलिये अधिकतर ने इस्लाम अपनाया, कीड़ानवी मालूम कर तेरे घर की भी कोई महिला उठाई गई होगी तभी मज़बूर हो कर तेरे बाप दादाओं ने इस्लाम कबूला होगा। रही बात भेद भाव की तो वो तो इस्लाम मे भी है और था, अभी तो भारतीय मुस्लिम समाज भी जात-पांत को मानता है और उस समय तो मुगल मुस्लिम भारतीय मुस्लिमों को हेय दृष्टि से ही देखता था।

      भारतीय मुस्लिमों का आदर्श कौन है यह दीपा शर्मा बता रही है या कीड़ानवी? अगर दीपा तो किस आधार पर? अगर कीड़ानवी तो पहले अपने नाम से सामने आओ।

      इंडोनेशिया और मलेशिया का इतिहास कहाँ से पढा जो कह रहे हो कि वहा कभी मुस्लिम बर्बर लुटेरे नही गये?

      अफ्रीका का इतिहास जिस पुस्तक से पढा जरा हमे भी बताऍ, हमने तो परा स्नातक की पुस्तकों मे यह सब पढ़ा ही नही।

      एक करोड़ चालीस लाख अरबी आबादी नस्ली इसाई इसलिये बचे रहे क्यों कि तलवार चलाना सिर्फ मुस्लिम लुटेरे ही नही जानते थे, दूसरे भी जानते थे।

      भारत के अन्दर के ८०% हिन्दु अब तक कैसे बचे हैं यह दुःख तो तुमको जरूर होगा पर क्या करें लुटेरों से सामना करने के लिए यहाँ कै वीरों ने अपनी आहुति दी है।

      स्पेन मे मुस्लिमों ने ८०० साल तक शासन किया, उस दौर मे वहाँ कितने ईसाई जीवित थे यह बताओ? जब ईसाईयों ने मारा तो दर्द हुआ, पर जब खुद मार रहे थे तब?

      आज का मुस्लिम भारत से कितना प्रेम करता है यह तो उस दिन मालूम चल ही जाता है जब भारत पोर्किस्तान का मैच होता है, अगर गलती से किसी देशभक्त मुस्लिम ने भारत के जीतने पर बम बजाया तो ये उसको ही बज़ा देते हैं।

  46. shishir chandra ji,
    बहस रोचक है,\
    आपने यहाँ कुछ प्रश्न किये हैं जो मेरे हिसाब से निम्न क्रम में आतें हैं उन्ही के आधार पर जवाब देती हूँ .
    १-आपने लिखा की मुहम्मद साहब रेगिस्तान के कारन कठोर ह्रदय थे जिस वजह से इस्लाम तलवार और ताक़त के बल प्रचारित हुआ है?
    २- sabhyata aur संस्कृति का dyotak है ( achche aur bure dono). हजरत mohmmad kai mamlon में apne vichar काफी sankirna बना liye थे. tatkaleen अरब की sabhyata के hisab se इस्लाम sarvashreshta paddhi हो sakti है lekin isme anek sansthagat kamiyan हैं. shesh visva के liye इस्लाम में kuch khas nahi है. jo लोग अरब संस्कृति के nahi हैं aur इस्लाम के kattarsamarthak हैं. mujhe un पर daya aati है. इस्लाम के vichar bhartiya sabhyata se bilkul भी mel nahi khata…………. इस कथन पर हम बहस कर सकते हैं ये दूसरा आधार है जो बेहतर है बहस के लिए आपने इस बारे में भी प्रश्न किया है ?
    ३-islami hinsa musalmaanon की hatasha की उपज है kyon की अरब sabhyata apni aur apne vicharon की raksha के liye mar जाने ko protsahit karta है. yah kisi भी prakar के samjhauta के khilaph है. आपका तीसरा सवाल कहें या फिर आपको तीसरी ग़लतफहमी ये है,
    ४- निस्संदेह इसलाम में उदारवादी तबका मुखर नहीं है. यदि यह है भी तो छुपा और डरा हुआ है. ज्यादात्तर आम मुसलामानों का समर्थन कट्टरपंथी धडों को हासिल है. यह हास्यास्पद बात है कि मुसलमान कुरआन और हदीस से आगे नहीं निकल प् रहा है. यह जरुरी नहीं कि कोई पैगम्बर के हर विचारों को अक्षरशः माने. मैं नहीं समझता कि उनके सभी विचार आज के समय में प्रासंगिक हैं. हमको कुरान से आगे की सोचना चाहिए और व्यर्थ के बहस से निकल कर आगे आना चाहिए. इस्लाम धर्म के साथ सबसे बड़ी त्रासदी इसका सुधारवाद का विरोध है. यह धर्म मोहम्मद साहब के कहे हुए बातों से जरा भी विस्थापित होने को तैयार नहीं है. क्या आज का मुसलमान स्वयं की सोच नहीं रखता? इंसानी शारीर में पैदा हुए मोहम्मद साहेब क्या इस्वर थे? यदि नहीं तो इंसानों को खुदा के समतुल्य नहीं समझा जाना चाहिए. इस्लामी कट्टरता दरअसल अरब की संस्कृति का द्योतक है………………. आपकी बहस के लिए चोथा बिंदु ये है ………………..
    ५- कुछ logo ka manna है की jin desho में islamic bahulta है vahan alapsankhyank satta में नहीं आते हैं ……..
    ६- एक प्रश्न मेरा भी है की धर्म क्या है और क्यों हम अपने धर्म की जगह इस्लाम की कमी गिनने में लगे हैं क्या हमको इस्लाम पर चलना है या फिर ये एक नफरत की वजह से करते हैं क्योंकि आश्चर्य की बात है हम हिन्दू हैं लेकिन इस्लाम के पीछे पड़े हैं की वो ekdam sahi धर्म बन जाये इतने अच्छे तो हम हो नहीं सकते ये सिर्फ नफरत के कारन ही हों सकता हैं , महोदय शिशिर जी आप मुझे सिर्फ ६ प्रशन का जवाब दे दीजिये और ये भी की आपके अनुसार धर्म क्या है ५ प्रश्न का उत्तर जिस शैली के प्रश्न है उसी शैली में में देने का प्रयास करती हूँ ……………………
    शुब कामनाओ के साथ दीपा शर्मा

    • दीपा जी जवाब के लिए धन्यवाद.मैं आपके प्रश्नों का इन्तजार कर रहा हूँ. सामान्यतया मैं उद्धृत विचार पसंद नहीं करता. माफ़ कीजियेगा कभी कभी पसंद आती है. आप ने कहा की क्यों मैं (हम) किसी धर्म विशेष के पीछे पड़ गए हैं? क्या इस्लाम से हम पूर्ण रूप से अछ्ते हैं? आज सहभाग और सह अस्तित्वा का ज़माना है. कुछ मुस्लिम अतिवादियों द्वारा गैर मुस्लिमों की हत्या इस धर्म पर टिपण्णी के liye बाद्ध्य करती है. यह कहना सही नहीं होगा कि हम इस्लाम पर चर्चा न करें. यदि संक्षिप्त प्रश्न और जवाब दिए जाएँ तो सुविधा रहेगी.
      आपने पूछा है कि धर्म क्या है. शायद इसकी जरुरत नहीं थी. तथापि धर्म का अर्थ धारण करना होता है. मैं पुनः आपको बताना चाहता हूँ कि मैंने हिन्दू धर्म का त्याग किया है और पूर्ण रूप से नास्तिक(athiest ) हूँ.
      क्या मुस्लिम बहुल देशों में अल्पसंख्यक सत्ता में नहीं आते हैं? क्यों नहीं आते हैं.लेकिन काफी कम सम्भावना रहती है. कुछ उदार मुस्लिम देशों में ही संभावना रहती है. आप उदाहरण इंडोनेसिया का देंगे जो इस्लामी कट्टरता से पूर्ण रूप से रंग नहीं है. वहां कि लोकल संस्कृति अभी भी इस्लाम के ऊपर प्रभावी है. लेकिन धीरे धीरे नस्ट हो रही है. तथापि अरब प्रभावित मुस्लिम तबका काफिरों के सत्ता में आने का पूर्ण रूप से खिलाफ है. जैसा मेघावती के मामले में हुआ. और वो हिन्दू होने के कारण बड़ी मुस्किल से सत्ता में आ सकी. इसके आलावा वहां कोई विकल्प भी नहीं था. क्योंकि एक तरफ तानाशाही थी एक तरफ मेघावती कि उदारवादी छवि थी.

      • महोदय आपने लिखा की इंडोनेशिया के लिए मेरे पास और भी उदाहरण हैं ……….
        ‘‘किस मुस्लिम देश में एक गैर मुस्लिम को ‘

        शासनाध्यक्ष बनाया गया?’’
        आपके ज्ञान भण्डार में वृद्धि के लिए बता दूं कि

        1. लम्बे समय तक इराक के प्रधानमंत्री रहने वाले तारिक़ अजी़ज गैर मुसलमान थे ।

        2. कम से कम दो अवधियों के लिए तुर्की के राष्ट्रपति रहने वाले सुलेमान

        ऐलदर भी गैर मुसलमान थे ।
        3. अरब देश लेबनान में अगर प्रधानमंत्री मुसलमान हो तो राष्ट्रपति गैर मुसलमान होता है और राष्ट्रपति मुसलमान हो तो प्रधानमंत्री गैर मुसलमान होता है ।

        4. इथोपिया में मुसलमान बहुसंख्यक हैं परन्तु वहॉं पर सरकार पूरे तौर पर गैर मुसलमानों होती है ।
        महोदय ………………
        मेने इंडोनशिया के बारे में कुछ नहीं लिखा है …………….
        एक कमी जो मुस्लिमो में है वो भी तबलीगी जमात और जमात इ इस्लामी वालों में की ये लोग भ्ध्धि का इस्तेमाल नहीं करते जेसा की तनवीर जी ने लिखा ही है लेकिन अफ़सोस है की इनकी संख्या गिनती में है और बदनाम सरे मुसलमान होते हैं ……………………

        • दीपा जी आप ने जिन देशों के गैर मुस्लिम शासकों का जिक्र किया है. वो मुझे हास्यास्पद लगा. ऐसा लगता है की आप दूसरों को झुटलाने के लिए कहीं से भी बेकार तर्क जुगाड़ सकती हैं. आप तुर्की, लेबनोन, इराक और इथोपिया के बारे में क्या जानती है? यदि नहीं जानती तो व्यर्थ के तर्क प्रस्तुत करने से कोई फायदा नहीं है. आपको इस्लाम को सही ठहराने के लिए तर्क की jarurat नहीं hi. bas bol deejie की आप सही और dusre galat. main ummeed karta hoon की आप bhavisya में unnat तर्क प्रस्तुत karengi anyatha main आप के prashnon का jawab dene में asamarth rahunga. dhanyavad

    • दीपा जी इस्लाम में अच्छाई और बुरे दोनों हैं. मैं ये नहीं कहता की इसमें अच्छाई नहीं है. लेकिन प्रश्न ये है की क्यों कुरान पर अत्यधिक जोर दिया जाता है. सही और गलत को आज का मुस्लिम समाज क्यों नहीं पहचान पता है? क्यों इसके liye kuran का muh takna padta है? dharmik sudhar की mand gati is dharm ke liye ghatak है. dosh sabhi dharmon में है लेकिन इस्लाम apne aap को dosh rahit maanta है. और aalochkon को maut की neend sulane में yakin karta है. yahi is dharm का sabse bada dushman है. इस्लाम apne is khatarnaak vicharon ke karan aalochna का patra है.

      • महोदय में इस्लामिक मामलो की जानकार नहीं हूँ लेकिन फिर भी सिर्फ समन्वय की दृष्टि के लिए ही ये प्रयास करती हूँ, महोदय लादेन से बड़ा आतंकवादी तो अमेरिका है और लादेन को जो गिनती के लोग चाहते हैं उनमे लालू यादव, राम विलास पासवान भी हैं जो चुनाव में उसके duplicate लिए फिर रहें थे और इस कांग्रेस की निकम्मी सरकार ने तब भी कुछ नहीं किया था ………… किसी हद तक इस्ल्मिक विद्वानों का भी दोष है जो मुखर हो कर सामने नहीं आ पाते……….. पर ये उनकी कमी है इस्लाम की नहीं है……… सही कहा जाता है इस्लाम अच्चा धरम है पर मुसलमान उतने बेहतर नहीं है ……….
        हजरत मुहम्मद साहब ने कहा है, ला इरका फि़द्दीन यानी मजहब के मामले में कोई जबर्दस्ती नहीं। इस कथन से साफ पता चलता है कि
        उनको इस्लाम के विस्तार में तलवार की नोक का सहारा लेने में कोई रुचि नहीं थी। इस्लाम के अनुयायियों के जोश और आक्रामकता को उन्होंने बिल्कुल उचित नहीं माना। हजरत किसी भी व्यक्ति के दिल को दुखाने को सबसे बड़ा गुनाह मानते थे…………..
        आप इस से समझ सकते है की मुसलमानों ने अपने मुहम्मद को ही भुला दिया है और कुरआन वो समझते नहीं है जो भी मुल्लाह मोलवी उल्टा सीधा बता देते हैं उसी के आधार पर चल देते हैं………
        हजरत मुहम्मद ने इस्लाम को जब अरब में उतारा तो यह पूरी तरह से एक बेहद शांतिप्रिय व आधुनिक धर्म था, मगर समय गुजरने के साथ कुछ लोगों ने इसे रूढ़िवाद की ओर मोड़ने का यत्न किया। आज भी सभी मुसलमान यदि हजरत की बताई राह पर चलें तो इस संप्रदाय की अनेक समस्याएं यूं ही समाप्त हो जाएं।

        हजरत मुहम्मद साहब के जन्म के समय अरब संसार जघन्य व घृणित पापों के अंधेरे में डूबा हुआ था। कोई भी अन्याय और दुराचार ऐसा न था जो उस समय प्रचलित न हो। धोखाधड़ी, बेईमानी, क़त्ल, बलात्कार, नारी-अपमान और हिंसा आदि सामान्य जीवन के अंग बन चुके थे। इस दूषित वातावरण में जब हजरत ने आंखें खोली तो पाया कि लोगों को सीधे रास्ते पर लाने का दायित्व उन्हें निभाना ही चाहिए।

        हजरत मुहम्मद के चेहरे के बारे में किसी ने एक सहाबी, जाबिर बिन सुमरा से प्रश्न किया, क्या हुज़ूर का चेहरा तलवार जैसा चमकता था? नहीं, सहाबी बोले, चांद की तरह! इसका मतलब यही हुआ कि वे अमन और प्रेम के दूत थे।
        महोदय हज़रात के बारे में कई भ्रान्तिया है वर्ना कोई भी सामान्य आदमी इतना लोक प्रिये नहीं हो सकता अगर हम उनको समाज सुधारक की नज़र से देखे तो वो बिलकुल वेसे ही ही हैं जेसे भारत में नानक, दयानंद और बुद वगेरा लेकिन हमको ऐतिहासिक नज़र से देखना चाहिए न की सुनी सुनायी बातों के हिसाब से ……………

        • लोकप्रिय तो BUSH भी था और HITLAR भी, अन्यथा वो अपने राष्ट्र पर कभी भी शासन नहीं कर पाते।

        • प्रिय दीपा जी आप अक्सर रटी रटाई और सुनी सुनाई बातों को तर्क के रूप में प्रस्तुत करती हैं जिनसे बच सकती हैं. मुझे quotation पसंद नहीं हैं यह मैंने पहले ही बता दिया था. यहाँ पर जो भी विचार रखा जाता है उसमे से ज्यादातर हिस्सा आपके अपने विचारों का होना चाहिए. आप अनावश्यक लम्बा खींचती हैं. आपने हिन्दू धर्म पर अनावश्यक निशाना साधकर अपनी आलोचना को आमंत्रित किया है. सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सस्ते तरीकों से बचना चाहिए. आपने अपने विचारों को सही ठहराने के लिए कहीं से भी तर्क खोज लिया है. मेरे सभी प्रश्न अनुत्तरित या आधे अधूरे हैं. आपने तसलीमा नसरीन पर अनर्गल आरोप लगाये हैं. जबकि आपने लज्जा और द्विखंडिता पढ़ा ही नहीं है. आप को व्यर्थ ही इस्लाम की तरफदारी कर के क्या मिलता है. इस तरह से किसी धर्म का बचाव नहीं किया जाता जैसा आप कर रहीं हैं. आप इस्लाम की ख़राब छवि ही पेश कर प् रही हैं. यदि आप इस्लाम की सच्ची सेवा करना चाहती हैं तो आप को सकारात्मक तरीके से पेश आना चाहिए. आपके अपने नजरिये में ही सुधर की जरुरत है. आप अभी तक क्यों कर हिन्दू हैं? मैं तो कब का नास्तिक बन गया हूँ. मुझे लगता है आप को इस्लाम धर्म की दीक्षा लेने की जररूत है.

  47. https://www.reformislam.org ==== इस वेब साईट में क्या लिखा है। एक “बानगी” मैने भावानुवादित की है। आप वेब साईट देख लें।
    ॥सुधार की ज़रूरत॥==इस्लाम आज के (फॉर्म) में, जनतंत्र और मत स्वातंत्र्य के सिद्धांतों से मेल नहीं खाता। २१ वीं शती के मुस्लिमों के सामने दो पर्याय हैं। (१) हम उन्ही, ७ वी शती की, बर्बर नीतियोंका अवलंबन करें जो हसन अल-बन्ना, अब्दुल्लाह आज़म, यासिर आराफ़ात, रुदोल्लाह खोमैनि, ओसामा बिन लादेन,मुस्लिमब्रदरहूड,अलक़ाएदा,हिज़्बल्लाह, ,हमास,हिज़्ब-उल-तहरीर, इत्यादि, ने अपनायी थी, और कायम की थी।और जिसके कारण दुनिया दार-अल-इस्लाम(इस्लामिक विश्व) और दार-अल-हर्ब (अन इस्लामिक विश्व) के बिच विश्व युद्ध की ओर बढ रही है।
    (२) या, फिर हम इस्लाममें (रेफ़ोर्म) सुधार करें, जिससे हमारी समृद्ध संस्कृतिक विरासत सुरक्षित रहे, और इस्लाम मज़हबके(cleanse of reviled relics) दुश्मनी फैलानेवाले अवशेषों को सुधारकर साफ़ सुथरा बनाएं।=== हम, मुस्लीम इस नाते, जो अन्य धर्मावलबियोंके साथ, नास्तिकोंके साथ,अनीश्वर वादियोंके साथ, भाईचारेसे रहना चाहते हैं, वे दूसरा पर्याय चुनते हैं।=== हम अबसे आगे इस्लामिक अतिवादियोंको हमारे मज़हबको हथियार बनाने नहीं देंगे।हमें, अगली इस्लामिक पीढियों को इसलामिक अतिवादियोंके (ब्रेन वाशींगसे) मति भ्रमसे, अवश्य बचाना है।यदि हम इस्लामिक अतिवादके फैलावको नहीं रोक पाते, तो हमारे बच्चे कल हत्त्यारे शैतान (zombies) बन जाएंगे।

  48. रेगिस्तान में जीवन का संघर्ष काफी कठिन होता है. इस्लाम पर डार्विन का संघर्षवाद लागू होता है. अरब में कठिन जीवन होने के कारण वहां के लोग कठोर हृदय हो गए थे/हैं. पैगम्बर हजरत भी इसी अरब के उपज हैं. यदि आप नरम रूख रखते हैं तो खत्म कर दिए जाने का खतरा बना रहता है. अरब की संस्कृति के अनुरूप इस्लाम धर्म की स्थापना talwar aur taakat के bal पर hui. vastutah इस्लाम sirf aur sirf अरब sabhyata aur संस्कृति का dyotak है ( achche aur bure dono). हजरत mohmmad kai mamlon में apne vichar काफी sankirna बना liye थे. tatkaleen अरब की sabhyata के hisab se इस्लाम sarvashreshta paddhi हो sakti है lekin isme anek sansthagat kamiyan हैं. shesh visva के liye इस्लाम में kuch khas nahi है. jo लोग अरब संस्कृति के nahi हैं aur इस्लाम के kattarsamarthak हैं. mujhe un पर daya aati है. इस्लाम के vichar bhartiya sabhyata se bilkul भी mel nahi khata. yah धर्म asahishnu aur anudaar है. हो sakta है aaj भी yah अरब में prasangik हो parantu baaki jagah purnataya flop है. aur islami hinsa musalmaanon की hatasha की उपज है kyon की अरब sabhyata apni aur apne vicharon की raksha के liye mar जाने ko protsahit karta है. yah kisi भी prakar के samjhauta के khilaph है.

    • महोदय आपने भी सूनी सुनाई बातें लिख दी हैं की विचार संकीर्ण थे लेकिन आपने विचार नहीं लिखे हैं तो इसका जवाब क्या दूँ , तलवार के बल पर फैला है की नहीं उसके बारे में तो मेने पहले ही काफी कुछ लिख दिया है अब मुझे नहीं लगता है की कुछ बाकी बचा होगा , कठोर ह्रदय वाली बात को भी आपने साफ़ नहीं लिखा है की आपका तात्पर्य क्या है फिर भी मेने इस संधर्भ में लिखा है उस नोट को भी आप पढ़ कर अनुमान लगा सकते हैं ……..
      महोदय यदि आप कोइ प्रशन करें तो जवाब देने में सुविधा रहती है इसमें मुझे कोई प्रशन नज़र नहीं आया है फिर भी मेने इमानदारी से koshish की है

    • महोदय मुहम्मद सहाब की दयालुता और करुना के संदर्भ में आप के लिए सिर्फ ये घटना का वर्णन करती हूँ…………………
      मानवता आखिर है क्या? क्या उसका सम्बन्ध मात्र मानव से है, वे क्या उसकी परिधि से बाहर है? जननी और मां दोनों शब्द समानार्थक माने जाते है। जननी अपने जने को प्यार करती है। स्वाभाविक है; लेकिन मां के साथ जनने की कोई शर्त नहीं है। सब उसके है। वह सबकी है। सबको प्यार करती है।

      मानवता की परिधि मां की तरह असीम है। मानवीय कल्याण और सम्वेदन जीव मात्र के सन्दर्भ में ही सार्थक हो सकते है, हुये है। इस्लाम धर्म के पैगम्बर हजरत मुहम्मद के सम्बन्ध में यह उतना ही सच है, जितना किसी और के। कथा आती है कि एक बार वे एक बगीचे में गये। वहां बधां हुआ था एक ऊंट। जैसे ही उसने पैगम्बर को देखा, वह अत्यन्त स्वर में डकराने लगा। उसकी आंखें बरसने लगी।

      उसका वह करुण स्वर मुहम्मदसाहब को कहीं गहरे छू गया। वह तुरन्त उसके पास पहुंचे। उसे पुचकारा। उसके सिर पर, गरदन पर, हाथ फेरा। उसे बार-बार सहलाया, थपथपाया। जब कहीं जाकर वह शान्त हुआ।

      उसके बाद मुहम्मदसाहब ने उसके मालिक को बुला भेजा। कहा, “यह ऊंट पशु है। बोल नहीं सकता। इस लिए क्य तुम इस पर अत्याचार करते ही रहोगे? अल्लाह से भी नहीं डरोगे? अल्लाह न हो तो इसका मालिक बनाया है।”

      ऊंट के मालिक ने पूछा, “पर मैंने इस पर क्या अत्याचार किया है?”

      मुहम्मदसाहब बोले “इसने मुझसे शिकायत की है कि तुम इससे जरूरत से ज्यादा काम लेते हो। इसे भूखा रखते हो। क्या तुम्हारे ऐसा करने से इसे दु:ख नहीं होता? क्या इसके जिस्म में जान नहीं है, वैसे ही जैसे तुम्हारे जिस्म में है, मेरे जिस्म में है? तुमको पूरा खाना न मिले तो?”

      सुनकर मालिक ने सिर झुका लिया।

      इसी प्रकार एक आदमी उनके पास आया। उसके पास एक दरी थी। उसमें कुछ बंधा हुआ था। मुहम्मदसाहब ने पूछा, “क्या बंधा है तुम्हारी इस दरी में?”

      उस आदमी ने जबाब दिया, “ऐ रसूलल्लाह, मैं जंगल के बीच में से जा रहा था। एकाएक चिड़ियों के बच्चों की आवाज मेरे कानों में पड़ी। उधर जाकर देखा तो वहां कई बच्चों को पाया। उन्हें उठा कर मैंने दरी में बांध लिया। तभी आ पहुंची उनकी मां। बच्चों को बंधा हुआ देखकर वह तड़फड़ा उठी। मैंने दरी खोल दी। मां बच्चों से आ मिली। मैंने उसे भी दरी में लपेट लिया। वे ही सब इस दरी में बन्द…”

      इससे पहले कि वह अपनी पूरी बात कर पाता, मुहम्मद साहब ने उसे आदेश दिया, “जाओ, तुरन्त इस चिड़िया मां और बच्चों को वहीं छोड़ आओ, जहां से पकड़ कर लाये हो।”

      वह आदमी तुरन्त उलटे पैरों लौट गया।

      मुहम्मद साहब ने इन घटनाओं के माध्यम से मानो कहा है, “पशु मूक है। वे अपने दर्द की बात नहीं बता सकते। उनकी आंखों की भाषा पढ़ो और उनके सामानवीयता का बर्ताव करो। उन्हें बन्दी मत बनाओं। यहीं मानवीयता सम्वेदना है। यही मानवीय करूणा है।

      इस तथ्य को उन्होने दो और नीतिकथाओं के द्वारा स्पष्ट किया है। एक कुत्ता एक कुंएं के पास बैठा प्यास के मारे तड़प रहा था। एक तथाकथित दुराचारिणी उधर आ निकली। उसने कुत्ते को देखा। तुरन्त अपनी कीमती चादर उतारी। उसमें जूते बांधे और कुंए से पानी खींच कर कुत्ते को पिलाया।

      कुत्ते के प्राण लौट आये। खुदाबन्द ताला ने उसे दुराचारिणी के सब गुनाह माफ कर दिये।

      एक दूसरी नारी थी। व दुराचारिणी नही थीं। उसने एक बिल्ली को बांध रखा था। उसे व पेट भर खाने को नहीं देती थी। खोलती भी नहीं थीं, जिससेचवह कहीं और जाकर खा-पी सके।

      परिणाम यह हुआ कि वह भूख से तड़प-तड़प कर मर गयी। अल्लाह ने उस नारी को कड़ा दण्ड़ दिया।

      मानवीय करूणा से ओतप्रोत मानव का ह्रदय बहुत करुण होता है। एक व्यक्ति का हृदय बहुत कठोर था। वह हजरत मुहम्मद के पास आया। बोला, “मेरा दिल बहुत सख्त है। मैं क्या करुं?”

      मुहम्मदसाहब का उत्तर था, “अनाथों के सिर पर हाथ फेरो और भूखों को भोजन खिलाओ। नरम हो जायेगा।”

      मानवीय सम्वेदना की कोई सीमा नहीं होती। मुहम्मदसाहब स्वंय ही मानवीय करूणा से ओत-प्रोत नहीं रहते थे, बल्कि जो उनके निकट थे, उनके अन्तर में भी वह प्रफुटित हो, यह भी वह देखते थे। एक बार एक फकीर उनके पास आया, बोला, “मैं बहुत दुखी हूं। कई दिन से कुछ नहीं खाया।”

      मुहम्ममद साहब ने तुरन्त कई घरो में सन्देश भेजा कि एक फकीर भूखा आया है। उसके लिए कुछ खाने को हो तो भेजो। सब कहीं से जबाब आया, “हमारे घरो में पानी के सिवाय कुछ नहीं है।”

      मुहम्मदसाहब के पास तब कई व्यक्ति बैठे थे। उन्होने उनसे पूछा, “क्या कोई इसे अपना मेहमान बना सकमा है?”

      उनमें से एक व्यक्ति खड़ा हुआ। उसका नाम था अबूतुल्ला। उसने कहा, “मैं बना सकता हूं।”

      वह फकीर को अपने घर ले गया। अन्दर जाकर उसने अपनी पत्नी से पूछा, “एक फकीर मेरे साथ है। क्या उसके लिए खाने को कुछ है?”

      पत्नी ने उत्तर दिया, “केवल बच्चों का पेट भर सके इतना खाना घर में है।”

      अबूतुल्ला ने कहा, “बच्चों को किसी तरह बहला-फुसलाकर भूखा ही सुला दो। मेहमानके आने पर ऐसा जाहिर करना, जैसे हम भी साथ खायेंगे। जब वह खाने के लिए हाथ बढाये तो तो तुम ठीक करने के बहाने चिराग के पास जाना और उसे गुल कर देना।”

      पत्नी ने ऐसा ही किया। अन्धेरे में मेहमान बेखबर खाता रहा और पति-पत्नी खाने का नाटक करते रहे।

      सुबह अबूतुल्ला मुहम्मदसाहब के पास पहुंचा। वह सब कुछ जान चुके थे। उन्होने अबुतुल्ला को खुश खबरी सुनाई कि अल्लाहताला को अपने फलां बन्दे और फलां बन्दी का, यानी अबूतुल्ला और उसकी पत्नी का, यह काम बहुत पसन्द आया। वह उन पर बहुत खुश है।

      मानवीय सम्वेदना के बहुत रूप है। मुहम्मदसाहब का समूचा जीवन उसकी व्याख्या है। वह क्षमा को भी एक महत्वपूर्ण गुण मानते थे। किसी ने उनसे पूछा था, “आप बन्दो में आप किसे सबसे ज्यादा इज्जत देंगें?”

      मुहम्मदसाहब का उत्तर था, “उसे, जो कसूरवार पर काबू पाने के बाद भी उसे माफ कर दे।”

      एक बाद वे अबूबकर (जो बाद में इसलाम धर्म के पहले खलीफा हुए) के पास बैठे थे। एक व्यक्ति वहां आया और अबूबकर को गाली देने लगा। वह शान्ति से सुनते रहे, लेकिन जब वह व्यक्ति शिष्टता की सभी सीमाओं को पार कर गया तो अबूबकर के सब्र का प्याला भी छलक पड़ा। वह जबाब में बोल उठे। उसी क्षण मुहम्मद साहब वहां से उठकर चले गये।

      बाद में अबूबकर ने उनके चले जाने का कारण पूछा तो वे बोले, ‘जब तक तुम चुप थे, अल्लाहताला का एक फरिश्ता तुम्हारे साथ था। जब तुम बोलने लगे तो वह चला गया।”

      काश हम इन प्रतीक कथाओं का अर्थ समझ सकें और उसे जी सकें, अन्यथा गुणगान एक व्यवसाय है, जो दोनों पक्षों को धोखा देने में ही कृतार्थ होता है!

      • यदि इस्लाम इतना ही पशुओं पर दया का भाव रखने की बात करता है तो बकरीद के मुबारक मौके पर निरीह पशुओं की कुर्बानी बन्द करने का आदेश क्यों नही दिया तथाकथित पैगम्बर ने? और क्यों मुस्लिम समुदाय के सदस्य शिकार करने के पश्चात हलाल के नाम पर पशुओं को क्रूर तरीके से तड़पा तड़पा कर मारते हैं, इस पर स्वघोषित पैगम्बर अथवा प्रेम एवं भाईचारे की साक्षात प्रतिमूर्ती इस्लामी विद्वान क्यों नही रोक लगाते?

  49. maine saare लेख और तनवीर जाफरी जी के विचार पड़े. यह बहस काफी रोचक जान पड़ता है. कपूर साहब की निर्भिर्कता की मैं दाद दिए बिना नहीं रह सकता. तनवीर साहब ने बेहद सधे हुए अंदाज में इस्लाम में अन्तर्निहित समस्याओं का वर्णन किया है. सुलभ और मधुसुदन जी के विचार काफी पसंद आये.
    निस्संदेह इसलाम में उदारवादी तबका मुखर नहीं है. यदि यह है भी तो छुपा और डरा हुआ है. ज्यादात्तर आम मुसलामानों का समर्थन कट्टरपंथी धडों को हासिल है. यह हास्यास्पद बात है कि मुसलमान कुरआन और हदीस से आगे नहीं निकल प् रहा है. यह जरुरी नहीं कि कोई पैगम्बर के हर विचारों को अक्षरशः माने. मैं नहीं समझता कि उनके सभी विचार आज के समय में प्रासंगिक हैं. हमको कुरान से आगे की सोचना चाहिए और व्यर्थ के बहस से निकल कर आगे आना चाहिए. इस्लाम धर्म के साथ सबसे बड़ी त्रासदी इसका सुधारवाद का विरोध है. यह धर्म मोहम्मद साहब के कहे हुए बातों से जरा भी विस्थापित होने को तैयार नहीं है. क्या आज का मुसलमान स्वयं की सोच नहीं रखता? इंसानी शारीर में पैदा हुए मोहम्मद साहेब क्या इस्वर थे? यदि नहीं तो इंसानों को खुदा के समतुल्य नहीं समझा जाना चाहिए. इस्लामी कट्टरता दरअसल अरब की संस्कृति का द्योतक है.

    • यह हास्यास्पद बात है कि मुसलमान कुरआन और हदीस से आगे नहीं निकल प् रहा है. यह जरुरी नहीं कि कोई पैगम्बर के हर विचारों को अक्षरशः माने. मैं नहीं समझता कि उनके सभी विचार आज के समय में प्रासंगिक हैं. हमको कुरान से आगे की सोचना चाहिए और व्यर्थ के बहस से निकल कर आगे आना चाहिए. इस्लाम धर्म के साथ सबसे बड़ी त्रासदी इसका सुधारवाद का विरोध है. यह धर्म मोहम्मद साहब के कहे हुए बातों से जरा भी विस्थापित होने को तैयार नहीं है. क्या आज का मुसलमान स्वयं की सोच नहीं रखता? इंसानी शारीर में पैदा हुए मोहम्मद साहेब क्या इस्वर थे? यदि नहीं तो इंसानों को खुदा के समतुल्य नहीं समझा जाना चाहिए. इस्लामी कट्टरता दरअसल अरब की संस्कृति का द्योतक है………………….
      महोदय आपकी इस बात से में कुछ कुछ सहमत हूँ अगर मुसलमान मुहम्मद साहब की बातों को मने तो शायद ये सब हो ही न लेकिन वो नहीं मानते हैं………. खुद हज़रात ने कहा है की कुछ समय बाद ऐसी बातें सामने आएँगी जिनका हल कुरान या हदीथ में नहीं होगा उनका हल इज्तामा करके निकला जायेगा अब मेने मुस्ली विधि में पढ़ा था की शिया तो इज्तामा मानते नहीं तबलीग वाले भी नहीं मानते हैं इसलिए भी समस्या खडी हो जाती है , मुहम्मद साहब का कथन था की आप जब ऐसी समस्या आये जिसका हल कुरआन में न हो तो आपस में मश्विरह करके निकलना अब आप खुद ही सोचिये की क्या उनकी सोच गलत थी या संकीर्ण थी …… नहीं थी वेसे भी कुरआन एक सामयिक किताब है और उसके कई भाग वर्तमान में प्रासंगिक नहीं हो सकते हैं………………………
      लेकिन आजकल इस्लाम अल्लाह का नहीं बल्कि मुल्लाह का धर्म बन चूका है जिस कारन से ये समस्या आती है ……….
      महोदय मेरा एक मित्र और सहपाठी है मेने उसको कहा की आप प्रवक्ता पर आयें वो आये और फिर मुझे कहा की में फालतू बहस नहीं कर सकता हूँ मुझे खुद आशचर्य हुआ यदि वही लोग जवाबदार नहीं होंगे तो कोण जवाब देगा परन्तु मुझे लगा शायद ज्ञान के आभाव में ऐसा किया …………
      एक कारन ये भी है की आम मुसलमान ऐसी परिचचा में इसलिए भाग नहीं लेता की वो धर्म के विरुद्ध कुछ ऐसा न कह दे जिससे की वो धर्म की परिधि से बहार न हो जाये…… ये कुचक्र भी मुल्लाह लोगो का बनाया है ताकि उनकी दूकान चलती रहे ………
      उम्मीद है aapka मार्गदर्शन मुझे मिलता rahega

      • दीपा जी क्या बात है. पहली बार आपने सकारात्मक विचार लिखा. आप इसके लिए बधाई के पत्र हैं. आपको क्षद्म नाम का सहारा क्यों लेना पड़ता है? आप अपने वास्तविक स्वरुप में आकार भी प्रवक्ता में हिस्सा ले सकती हैं! आप में काफी उंर्जा है. यदि इसको सकारात्मक दिशा में आप मोड़ पायें तो इस्लाम की काफी सेवा कर सकती हैं. अल्लाह आप को ज्ञान बक्शें.
        शिशिर चन्द्र
        कोसम्बा गुजरात

      • मिस दीपा, अगर इस्लाम के बारे में पूरा पता नहीं है तो कुछ ज्यादा नहीं ही बोलो तो अच्छा है. आप कह रही हो हदीश और कुरान में जो सब लिखा है वो सब रेलेवेंट नहीं है. इस तरह का गैर इस्लामिक बात कहने का हक कम से कम एक गैर मुस्लिम को नहीं है. ये मेरा आपसे आग्रह है, कंही भी इस्लाम को बेवजह डीफेंड करने की कोशिश न करें. कुरआन इस्लाम का सबसे पाक किताब है इसका सब कुछ अक्षरसः पाक और सत्य है.

      • हे छद्मचारी ! तार्किकों की मण्डली में इस छद्माचरण की क्या आवश्यकता ? हे महोदय ! जो बात आप रखना चाहते हैं वह तो बिना स्त्री बने हुये ….बिना शर्मा जी बने हुये भी तो रखी जा सकती है । तथापि यदि ऐसा करने में कोई विशेष प्रयोजन है तो हमें भी बतायें ।

  50. Rashid ji ne sahee likha he. Aur kapoor sahab ki aayton aur hadiso ko mene lagbhag 2 search kar liya he ye kis sandhrb me he jawab jald milega. Ummeed hai kapoor sahab ko jaldi nahee hogi. Wese bi yadi kisi muslim k jawab dene se behtar mera jawab hoga.

    • deepa ji yadi kisi baat ko karodon log mane to kya wah sahi ho jata hai? Laden ke chahne walon ki sankhya karodon me hai, to kya uski vichardhara mahan hai? hitlar ko bhi tatkaalin samay me kaphi samarthan mila tha, to kya wah sahi tha? gandhiji ka samarthan kaphi kam ho gaya hai, to kya ab wo prasangik nahi rahe? hajoron sikhon ke katleaam ko karodon hinduon ka samarthan haasil tha, kya katleaam sahi tha?

    • deepa sharma हमे बहुत अच्छी तरह ज्ञात है कि तुम मुस्लिम ही हो।छद्म नामधारी।

  51. मुसलिम जगत इसलिए पीछे है क्योंकि वह आज की बजाय मौत के बाद के जीवन के बारे में चिंतित रहता बात कहने वाले को ही दोषी समझा जाता है, उसे ही मारने डराने की धमकी देते हैं. आपका धन्यवाद पाल इटली

  52. tanveer jafri ji thanx for your lekh. really it’s exciting. i appreciate your view on islam. there is very thin stream flow inside islam of liberization. actually totally islam is hijacked by fundamentalist supporters and others only can watch. all liberal muslims, scolars, educated people and depressed section must come under an umbrella and fight redical muslims. sure liberalism will win. muslim must accept criticism of prophet mohammad. because he is not above criticism and i am critic of him.

  53. एक वक्या ह्जरत मुहम्म्द सल्ल. के बचपन का है जब इश्वर के अन्तिम दूत हजरत मुहम्मद सल्ल. अपने चाचा अबु तलिब के साथ मुलके शाम की ओर जा रहे थे रास्ते में बूहेरा रहिब जो यहूदी था उससे भेंट होती है वह प्रसन्नता से हजरत मुह्म्म्द को बगौर देखता है बूहेरा ने अबू तलिब से कहा कि इस बच्चा का दुश्मन तमाम यहूदी है क्योंकि उन्हें पता चल गया है यह बच्चा ईश्वर का आखरी पैगम्बर है ह्जरत अबू तलिब बोले तुम कैसे जान गए कि यह बच्चा पैग्म्बर है बूहेरा बोला उस परमेश्वर कि कसम मैंने अपनी आँखों से देखा है कि पेड पौधे और पत्थर इनको सजदा कर रहे हैं मैंने अपने धर्म ग्रन्थ में पढा है ऐसा केवल पैगम्बर के सामने हि पेड पौधा वा पत्थर सजदा कराते हैं मेरी बात मान ले इन्हे आगे मत ले जओ इनकी जान को खतरा है कुछ देर बाद वहाँ हथियार बंद सात यहूदि आ पहुन्चे वे पुछ रहे थे हम सब आखरी पैगम्बर कि तलाश में है बूहेरा ने उन्हें समझा बुझा के वापस भेज दिया प्रथम आतंकवदी समूह का इससे परिचय मिलता है इससे यह् भी पता चलता है आतंकवाद मुस्लिम धर्म के विरुद्ध एक अभियन है हजरत मुह्म्म्द सल्ल. ने अपनी उम्र के 40 वर्ष में पैगम्बर होने की घोषणा की तब प्रथम पंक्ति में अबू सूफियान का नाम आया यह वह आतंकवदी था जिसे पैग्मबर के होने पर संदेह था और तरह तरह के आतंक मचाए इसी अबू सुफियान के पोते का नाम यज़ीद था सात मुहर्म से यज़िद ने पैगम्बर के नवासे का खाना पानी कर्बला के जगह पर बंद कर दिया 10 मुहर्म को इस्लाम के सर्वमहन धर्म गुरु हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 सथियो को शहिद कराया यज़िद स्वयं को मुसलमान कहता था लेकिन उसके तौर तरीके इसलमी नियम के विरुध थे. वह इमाम हुसैन का दुश्मन इसलिए बन गया क्योकि वे वास्तविक इस्लाम लोगो को बता रहे थे कर्बला के इस आतंकवाद का जनक यज़िद था वर्तमान में जो नाम और शक्लो सूरत के तथाकथित मुसलमान है आतंकवाद उन्ही से उभरा है वे यज़िद मिशन के पोषक है इन्हे इस्लामी कहना भी गुनाह है केवल मुस्लिम माता पिता से पैदा होने का नाम मुसलमाना नही होता जब तक कोई पैगम्बर हजरत मुहम्मद सल्ल. के बताए रास्ते पे नही चलता वह मुसलमान नही हों सकता . केवल नाम के मुसलमन का इस्लाम से कोई वस्ता हि नही ये लोग यज़िद के समर्थक है इसलम के नही .

  54. भाई साहिब जी नमस्ते बात समझ में आई बात पते की है आपने काफी अच्छा लिखा हैं बस इन पर लिखते ही जाईए आपका धन्यवाद आप जी का शुभचिन्तक( पाल इटली )

  55. मुहम्मद जी, आपकी ये बात सही है कि इस्लाम की मुझे कोई अधिक समझ नहीं. उम्मीद है कि आपको तो होगी ? कुरानशरीफ की जो आयतें मैंने उधृत की हैं उनमें तो आपने कोई गलती नहीं निकाली. यानी जो मैंने कहा वह भी सही है. कुछ और आयतें आपने उधृत की हैं. मैं भी आपके बतलाये को गलत नहीं कह रहा. फिर इस्लाम का असली चेहरा क्या है ? दोनों प्रकार की आयातों के सन्देश में ज़मीन आसमान का अंतर है. सही सन्देश क्या है – इस्लाम का ?
    आप मनसुख आयतों के बारे में जानते हैं न ? क्या मुहम्मद साहेब ने इसी प्रकार की स्थितियों में यह फैसला नहीं दिया हुआ है कि जब दो परस्पर विरोधी अर्थ की आयतें सामने हों तो बाद वाली आयत को मानो. पहले की कई आयतें भाई चारे का सन्देश देती हैं, यह सही बात है. पर बाद की आयतें उन्हें मनसुख (निरस्त) कर देती हैं. यही फर्क है आप द्वारा और मेरे द्वारा उधृत आयतों में. ऐसा नहीं है तो बतलातें.
    विद्वान् और खोजी लेखक जाफरी साहेब ने जो भयावह आतंक और हत्याकांड का चित्र प्रस्तुत किया है, आखिर उसकी प्रेरणा कहाँ है? क्यों संसार में सबसे अधिक आतंक फैलाने वाली छवी इस्लामी जेहादियों की है ? सभी मुनकिर ( इस्लाम पर विश्वास न करने वाले) और मुशरिकों (मूर्ती पूजा करने वाले) यानी काफिरों को समाप्त करना और सारी दुनियां को दारुल हरब , फिर दारुल इस्लाम बनाना. यानी जहाँ केवल मुसलमीन हों, शासक भी और शासित भी. इसप्रकार हर सच्चे मुसलमान का काम इस्लाम के इन सिधान्तों को मानते हुए सारी दुनिया को काफिरों के बोझ से मुक्त करना नहीं है ? कृपया काफिर का अर्थ किसी ऐरे – गैरे को उधृत करके न बतला देना, कोई ठोस बात कहें तो है.
    होसकता है कि मेरी जानकारी में कोई कमी और गलती हो, बतलाएं, सुधा कर लूंगा .
    सारे धर्मों ( यानी पंथों को ) को बराबर बतलाने वाले कितने ना समझ हैं, यह उन्हें समझ आना चाहिए. सच को वे जानते नहीं, बिना जाने – समझे अपनी गलत बात दोहराते जा रहे हैं. उन्हें पहले कुरानशरीफ , बाईबल आदी को ध्यान से पढ़ लेना चाहिए. अन्यथा वे झूठ के प्रचार का पाप करने के भागीदार बन रहे हैं, इसे भी समझा जाना चाहिए.

  56. डॉ . राजेश कपूर जी कुरान और इस्लाम को समझे बिना, फैसला केर देना कहां का इन्साफ है? इस्लाम का एक कानून है, सामने से किसी पे हमला न करो. और आप ने जो भी आयात पेश की हैं, यह उनके लिए है, जो आप पे हमला करे. इस्लाम हमला करने वाले के लिए सख्त रहने का हुक्म देता है जो की इन्साफ है. और इसके साथ साथ यह भी कह गया है ..कुरान ५:३२ मैं कहा गया है की अगर किसी ने एक बेगुनाह इंसान की जान ली तो यह ऐसा हुआ जैसे पूरे इंसानियत का क़त्ल किया और अगर किसी ने एक इंसान की जान बचाई तो उसने पूरी इंसानियत की जान बचाई.

    २: १९० . जो तुम से लड़े, तुम भी उनसे अल्लाह की राह में जंग करो, परन्तु हद से न बढ़ो (क्योंकि) अल्लाह हद से बढ़ने वालों से प्रेम नहीं करता। २: १९२ . अगर वह अपने हाथ को रोक लें तो अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला और दयावान है।
    आप जैसे पढ़े लिखे को यह आएतें क्यूं नहीं दिखती? क्यों कुछ नफरत के सौदागरों के तैयार माल को कॉपी पेस्ट अब पढ़े लिखे भी करने लगे हैं? ज्ञानी जब अज्ञानी जैसी बातें करे तो समझ मैं नहीं आता?

  57. islaam ke baare mein jaafrii jii yaa koii aur kyaa sochte -samajhte hain, isase koii khaas fark nahin padtaa. kyonki kisii ke kahne se islaam n chaltaa hai n chlegaa. ialaam aor islaam ko maannewale wahi karenge jo karne ke liye kuraanshariif, muhammad saaheb aur hadiis kahte hain. we kyaa kahte hain, iskaa ek namunaa dekhiye , fir kahen jo kahnaa hai islaam ke baare mein. apnii tippani mein shaahid ji bhi shayad yahi kahnaa chahte hain (nimn)
    * मुझे लोगों से तब तक युद्ध करते रहने का (अल्लाह से) आदेश मिला है जबतक कि वे ये न मानने लगें कि अल्लाह के अतिरिक्त दूसरा कोई उपासना के योग्य नहीं है और अल्लाह का रसूल (पैगम्बर ) होने के कारण मुझ पर और जो मेरे द्वारा लाया गया (कहा गया) है, उसपर विश्वास न करने लग जाएँ.* -”मुहम्मद साहिब, हदीस सं.३१: सही मुस्लिम”
    * फिर जब पवित्र महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ पाओ क़त्ल करो, और उन्हें पकड़ो,और उन्हें घेरो,हर घात कि जगह उन की ताक में बैठो.—”कुरआन शरीफ-९:५”
    * और उसने तुम्हें उनकी धरती और उनके घरों और उनकी संपत्ति का वारिस बना दिया और उस भूमी का भी जिसपर तुमने पैर रखा.—.”कुरआन शरीफ-३३:२७”
    * तो जो कुछ लूट तुमने हासिल की है उसे हलाल और पाक समझकर उसका आनंद उठाओ और आल्लाह से डरते रहो. निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करनेवाला है. “कुरानशरीफ ८:६९”
    *चार्ल्स हेमिल्टन (किताब भवन -देहली से प्रकाशित ) द्वारा लिखित पुस्तक में बतलाया गया है कि गैर मुस्लिमों के साथ युद्ध की क्या मुस्लिम नीतियाँ हैं—-
    १. इस्लाम पर आस्था न रखने वालों के विरुद्ध किसी न किसी मुस्लिम संगठन द्वारा निरंतर युद्ध करते रहना आवश्यक है.” खण्ड २, पृ .१४०”
    २.इस्लाम पर विश्वास न करने वालों के ऊपर बिना किसी कारण के भी आक्रमण किया जा सकता है.
    * किसी मुस्लिम द्वारा किसी गैरमुस्लिम की ह्त्या करना अपराध नहीं है ,ऐसा इस्लामी शरियत का स्पष्ट आदेह है. “सरकार : हिस्ट्री ऑफ़ औरन्गज़ेब, भाग-३, पृ.१६८ ”
    * बिना एक दिन की भी छूट के मूर्तियाँ अविलम्ब नष्ट करनी पड़ेंगी. इस्लाम और मूर्तियों का सह अस्तित्व संभव नहीं है .”म्यूर,पृ.४५०”

    # उपरोक्त सारे उधरनो का अवलोकन करके किसीको भी आसानी से समझ आजाना चाहिए कि गैर मुस्लिमों को समाप्त करना हर मुस्लिम कि परम पवित्र और पहली जिम्मेवारी है, उसकी सम्पत्ती को लूटना, स्त्री का शील भंग करने का पवित्र अधिकार उसे उसके खुदासे उसे मिला हुआ है. गैर मुस्लिमों से निरंतर युद्ध करने का उसे स्पष्ट आदेश है. मूर्ती पूजा जैसी अपवित्रता (?) तथा धरती पर यह कुफ्र फैलाने वालों की समाप्ति उसके जीवन का परम लक्ष्य है. मुहम्मद – साहिब, कुरानशरीफ तथा हदीस के यही आदेश उसे बार-बार मिले है. कुरआन पर ईमान लानेवाले हर मुस्लिम को इनपर आचरण करना ही होता है. अगर वह ऐसा नहीं करता तो वह सच्चा मुसलमान कैसे हो सकता है. अतः मुस्लिम पिछले १५०० साल से जो हिंसा कर रहे हैं , यही करने के लिए उनकी स्थापना की गई है. इससे इतर आशा उनसे करना मूर्खता है, मुस्लिम इतिहास और मज़हब के प्रती अज्ञानता है.
    जो सैंकड़ों उदहारण उन मुस्लिमों के हैं जो भारत की संस्कृती में रच – बस गए , वे ऐसे लोग हैं जिन्होंने भारत की हिन्दू संस्कृति को जीवन में उतार लिया, इसके दीवाने हो गए. इनका प्रतिशत दशमलव एक भी नहीं होगा.
    तो मुस्लिम लोग तो बड़ी इमानदारी से वही कर रहे हैं जिसका आदेश उनका मज़हब उन्हें देता है, आपको क्या करना है ? आप खुद सोच लें . पर कृपा करके अब ये झूठ बोलना बंद कर दें कि हत्याएं करने वाले चंद भटके हुए नौजवान हैं, हिदू-मुस्लिम एकता, सहस्तित्व आदि आदी . अरेभाई आपकी सहमती से क्या होता है, उन्हें उनका इस्लाम ऎसी इजाज़त ही नहीं देता.
    सच का सामना करें, उसे झुठलायें नहीं. धर्म निरपेक्षतावादियों से निवेदन है कि हम लोगों को और मूरख बनाने, बहकाने का प्रयास न करें. वैसे मैं जानता हूँ कि वे कभी भी अपनी करनी से बाज़ नहीं आयेंगे . क्योकि वे सच को जानते है, उनके निहित स्वार्थ सच पर पर्दा डालकर ही सिद्ध होते हैं. इसी की रोटी वे खाते हैं. फिर चाहे दक्षिण पंथी हों या वाम पंथी.

    • rajesh kaporr ji aadhi aayaton ko mat bataiye……….
      warna fir mahabharat, shrimadbhagwat geeta bhi padhiye jo ki laaladhari ki leelaon se bhari hui hai………
      aap jin aayoton ka tarjuma bata rahen hain kabhi unko pura padhna tab aapko pata chal jayega wo kis sandhrab me di gai hain……… aksar log islaam ke sandharb me di gai baaton ko , aayoton ko aadha adhura batate hain aage piche ki baat kha jate hain ki ye hadhis kis sandhrab me di gai hai or samany aadmi kisi dharam vishesh ke pirti galat avdhrana ka shikaar ho jata hai…….
      or jahan tak bharat par islaami raj ka sawal hai to itihaas ko dekhiye tab bharat naam ki chiz hi nahi thi yahan tak ki aazadi milne ke baad bhi bharat ki position kya thi sabko pata hai agar aap isi tarh ki purwagrah ki bhavna ke aadhar par jawab likhte rahe to koi saarthak parinaam nahi niklne wala hai…….. aapko chaiye ki pehle quran or hadis ke sandhrbhon ka vishleshan karen fir uska varnan karen……… ye hamari zimmedari bhi hai yadi humko apne dharam ko samjhna hai to pehle dusre ke dharm ko samjhna chaiye tabhi hum sahi sahi vishleshan karne ki istithi me hote hain………..
      aur ye to saty hi hai ki dudh ka dhula koi nahi hota hai………..
      aur aapse nivedan hai ki hadith ka sahi sahi varnan kiya karen aadha adhura varnan acha nahi hota…………

      • मुस्लिम bloggers के द्वारा छद्म नामों से टिप्पणी की जो परंपरा जारी है वो एक दिन उन्हे बहुत भारी पडेगी। deepa sharma का वास्तविक परिचय क्या है, कैरानवी, सलीम, अथवा जमाल वह तो मै नही जानता पर इतना कह सकता हूँ कि जो अपनी बात को सामने आ कर खुद कहने की हिम्मत नही रखता वो एक नम्बर का झूठा और कायर है। ऐसे लोगो के टिप्पणी पर तो थूकना भी थूक waste करना है, पर मैने सोचा कि अपने भाईयों को जो कि इनकी असलियत से वाकिफ नही है, उनको तो इससे रूबरू करा दूँ।

        • Mahoday. Aap khud hi bewajah behas me pade ye tippani aap par nahi balki shishir ji ke sath chal rahi thi, aap ke shabdo aur fatwo ka dhanywad. Agar aapko parichay mangna tha to behtar tarike se maang sakte thay. Shubhkamnao ke sath. Deepa sharma

          • दीपा जी मुझे भी आप के बहुरुपिया होने का विश्वास हो चला है. आप यदि अपना मोबाइल no सकें तो पुष्टि हो जाएगी. मेरा no है ९९९८६३२६०४. dhanyavad

  58. इतिहास साक्षी है की इंसानियत की पक्षधरता के लिए हर दौर में ललक उठती रही है .विश्व शांति भाई चारे के लिए समाजों की स्थिरता के लिए ;कमजोर असहाय वर्गों के उद्धार हेतु मानव समाज ने स्वयम अवतारों पीर पैगम्बरों की परंपरा स्थापित की थी .अब आज कोई अपने मज़हब या धरम की परिभाषा इस तरह से करे की’ अहम् एको भवति द्वातीयो नास्ति “तो बड़ी मुश्किल होगी . ज़नाब तनवीर जाफरी साहेब ने सच्चे इस्लाम को परिभाषित करते हुएइस्लाम के विभिन्न उपवर्गों पर हो रहे हमलों पर चिंता जताकर पूरी मस्लिम बिरादरी का भला किया है .आशा की जा सकती है कीदुसरे धर्मों को मानने बाले नरमपंथी भी अपने अपने धर्मों के अन्दर पनप रहे कट्टरपंथ को रोकने हेतु अपने पुरषार्थ का उपयोग करें .सभी धर्मों के अच्छे अच्छे विचारों को पिरोकर मौजूदा चुनोतियों का मुकाबला करें .एक सार्थक लेख हेतु ज़नाब तनवीर साहेब को बधाई .

  59. तनवीर साहब,
    आदाब अरज, आपने सब कुछ ठीक लिखा ऐसा ऐसा है मगर मैं ये नहीं समझ पाया कि आप कहना क्या चाहते हैं इस लेख से. आप अपनी बौद्धिकता को धर्म से जोड़ के नहीं देख सकते. अन्दर तक इस्लाम को खंगालो आपको सब जवाब मिलेंगे. खैर मैंने आपको आज पहली बार पढ़ा है , हो सकता है मैं आपको न समझ पाया हूँ.

    With warm regards
    Er. Mohd. Shahid
    Assistant Professor in EC department
    Naraina College Of Engineering & Technology, Kanpur.

  60. aap ne bada hi saamayik prasang liyaa hai. sabhi ke vichar achche lage. aashaa hai insaniyat ki raksha ke liye log kaam karate rahenge.

  61. तनवीर जाफरी जी सबसे पहले मुबारकबाद एक बेहतरीन लेख के लिये. डॉ. प्रो. मधुसूदन उवाच जी सुधर की ज़रुरत इस्लाम को नहीं कुछ कट्टरवादी मुसलमान को है. मुसलमान वोह है जो कुरान और हदीथ पे चलते हुए सहयोग, भाईचारा, समर्पण, त्याग, संतोष तथा क्षमा और बलिदान जैसी विशेषताओं को अपनाए. इस्लाम मैं किसी पे हमला सिर्फ आत्मरक्षा के लिये ही किया जा सकता है बस. आज के इस दौर मैं इस्लाम के सिध्दांतों और आम मुसलमानों के व्यवहार को अलग-अलग करके देखना होगा। कुरान मैं ऐसे इंसान जो खुद को मुसलमान कहे और कुरान के बताए रास्ते पे न चले मुनाफिकून कह है.

  62. इस्लाम के नाम पर दुनिया में जोकुछ पिछले हज़ार साल में हुआ है, जागरूक लोग उसके बारे में अछी तरह से जानते हैं. सारे खूनो- गारत को जानते- समझते हुए यह भी समझना होगा कि भारतीय संस्कृति ने अरब के हिंसक आक्रमणकारियों का मुकाबला करते -करते उनके समझदार तबके के दिलों को सदा के समान जीतना भी जारी रखा. भारत कि संस्कृति ने करोड़ों आक्रमणकारियों को केवल तलवार नहीं, संस्कृति के दम पर भी जीता, अपना बनालिया. यह प्रक्रिया कई कठमुल्लाओं तथा तास्सुबी शासकों के विरोध का मुकाबला करते हुए चलती रही.
    इस्लाम के भारतीयकरण में रुकावट डालने का काम अंग्रेजों ने बड़ी चालाकी के साथ किया और सफल रहे. गो – हत्या के लिए विक्टोरिया के निर्देश पर ईसाईयों के स्थान पर मुस्लिम कसाइयों कि नियुक्ति, गोहत्या कि अनुमति के लिए अलीगढ की मस्जिद की सीढ़ीयों पर बैठकर मुसलमानों के हस्ताक्षर करवाने का काम मुस्लिम विश्वविद्यालय का अँगरेज़ प्रिंसिपल खुद करता था. यह प्रार्थनापत्र इंग्लॅण्ड की महारानी के नाम था. ताकि सन्देश यह जाये की इसाई नहीं , मुस्लिम गो वध चाहते हैं. ऐसे ही कई हथकंडे अपनाकर मुस्लिम समाज के तेजी से होते भारतीयकरण की जड़ें लगातार काटी जाती रहीं जो आज भी काले अँगरेज़ करते जारहे हैं.
    समझना होगा कि इसके पीछे पश्चिम की चालाक इसाई ताकतें हैं जो इस्लाम के जनून का इस्तेमाल करके मुसलमानों को मारने की सहमति दुनियां में बड़ी सफलता से बनारहे हैं. भारत की राष्ट्रीय ताकतों की सारी सामर्थ्य इस्लामी आतंकवाद की तरफ मोड़ने में सफल हो रहे हैं. ज़रा ध्यान से देखें कि ड्रोन जेसे हमलों कि ताकत प्राप्त कर चुका अमेरिका जब चाहे ,इस्लामी ताकतों कि रीड तोड़ सकता है, पर उसे ऐसा करना ही नहीं है.
    अपनी करनियों से ध्यान हटाने केलिए , अपने दुषकर्मों को छुपाने के लिए उसे एक परदे कि जरूरत है जिसके लिए वह मुस्लिम आतंकवादयों का इस्तेमाल CIA जैसे गुप्त संगठनों के माध्यम से कर रहा है. मुस्लिमों को आतंकवादी कहकर मारने का वातावरण वह बना ही चुका है. जब चाहेगा , गहरा वार करके उनकी कमर तोड़ देगा. अभी तो उनके इस्तेमाल से वह भारत को कमजोर बनाने में लगा है, यह हम देख रहे हैं.
    समस्या यह है कि मुस्लिम समाज पश्चिम कि इसाई ताकतों कि इस गहरी चाल को नहीं समझ रहा. भारत के देशभक्त भी इस अमेरिकी बदमाशी को समझाने में चूक कर रहे हैं.
    इसाई ताकतों का हस्तक्षेप बंद हो तो इस्लामी आतंकवाद जैसी अनेकों समस्याओं का समाधान सरलता से हम कर लेंगे. अभी तो उन्ही देश तोडू ताकतों के हस्तक सत्ता पर काबिज हैं. अतः समाधान सरल नहीं.
    खास बात: याद रहे कि भारत दुनियां का वह पहला और एकमात्र देश है जो हज़ार साल तक इस्लामी आक्रमणकारियों का मुकाबला करता रहा और अपने अस्तित्व, संस्कृति को बचाए रख सका. वरना सारा अरब, सारा अफ्रिका इस्लामी संस्कृति के आगे नहीं टिक सका और उनकी अपनी प्राचीन संस्कृति का कोई नामलेवा तक ना बचा. यही हाल आधे यूरोप का हुआ जो केवल 150 साल में हार गया. केवल और केवल भारत है जो हज़ार साल के संघर्ष के बाद भी अपनी संस्कृति का गौरव बचाए और बनाए रख सका.
    फिर यह कितना बड़ा झूठ है कि भारत सदा हारता रहा. ऐसा होता तो हज़ार साल युद्ध न चलते, भारतीय संस्कृति का नामों निशाँ तक न मिलता, अरब और अफ्रिका कि तरह. यानी भारतीयों जैसी वीरता और अद्भुत संस्कृति संसार में दुर्लभ है ना. तोफिर समाधान सुनिश्चित है, अतः चिंता नहीं, केवल चिंतन और कर्म. विजय सुनिश्चित है.

    • कपूर साहब आपके बातें गहराई तक उतरती चली जाती हैं. आपने सही पचाना कि ये भारतीय वीर थे जिन्होंने एक हजार साल तक मुसलमानों से लड़ते रहने के बावजूद अपनी संस्कृति अक्षुण बनाये रखा. अमेरिका और ईसाई ताकतों पर आपने सही टिपण्णी कि है. दुर्भाग्य से राष्ट्रवादी ताकतों को भी इन्हीं शक्तियों कि तरफ ताकना पड़ रहा है, असल में इस्लाम कि हिंसा को रोकने के लिए न तो भारतीय सरकारों में इच्छाशक्ति जान पड़ती है और न ही क्षमता. जिससे राष्ट्रवादियों को पश्चिम के अलावा के कोई मजबूत विकल्प नहीं दिखाई देता. आप जैसे लोग ही शायद सही मार्गदर्शन कर सकते हैं. अभी भी इस्लाम दुनिया कि मजबूत शक्ति नहीं है शायद इसलिए भी वर्ल्ड कि मजबूत ताकतें इसे उतनी गंभीरता से नहीं लेतीं. इस्लाम कम से कम आर्थिक ताकत बिलकुल भी नहीं है. इसके अलावा कूटनीति में भी इस्लाम अभी भी पीछे है. अर्थतंत्र और diplomacy शेष विश्व को उस हिसाब से नीतिया बनाने के लिए बाद्ध्य करती है. चाइना मुस्लिम अलगाववाद से काफी परेशान है, लेकिन उसने तालिबान, अफगानिस्तान और अन्य मुस्लिम देशों को बदस्तूर समर्थन जारी रखे हुए है. यह चाइना कि कूटनीति को दर्शाती है. उसे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि दुनिया इस्लाम से परेशान है.

  63. मैं तनवीर जी से पूर्णतः सहमत हूं मुझे लगता है कि यह विरोध मात्र मुस्लिम धर्म तक सीमित न रहकर सभी धर्मों व सम्प्रदायों में फ़ैला हुआ है तथापि इसकी तीव्रता विभिन्न हो सकती है मूलत:यह धर्म (एक व्यव्स्था) व राज्य शक्तियों के मध्य टकराव का फ़ल हो सकता है जहाँ राज्यकारी शक्तियों का नियंत्रण परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से जनता के हाथ में होता है धार्मिक शक्तियों का संचालन मात्र कुछेक व्यक्तियों के हाथों में ही होता है जहाँ पर तर्क की गुन्जाइश नही होती है

  64. विदेश में रहते हुए और इस्लाम के सम्बन्ध में तेजी के साथ बदलती धारणाओं के दृष्टिगत यह स्पष्ट हो रहा है कि कट्टरपंथी तत्वों के कारण शांति से बसे रहने और अपने आस पास के वातावरण में अन्य मजहबों को मानने वाले लोगो को भी शांति से रहने देने की हर किसी की कोशिश को नाकाम करने के विनाशकारी रास्ते पर कुछ लोग चल रहे हैं. जितने भी आतंकवादी हमले हुए हैं उनमें इस्लाम की रक्षा की दुहाई दी जाती है और सिर्फ अपने लिए जन्नत पाने की चाह झलकती है. कैसी है यह सीख जो भले ही आम मुसलमान को चुभती है लेकिन किसी में इतना साहस पैदा नहीं करती कि वे इसे इंसानियत के नाम पर चुनौती दे सके? कैसा है यह डर? और क्यों है? जब तक यह दूर नहीं होता और जब तक वह सोच जो कट्टरपंथ को बढ़ावा देती है और किसी भी मुसलमान को दरिंदगी की राह अपनाने की सीख देती है खत्म नहीं होती यह दुनियां खतरों
    से खली नहीं होगी. और यह खतरे सभी के लिए पैदा किये जा रहे हैं. तनवीर जाफरी ने जो कहा है सही है और सही मुसलमानों को इसकी तामील करनी चाहिए.

    नरेश भारतीय

  65. तनवीर जाफरी जी ने सामयिक और उचित विश्लेषण किया है.
    मैंने यह भी देखा है कुछ सच्चे और अच्छे नेकदिल मुस्लिम लोग अपने क्षेत्र में वास्तविक समाज सुधार, भाईचारा और राष्ट्र निर्माण में खुलकर इसलिए हिस्सा नहीं ले पाते क्यूंकि वो इस्लाम का केंद्र अरब देशों को मानते हैं, और वहां के क़ानून (जो सही हो या गलत, वैज्ञानिक हो या अव्यवहारिक) उनमे अकीदा रखते हैं. फलस्वरूप वे प्रगतिशील और मानवीय होने के बजाय हिंसा और अलगाववाद का समर्थन कर देते हैं.

    मैं विश्व की बात नहीं करूँगा, भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में चाहिए की सभी मुस्लिम नागरिक इस्लाम को भारत भूमि से जोड़कर भाईचारा को सर्वोच्च स्थान दें और समस्त विश्व के लिए उदाहरण प्रस्तुत करें. साथ ही नेक बन्दे उन सभी तथाकथित ‘सच्चे मुसलमान’ की खिलाफत भी करें जो अमानवीय हरकतों से अपने ही इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं.

  66. -तनवीर जाफरी जी को सदा पढा करता हूं। और उनके लेखोंसे सहमत भी होता हूं। मुझे लगता है, कि इस्लामकी कठिनायी कुछ निम्न प्रकारकी है। इस्लामके अनुयायी मुझे निम्न प्रकारके प्रतीत होते हैं। (क) बुद्धिमान अनुयायी जो इस्लाममें सुधारकी आवश्यकता को समझते हैं (२) बुद्धिमान अनुयायी जो सुधार समझते हैं, पर बहिष्कारसे, या फतवेसे डरते हैं। (३) वह गुट जो यह सारा समझताहै, और इसीका सहारा लेकर मज़हबी या इसलामिक देशोंकी लिडरी में/पॉवरमें बने रहना चाहते हैं।(४) चौथा गुट जो शायद बडी संख्या वाला है, जो अंध श्रद्धासे या और चारा ना होनेसे मज़हबी लिडरों के आश्रय तले है। (५) सारे स्कॉलर जानते हैं, कि अगर आप मुंह खोलेंगे और ज़रुरतसे ज़्यादा बोलेंगे तो आपकी हालत तसलिमा नसरिन,अन्वर शेख,हमीद दलवाई, इत्यादि स्कॉलरों जैसी हो सकती है। जो स्कॉलर वास्तवमें इस्लामको २१ वी शतीमें लाना चाहते हैं, सुधार चाहते हैं।मूक सम्मति देनेपर मज़बूर है। फिर, यह गठ्ठन कैसे सुलझे? यह मेरा विश्लेषण कुछ धृष्टता ही है, आप कृपया त्रुटि बताएं।

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