गांव की समस्याओं का हल क्या है?

इश्तेयाक़ अहमद

logocharkhaभारत दुनिया के उन चंद विकासशील देशों में एक है जो तेजी से विकास कर रहा है। गांवों की तरक्की हो रही है। लोगों का रहन-सहन और शिक्षा का विकास हो रहा है। सरकारी योनाओं का लाभ गांव गांव तक पहुंच रहा है। पक्की सड़कों का निर्माण, नाले का निर्माण, नालों की साफ सफाई और बिजली की व्यवस्था में अभूतपूर्व सुधार आया है। अक्सर ऐसा रेडियो, टीवी और अखबारों में पढ़ने और सुनने को मिल जाते हैं। परंतु वास्तव में क्या ऐसा हो रहा है? क्या सच में गांव तेजी से विकास की ओर अग्रसर है या फिर यह केवल मिथ्या है? गांव राज्य और देश की तरक्की का आईना होता है। महात्मा गांधी ने देश की तरक्की का रास्ता गांव से होकर ही सुझाया था। जिसका अर्थ है कि यदि गांव में विकास की बयार पहुंच चुकी है तो देश स्वंय विकास की राह पर चल पड़ेगा। आजादी के बाद बापू के इस कथन का सरकारों ने कितना अनुसरण किया यह किसी को बताने की आवश्येकता ही नहीं है।

गणतंत्र के 63 साल में देश में जितना विकास हुआ है उसका आधा हिस्सा भी शायद ही गांव तक पहुंच पाया है। बिहार समेत देश के कई राज्य ऐसे हैं जहां के गांव अब भी विकास की धारा से दूर हैं। विगत कुछ वर्षों में विकास की किरण अवश्यं नजर आई है। कुछ गांवों में विकास के कार्य शुरू भी किए गए हैं। परंतु वह गति इतनी धीमी है कि विज़न 2020 का लक्ष्य पूरा कर पाना कठिन नजर आता है। लेकिन अब भी कई गांव ऐसे हैं जहां विकास के नाम पर लोगों को केवल ठगा जा रहा है। उन ग्रामीणों को यह पता भी नहीं है कि सरकार उनके उत्थान के लिए क्या क्या योजनाएं चला रही है। कौन कौन सी योजनाओं का लाभ उठाकर वह अपने जीवन स्तर को सुधार सकते हैं। कौन कौन सी योजनाएं किसके लिए हैं और इसे किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है। हालांकि केंद्र और राज्य सरकार की ओर से आम आदमी के हित में मनरेगा, इंदिरा आवास योजना, वृद्धावस्था पेंशन योजना, आंगनबाड़ी, बाल विकास योजना, स्त्री कल्याण योजना, एनएचआरएम और छात्रों व किसानों के लिए कई सारी योजनाएं एकसाथ संचालित की जा रही हैं। इन योजनाओं के प्रति आम जनता को जागरूक करने के लिए सरकार की ओर से भरसक प्रयास भी किए जाते रहे हैं। लेकिन इस बात को जानने का कभी गंभीरता से प्रयास नहीं किया जाता है कि क्या वास्तव में लोग योजनाओं के प्रति जागरूक हुए भी हैं अथवा नहीं? केंद्र और राज्य सरकार परस्पर यह दावा करती रही है कि उसकी योजनाएं गरीब, अशिक्षित, अशक्त विकलांग और अभावग्रस्त लोगों के लिए हैं। परंतु वह जमीनी स्तर पर कितना कामयाब है पाठक बखूबी समझते हैं।

सरकारी योजनाओं और सुविधाओं से वंचित लोगों और गांवों की एक लंबी सूची है। कई ग्रामीण ऐसे हैं जिनका नाम बीपीएल सूची में दर्ज है लेकिन इसके तहत उन्हें जो सुविधाएं मिलनी चाहिए थीं उससे आज तक वंचित हैं। कई गांव ऐसे हैं जहां आंगनबाड़ी संचालित हैं परंतु यहां गर्भवती महिलाओं और किशोरियों को मिलने वाली सुविधाओं का अभाव है। ऐसा ही एक गांव है दरभंगा का छपकी पररी। दरभंगा रेलवे स्टेशन से करीब आधा किमी दूर स्थित इस गांव में सरकारी योजनाओं का अभाव है। गांव की अधिकतर आबादी कृषि पर निर्भर है। जबकि कुछ दरभंगा शहर या उसके आसपास के इलाकें में रिक्षा चलाकर अपने परिवार का पेट भरते हैं। आर्थिक रूप से अत्यंत ही पिछड़े इस गांव के ज्यादातर लोगों का नाम बीपीएल में दर्ज ही नहीं है और जिनका नाम शामिल है उन्हें आजतक इसका लाभ नहीं मिल सका है। सरकार ने गरीबी रेखा में भी रेखा तय करते हुए लाल कार्ड और पीला कार्ड बना रखा है ताकि अधिक से अधिक गरीबों तक सुविधाओं का लाभ पहुंचाया जा सके। इस कार्ड के तहत आर्थिक रूप से अक्षम गरीबों को गेहूं, चावल और दाल निःशुल्क प्रदान किया जाता है अथवा बहुत ही मामूली रक़म पर उपलब्ध करवाने का प्रावधान किया गया है। परंतु यह लाभ उन्हें कभी कभार ही प्राप्त हो पाता है।

यह समस्या केवल राशन कार्ड तक ही सीमित नहीं है। बल्कि वृद्धावस्था पेंशन की भी यही दुर्दशा है। इस योजना के तहत 65 वर्ष से उपर की आयु वाले सभी बुजुर्गों को पेंशन पाने का हक़ है। ताकि उनका बुढ़ापा बिना किसी कठिनाईयों के गुज़र सके। बेबसी और लाचारी की जिंदगी गुजार रही 68 वर्षीय सैबुल निशा वार्ड संख्या 11 में रहती है। कुछ वर्ष पूर्व उनके पति का देहांत हो गया था। जर्जर हो चुके घर में वह बिल्कुल अकेली रहती है। आर्थिक रूप से कमजोर सैबुल बताती हैं कि उन्हें आजतक न तो वृद्धावस्था पेंशन और न ही इंदिरा आवास योजना का लाभ मिला है। इस संबंध में उन्होंने कई बार जनप्रतिनिधि से मिलकर फरियाद की परंतु हर बार वायदा और आश्वा सन ही मिला है। मुखिया ने ग्राम सेवक और ग्राम सेवक मुखिया का मामला बताकर टालमटोल करते रहे हैं। दूसरी ओर वार्ड मेंबर भी इस मामले में कुछ भी सहायता करने को तैयार नहीं हैं। वहीं शारीरिक रूप से अक्षम नाज़नी भी अबतक सरकार की ओर से चलाई जा रही विकलांग सहायता का इंतजार कर रही है। उसने बताया कि 2004 में उसे आखिरी बार विकलांग सहायता के रूप में 600 रूपये प्राप्त हुए थे। गांव के कई घरों में आज़ादी के इतने वर्षों के बाद भी बिजली नहीं पहुंच सकी है। हालांकि सरकार राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत गांव गांव तक बिजली पहुंचाने के लिए कृतसंकल्प है और इस दिशा में कई महत्वपूर्ण पहल भी किए जा रहे हैं। लेकिन छपकी पररी कब तक रौशन होगा इसकी गारंटी किसी के पास नहीं है।

शिक्षा की व्यवस्था भी छपकी पररी में बेहद कमजोर और दयनीय है। यहां स्थापित मीडिल स्कूल शिक्षा की खामियों को मुहं चिढ़ा रहे हैं। 438 छात्र-छात्राओं वाले पंजीकृत इस विद्यालय को केवल दो कमरों में संचालित किया जा रहा है। स्कूल के शिक्षक दुर्गानंद झा बताते हैं कि अधिकतर क्लासें पेड़ के नीचे लगाई जाती हैं। हालांकि मीड डे मिल नहीं मिल पाने के कारण स्कूल आने वाले बच्चों की संख्या बहुत कम होती है। स्कूल नहीं भेजने के पीछे कारण बताते हुए एक अभिभावक अषोक का कहना है कि उनके बच्चे को समय पर ड्रेस और किताबें उपलब्ध नहीं कराई जाती हैं। वहीं कई बार स्कूल में छात्रवृति का आवेदन देने के बाद भी किसी प्रकार से सहायता नहीं दी जा सकी है। यही कारण है कि बहुत से बच्चे स्कूल से दूर होते जा रहे हैं। ऐसी समस्याएं किसी एक गांव की नहीं हैं बल्कि बिहार के कई गांव हैं जहां सरकारी योजनाएं या तो पहुंची ही नहीं हैं या फिर अधूरे रूप से जारी हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि गणतंत्र के इतने वर्षों बाद भी यदि गांव की समस्याएं जस की तस मौजूद हैं तो हम विकसित भारत की संकल्पना को किस प्रकार साकार कर सकते हैं? (चरखा फीचर्स)

2 COMMENTS

  1. जब तक लोग शिक्षित नहीं होंगे, अपने अधिकारों के प्रति जागरूक, गलत गतिविधियों के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे.. लोग जन कार्यों के लिए आया पैसा खाते रहेंगे….और तब तक भ्रष्टाचार ख़तम नहीं होगा… और न ही गांवों की हालत सुधरेगी..

    आर त्यागी
    बिजनौर (उ०प्र०)

  2. Jb tk bhrashtachar khtm नही होगा तब गाँव ही नही कहीं का भी विक्स ठीक से नही होगा.

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