ऐसे रब किस काम के जो सबके काम न आवे

—विनय कुमार विनायक
ऐसे रब को क्या मानना
जिसको मानने के लिए पड़ जाए
सर पर कफन को बांधना
जिसे मनवाने के लिए जरूरी हो जाए
विधर्मियों पर मुक्का तानना
जिसको फरियाद सुनाने के लिए जरूरी
बुक्का फाड़ फाड़कर चिल्लाना!

ऐसे रब को क्या मानना
जो उपलब्ध हो किसी खास स्थान में
जिससे मिलने जाने के लिए पड़ जाए
परदेश जाना भीसा पासपोर्ट बनवाना!

ऐसे रब को क्या मानना
जिसके लिए जरूरी हो अलग दिखना
आम आदमी से अलग लिबास पहनना
उग्र स्वभाव विकसित करना!

अच्छी बात है आस्तिक होना
पर क्या जरूरत है ताम झाम
पूजा नमाज का दिखावा करना
ईश्वर कहां नहीं है?

सब कहते पूरी कायनात में रब होते
फिर क्यों पूरब पश्चिम में ताक-झांक
सब जानते रब रहते हैं सबके दिल में
फिर क्यों मंदिर मस्जिद में हांक-डाक?

जब ईश्वर है इंसानी दिल के वासिंदे
फिर क्यों इंसानियत के कम कारिंदे?
हरकोई क्यों नहीं दिलदार दिलवर बंदे?

इंसान और इंसानियत के रहनुमाओं ने
धर्म मजहब की दीवार क्यों खींचतान दिए?
कुछ लोगों ने रब को अपनी अक्ल शक्ल देके
स्वहित मंदिर मस्जिद गिरजाघर में कैद किए!

ऐसे रब किस काम के जो सबके काम न आवे
सच में खुदा खुद की समस्या से गढ़े जाते
जिस समाज की जैसी स्थिति तत्कालीन होती
तदनुसार खुदा की कल्पना कर ली जाती!

हर धर्म, ईश्वर, धर्माधिकारी, अवतार, पैगम्बर
ईस,मठाधीश स्थानीय समस्याओं से निसृत होते
अब्राहम मूसा ईसा यहूदी भूमि अस्मिता खातिर
नबी पैदा हुए अपने अरबी कबिलाई हित साधने!

कोई गैरयहूदी, गैर इजरायली, गैर अरबी समाज
क्यों परेशान एंजल बाइबल कोरान हदीस के पीछे
गर भारतीय हो तो तुम्हारी जातीय समस्या हेतु
राम कृष्ण बुद्ध जिन दस गुरु धर्म सुधारक हुए
और भी हो सकते भविष्य में सुधार के दर खुले!

जो समाज कबिलाई होते उनके खुदा यहोवा आदि
व उनके प्रतिनिधि होते स्वजाति कबिला हितवादी!

जहां जल की कमी,हरियाली नहीं,वायु में न नमी,
थोड़ा जल से काम करे स्नान तक नहीं कर पाते
देह पोंछ लेते बद्दू जैसे हरे रंग ख्वाब में देखते
जहां एक कबिला दूसरे कबिलाई स्त्रियों को लूटते
वहां स्त्रियां पर्दे बुरके में रखे जाते थे हिफाजत में
वहां खुदा रब प्रतिनिधि उस स्थिति के चिंतक थे!

ऐसे में निर्णय लो तुम किस समाज में जन्मे हो
कैसे रब व मजहब हो तुम्हारी आस्था के निमित्त
कैसी स्थिति परिस्थिति हो रिश्तेदारियों के हित?

अगर हो भारतीय संस्कृति परंपरा से सम्बंधित
तो चाहिए तुम्हें यौन पवित्रता अध्यात्मिक शांति
वैज्ञानिक सोच,तार्किक जिज्ञासा, मानवीय प्रवृत्ति!

ऐसे में वैसे रब क्या जो अरबी फारसी में सुने
संस्कृत हिन्दी दक्खिनी अपनी भाषा करे अनसुने
वैसे भी खुदा क्या जो खुदे शब्द को ही समझते
सच तो यह है कि ईश्वर का भाव क्षेत्र है मन में
धर्म पंथ मजहब से ऊपर वतनपरस्ती के संग में!

कोई धर्म बड़ा होता नहीं माता व मातृभूमि से
हर अवतार पैगम्बर लड़े थे स्वदेश के लिए ही
जीते जी रोजी-रोटी देती अपने वतन की माटी
मर जाओ तो दो गज जमीन देती देशी मिट्टी!

पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण में खुदा खोजो नहीं
सबके अपने-अपने राम कृष्ण बुद्ध गुरु तीर्थंकर
अब्राहम मूसा ईसा अवतार पैगम्बर अपने जैसे!

ऐसे में मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे गिरजाघर में
ईश्वर हो ना हो मगर घर में है माता पिता ईश्वर
अपने मन में स्वआत्मा को परम तत्व समझो
वतन में,जड़ चेतन में,जन जीवन में देवत्व देखो!
—विनय कुमार विनायक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here