लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन
प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|
रमतूला तुरही अथवा शहनाई का पुराना स्वरूप है|बुंदेलखंड में एक गीत बहुत गाया जाता था कि
ओरी बऊ कबे बजे रमतूला
मोये देखने है दूल्हा|
अपने विवाह को उत्सुक लड़की मँ से कह रही है कि मां रमतूला कब बजेगा मुझे दूल्हा देखने की इच्छा हो रही है| लॊक संस्कृति के मज़े ऐसे ही होते हैं|
आपकी मार्मिक किविता हृदयभेदी है।
हम अपना सर्वस्व अपना अस्तित्व सब कुछ बिसार चुके हैं।
न अपनी मात्रि भाषा बोल पाते और न अंग्रेज़ी -यह कहिए कि यदि यही रवैय्या रहा तो हम अपने को स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं कर पाएगें।
जिस प्रकार त्रिवेणी संगम की वाहिनी सरस्वती गुप्त हो गई उसी प्रकार “वाक देवी” हमसें रुष्ठ होकर हम अवाक हो जाएँगें!
स्त्री समाज की शक्ति है और वह अपने स्वधर्म व स्थिति अनुसार परिवार व समाज को संजोए रखती है।
भारतीय स्त्री अब तक अपनी अस्मिता,चरित्र व स्वरूप में अद्वितीय व अनोखी रही है।
माथे पर भव्य बिन्दी,हाथों में चूड़ियाँ,लम्बे घने केश बन्धे हुए व अँग पर आवरणित साड़ी वह दुर्गा,लक्ष्मी,सरस्वती का समागम साक्षात देवी “श्री” का रूप हुआ करती थी।
उसने अब तक कुछ “लक्ष्मण रेखाओं” का उल्लंघन नहीं किया था।
आज वह पाश्चात्य स्त्रियों की भद्दी नक़ल कर रही है और अपने अस्तित्व को भूल रही है।
धीरे धीरे हम अपने ही घर का पथ भूलकर पथभ्रष्ट हो रहे हैं!
भगवान से प्रार्थना है कि सुबह का भूला शीघ्र ही शाम को घर वापस आ जाए!!!
या क्या यह केवल भूलभुलैय्या है???
P.S. मैं संकुचित रूप से प्रश्न कर रही हूँ- रमतूला होता क्या है???
उत्तर की आकांक्षा में धन्यवाद!
गुड़िया तो नहीं जानती बुढिया(मै)भी नहीं जानती रमतूला क्या होता है
रमतूला को शहनाई का पुराना रूप कह सकते हैं यह एक तरह की बड़ी पुंगी है जिसे पुंगा भी कह सकते हैं|
ओरी बऊ कबे बजे रमतूला
मोय देखने है दूल्हा|
यह बुंदेलखंड का मजेदार गीत है|गांव की लड़की जो अपनी शादी के लिये बहुत उत्सुक है अपनी मां से कह रही है हे मां रमतूला कब बजेगा मुझे अपने पति को देखना है|लॊक संस्कृति का अपना अलग आनंद होता है|