—विनय कुमार विनायक
क्या कहें सन दो हजार बीस का हाल,
कम हंसाया,खूब रुलाया, जीना मुहाल!
नव वर्ष कर रहा हमसे पुराना सवाल,
मानवीय मूल्यों को अब रखो संभाल!
वन पर्यावरण, जन जीवन का रखना,
अच्छा ख्याल वर्णा रोते बीतेगा साल!
अब दुबारा चलना मत चीन सी चाल,
नहीं तो दुनिया होगी फिर से कंगाल!
बच्चों की पढ़ाई गई, मजदूर तंगहाल,
अपनों से मिला नहीं,ना रोगी संभाल!
बचना था जिनको, जैसे तैसे बच गए,
उम्र रहते ढेर समा गए काल के गाल!
ऐसी विडंबना ना देखी थी कभी हमनें,
कोरोना में गई जान,दर्शन को मलाल!
घर से निकलना तो महीनों रहा दूभर,
कोविड वारियर्स को जान जाने का डर!
कोरोना बीमारी हो गया जी का जंजाल,
वैक्सीन की आशा को लोग रहे हैं पाल!
पूजा-अर्चना-नमाज पर मचा रहा बवाल,
अब विज्ञान ही कर सकेगा कोई कमाल!
—विनय कुमार विनायक