—विनय कुमार विनायक
स्वर्ण मृग की चाहत में सीता माई
अति दुख पाई और नारी को चेताई!
जब जब नारी स्वर्ण पर ललचाएगी,
तब दाम्पत्य जीवन में दुःख पाएगी!
बाली रावण ने भाईयों को दुत्कारा,
दुश्मन से हारा पैगाम दिया न्यारा!
जब भी भाई को दुत्कार भगाओगे,
तब तो शत्रु के हाथों मारे जाओगे!
जब नारी तुम रुप पर इतराओगी,
तब तो तुम नाक कान कटाओगी!
रुप गर्विता नारी कुल को डुबाएगी,
सुपर्णखा का उदाहरण बन जाएगी!
जब भी पराई नारी का चीर हरोगे,
तब तुम छाती व जंघा तुड़ा लोगे!
दुर्योधन दुशासन का देखो अंजाम,
पराई नारी का करो नहीं अपमान!
जब तुम अपनों के अंश दबाओगे,
कौरव कंश सा निर्वंश हो जाओगे!
जर,जमीन,जोरू की करो ना लड़ाई,
भाई भाई में शत्रुता से जग हंसाई!
तुम गुरु बनो नहीं ऐसे जैसे थे द्रोण
परशुराम के ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण!
हरहि शिष्य धन पर शोक न हरहि,
ते गुरु नरक ते परहि’तुलसी कहही!
—विनय कुमार विनायक