निर्मल रानी
पुरुषों द्वारा महिलाओं पर अत्याचार,उनका शोषण व उत्पीड़न करने की अनेक घटनायें आये दिन सुर्ख़ियों में रहती हैं। अक्सर महिलाओं द्वारा संगठित होकर ऐसे अपराधों व अपराधियों के विरुद्ध आवाज़ भी उठाई जाती है। ऐसे अवसरों पर महिलाओं के प्रति सहानुभूति रखने वाले व उनके मान सम्मान व महिला अधिकारों की क़द्र करने वाले तमाम पुरुष,युवक व छात्र उनके साथ उनकी आवाज़ से आवाज़ मिलाते भी देखे जाते हैं। क्योंकि हर न्यायप्रिय मानवतावादी पुरुष यह भी जानता है कि वह भी किसी महिला का पुत्र उसका भाई,पति या पिता है। महिलाओं की शिकायतों के समाधान हेतु सरकार द्वारा महिला आयोग गठित किये गये हैं। कई जगह महिला थाने बनाये गये हैं। परन्तु हमारे ही देश में यह कहावत भी ख़ूब प्रचलित है कि औरत की सबसे बड़ी दुश्मन औरत ही होती है। ज़ाहिर है आम भारतीय परिवारों में प्रायः होने वाले सास-बहू,ननद-भाभी,जेठानी आदि से होने वाले घरेलू झगड़ों के चलते यह कहावत प्रचलन में आई होगी। यह भी सच है कि एक महिला अपनी बहू से बेटा पैदा करने के लिये जितनी आस लगाकर रखती है उतना उसका बेटा भी नहीं रखता। और ख़ुदा न ख़्वास्ता किसी औरत ने एक या दो तीन बेटियों को लगातार जन्म दे दिया तो सबसे अधिक सास की नज़रों में वह बहू खटकने लगती है। उसकी नज़रों से गिर जाती है। जहालत भरी इस सोच ने न जाने कितने घरों को बर्बाद किया है। तमाम बहुओं को इन्हीं परिस्थितियों में ख़ुदकशी तक करनी पड़ी है। नारी संबंधी अपराध की भी यदि पड़ताल करें तो हमारे ही समाज में अनेकानेक ऐसी महिलायें भी मिलेंगी जो कभी प्रेमिका के रूप में दूसरी महिला का घर उजाड़ देती हैं। कहीं महिलायें ही युवतियों को देह व्यापर में धकेल देती हैं, कहीं पेशेवर अपराधी बनकर महिलायें समाज को कलंकित करती और वह भी महिलाएं ही होती हैं जो अपने नवजात शिशुओं विशेषकर नवजात कन्याओं को कभी कूड़े के ढेर पर तो कभी नालों में कुत्तों के नोचने के लिये फेंक आती हैं। और यदि ऐसी ही विकृत व घृणित मानसिकता की कोई लड़की कॉलेज या विश्वविद्यालय तक पहुँच जाये तो कितनी ही लड़कियों की इज़्ज़त और उनकी ज़िन्दिगी से खिलवाड़ करने से भी नहीं हिचकिचाती।
ऐसी ही अपराधी व विकृत मानसिकता की एक लड़की पर आरोप है कि उसने पिछले दिनों चंडीगढ़ से 24 किलोमीटर दूर चंडीगढ़-लुधियाना राजमार्ग पर घंडुआ क़स्बे में स्थित चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी नामक एक निजी विश्व विद्यालय में लड़कियों के छात्रावास के बाथरूम में नहाते समय कथित तौर पर अपनी लगभग 60 साथी छात्राओं का गुप्त रूप से वीडियो बनाया था। छात्रा पर आरोप है कि उसने ऐसे आपत्तिजनक वीडियो बनाकर उन्हें अपने किसी युवक मित्र को शिमला भेज दिया। और उस लड़के ने कथित तौर पर इनमें से कुछ आपत्तिजनक वीडियो इंटरनेट के माध्यम से वायरल कर दीं। यह वीडियो वायरल होने के बाद विश्वविद्यालय के छात्र व छात्राएं ग़ुस्से में सड़कों पर उतर आये प्रदर्शन के दौरान कई लड़कियों के बेहोश होने की ख़बरें आईं। “हॉस्टल के अंदर काफ़ी तोड़फोड़ हुई और अभियुक्त लड़की को इसी विश्वविद्यालय से व उसके मित्र सहित एक अन्य लड़के को शिमला से गिरफ़्तार कर लिया गया है । यह दोनों ही अभियुक्त रोहड़ू (हिमाचल प्रदेश ) के रहने वाले बताये जा रहे हैं। इस घटनाक्रम में कुछ पीड़ित छात्राओं द्वारा आत्म हत्या किये जाने की भी अपुष्ट व भ्रामक ख़बरें आई थीं। परन्तु पुलिस व विश्वविद्यालय प्रशासन ने आत्म हत्या किये जाने की ख़बरों को महज़ अफ़वाह बताया। घटना की जांच हेतु पंजाब पुलिस ने तीन सदस्यों की महिला टीम गठित की है। परन्तु इस घटना के बाद छात्राएं ख़ुद को असुरक्षित ज़रूर महसूस कर रही हैं और चाहती हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन उनकी सुरक्षा के कड़े क़दम उठाए। घटना से क्षुब्द कई अभिभावक अपने बच्चों को छात्रावास से वापस बुला रहे हैं। अभिभावकों का कहना है कि विश्वविद्यालय में हालात सुधरने पर उन्हें वापस भेज दिया जायेगा। उधर इस मामले के सामने आने के बाद यूनिवर्सिटी में छुट्टी भी कर दी गई है।
इस विषय पर प्रशासनिक व क़ानूनी कार्रवाई से अलग चिंतन करने का जो सबसे बड़ा विषय है वह यह कि अपने अपने घरों में मिलने वाले पारिवारिक सुख चैन को छोड़कर परिजनों से दूर छात्रावास में रहकर अपने उज्जवल भविष्य के सपने संजोने वाली इन युवतियों से विश्वासघात करने व उनके जीवन व भविष्य से खिलवाड़ करने वाली भी एक छात्रा ही है। वह एक लड़की है न कि कोई लड़का ? ज़रा सोचिये यदि कोई पुरुष चोरी-छुपे इस तरह बाथरूम में स्नान करती हुई लड़कियों के वीडीओ बनाता तो यह कहा जाता कि यह पुरुषों की ‘वासनावादी सोच’ का नतीजा है। पुरुष तो होते ही ऐसे हैं,आदि आदि। परन्तु जब एक विश्वविद्यालय की एक छात्रा ही इतनी गन्दी व घटिया सोच के साथ छात्राओं के बीच रह रही है और न केवल उनकी आपत्तिजनक वीडीओ बनाती है बल्कि उन्हें अपने ब्वॉय फ़्रेंड को भेजकर उन्हें वायरल करवाने की भी भागीदार बनती है,ऐसी विकृत मानसिकता रखने वाली लड़की से उसके शेष जीवन में क्या उम्मीद की जा सकती है। उसकी इस शर्मनाक हरकत से न केवल पीड़ित लड़कियों को सारी उम्र शर्मिन्दिगी उठानी पड़ेगी बल्कि अपनी इस ‘कारनामे’ से अपराधी मानसिकता की इस अभियुक्त छात्रा ने स्वयं अपना जीवन भी दाग़दार बना डाला। उसने महिलाओं के प्रति अपना विश्वास हमेशा के लिये खो दिया। यह घटना उसके अपने भविष्य व चरित्र को भी हमेशा प्रभावित करेगी।
बहरहाल इस बेहद शर्मनाक घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वास्तव में औरत की सबसे बड़ी दुश्मन औरत ही होती है। और साथ ही छात्रावास में रहकर पढ़ लिखकर अपने उज्जवल भविष्य के सपने देखने वाली बेटियों के सामने भी यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जब बेटी ही हो जाये बेटी की दुश्मन,तब बेटी को कौन और बचाये ?
निर्मल रानी
बॉय फ्रेंड शब्द पढ़ते मेरा मन आलेख की विषय वस्तु की ओर कम उस बेटी (यदि उसे बेटी कहा गया है) की ओर अधिक गया है जिसने कुकर्म किया| स्वयं बचपन में भारतीय संस्कृति और आज बुढ़ापे में वैश्विकता व उपभोक्तावाद की आधुनिकता को छूते अपने जीवन में मैं इन दो विपरीत परिस्थितियों में संतुलन खोज रहा हूँ! सोचता हूँ कि आदर्श व मर्यादा पर आधारित भारतीय संस्कृति को तथाकथित स्वतंत्रता से पहले बहुत कम, उसके तत्पश्चात फिरंगियों द्वारा शतकों प्रचलित दमनकारी शासकीय संरचना पर पूर्णतया निर्भर १८८५ में जन्में उनकी प्रतिनिधि कार्यवाहक इंडियन नेशनल कांग्रेस की सत्ता में दीर्घ क्षति पहुंची है|
कांग्रेस-मुक्त भारत के पुनर्निर्माण के प्रयास में आज आधुनिकता की उपलब्धियों और युगपुरुष मोदी के नेतृत्व के अंतर्गत केंद्र में राष्ट्रवादी शासन द्वारा सनातन धर्म व संस्कृति-उन्मुख कार्यकलापों में सामाजिक व आर्थिक संबंध को देखते समस्त भारतीयों को दो भाग में बांटा जा सकता है; एक बहुसंख्यक जो अब तक अंग्रेजी भाषा के अज्ञान के कारण चिरकाल से पारंपरिक जीवन यापन करता है व दूसरा अल्पसंख्यक वह भाग जो अंग्रेजी भाषा के प्रभाव में ओतप्रोत पाश्चात्य जीवन शैली अपनाए हुए है| बहुसंख्यक पारंपरिक समाज द्वारा पतित बेटी के कुकर्म की निंदा कर उसे लज्जित लेकिन उसके कुकर्म का दंड पाश्चात्य जीवन शैली अपनाए अल्पसंख्यक अंग्रेजी भाषा में रचित न्याय व विधि व्यवस्था में ढूँढ़ते हैं! अब तक दोष और दंड के इस चक्रव्यूह में निष्क्रिय हम जीवन के उद्देश्य में आदर्श व मर्यादा को भूल गए हैं जिसे आरम्भ से ही हमारे विद्यालयों व धर्म-स्थलों में चरित्र-निर्माण का आधार होना चाहिए था|
बेटी ने दूसरी बेटियों के विरुद्ध कुकर्म करते अपने कुचरित्र का प्रदर्शन किया है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि माता पिता से कुछ अच्छे संस्कार मिले हैं तो पतित बेटी की अंतरात्मा उसे अवश्य कोसती होगी और उसके प्रायश्चित करने पर उसे कारावास नहीं बल्कि क्षमा भी किया जा सकता है| इस के विपरीत पाश्चात्य सभ्यता की देन और उन्हीं की परिभाषा में बिना उत्तरदायित्व के पति स्वरूप “बेटी” से प्रेम-प्रसंगयुक्त संबंध बनाए बॉय फ्रेंड आज पारंपरिक भारतीय समाज के लिए समस्या बना हुआ है| आदर्श व मर्यादा का उल्लंघन करते दोषी को दंडित करने का प्रावधान नीति-निर्माताओं द्वारा इंडियन पीनल कोड १८६० में संशोधन द्वारा नहीं बल्कि राष्ट्र का नाम इंडिया से भारत (अथवा भारतवर्ष) बदलने के साथ पारंपरिक प्राचीन भारत में फिर से स्थापित जीवन के उद्देश्य अतः उसके आदर्श व मर्यादा का उल्लंघन करने पर उचित दंड निर्धारित करना होगा|
लेख अत्यंत सारगर्भित है | अपराधी मानसिकता का जन्म किसी में भी हो सकता है , स्त्री हो या पुरुष | कभी अकेले और कभी मिलकर | हीनता , लालच, जन्मजातीय वैचारिक , पारिवारिक , सामजिक , आर्थिक दरिद्रता आदि सब अपराधों के प्रेणनाश्रोत होते है | ससंस्कारित शिक्षा , माता-पिता , घर से मिलने से आगे जीवन में सही बातो को जानना , समझना और उनपर अनुकरण करना हमे जीवन में एक अच्छा व्यक्ति बनाने में सहायक होता है | अभी उत्तराखंड में अंकिता भंडारी हत्या कांड में दरिंदगी की पराकाष्ठा | आप सबको पता ही है/होगा ???